पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों का कहना है कि पिछले एक साल में उन्हें प्रताड़ित किए जाने की घटनाओं में इजाफा हुआ है. वे सरकार और विपक्ष, दोनों पर ही खुद को प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हैं.
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पाकिस्तान में लगभग पांच लाख अहमदिया लोग रहते हैं. उनका प्रतिनिधित्व करने वाले एक समूह जमात अहमदिया की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है, "भेदभावपूर्ण कानूनों का फायदा उठा कर पाकिस्तान में 77 अहमदिया लोगों के खिलाफ 77 मामले दर्ज किए गए."
रिपोर्ट कहती है कि सरकार और विपक्षी दल, राजनीतिक फायदा हासिल करने के चक्कर में अहमदिया लोगों के खिलाफ नफरत को भड़काते हैं और 'खत्म ए नुबुआत' का नारा देते हैं जिसका अर्थ होता है कि मोहम्मद ही आखिरी पैगंबर थे. बहुत से मुसलमान मोहम्मद को ही आखिरी पैगंबर मानते हैं लेकिन अहमदिया लोगों का विश्वास है कि उनके बाद भी एक पैगंबर आए थे जिनका नाम मिर्जा गुलाम अहमद है. अहमदिया लोग खुद को मुसलमान कहते हैं लेकिन 1974 के पाकिस्तान के संविधान में उन्हें गैर मुसलमान घोषित किया गया है, जिसकी वजह पैगंबर मोहम्मद को आखिरी पैगंबर ना मानने वाली उनकी विचारधारा है.
यहां आज भी होता है महिलाओं का खतना
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) या आसान भाषा में कहें तो महिला खतना पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोक के बावजूद दुनिया के कई देशों में यह एक हकीकत है. इसमें क्या होता है और यह कितने देशों में फैला हुआ है, चलिए जानते हैं.
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करोड़ों का खतना
दुनिया भर में लगभग 20 करोड़ महिलाओं और लड़कियों का खतना हुआ है. माना जाता है कि अफ्रीका में हर साल तीस लाख लड़कियों पर इसका खतरा मंडरा रहा है.
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कौन कौन प्रभावित
समझा जाता है कि तीस अफ्रीकी देशों, यमन, इराकी कुर्दिस्तान और इंडोनेशिया में महिला खतना ज्यादा चलन में है. वैसे भारत समेत कुछ अन्य एशियाई देशों में भी इसके मामले मिले हैं.
पुरानी बेड़ियां
औद्योगिक देशों में बसी प्रवासी आबादी के बीच भी महिला खतना के मामले देखे गए हैं. यानि नए देश और समाज का हिस्सा बनने के बावजूद कुछ लोग अपनी पुरानी रीतियों को जारी रखे हुए हैं.
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यहां होता है सबका खतना
जिन देशों में लगभग सभी महिलाओं को खतना कराना पड़ता है, उनमें सोमालिया, जिबूती और गिनी शामिल हैं. ये तीनों ही देश अफ्रीकी महाद्वीप में हैं.
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ऐसे होता है महिला खतना
महिला खतना कई तरह का होता है. लेकिन इसमें आम तौर पर क्लिटोरिस समेत महिला के जननांग के बाहरी हिस्से को आंशिक या पूरी तरह हटाया जाता है. कई जगह योनि को सिल भी दिया जाता है.
खतने की उम्र
लड़कियों का खतना शिशु अवस्था से लेकर 15 साल तक की उम्र के बीच होता है. आम तौर पर परिवार की महिलाएं ही इस काम को अंजाम देती हैं.
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खतने के औजार
साधारण ब्लेड या किसी खास धारदार औजार के जरिए खतना किया जाता है. हालांकि मिस्र और इंडोनेशिया जैसे देशों में अब मेडिकल स्टाफ के जरिए महिलाओं का खतना कराने का चलन बढ़ा है.
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धार्मिक आधार?
महिला खतने का चलन मुस्लिम और ईसाई समुदायों के अलावा कुछ स्थानीय धार्मिक समुदायों में भी है. आम तौर पर लोग समझते हैं कि धर्म के मुताबिक यह खतना जरूरी है लेकिन कुरान या बाइबिल में ऐसा कोई जिक्र नहीं है.
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खतने का मकसद
माना जाता है कि महिला की यौन इच्छा को नियंत्रित करने के लिए उसका खतना किया जाता है. लेकिन इसके लिए धर्म, परंपरा या फिर साफ सफाई जैसे कई और कारण भी गिनाए जाते हैं.
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विरोध की सजा
बहुत से लोग मानते हैं कि खतने के जरिए महिलाएं पवित्र होती हैं, इससे समुदाय में उनका मान बढ़ता है और ज्यादा कामेच्छा नहीं जगती. जो लड़कियां खतना नहीं करातीं, उन्हें समुदाय से बहिष्कृत कर दिया जाता है.
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खतने के खतरे
महिला खतने के कारण लंबे समय तक रहने वाला दर्द, मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं, पेशाब का संक्रमण और बांझपन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कई लड़कियों की ज्यादा खून बहने से मौत भी हो जाती है.
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बड़ी कीमत
खतने के कारण उस महिला को मां बनने के समय बहुत सी जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है. इसके कारण कई तरह की मानसिक समस्याएं और अवसाद भी हो सकता है.
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कमजोर कानून
बहुत ही अफ्रीकी देशों में महिला खतने पर प्रतिबंध है. लेकिन अकसर इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया जाता है. वहीं माली, सिएरा लियोन और सूडान जैसे देशों में यह कानूनी है.
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यूएन का प्रस्ताव
महिला खतने से कई अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन होता है. 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने महिला खतने को खत्म करने के लिए एक प्रस्ताव स्वीकार किया था.
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पाकिस्तान के न्याय मंत्री को पिछले साल उस वक्त इस्तीफा देना पड़ा जब एक कट्टरपंथी मौलवी के समर्थकों ने उन्हें ईशनिंदा का आरोपी करार दिया. उन्होंने चुनाव से जुड़े एक कानून में बदलाव करने की कोशिश की थी जिसे अहमदिया लोगों के प्रति नरमी के तौर पर देखा गया. जमात अहमदिया के प्रवक्ता सलीमुद्दीन का कहना है कि यह इस्तीफा दिखाता है कि सरकार कट्टरपंथियों के सामने कितनी बेबस है. वह कहते हैं, "अहमदिया लोगों का उत्पीड़न और दमन नई ऊचाइयों को छू रहा है."
जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए ने जब इस बारे में पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्रालय की राय लेनी चाहती तो उनकी तरफ से कोई जबाव नहीं आया. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग का कहना है कि 2017 के दौरान पाकिस्तान में ईशनिंदा संबंधी हिंसा और गुस्साई भीड़ के हमलों की वारदातें बढ़ी हैं.
एके/ओएसजे (डीपीए)
इसलिए ईरान की सऊदी अरब से नहीं पटती
मध्य पूर्व के दो ताकतवर देशों सऊदी अरब और ईरान के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता है. दोनों धर्म से लेकर तेल और इलाके में दबदबा कायम करने तक, हर बात पर झगड़ते हैं.
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शिया-सुन्नी टकराव
दोनों ही देश खुद को इस्लाम की दो अलग अलग शाखों का संरक्षक मानते हैं. सऊदी अरब जहां एक सुन्नी देश है, वहीं ईरान शिया देश. इसीलिए ये दोनों दुनिया भर में शिया और सुन्नियों के बीच होने वाले विवादों की धुरी माने जाते हैं.
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तेल के दाम
1973 में अरब-इस्राएल युद्ध के दौरान तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने तेल के दाम बहुत बढ़ा दिये थे. अरब तेल उत्पादक देशों ने इस्राएल समर्थक समझे जाने वाले देशों पर रोक लगा दी, जिनमें अमेरिका भी शामिल था.
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तनाव बढ़ा
ईरान चाहता था कि तेल के दाम और बढ़ाये जाएं ताकि उसके यहां महत्वाकांक्षी औद्योगिक विकास परियोजनाओं के लिए धन मिल सके. लेकिन सऊदी अरब नहीं चाहता था कि तेल के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो. इसके पीछे उसका मकसद अपने सहयोगी देश अमेरिका को बचाना था.
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क्रांति का निर्यात
ईरान में 1979 में हुई इस्लामी क्रांति के दौरान पश्चिम समर्थक शाह को सत्ता से बेदखल किया गया और देश में इस्लामी गणतंत्र की स्थापना हुई. इसके बाद क्षेत्र के सुन्नी देशों ने ईरान पर आरोप लगाया कि वह उनके यहां क्रांति को "भेजने" की कोशिश कर रहा है.
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इराक-ईरान युद्ध
सितंबर 1980 में इराक ने ईरान पर हमला कर दिया और यह युद्ध आठ साल तक चला. सऊदी अरब ने वित्तीय रूप से इराकी सरकार की मदद की और अन्य सुन्नी देशों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित किया. इससे ईरान और सऊदी अरब की कड़वाहट और बढ़ी.
तस्वीर: AP
हज में टकराव
सऊदी सुरक्षा बलों ने 1987 में मक्का में ईरानी श्रद्धालुओं के अनाधिकृतक अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई की. इस दौरान 400 लोग मारे गये हैं. इससे गुस्साए ईरानियों ने तेहरान में सऊदी दूतावास में लूटपाट की.
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हज का सियासी इस्तेमाल
अप्रैल 1988 में सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये. 1991 तक ईरान से कोई श्रद्धालु हज यात्रा पर नहीं गया. ईरान अकसर सऊदी अरब पर हज यात्रा को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाता रहा है.
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बेहतर हुए संबंध
ईरान में मई 1997 के राष्ट्रपति चुनावों में सुधारवादी मोहम्मद खतामी की जीत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में सुधार देखने को मिला. मई 1999 में राष्ट्रपति ईरानी राष्ट्रपति ने सऊदी अरब का ऐतिहासिक दौरा किया था.
तस्वीर: Isna
इराक की जंग
2003 में इराक पर अमेरिकी हमले ने सऊदी-ईरान तनाव को और बढ़ दिया. अमेरिकी हमले के चलते इराक में बाथ पार्टी का शासन खत्म हुआ और बहुसंख्यक शिया समुदाय को सत्ता में आने का मौका मिला. इससे इराक पर ईरान का प्रभाव बढ़ने लगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
अरब स्प्रिंग
2011 में जब अरब दुनिया में बदलाव की लहर चली तो सऊदी अरब ने पड़ोसी बहरीन में अपने सैनिक भेजे. वहां सुन्नी शासक के खिलाफ बहुसंख्यक शिया लोग बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतरे. सऊदी अरब ने ईरान पर बहरीन में गड़बड़ी फैलाने का आरोप लगाया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Al Shaikh
सीरिया संकट
ईरान-सऊदी अरब के झगड़े में 2012 के सीरिया संकट ने भी आग में घी का काम किया. सीरिया की जंग में जहां ईरान सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दे रहा है, वहीं उनके खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को सऊदी अरब और उसके सहयोगी अमेरिका का समर्थन मिला.
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यमन का मोर्चा
यमन संकट में भी सऊदी अरब और ईरान एक दूसरे के सामने आ खड़े हुए. मार्च 2015 में सऊदी अरब ने सुन्नी अरब देशों का एक गठबंधन बनाया, जिसने यमनी राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी के समर्थन में यमन में हस्तक्षेप किया. वहीं ईरान हूती बागियों के साथ खड़ा दिखा.
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हज में भगदड़
सितंबर 2015 में हज यात्रा के दौरान भगदड़ हुई जिसमें 2,300 विदेशी श्रद्धालु मारे गये. मरने वालों में ज्यादातर ईरानी लोग शामिल थे. इसके बाद ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खमेनेई ने कहा कि सऊदी शाही परिवार इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों की व्यवस्था संभालने लायक नहीं है.
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फिर टूटे रिश्ते
जनवरी 2016 में सऊदी अरब में एक प्रमुख शिया मौलवी निम्र अल निम्र को मौत की सजा दी गयी. उन पर सरकार विरोधी प्रदर्शन भड़काने के आरोप लगे. ईरान ने इस पर गहरी नाराजगी जतायी. ईरान में सऊदी राजनयिक मिशन पर हमले किये गये और सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्ते तोड़ लिये.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Salemi
हिज्बोल्लाह एंगल
मार्च 2016 में लेबनान के शिया मिलिशिया गुट और ईरान के सहयोगी हिज्बोल्लाह को अरब देशों ने आतंकवादी करार दिया. इससे पहले हिज्बोल्लाह के प्रमुख ने सऊदी अरब पर शिया और सुन्नियों के बीच "नफरत भड़काने" का आरोप लगाया था.
तस्वीर: AP
लेबनान पर 'पकड़'
नवंबर 2017 में लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी ने इस्तीफा दे दिया और कहा कि ईरान हिज्बोल्लाह के जरिए लेबनान पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. पद छोड़ने के बाद हरीरी ने सऊदी अरब जाकर शाह सलमान से मुलाकात की.
तस्वीर: picture-alliance/AA/Bandar Algaloud
कतर संकट
इससे पहले जून 2017 में सऊदी अरब और उसके कई सहयोगी देशों ने कतर के साथ अपने रिश्ते तोड़ लिये. उन्होंने कतर पर ईरान से नजदीकी संबंध कायम करने और चरमपंथियों का समर्थन करने का आरोप लगाया.
तस्वीर: Getty Images for ANOC/M. Runnacles
ट्रंप के साथ सऊदी अरब
अक्टूबर 2017 में सऊदी अरब ने कहा कि वह ईरान के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मजबूत रणनीति का समर्थन करता है. ट्रंप ने 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हुए समझौते को मंजूर करने से इनकार कर दिया.