अमेरिका ने फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास और उनकी टीम का वीजा रद्द कर दिया है. यूएन और यूरोपीय संघ ने इस फैसले को गलत बताया है.
महमूद अब्बासतस्वीर: Christophe Ena/AFP
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अमेरिका के फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और फलस्तीनी अथॉरिटी (पीए) के लगभग 80 प्रतिनिधियों के वीजा रद्द किए जाने के फैसले ने नया विवाद खड़ा कर दिया है. यूरोपीय संघ (ईयू) और फलस्तीनी नेतृत्व ने वॉशिंगटन से इस निर्णय को तुरंत पलटने की अपील की है.
शनिवार को अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने घोषणा की कि राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका फलस्तीनी अधिकारियों के मौजूदा वीजा रद्द कर रहा है और नए वीजा जारी नहीं करेगा. विदेश विभाग के मुताबिक इसमें अब्बास भी शामिल हैं, जो वर्षों से संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की सालाना बैठक में फलस्तीन का प्रतिनिधित्व करते आए हैं. यह फैसला अगले महीने होने वाली उच्चस्तरीय बैठक और 22 सितंबर को फ्रांस और सऊदी अरब की मेजबानी में होने वाले "टू-स्टेट सॉल्यूशन” सम्मेलन से पहले लिया गया है.
गोलन पहाड़ियों का इलाका, इतिहास और महत्व
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद की सत्ता के पतन के बाद इस्राएल ने गोलन पहाड़ियों में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर चिंता है. कहां है गोलन पहाड़ियां और इनका इतिहास और महत्व क्या है, जानिए.
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इस्राएल के लिए नेचर स्पॉट
गोलन पहाड़ियों के पठार से लेबनान और जॉर्डन की सीमा लगती है. पश्चिम की ओर यहां से इस्राएल के नजारे दिखते हैं, तो उत्तर पूर्व में सीरिया को दूर तक देखा जा सकता है. इस इलाके की एक सीमा पर माउंट हरमन है, जिसकी बर्फीली पहाड़ियां 2,800 मीटर से ज्यादा ऊंची हैं और स्कीइंग के शौकीनों को लुभाती हैं.
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गोलन पहाड़ियों की बस्तियां
गोलन पहाड़ियों पर आज भी ज्यादा लोग नहीं रहते. यहां लगभग 30 बस्तियों में करीब 30 हजार इस्राएली रहते हैं. इनके साथ ही करीब 23 हजार द्रुज भी हैं. द्रुज एक अरबी अल्पसंख्यक समुदाय है जो लेबनान, जॉर्डन, सीरिया और इस्राएली कब्जे वाले गोलन पहाड़ियों में रहते आए हैं. इन लोगों ने इस्राएल की नागरिकता नहीं ली है.
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इस्राएल का विस्तार
1967 के अरब-इस्राएल युद्ध में इस्राएल ने गोलन पहाड़ियों के दो तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लिया और युद्ध के एक महीने बाद ही मेरोम गोलन के नाम से पहली नागरिक बस्ती बना दी. 1970 में यहां 12 और बस्तियां यहां बनाई गईं.
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50 वर्षों की शांति
1973 में एक बार फिर अरब-इस्राएल युद्ध भड़क उठा और उसके अगले साल तक लड़ाइयां चलती रहीं. आखिरकार इस्राएल और सीरिया के बीच युद्धविराम पर सहमति हुई और तब से यह इलाका मोटे तौर पर शांत रहा है.
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बफर जोन
इस समझौते के तहत इस्राएल के कब्जे वाले इलाके के पूरब में 80 किलोमीटर लंबा एक बफर जोन बनाया गया जो सीरिया को अलग करता है. इस इलाके में संयुक्त राष्ट्र की सेना गश्त लगाती है और इन सैनिकों की एक चौकी माउंट हरमन पर भी है. बफर जोन के बाकी बचे पूर्वी इलाके पर सीरिया का नियंत्रण है.
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गोलन में आबादी बढ़ाता इस्राएल
सीरिया में बशर अल-असद की सरकार गिरने के तुरंत बाद इस्राएली सरकार ने गोलन पहाड़ियों में आबादी दोगुनी करने की योजना को मंजूरी दे दी. इससे पहले 2021 में भी इस्राएल ने आबादी दोगुनी करने की एक योजना को मंजूरी दी थी. तब गोलन पहाड़ियों में इस्राएली आबादी 25,000 थी.
तस्वीर: JALAA MAREY/AFP
ट्रंप हाइट्स
2019 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने गोलन पहाड़ियों पर इस्राएली कब्जे को मान्यता दे दी. यह करने वाला अमेरिका अकेला है. ट्रंप के इस कदम के बाद इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने जून 2019 में वहां एक नई बस्ती बनाने का एलान किया जिसका नाम रखा गया ट्रंप हाइट्स.
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सैनिक गतिविधियां
गोलन पहाड़ियों में इस्राएली सेना के कई अड्डे हैं. असद सरकार के पतन के तुरंत बाद इस्राएल ने अपनी सेना बफर जोन में तैनात कर दी. प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसे रक्षात्मक और अस्थायी तैनाती बताया. ऐसी खबरें हैं कि इस्राएली सेना बफर जोन के पार भी गई है. इस्राएली रक्षा मंत्री ने तो यहां तक कहा है कि सेना वहां सर्दियों में बनी रहेगी.
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अंतरराष्ट्रीय आलोचना
गोलन पहाड़ियों में इस्राएल की नई योजना की आलोचना करने वालों में जर्मनी भी है. इसके अलावा जॉर्डन, सऊदी अरब, तुर्की और कई दूसरे देशों ने भी इसकी आलोचना की है. संयुक्त राष्ट्र ने वहां और ज्यादा सैनिक भेजे हैं.
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रामल्ला से राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता नबील अबू रुदेनेह ने कहा कि यह फैसला तनाव और टकराव ही बढ़ाएगा और इसे तुरंत पलटा जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि फलस्तीनी नेतृत्व लगातार अरब और अन्य देशों से संपर्क में है और अमेरिकी प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए चौबीसों घंटे प्रयास जारी हैं. साथ ही उन्होंने गाजा और वेस्ट बैंक में बढ़ती हिंसा को खत्म करने की भी मांग की.
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यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
यूरोपीय संघ ने भी इस फैसले को अस्वीकार्य बताया है. ईयू की विदेश नीति प्रमुख काया कालास ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय और अमेरिका के बीच के समझौतों को देखते हुए इस फैसले पर दोबारा विचार होना चाहिए. फ्रांस के विदेश मंत्री ज्याँ-नोएल बैरो ने भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय शांति की सेवा में एक पवित्र स्थान है और इसे किसी भी तरह के प्रवेश प्रतिबंधों का शिकार नहीं होना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता स्टेफाने दुजारिक ने कहा कि अमेरिका से इस फैसले पर सफाई मांगी जाएगी.
तकनीकी रूप से न्यूयॉर्क में स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय अमेरिकी भूभाग से अलग विशेष दर्जा रखता है, लेकिन वहां पहुंचने के लिए प्रतिनिधियों को अमेरिकी सीमा से होकर गुजरना पड़ता है. वीजा रद्द होने की स्थिति में अब्बास और उनकी टीम के लिए न्यूयॉर्क की यात्रा असंभव हो जाएगी.
संकट में सम्मेलन
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब इस्राएली सेना ने गाजा शहर को "युद्ध क्षेत्र” घोषित किया है और उसे अब भी हमास का गढ़ बताया है. ट्रंप प्रशासन पहले भी फलस्तीनियों पर वीजा प्रतिबंध लगा चुका है, लेकिन सीधे राष्ट्रपति अब्बास को निशाना बनाना एक असामान्य और अत्यधिक राजनीतिक निर्णय माना जा रहा है.
क्या गाजा के बच्चे इलाज के लिए जर्मनी आ सकेंगे
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विश्लेषकों का कहना है कि इस विवाद का असर आने वाली महासभा और फलस्तीन मुद्दे पर विशेष अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन पर पड़ेगा. फलस्तीनी प्रतिनिधियों की गैरहाजिरी में "टू स्टेट सॉल्यूशन” पर किसी ठोस पहल की संभावना कमजोर हो सकती है. यूरोपीय देश संकेत दे चुके हैं कि वे अमेरिका पर दबाव डालेंगे ताकि अब्बास और उनकी टीम न्यूयॉर्क की बैठकों में शामिल हो सकें.