मलेशिया के एक परिवार ने आर्थिक तंगी से छुटकारा पाने का "स्वादिष्ट" उपाय ढूंढ निकाला है. महामारी ने दुनिया भर में लोगों के रोजगार को चोट पहुंचाया और लोगों की आय में नाटकीय रूप से कमी आई.
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दुनिया भर में करोड़ों लोग कोरोना वायरस महामारी की वजह से आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं, लोगों की नौकरी चली गई या फिर उन्हें समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है. मलेशिया के एक परिवार ने भी जब इस तरह की आर्थिक मुसीबतों का सामना किया तो उसने इसका एक "स्वादिष्ट" उपाय खोज निकाला. इस परिवार ने अपने घर के पीछे ही एक पिज्जा की दुकान खोल ली और उसके बाद उनके छोटे से गांव में यह दुकान काफी लोकप्रिय हो गई.
इस साल दुनिया भर में लाखों लोगों ने अपनी नौकरी खो दी क्योंकि सरकार ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया जिससे आर्थिक नुकसान बहुत ज्यादा हुआ है. मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर से 120 किलोमीटर दूर जेमापोह में एक परिवार घर के पीछे ही लकड़ी के चूल्हे पर पिज्जा बनाकर बेच रहा है, यह काम उसने महामारी के दौरान शुरू किया और यह अब काफी चल पड़ा है.
पिज्जा पर कई तरह के हर्ब, चीज़, मसाले और मीट या टूना का विकल्प रहता है. इस बिजनेस की शुरुआत करने वाले 35 साल के राउधाह हसन कहते हैं, "हमने यह काम सिर्फ पॉकेट मनी के लिए किया." हसन के कई और भाई-बहन हैं. वे कहते हैं, "लेकिन...खुदा का शुक्र है कि जो हमने किया है उसकी चर्चा पूरे गांव में हो रही है."
नई सोच से चमकी किस्मत
अप्रैल के आखिर से ही परिवार के इस रसोई से पिज्जा लोग खरीद रहे हैं. परिवार ने प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के एक महीने बाद इस बिजनेस को शुरू किया था. कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए मलेशिया में प्रशासन ने कई तरह की पाबंदियां लगाईं और इस दौरान लोगों को घरों में ही रहना पड़ा था और कई व्यापार इस कारण बंद हो गए. हालांकि रेस्तरां को इन पाबंदियों के दौरान संचालन की अनुमति दी गई थी. हसन की एक रुमाल की दुकान थी लेकिन वहां बिक्री घट गई और उनके भाई-बहन के वेतन में भी कटौती हुई जिसके बाद उन्होंने घर के पीछे ही पिज्जा की दुकान खोलने का फैसला किया.
परिवार ने रमजान के दौरान ईंट और पत्थरों से एक ओवन तैयार किया, जिससे कम से कम समय में अधिक से अधिक पिज्जा ग्राहकों को परोसा जा सके. एक ग्राहक नूरलियाना हिदायह ने बताया, "कुछ पिज्जा में बहुत नमक होता है लेकिन ये वाले वाकई बहुत अच्छे हैं."
परिवार ने बिजनेस की कामयाबी के बाद एक और दुकान खोल लिया है और गांव के ही 20 लोगों को नौकरी पर रखा है. अब हर दिन इस तरह के ओवन में 800 पिज्जा तैयार हो रहे हैं.
इस साल मलेशिया में आठ लाख से ऊपर लोगों की नौकरी चली गई और वायरस के कारण देश में मंदी आ गई. हालांकि मलेशिया ने कड़े प्रतिबंधों को वापस ले लिया है और कई बिजनेस दोबारा शुरू हो गए हैं.
कोरोना महामारी के कारण बंद आर्थिक गतिविधियां तो शुरू हो गईं हैं, लेकिन जो लोग रोज कमाते और खाते हैं उनकी आर्थिक स्थिति पहले जैसी नहीं हो पाई है. उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
कम ग्राहक, कम कमाई
दीवाली के मौके पर कमला देवी और उनके परिवार ने इस सोच के साथ दिया, मूर्ति और अन्य सजावट के सामान खरीदे कि इस बार उनकी अच्छी कमाई होगी. कमला देवी 20 रुपये में मिट्टी के चार दिये बेच रही हैं लेकिन उनका कहना है कि फिर भी माल नहीं बिक पा रहा है.
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सुस्त बाजार
आम तौर पर देश में त्योहारों के समय में लोग मिट्टी के कारीगरों की मेहनत और लगन को ध्यान में रखते हुए तोल-मोल नहीं करते हैं लेकिन इस बार ग्राहक भी कम संख्या में आ रहे हैं. कुछ लोग हैं जो मिट्टी की आकर्षक मूर्तियां खरीदने जरूर आ रहे हैं और बिना पैसे कम कराए उन्हें खरीद भी रहे हैं.
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देसी उत्पाद
बाजार में इस साल चीनी उत्पाद कम बिक रहे हैं. ज्यादातर सामान देसी हैं. कमलपन्ना कहती हैं उनके पास पूजा सामग्री से लेकर मोमबत्ती और सजावट के सामान हैं लेकिन कोरोना की वजह से बाजार पहले जैसा गुलजार नहीं है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
मोल-भाव
पूजा के लिए फूल और माला बेचने वाले गोविंद कहते हैं वे 50 रुपये में गेंदे के फूलों की माला बेच रहे हैं. हालांकि वे कहते हैं इसमें उनकी बचत सिर्फ 5 से 10 रुपये ही होगी. लोग उनसे दाम करने के लिए कहते हैं तो वे बेचने से इनकार कर देते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
कमाई का मौका
सड़क पर त्योहारों के मौके पर पूजा सामग्री और अन्य चीजें बेचने वाले परीक्षण सिंह यूपी के बलिया के रहने वाले हैं. वे हर साल इसी तरह लाई, बताशे और चीनी से बने मीठे खिलौने बेचते हैं, लेकिन वे भी कम ग्राहकों के आने से निराश हैं.
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रंगोली के रंग
यूपी के मैनपुरी के शाहजहां हर साल नोएडा आकर रंगोली बनाने के लिए रंग बेचते हैं. उनका कहना है कि वे लॉकडाउन खत्म होने के बाद पहली बार नोएडा आए हैं. उनकी तरह कुछ और लोग भी हैं जो पास में ही रंगोली बनाने के रंग बेच रहे हैं. ग्राहकों को अपनी ओर खींचने के लिए वे थोड़े कम पैसे लेने को तैयार हैं.
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सोने-चांदी की बिक्री भी कम
आर्थिक सुस्ती का असर सिर्फ बड़े उद्योगों पर ही नहीं हुआ बल्कि सोने के गहने बेचने वाले ज्वैलर्स पर भी हुआ. कोरोना काल में शादियां बहुत फीकी रहीं और अब उन्हें उम्मीद है कि इन त्योहारों में वे नुकसान से उबर पाएंगे.
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मात्र दो सौ रुपये कमाई
लॉकडाउन के पहले तक सत्ते सिंह मोबाइल कवर, मोबाइल के लिए स्क्रीन कवर और ईयर फोन बेचते थे लेकिन उनके पास अब कोई ग्राहक नहीं आता है. वे कहते हैं कि मेट्रो के गेट बंद होने की वजह से उनके पास लोग नहीं आते हैं और इसी कारण वे मास्क भी बेचने लगे हैं. उनकी एक दिन की कमाई पहले जहां 800 से लेकर 1,000 रुपये होती थी वह घटकर 200 रुपये पर आ गई है.
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चाय पीने वाले कहां
धीरज मंडल सड़क किनारे चाय और मट्ठी बेचते हैं. उनके मकान का किराया पिछले कुछ महीनों से बकाया है. धीरज बताते हैं कि कमाई बस इतनी हो पाती है जिससे उनका घर किसी तरह से चल पाए.
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सवारी का इंतजार
ऑटो चालक सुनील हर रोज सवेरे-सवेरे काम पर निकलते हैं और कई बार दोपहर तक कुछ ही पैसे कमा पाते हैं. वे बताते हैं कि कोरोना के पहले सारे खर्च अलग कर रोजाना एक हजार रुपये घर ले जाया करते थे लेकिन अब खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है.