कोरोना महामारी में भी वर्षावन तस्करों के निशाने पर
२२ मई २०२०
मार्च महीने में ऊष्णकटिबंधीय वर्षावन 6,500 स्क्वायर किलोमीटर सिकुड़ गए. यह बर्लिन के आकार का सात गुना क्षेत्रफल है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का कहना है कि आपराधिक समूह कोरोना महामारी का लाभ उठा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Kopp
विज्ञापन
पर्यावरण संरक्षण संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक कोरोना वायरस जिस तरह से दुनिया भर में फैल रहा था उसी दौरान विश्वभर में वर्षवनों की कटाई खतरनाक स्तर से बढ़ी. कोरोना वायरस महामारी के दौरान वन कटाई पर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने गुरुवार को एक शोध प्रकाशित किया. शोध में 18 देशों के सैटेलाइट डाटा का विश्लेषण किया गया है और मैरीलैंड विश्वविद्यालय ने इस डाटा को संकलित किया है. इस अध्ययन में पाया गया कि 2017-2019 के कैलेंडर महीने में इस साल के मार्च में वन कटाई 150 फीसदी बढ़ी है.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का कहना है कि मार्च महीने में ही करीब 6,500 वर्ग किलोमीटर के वर्षावनों की कटाई हुई. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जर्मनी में प्रकृति संरक्षण के प्रमुख क्रिस्टोफ हाइनरिष ने एक बयान में कहा, "सब कुछ संकेत करता है कि वनों की कटाई की दर पर कोरोना वायरस का भी प्रभाव है."
संस्था के मुताबिक मार्च महीने में पेड़ों की कटाई से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले जंगल इंडोनेशिया में थे. इंडोनेशिया में 1,300 स्क्वायर किलोमीटर से अधिक जंगल खत्म हो गए. इसी के साथ डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में भी दूसरा सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. यहां 1,000 स्क्वायर किलोमीटर जंगल खत्म हो गया. इसक बाद नंबर ब्राजील के जंगलों का आता है जहां 950 स्क्वायर किलोमीटर के वन बर्बाद हो गए.
अमेजन के वर्षावन.तस्वीर: picture-alliance/WILDLIFE
ब्राजील के गैर-लाभकारी अनुसंधान संस्थान इमाजोन का कहना है कि अप्रैल महीने में भी वन कटाई में बढ़त रही. संस्था ने बताया अप्रैल महीने में अमेजन के वर्षावन में 529 स्क्वायर किलोमीटर तक पेड़ों का सफाया हो गया. पिछले साल की तुलना में अप्रैल महीने में यह 171 फीसदी की बढ़त है.
कोविड-19 महामारी के दौरान वर्षावनों में कटाई में बढ़ोतरी को लेकर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का कहना है कि उसके पास इसका पर्याप्त सबूत है. दुनिया भर के देशों में लॉकडाउन और वायरस से बचने के लिए लोगों के घरों में रहने से अधिकारी जंगलों और प्रकृति के संरक्षण के लिए अक्सर गश्त करने में सक्षम नहीं हैं. ऐसी स्थिति में आपराधिक संगठन और अवैध कटाई करने वाले भरपूर फायदा उठा रहे हैं. कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन की वजह से कई देशों में युवा बेरोजगार हो गए हैं, वे आय के स्रोतों के लिए तेजी से हताश हो रहे हैं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का कहना है कि कई अफ्रीकी देशों में लकड़ी का व्यापार आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है लेकिन कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के चलते वह ठप्प है.
आपूर्ति श्रृंखलाओं के टूटने से आशंका बढ़ गई है कि जंगलों का मूल्य कम हो रहा है और वन संरक्षण के प्रयास अपनी पैठ खो रहे हैं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक सरकारें स्थानीय लोगों को आर्थिक और तकनीकी सहायता देकर वन कटाई में बढ़ोतरी को कम करने में मदद कर सकती है.
पृथ्वी पर मौजूद हरेक जीव अहम भूमिका निभाता है लेकिन जब बात धरती पर जीवन को जारी रखने की होती है तो कुछ जीव दूसरों की तुलना में ज्यादा जरूरी हो जाते हैं.
तस्वीर: Alex Wild/University of Texas at Austin
1. मधुमक्खी
यह कोई छिपी बात नहीं है कि मधुमक्खियां बेहद जरूरी हैं. रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी ने तो उन्हें पृथ्वी का सबसे अहम प्राणि घोषित किया है. दुनिया में परागण कराने वाला यह सबसे पुराना जीव कई पौधों की प्रजातियों के जीवन चक्र में अहम भूमिका निभाता है और स्वस्थ इकोसिस्टम को बनाए रखता है. हम जिन फसलों को खाते हैं, उनमें से 70 फीसदी उन पर निर्भर हैं.
तस्वीर: Alex Wild/University of Texas at Austin
2. चींटी
हम उन्हें कीट भी कहते हैं लेकिन वास्तव में इस प्राणि को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. अंटार्कटिका को छोड़ पृथ्वी के हर महाद्वीप में चीटियां मौजूद हैं और ये कई भूमिकाएं निभाती हैं. इनमें मिट्टी में पोषक तत्वों को वितरण से ले कर बीजों को फैलाना और दूसरे कीटों को खाना भी शामिल है. वैज्ञानिक दुनिया भर में चीटियों की बांबी पर जलवायु परिवर्तन के असर को जानने में जुटे हैं.
तस्वीर: CC BY-SA 2.0/Geoff Gallice
3. कवक या कुकुरमुत्ता
ना तो ये पौधे हैं ना जानवर, सूक्ष्मजीव या फिर प्रोटोजोआ. कवक को कभी कभी "पृथ्वी पर मौजूद जीवन का पांचवा वर्ग" कहा जाता है. उनके बगैर हमारा शायद अस्तित्व ही नहीं रहेगा. ये जल, थल और वायु हर जगह मौजूद हैं. ये पृथ्वी के प्राकृतिक पोषण को रिसाइकिल करते हैं. इनकी कुछ प्रजातियां तो ऐसी हैं जो पारा जैसे हानिकारक धातुओं और पोलियूरेथेन प्लास्टिक को भी पचा सकती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/McPhoto
4. फाइटोप्लैंकटन
फाइटोप्लैंकटन यानि सूक्ष्म जलीय वनस्पति पृथ्वी पर जीवन के लिए कितने जरूरी हैं यह समझना थोड़ा कठिन है. इनका एक योगदान तो यह है कि पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन का दो तिहाई हिस्सा यही पैदा करते हैं. इनके बगैर वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम हो जाएगी और पर्यावरण के लिए असुविधा होगी. इसके साथ ही ये मरीन इकोसिस्टम के फूड चेन का आधार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P.Degginger
5. चमगादड़
केला, बाओबाब और टकिला में क्या समानता है? ये सभी परागण और कीटों के नियंत्रण के लिए चमगादड़ पर निर्भर हैं. दुनिया भर में चमगादड़ों की अलग अलग प्रजातियां एक जरूरी पारिस्थतिकीय भूमिका निभाती हैं जिनकी वजह से कई फसलों का जीवन संभव होता है. चमगादड़ों की स्वस्थ आबादी कीटनाशकों पर होने वाले करोड़ों डॉलर के खर्च को बचा सकती हैं और वो एक मजबूत इकोसिस्टम की निशानी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Weber
6. केंचुआ
मामूली सा दिखना वाला केंचुआ पृथ्वी के जीवमंडल के लिए इतना जरूरी है कि इसे "इकोसिस्टम इंजीनियर" भी कहा जाता है. ये जीव मिट्टी में हवा भर कर उसे पोषक बनाते हैं और कार्बनिक पदार्थों को रिसाइकिल करते हैं. इसके साथ ही भोजन चक्र में भी इनकी जगह बेहद अहम है. कई पारिस्थितिकियों में अहम स्थान रखने के बावजूद कई प्रजातियां मिट्टी के अम्लीकरण की वजह से खतरे में हैं.
तस्वीर: picture alliance/blickwinkel/J. Fieber
7. प्राइमेट
हमासे सबसे करीबी जैविक रिश्तेदार प्राइमेट, मानव जीव विज्ञान के बारे में कई तरह की अंतरदृष्टी देते हैं. ये बायोडाइवर्सिटी के लिए भी बेहद जरूरी है् और उष्णकटिबंधीय जंगलों के लिए अहम प्रजातियां हैं. ये इन जंगलों के लिए एक तरह से "माली" हैं जो बीजों को बिखेरते हैं और नए पौधों के उगने की जगह बनाते हैं. अगर हम इन जंगलों को बचाए रखना चाहते हैं तो हमें इन प्राइमेटों के अस्तित्व को वहां बनाए रखना होगा.
तस्वीर: DW
8. कोरल
कोरल को अकसर समुद्र का वर्षावन कहा जाता है. कोरल रीफ कई तरह की भूमिकाएं निभाते हैं. इनमें तटों की रक्षा से लेकर भोजन तंत्र का आधार होना भी शामिल है. रिसर्चरों का अनुमान है कि कोरल रीफ एक चौथाई समुद्री जीवों के लिए घर भी हैं. इस तरह से ये पृथ्वी के सबसे जटिल इकोसिस्टम का निर्माण करते हैं. अगर हम कोरल रीफ को खो बैठे, तो हम असंख्य समुद्री जीवों को भी खो देंगे.
तस्वीर: picture-alliance/AAP/James Cook University