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शोध: महामारी के कारण उत्सर्जन में 'अभूतपूर्व' गिरावट

१४ अक्टूबर २०२०

महामारी संबंधी प्रतिबंधों की वजह से 2020 की पहली छमाही में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में अभूतपूर्व गिरावट देखी गई. यह गिरावट 2008 के वित्तीय संकट और यहां तक कि द्वितीय विश्व युद्ध की तुलना में बहुत अधिक है.

तस्वीर: Omer Messinger/Getty Images

शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना वायरस के कारण सरकारों ने संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया और उसके बाद यातायात, बिजली उत्पादन और हवाई जहाजों से होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन बंद हो गया. शोधकर्ताओं ने प्रति घंटे के हिसाब से बिजली उत्पादन, वाहन ट्रैफिक से जुड़े डाटा को दुनिया के 400 से अधिक शहरों से इकट्ठा किया, दैनिक यात्री उड़ानों और मासिक उत्पादन और खपत समेत डाटा का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने निर्धारित किया कि उत्सर्जन में गिरावट सबसे बड़ी थी.

उन्होंने कुछ बुनियादी कदम सुझाए जो "वैश्विक जलवायु को स्थिर करने" के लिए उठाए जा सकते हैं क्योंकि अब देश महामारी के आर्थिक सदमे से उबरने में लगे हुए हैं.

हालांकि उन्होंने उल्लेख किया कि उत्सर्जन जुलाई 2020 तक अपने सामान्य स्तरों पर लौट आया क्योंकि तमाम देशों ने लॉकडाउन के नियम नरम कर दिए. बीजिंग के शिंघुआ विश्वविद्यालय में पृथ्वी प्रणाली विज्ञान विभाग के झू लिउ के मुताबिक उत्सर्जन पर महामारी के प्रभाव पर अध्ययन अभी तक का सबसे सटीक है. उनके मुताबिक, "हम बहुत तेजी से और अधिक सटीक समीक्षा करने में सक्षम थे, जिसमें टाइमलाइन भी शामिल थी जो दिखाती है कि हर एक देश में लॉकडाउन के उपायों के मुताबिक उत्सर्जन कैसे घटता है." यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस में छपा है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि 2020 की पहली छमाही में गाड़ियों से निकलने वाला कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 40 फीसदी कम हो गया और बिजली उत्पादन से 22 और उद्योग से 17 फीसदी उत्सर्जन कम हो गया.

अधिक लोगों के घर से काम करने के कारण शोध में पाया गया कि आवासीय उत्सर्जन में शायद आश्चर्यजनक रूप से तीन प्रतिशत की गिरावट हुई. शोधकर्ता इसका कुछ कारण गर्म सर्दियों को बताते हैं, जिस वजह से हीटिंग की खपत कम हो गई.

पेरिस समझौते के तहत देशों को तापमान 2 डिग्री के भीतर सीमित रखने का लक्ष्य है. इसी समझौते के तहत देशों से ग्रीन हाउस गैसों में कटौती को कहा गया था. सिर्फ एक डिग्री तापमान बढ़ने से धरती ने जंगलों में आग, सूखा, तूफान और समुद्र के बढ़ते स्तर को झेला है और यह सिर्फ जलवायु परिवर्तन में बदलाव का नतीजा है.

लॉकडाउन के दौरान कार्बन उत्सर्जन को लेकर अगस्त महीने में भी एक शोध प्रकाशित हुआ था. ताजा शोध के लेखक उनके साथ सहमत है कि 2020 में कार्बन उत्सर्जन में गिरावट लंबी अवधि में जलवायु आपातकाल को कम नहीं कर पाएगी.

शोध के सह-लेखक और पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के योआखिम शेलहूबर कहते हैं, "हालांकि सीओ2 का घटना अभूतपूर्व है, इंसानी गतिविधियां इसका जवाब नहीं हो सकती है. हमें ऊर्जा उत्पादन और उपभोग प्रणालियों में संरचनात्मक और परिवर्तनकारी बदलाव की जरूरत है."

एए/सीके (एएफपी)

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