भारत और पाक को साथ लेकर कैसे चलेगा सऊदी अरब
२७ सितम्बर २०२५
इस महीने पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक नए रक्षा समझौते ने कूटनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. यह घोषणा ऐसे समय में आई है, जब इस्राएल ने कतर में हमास के परिसर को निशाना बनाया. इसके अलावा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अनिश्चितता और मई में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष ने क्षेत्र की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. ऐसे में, पाकिस्तान और सऊदी अरब के रक्षा करार पर ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के शोधकर्ता जोशुआ व्हाइट का कहना है कि "मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में नाटकीय बदलावों के आदी लोग भी इस घोषणा से चौंक गए.”
ऐतिहासिक सैन्य संबंध हुए को औपचारिक
विशेषज्ञ कहते हैं कि यह समझौता सऊदी-पाकिस्तानी सुरक्षा और रक्षा सहयोग को औपचारिक रूप देने और उन्हें और गहरा करने का संकेत है. व्हाइट बताते हैं कि यह 1982 के प्रोटोकॉल समझौते पर आधारित है, जिसके तहत उस समय पाकिस्तान के सैनिकों की सऊदी अरब में तैनाती हुई थी.
विदेश मामलों की यूरोपीय परिषद में खाड़ी देशों की विशेषज्ञ कमील लोंस ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "सऊदी सेना के कई अधिकारियों को पाकिस्तानी सेना ने ट्रेन किया है, और सऊदी रक्षा मंत्रालय में पाकिस्तानी अधिकारी तैनात हैं”. उन्होंने आगे बताया कि यह समझौता लंबी बातचीत का परिणाम है. लेकिन वे कहती हैं, "हालांकि इसे हाल की घटनाओं से सीधा जोड़ना ठीक नहीं होगा, लेकिन यह जरूर है कि यह फैसला इस्राएल की बढ़ती ताकत और अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर सऊदी शंकाओं पर प्रतिक्रिया माना जा सकता है.”
लाहौर विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रेटेजी एंड पॉलिसी रिसर्च के सैयद अली जिया जाफरी कहते हैं, "इस तरह पाकिस्तान इस समझौते के जरिए खाड़ी देशों की सुरक्षा संरचना में अपनी बढ़ती अहमियत को दर्शा सकता है, जबकि अब तक अमेरिका पर निर्भर सऊदी अरब इस वक्त सुरक्षा के अपने स्रोतों में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है.”
क्या समझौते में परमाणु आयाम शामिल हैं?
एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान के पास 170 परमाणु हथियार हैं, लेकिन क्या वे इस समझौते के दायरे में आते हैं, यह अभी अस्पष्ट है. दोनों पक्षों ने परमाणु सुरक्षा कवच पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. अभी तक ऐसे परमाणु कवच समझौते केवल दो ही हैं: जिसमें से एक है यूरोपीय संघ को अमेरिका की गारंटी और बेलारूस को रूस की गारंटी.
कुछ विशेषज्ञों ने इसकी संभावना जताई है. एक रिटायर्ड सऊदी जनरल ने एएफपी को बताया कि समझौते में "पारंपरिक और गैर-पारंपरिक, दोनों साधनों का उल्लेख है और इसमें साफ तौर पर पाकिस्तानी परमाणु हथियारों की बात का भी जिक्र है.” सऊदी विश्लेषक और सऊदी राजसी परिवार के करीबी अली शिहाबी ने भी कहा कि "परमाणु हथियार इस समझौते का अनिवार्य हिस्सा हैं.”
हालांकि, क्षेत्रीय विशेषज्ञों को अब भी कुछ साफ नजर नहीं आ रहा है. जाफरी के अनुसार, "पाकिस्तान के पास कोई परमाणु कवच नहीं है और ऐसा कोई सबूत नहीं है कि इसे सऊदी अरब को उपलब्ध कराया जाएगा. पाकिस्तान का परमाणु सिद्धांत, नीति, रुख, रणनीति और क्षमताएं केवल भारत-केंद्रित हैं.”
भारत और क्षेत्रीय संतुलन
सऊदी अरब के भारत के साथ भी मजबूत संबंध हैं. भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में सऊदी तेल की अहम भूमिका है. लोंस का कहना है, "क्या सऊदी अरब भारत-पाकिस्तान संघर्ष में शामिल होगा? मुझे नहीं लगता. ऐसा करना सऊदी अरब की उस कूटनीति के एकदम खिलाफ जाता है जिसे वो हासिल करना चाह रहा है, जो भारत की तरह बहु आयामों वाली है.”
इस साल पाकिस्तान और भारत के बीच चार दिनों तक चले सैन्य टकराव के कुछ ही महीनों बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं. तो सऊदी अरब आगे ऐसे संघर्षों से कैसे निपटेगा? व्हाइट ने कहा, "रियाद की प्रवृत्ति निष्क्रिय रहने की होगी. भारत के साथ कड़ी मेहनत से बनाए गए व्यापारिक रिश्ते संभालते हुए उसे पाकिस्तान के प्रति अपने सुरक्षा दायित्वों का पालन करना होगा. और अब उस संतुलन को बनाए रखना कठिन होगा.”