भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के टीवी चैनलों और कलाकारों को बैन कर रहे हैं. इस बात से लोग न सिर्फ दुखी हैं बल्कि इसका असर व्यापार पर भी पड़ रहा है.
विज्ञापन
इस्लामाबाद की यूनिवर्सिटी में पढ़ने वालीं 21 साल की हमजा खान कहती हैं कि भारतीय चैनलों पर देश में बैन लगने के फैसले से वह और उनका परिवार निराश हैं क्योंकि अब वे अपने पसंदीदा टीवी शो और फिल्में नहीं देख पा रहे हैं. वह कहती हैं, "ऐसा लगता है कि मेरी जिंदगी से कुछ घट गया है." हालांकि पाकिस्तान के ज्यादातर शहरों में भारतीय फिल्मों की पाइरेटेड डीवीडी मिलती हैं. ऑनलाइन वेबसाइटों पर भी कार्यक्रम देखे जा सकते हैं. लिहाजा लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि प्रतिबंध लगाने से हासिल क्या होगा. कराची में एक आर्ट गैलरी चलाने वाले 55 साल के सलीम अहमद कहते हैं, "जब से बैन लगा है, मेरी बीवी तो सदमे में है."
खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में यह बैन ज्यादा तकलीफदेह है क्योंकि महिलाओं के पास मनोरंजन के विकल्प बहुत कम हैं. एक बंद समाज में जहां महिलाओं को घर से बाहर निकलने या अपनी मर्जी से कुछ करने की आजादी बहुत कम है, वहां टीवी चैनल अहम भूमिका अदा करते हैं. भारतीय चैनलों ने उस मांग को पूरा किया था जो पाकिस्तानी टीवी उद्योग पूरी नहीं कर पा रहा था. इसलिए इन टीवी चैनलों का बंद हो जाना लोगों, खासकर महिलाओं को खासा अखर रहा है. 30 साल की रूबिना जान मोहम्मद कहती हैं, "इंडियन ड्रामे देखने के अलावा हमारे पास मन बहलाने का और क्या तरीका है, बताइए? हम अपने घरों से बाहर नहीं जा सकते. हमारे परिवारों के मर्दों को काम के अलावा किसी और वजह से हमारा बाहर जाना भी पसंद नहीं है."
यह भी देखें: टॉयलेट में चूर चूर होते पाकिस्तानी ख्वाब
चूर-चूर होते पाकिस्तानियों के ख्वाब
शरणार्थी संकट के बीच हजारों पाकिस्तानी भी यूरोप में पहुंचे हैं. ग्रीस से पाकिस्तानी इफ्तिखार अलीकी भेजी कुछ तस्वीरें भेजीं यूरोप में बेहतर जिंदगी के इन लोगों के सपने की हकीकत को बयान करती हैं.
तस्वीर: Iftikhar Ali
सफाई का काम
हजारों पाकिस्तानी अपने घरों से निकले और उनकी मंजिल जर्मनी या उसके पड़ोसी देश थे. किसी ने सोचा भी न होगा कि खतरनाक पहाड़ी और समंदरी रास्ते पर जिंदगी दांव पर लगाने के बाद उन्हें एथेंस के शरणार्थी शिविर में शौचालय साफ करना होगा.
तस्वीर: Iftikhar Ali
झूठे सब्जबाग
इनमें से ज्यादा लोग पाकिस्तान के पंजाब प्रांत हैं. एजेंटों ने उन्हें जर्मनी तक पहुंचाने का खर्चा प्रति व्यक्ति पांच लाख रुपए बताया था और सबसे ये पैसा एडवांस में ही ले लिया गया. लेकिन अब एजेंटों के दिखाए सब्जबाग झूठे साबित हो रहे हैं.
तस्वीर: Iftikhar Ali
शरण संभव नहीं
सीरिया और अन्य संकटग्रस्त देशों से आए शरणार्थियों को बालकन देशों के रास्ते जर्मनी जाने की इजाजत दी गई थी. लेकिन यूरोपीय सरकारों का मानना है कि ज्यादातर पाकिस्तानी आर्थिक कारणों से यूरोप आ रहे हैं. इसलिए उन्हें यहां शरण दिए जाने की संभावना बहुत कम है.
तस्वीर: Iftikhar Ali
रहने की शर्त
इन लोगों का कहना है कि ग्रीस में अधिकारियों ने सफाई का काम सिर्फ उन्हें ही सौंपा है. इनसे कहा गया है कि पाकिस्तानी नागरिकों को शरणार्थी शिविर में रखने की इजाजत ही नहीं है, फिर भी उन्हें वहां रहने की इजाजत सिर्फ इस शर्त पर दी गई है कि वो सफाई करेंगे.
तस्वीर: Iftikhar Ali
नाउम्मीद
ऐसे सैकड़ों पाकिस्तानी आप्रवासियों को अब उम्मीद ही नहीं है कि वो ग्रीस से आगे पश्चिमी यूरोप की तरफ जा पाएंगे और इसलिए वो वापस पाकिस्तान जाना चाहते हैं. इनमें से बहुत से मानसिक और शारीरिक बीमारियों का शिकार हैं. कई लोगों ने आत्महत्या की कोशिश भी है.
तस्वीर: Iftikhar Ali
खाना भी पूरा नहीं
ग्रीस में शरण की आस में रह रहे ज्यादातर पाकिस्तानियों का कहना है कि शिविर में उन्हें पर्याप्त खाना भी नहीं मिलता है और वो अच्छा भी नहीं होता है. कई लोगों का कहना है कि उन्हें सिर्फ जिंदा रहने के लिए रोज एक वक्त का खाना दिया जाता है. ऐसे में कई लोग बीमारियों का शिकार हैं.
तस्वीर: Iftikhar Ali
वतन वापसी भी मुश्किल
विडंबना तो ये है कि ज्यादातर लोगों के पास पासपोर्ट या अन्य दस्तावेज भी नहीं है और पाकिस्तान वापस जाना भी उनके लिए कठिन है. एथेंस में पाकिस्तानी दूतावास की तरफ से उनकी पहचान और पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया बहुत धीमी है.
तस्वीर: Iftikhar Ali
याद आते हैं बच्चे
पाकिस्तान के जिला गुजरात से संबंध रखने वाले 41 साल के सज्जाद शाह भी अब वापस वतन लौटना चाहते हैं. उनके तीन बच्चे हैं. वो कहते हैं कि कैंप में बच्चे को खेलते देख उन्हें अपने बच्चे याद आते हैं और जल्द से जल्द उनके पास जाना चाहते हैं.
तस्वीर: Iftikhar Ali
खराब हालात
अन्य देशों से संबंध रखने वाले आप्रवासियों और शरणार्थियों को यूनानी अधिकारियों ने रिहायशी इमारतों में रहने को जगह दी है जबकि पाकिस्तानियों को ज्यादातर अस्थायी शिविरों में रखा गया है. हालत इसलिए भी खराब है कि उन्हें यूरोप की कड़ी सर्दी की आदत नहीं है.
तस्वीर: Iftikhar Ali
नहीं मिलता जवाब
इन लोगों का कहना है यात्रा दस्तावेजों के लिए उन्होंने एथेंस के पाकिस्तानी दूतावास में अर्जी दी है लेकिन महीनों बाद भी कोई जबाव नहीं मिला है. कुछ लोगों ने शरणार्थी एजेंसी से भी खुद को स्वदेश भिजवाने की अपील की, लेकिन उन्होंने कहा कि इसके लिए पासपोर्ट या अन्य दस्तावेज चाहिए.
तस्वीर: Iftikhar Ali
गुहार
बहुत से लोगों ने पाकिस्तान सरकार से भी जल्द से जल्द वतन वापसी की गुहार लगाई है. एहसान नाम के एक पाकिस्तानी आप्रवासी ने डीडब्ल्यू को बताया, “न हम वापस जा सकते हैं और न आगे. बस पछतावा है और यहां टॉयलेट की सफाई का काम है.”
तस्वीर: Iftikhar Ali
11 तस्वीरें1 | 11
हाल के दिनों में दोनों देशों के राजनीतिक संबंध खराब होने का सबसे बड़ा असर मनोरंजन उद्योग पर पड़ा है. दोनों देशों में एक दूसरे के टीवी शो काफी पसंद किए जाते हैं. भारत में जी टीवी के चैनल जिंदगी पर पाकिस्तानी ड्रामे दिखाए जाते थे. भारतीय महिला दर्शकों में ये सीरियल काफी पसंद किए जा रहे थे. लेकिन संबंध खराब होने के बाद इस चैनल पर पाकिस्तानी सीरियलों का प्रसारण बंद कर दिया गया. 2006 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के आदेश के बाद देश में भारतीय चैनलों का प्रसारण शुरू हुआ था. पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेग्युलेटरी अथॉरिटी के प्रवक्ता ताहिर बताते हैं कि नया आदेश 2006 के उस आदेश को पलट देगा.
इन प्रतिबंधों का असर व्यापारियों पर भी पड़ा है. पाकिस्तानी केबल ऑपरेटर्स इस बात को लेकर खासे परेशान हैं कि लोग सब्सक्रिप्शन छोड़ रहे हैं. बैन लगने के बाद उनके ग्राहकों की तादाद घट रही है. केबल ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ पाकिस्तान के चेयरमैन खालिद अरैन कहते हैं, "लोग तो हमारे ऊपर चिल्ला रहे हैं. लोगों को इस बात की परवाह नहीं है कि कॉन्टेंट कहां से आ रहा है."
देखिए, पाकिस्तान का भव्य मंदिर
और फिर यह भी तो समस्या है कि प्रतिबंध प्रभावी भी नहीं हो पा रहा है. अरैन पूछते हैं, "देश में 40 लाख डायरेक्ट टु होम कनेक्शन हैं जहां सैटलाइट से चैनल सीधे भारत से लोगों के घरों में आ रहे हैं. उन्हें आप कैसे हटाएंगे?"