सियासत में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. यही बात कूटनीति पर भी हूबहू लागू होती है. भारत का स्थायी दोस्त रहा रूस अब भारत के स्थायी दुश्मन पाकिस्तान के नजदीक जा रहा है.
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साल 2016 भारत के लिए एक दोस्ती के दरकने का साल रहा. भारत के विदेश मंत्रालय को शायद यह बात आधिकारिक तौर पर हजम करने में अभी समय लगे, लेकिन दुनिया को लगातार संकेत मिल रहे हैं कि भारत और रूस की दोस्ती की जमीन खिसक रही है. भारत बरसों तक जिस रूस की दोस्ती की कसमें खाता रहा, वह अब पाकिस्तान के नजदीक जा रहा है.
इस बात पर तर्क हो सकता है कि भारत ने रूस को खोया या पाकिस्तान ने उसे हासिल किया है. यह भारत की विफलता है या फिर पाकिस्तान की सफलता? लेकिन हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. अमेरिका से भारत को जो रिश्ते मजबूत हो रहे थे, क्या यह उन्हीं की कीमत है? भारत को एक नए दोस्त की खातिर पुराने दोस्त को गंवाना पड़ रहा है?
इसी नजरिए से देखें को पाकिस्तान ने अमेरिका के बदले रूस की दोस्ती पाई है. अमेरिका से रिश्तों में लगातार बढ़ती तल्खी को देखते हुए उसे नए दोस्तों की जरूरत थी. उसका एक पुराना दोस्त चीन भी मजबूती से उसके साथ खड़ा है.
देखिए रूस-अमेरिका में युद्ध हो जाए तो..
रूस-अमेरिका में युद्ध हो जाए तो
शीत युद्ध के बाद रूस अमेरिका के रिश्ते एक बार फिर खराब दौर से गुजर रहे हैं. यहां तक कि युद्ध की बात भी होने लगी है. मिलिट्री टाइम्स ने दोनों की सैन्य शक्ति की तुलना की है. देखिए...
तस्वीर: Reuters/Sputnik/Kremlin/A. Druzhinin
डिफेंस बजट
रूस का रक्षा बजट है 60 अरब डॉलर. अमेरिका का 560 अरब डॉलर.
रूस के पास 8 लाख 45 हजार सैनिक हैं. अमेरिका के पास हैं 13 लाख 50 हजार.
तस्वीर: Getty Images/D. Karadeniz
एयरक्राफ्ट
रूस के पास 1200 टैक्टिकल एयरक्राफ्ट हैं. अमेरिका के पास 3290.
तस्वीर: picture alliance/PIXSELL/S. Ilic
लॉन्ग रेंज एयरक्राफ्ट
दूर तक जाकर मार करने वाले रूस के पास 180 विमान हैं. अमेरिका के पास 157.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Maeshiro
युद्धक पोत
समुद्रतल पर जंग में सक्षम जहा रूस के पास हैं 217. अमेरिका के पास 272.
तस्वीर: Reuters//U.S. Navy/Mass Communication Specialist Seaman Anna Van Nuys
विमानवाहक युद्धपोत
रूस के पास सिर्फ एक है. अमेरिका के पास 10 हैं.
तस्वीर: Reuters/Norwegian Royal Airforce
पनडुब्बी
रूस के पास 59 पनडुब्बियां हैं. अमेरिका के पास 71.
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परमाणु हथियार
रूस के पास 7700 परमाणु हथियार हैं. अमेरिका के पास 7100.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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इसे पाकिस्तान की कूटनीति की कामयाबी कहा जा सकता है कि जब वह अमेरिका का पक्का दोस्त था, तब भी यह दोस्ती चीन से उसके रिश्तों में कभी आड़े नहीं आई जबकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन और अमेरिका कई मुद्दों पर टकराते रहे. अब तो पाकिस्तान रूस और चीन के जिस अघोषित गठबंधन का हिस्सा बना है, उसमें तो कोई बड़ा आपसी मतभेद नजर ही नहीं आता.
यह बात सही है कि भारत अब भी रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार है. लेकिन रूस के लिए अब प्राथमिकताएं बदल रही हैं. लेकिन भारत अमेरिका और रूस, दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने में नाकाम रहा है. इस साल ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत का दौरा किया था. उससे ठीक पहले, भारत की आपत्तियों के बावजूद रूसी सेना ने पाकिस्तान के साथ पहली बार साझा सैन्य अभ्यास किया.
गोवा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कह कर रूस को थामे रखने के लिए कहा कि एक पुराना दो नए दोस्तों से बेहतर होता है. लेकिन पुराने दोस्त यानी रूसी राष्ट्रपति ने इस दोस्ती पर कुछ नहीं कहा. इससे पता चलता है कि बात अब बहुत आगे निकल चुकी है.
हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक कौन है, देखिए..
हथियारों का सबसे बड़ा निर्यातक कौन
स्टॉकहोम इंटरनेशल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने अपनी 2016 रिपोर्ट में बताया है कि साल 2011-15 के बीच वैश्विक हथियार व्यापार में 2006-10 के मुकाबले 14 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई. देखिए सबसे बड़े निर्यातक देश कौन हैं.
तस्वीर: Fotolia/Haramis Kalfar
1. अमेरिका
दुनिया के 58 देश हथियारों का निर्यात करते हैं जिनमें सबसे आगे है अमेरिका. यूएसए 96 देशों को हथियार भेजता है, जिनमें सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात उसके सबसे बड़े खरीदार हैं. 2015 के अंत में ही अमेरिका ने एफ-35 विमानों की बिक्री के एक बड़े ठेके पर हस्ताक्षर किए.
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2. रूस
दुनिया भर के हथियारों के कुल व्यापार में एक चौथाई हिस्सेदारी रूस की है. भारत, चीन और वियतनाम इसके सबसे बड़े खरीदार हैं. भारत के तो 70 फीसदी हथियार रूस से ही आते हैं. इसके अलावा अपने लड़ाकू विमानों, टैंकों, परमाणु पनडुब्बियों और राइफलों को रूस ने यूक्रेन समेत दुनिया के 50 देशों में भेजा.
पिछले सालों में चीन हथियारों के मामले में ज्यादा आत्मनिर्भर हुआ है और आयात कम कर निर्यात को बढ़ाया है. चीन ने पिछले साल 37 देशों को हथियारों की आपूर्ति की, जिनमें पाकिस्तान (35%), बांग्लादेश (20%) और म्यांमार (16%) इसके सबसे बड़े ग्राहक रहे. 2006-10 और 2011-15 के बीच चीनी हथियारों के निर्यात में 88 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई.
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4. फ्रांस
हालांकि फ्रेंच हथियारों के निर्यात में 2010 के बाद से 9.8% की कमी आई है, फिर भी वह दुनिया में चौथे नंबर का आर्म्स एक्सपोर्टर बना हुआ है. यूरोप में उससे बाद आने वाले जर्मनी से निर्यात कम हुआ है. हाल ही मिले कुछ बड़े ठेकों के कारण फ्रांस के अगले साल भी निर्यातकों के टॉप 5 में शामिल रहने का अनुमान है.
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5. जर्मनी
प्रमुख जर्मन हथियारों के निर्यात में वर्ष 2011-15 के बीच 51 फीसदी की कमी आई. इन सालों में जर्मनी ने अपने खास हथियार 57 देशों को भेजे. इन्हें आयात करने वालों में 29 प्रतिशत तो अन्य यूरोपीय देश ही थे. इसके बाद एशिया, अमेरिका, ओशिनिया को 23 प्रतिशत जबकि इतना ही मध्य पूर्व को बेचा गया. अमेरिका, इजरायल और ग्रीस जर्मन हथियारों के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं.
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6. ब्रिटेन
अगर सऊदी अरब (46%), भारत (11%) और इंडोनेशिया (8.7%) जैसे बाजार ना हों तो ब्रिटिश हथियार उद्योग दिवालिया हो जाएगा. साल 2006–10 और 2011–15 के बीच ब्रिटेन से हथियारों का निर्यात करीब 26 प्रतिशत बढ़ा. यूरोप में इसके बाद स्पेन और इटली का स्थान आता है.
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इसके बाद, जब अमृतसर में अफगानिस्तान के मुद्दे पर हुए हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाए तो रूस ने इसका विरोध किया. रूसी दूत ने कहा कि पाकिस्तान की आलोचना करना गलत है और एक दूसरे पर इल्जाम लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा. साफ तौर पर पाकिस्तान को अलग थलग करने की भारत की कोशिशों के लिए यह धक्का था. रूस का यह रुख तब था जब अफगानिस्तान अपने यहां आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए लगातार पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता रहा है.
पाकिस्तान को अलग थलग करने की भारत की कोशिशें दक्षिण एशिया में तो कामयाब रही, लेकिन लगता है कि इनके चलते सार्क के ताबूत में आखिरी कीलें ठोंकी जा रही हैं. ब्रिक्स पर भी ग्रहण लग ही गया है. पाकिस्तान को यह बात अब शायद समझ आ गई है कि सार्क में वह भारत के दबदबे की काट नहीं कर सकता. इसीलिए भी पाकिस्तान के लिए नई दोस्तियां कायम करना लाजिमी हो गया है. वह पहले भी दक्षिण एशिया से ज्यादा मध्य एशिया की ओर देखता रहा है.
दक्षिण एशिया में भले भारत का दबदबा हो, लेकिन बड़े खेल में भारत को बड़े साझीदार यानी अमेरिका की जरूरत है. ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भारत और अमेरिकी रिश्ते किधर जाएंगे, यह अभी साफ नहीं है. ट्रंप जिस तरह से अब तक अपनी कही बातों पर पलट जाने में माहिर रहे हैं, उसे देखते हुए भारत को सावधान रहने की जरूरत है. कुल मिलाकर, आने वाला साल 2017 भारत की विदेश नीति के लिए चुनौती भरा साल होगा. हो सकता है कि पाकिस्तान-चीन-रूस की दोस्ती से समय समय पर ऐसी बातें सामने आती रहें जिन्हें पचाना भारतीयों के लिए मुश्किल हो.
व्लादिमीर पुतिन के अलग अलग चेहरे
फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 2016 के सबसे ताकतवर इंसान हैं. उनके बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप हैं. आइए, देखते पुतिन की शख्सियत के अलग-अलग पहलू.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
केजीबी से क्रेमलिन तक
पुतिन 1975 में सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी में शामिल हुए थे. 1980 के दशक में उन्हें जर्मनी के ड्रेसडेन में एजेंट के तौर पर नियुक्त किया गया. यह विदेश में उनकी पहली तैनाती थी. बर्लिन की दीवार गिरने के बाद वह वापस रूस चले गए. बाद में वे येल्त्सिन की सरकार में शामिल हो गए. बोरिस येल्त्सिन ने घोषणा की कि पुतिन उनके उत्तराधिकारी होंगे और उन्हें रूस का प्रधानमंत्री बनाया गया.
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पहली बार राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्ति के समय पुतिन आम लोगों के लिए एक अनजान चेहरा थे. लेकिन अगस्त 1999 में सब बदल गया जब चेचन्या के कुछ हथियारबंद लोगों ने रूस के दागेस्तान इलाके पर हमला किया. राष्ट्रपति येल्त्सिन ने पुतिन को काम सौंपा कि चेचन्या को वापस केंद्रीय सरकार के नियंत्रण में लाया जाए. नए साल की पूर्व संध्या पर येल्त्सिन ने अचानक इस्तीफे का ऐलान किया और पुतिन को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया.
तस्वीर: picture alliance/AP Images
दमदार व्यक्तित्व
मीडिया में पुतिन की अकसर ऐसी तस्वीरें छपती रहती हैं जो उन्हें एक दमदार व्यक्तित्व का धनी दिखाती हैं. उनकी यह तस्वीर सोची में एक नुमाइशी हॉकी मैच की है जिसमें पुतिन की टीम 18-6 से जीती. राष्ट्रपति ने आठ गोल किए.
तस्वीर: picture-alliance/AP/A. Nikolsky
बोलने पर बंदिशें
रूस में एक विपक्षी रैली में एक व्यक्ति ने मुंह पर पुतिन के नाम की टेप लगा रखी है. 2013 में क्रेमलिन ने घोषणा की कि सरकारी समाचार एजेंसी रियो नोवोस्ती को नए सिरे से व्यवस्थित किया जाएगा. उसका नेतृत्व एक क्रेमलिन समर्थक अधिकारी को सौंपा गया जो अपने पश्चिम विरोधी ख्यालों के लिए मशहूर था. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर नाम की संस्था प्रेस आजादी के मामले में रूस को 178 देशों में 148वें पायदान पर रखती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V.Maximov
पुतिन की छवि
पुतिन को कदम उठाने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है. केजीबी का पूर्व सदस्य होना भी इसमें मददगार होता है. इस छवि को बनाए रखने के लिए अकसर कई फोटो भी जारी होते हैं. इन तस्वीरों में कभी उन्हें बिना कमीज घोड़े पर बैठा दिखाया जाता है तो कभी जूडो में अपने प्रतिद्वंद्वी को पकटते हुए. रूस में पुतिन को देश में स्थिरता लाने का श्रेय दिया जाता है जबकि कई लोग उन पर निरंकुश होने का आरोप लगाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Nikoskyi
सवालों में लोकतंत्र
जब राष्ट्रपति पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी ने 2007 के चुनावों में भारी जीत दर्ज की तो आलोचकों ने धांधली के आरोप लगाए. प्रदर्शन हुए, दर्जनों लोगों को हिरासत में लिया गया और पुतिन पर लोकतंत्र को दबाने के आरोप लगे. इस पोस्टर में लिखा है, “आपका शुक्रिया, नहीं.”
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y.Kadobnov
खतरों के खिलाड़ी
काले सागर में एक पनडुब्बी की खिड़की से झांकते हुए पुतिन. क्रीमिया के सेवास्तोपोल में ली गई यह तस्वीर यूक्रेन से अलग कर रूस में मिलाए गए इस हिस्से पर रूसी राष्ट्रपति पुतिन का पूरी तरह नियंत्रण होने का भी प्रतीक है.