अमेरिकी बेघरों का पेट भरने वाला पाकिस्तानी रेस्तरां
२४ दिसम्बर २०१८![USA Obdachloser mit Models in New York](https://static.dw.com/image/18982613_800.webp)
DC restaurant feeds the poor
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बेघर, खाने पीने और बच्चों की जरूरत पूरी करने के लिए पैसों की कमी. आंकड़ों को देखें तो जर्मनी में हर तीसरा व्यक्ति गरीबी से प्रभावित है. लेकिन उनके लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं.
जर्मनी में गरीबों का ऐसे ध्यान रखा जाता है
बेघर, खाने पीने और बच्चों की जरूरत पूरी करने के लिए पैसों की कमी. आंकड़ों को देखें तो जर्मनी में हर तीसरा व्यक्ति गरीबी से प्रभावित है. लेकिन उनके लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं.
डांवाडोल भविष्य
यह फोटो जर्मन शहर ब्रेमन के सबसे गरीब समझे जाने वाले इलाके की है. इस शहर में हर पांचवें व्यक्ति पर गरीबी की तलवार लटक रही है. जर्मनी में गरीब उसे समझा जाता है जिसकी मासिक आमदनी मध्य वर्ग के लोगों की औसत आमदनी से 60 फीसदी से भी कम हो.
भूख के खिलाफ जंग
ब्रेमन में ऐसी 30 गैर सरकारी संस्थाएं सक्रिय हैं, जिन्होंने गरीबी और भूख के खिलाफ जंग छेड़ी है. ये संस्थाएं सुपरमार्केट और बेकरियों से बचा हुआ खाना लेकर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाती हैं. ऐसी ही एक संस्था रोज सवा सौ लोगों को खाना मुहैया कराती है.
नस्लवाद नहीं
शहर एसेन में एक निजी संस्था ने विदेशी लोगों को मुफ्त में खाना ना देने का फैसला किया था, लेकिन कड़ी आलोचना के बाद फैसले को वापस ले लिया गया. वहीं ब्रेमन में काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि वे हर रंग और नस्ल के गरीब लोगों की मदद करते हैं.
मदद को बढ़ते हाथ
अस्सी साल के वेर्नर डोजे वॉलेंटियर के तौर पर ब्रेमन टाफल नाम की संस्था के साथ काम करते हैं जो गरीबों को खाना मुहैया कराती है. कई लोग एक यूरो प्रति घंटा के हिसाब से काम करते हैं जबकि बहुत से छात्र गरीबी के खिलाफ इस जंग में वॉलेंटियर के तौर पर शामिल हैं.
उजड़े घर
पूर्वी जर्मनी में कभी हाले शहर की रौनकें देखने वाली थीं लेकिन अब इस शहर के कई इलाके वीरान हो चुके हैं. शहर में बेरोजगारी दर बहुत ज्यादा है. ऐसे में रोजगार की तलाश यहां के लोगों को शहर छोड़ने पर मजबूर कर रही है.
जरूरतमंदों की मदद
हाले में गरीब लोगों को कम कीमत पर खाने की चीजें और कपड़े मुहैया कराए जाते हैं. इन 'सोशल मार्केट्स' में सबसे गरीब तबके के बच्चों और लोगों को प्राथमिकता के आधार पर चीजें दी जाती हैं. लेकिन समस्या यह है कि शहर में ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है.
ज्यादातर विदेशी खरीदार
कई ऐसे स्टोर हैं जहां घर की चीजें सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं. स्टोर चलाने वालों का कहना है कि उनके यहां खरीदारी करने वाले लोगों में सबसे ज्यादा विदेशी और शरणार्थी हैं. उनके मुताबिक, जर्मन लोग इस्तेमाल की हुई चीजों को खरीदने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते.
गरीबी में बचपन
जर्मनी में करीब दस लाख बच्चे गरीबी का शिकार हैं. ऐसे बच्चे ना तो अपना बर्थडे मनाते हैं और न ही स्पोर्ट्स क्लबों में दाखिल होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी में हर सातवां बच्चा सरकार की तरफ से दी जाने वाली सरकारी सहायता का मोहताज है.
कोई बच्चा भूखा ना रहे
शिनटे ओस्ट नाम की एक संस्था छह से 15 साल के पचास बच्चों को स्कूल के बाद खाना मुहैया कराती है. संस्था की निदेशक बेटिना शापर कहती हैं कि कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें एक वक्त का भी गरम खाना नसीब नहीं होता. यह संस्था चाहती है कि कोई भी बच्चा भूखा ना रहे.
हम एक परिवार हैं
बेटिना शापर कहती हैं कि जरूरतमंद बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिनमें शरणार्थी बच्चों की बड़ी संख्या है. उनकी संस्था बच्चों को खाना मुहैया कराने के अलावा उन्हें होमवर्क और दूसरे कामों में भी मदद करती है. बच्चों को दांत साफ करने का सही तरीका भी सिखाया जाता है.
बढ़ता अकेलापन
एक आंकड़े के मुताबिक जर्मनी की राजधानी बर्लिन में लगभग छह हजार लोग सड़कों पर सोने को मजबूर हैं. बर्लिन के बेघरों में 60 फीसदी विदेशी लोग हैं और इनमें से ज्यातार पूर्वी यूरोप के देशों से संबंध रखते हैं.
सपने चकनाचूर
एक हादसे में अपनी एक टांग गंवाने वाले योर्ग छह साल से बेघर हैं. वह कहते हैं कि बर्लिन में बेघरों की तादाद बढ़ने के साथ साथ उनमें आपस में टकराव भी बढ़ रहा है. निर्माण के क्षेत्र में काम कर चुके योर्ग की तमन्ना है कि वह फिर से ड्रम बजाने के काबिल हो पाएं.