कोविड में चांदी कूटने वाली कंपनियां अब मिट्टी के भाव
विवेक कुमार
२८ फ़रवरी २०२४
कोविड महामारी के दौरान जिन कंपनियों ने ऊफान देखा और खूब पैसा कमाया, उनमें से बहुत सी अब जमीन पर आ चुकी हैं. कोविड में बदली दुनिया वापस अपनी जगह पर आती जा रही है.
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कोविड महामारी के दौरान जूम दुनियाभर के दफ्तरों में शायद सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले शब्दों में से एक रहा. जूम और ऐसी तमाम कंपनियां उस दौर में उभरीं और नई ऊंचाइयों पर पहुंची थीं. तब लोगों ने इन कंपनियों में खूब निवेश भी किया. लेकिन 2019 के महामारी के दौर से तुलना की जाए तो बहुत सी कंपनियां अब धरातल पर हैं.
जूम वीडियो कम्यूनिकेशंस बीते साल भी मुनाफा कमाया है. 31 जनवरी को जारी उसके तिमाही नतीजे उम्मीदों से बेहतर ही रहे. बीते वर्ष की इसी अवधि की तुलना में उसके शेयरों के भाव 16 फीसदी ऊपर थे. रेवन्यू में भी तीन फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई. पर कोविड के समय से तुलना की जाए तो ये आंकड़े कुछ भी नहीं हैं.
जूम मीटिंग की चालाकियां
पिछले दो साल लोगों ने घर से काम तो किया लेकिन वीडियो कॉल से जुड़ीं कई चकमा देने वाली तरकीबें भी सीख लीं हैं. एक्सएमएल मीडिया के एक सर्वे में जूम कॉल के बारे में कई दिलचस्प बातें सामने आईं.
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जूम पर रौब दिखाने के लिए
दो तिहाई लोग कहते हैं कि वीडियो कॉल के दौरान वे अपने कंप्यूटर का कैमरा ऐसे ऐंगल पर रखते हैं जिससे वे ज्यादा रौबदार नजर आएं.
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हेल्दी दिखने के लिए
लगभग एक चौथाई लोगों ने कहा कि उन्होंने जानबूझ कर एक्सरसाइज करते हुए जूम मीटिंग में हिस्सा लिया ताकि वे अनुशासित और सेहत के लिए जागरूक दिखें.
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ऊपर फॉर्मल, नीचे कैजुअल
82 फीसदी लोगों ने कहा कि वे ज्यादा औपचारिक नजर आने के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से पर फॉर्मल कपड़े पहनकर जूम मीटिंग में आए, जबकि नीचे उन्होंने आम घरेलू कपड़े पहने थे
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इंप्रेस करने के लिए बैकग्राउंड
86 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे बहुत सोच-समझकर अपनी बैकग्राउंड चुनते हैं ताकि अच्छा प्रभाव पड़े.
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बस दिखना चाहिए
लगभग 54 प्रतिशत लोगों ने कहा कि जूम मीटिंग के दौरान वे सिर्फ इसलिए कुछ बोलते हैं ताकि लगे कि वे ध्यान दे रहे हैं.
एक तिहाई लोगों ने कहा कि वे ठीक होने के बावजूद जूम मीटिंग में यह कहते हुए शामिल हुए कि उनकी तबीयत खराब है, ताकि लगे कि वे काम को लेकर कितने प्रतिबद्ध हैं.
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बिजी दिखाने के लिए
56 फीसदी लोगों ने कहा कि जूम मीटिंग के दौरान वे दूसरी झूठी मीटिंग में जाने का बहाना करते हैं ताकि लोगों को लगे कि वे काफी व्यस्त हैं.
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ऐसा सिर्फ जूम के साथ नहीं हुआ है. बहुत सी कंपनियों ने कोविड महामारी के दौरान कई-कई गुना मुनाफा कमाया था लेकिन पिछले दो साल में वे जमीन पर आ चुकी हैं.
90 फीसदी तक गिर चुके हैं भाव
11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड को महामारी घोषित किया था. उस दिन इन कंपनियों के शेयरों के भावों से तुलना की जाए तो अब बहुत से 80 से 95 फीसदी तक गिर चुके हैं. अगर 11 मार्च 2020 को किसी ने जूम में एक हजार अमेरिकी डॉलर निवेश किए थे तो एक वक्त उनका भाव 5,153 डॉलर पहुंच गया था. 26 फरवरी 2024 को यह 89 फीसदी नीचे यानी 572 डॉलर पर था.
इसी तरह डॉक्युमेंट्स को ऑनलाइन साइन करने की सुविधा देने वाली कंपनी के भाव अपने सर्वोच्च स्तर से 83 फीसदी नीचे हैं. यानी 11 मार्च 2020 को किसी ने इस कंपनी में अगर एक हजार डॉलर का निवेश किया तो वे अब 691 डॉलर रह गए हैं. एक्सरसाइज के लिए इक्विपमेंट बनाने वाली कंपनी पेलोटोन के शेयर अपने सर्वोच्च स्तर से 97 फीसदी नीचे गिर चुके हैं. यहां तक कि कोविड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी मॉडर्ना के भाव भी अपने सर्वोच्च स्तर से 81 फीसदी नीचे आ चुके हैं.
घर से काम करने से फायदा ज्यादा है या नुकसान?
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विशेषज्ञ कहते हैं कि इनमें से अधिकतर कंपनियां तब के समय की परिस्थितियों के कारण मुनाफा कमा रही थीं. मसलन, लॉकडाउन के दौरान घर से काम करने का विकल्प बनकर जूम ने खूब नाम और दाम कमाया. लेकिन अब एक तो वर्क फ्रॉम होम करने वालों की संख्या बहुत कम रह गई है, दूसरे जूम जैसे अन्य उत्पाद भी बाजार में उपलब्ध हैं. जैसे कि माइक्रोसॉफ्ट टीम्स, सिस्को वेबेक्स और सेल्सफोर्स की स्लैक ऐप ने जूम को तगड़ा मुकाबला दिया है.
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उतर गया ऊफान
कुछ ऐसा ही हाल फूड डिलीवरी स्टार्टअप कंपनियों का हुआ है. खाना घर तक पहुंचाने वाली बहुत सी स्टार्टअप कंपनियां या तो बंद हो गईं या संघर्ष कर रही हैं. जानकार मानते हैं कि कोविड के दौरान घर तक डिलीवरी करने के बाजार में जो उफान आया था अब वह उतर रहा है. न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में फाइनेंस पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर मार्क हंफ्री-जेनेर लिखते हैं कि लॉकडाउन का दौर खत्म हो जाने के बाद इन कंपनियों के लिए काम जारी रखना मुश्किल हो गया था.
ऑनलाइन शॉपिंग में महिलाओं से आगे हैं पुरुष
आईआईएम-अहमदाबाद के एक शोध के मुताबिक ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में पुरुष महिलाओं से आगे हैं.
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36 फीसदी ज्यादा खर्च
आईआईएम-अहमदाबाद के शोध के मुताबिक पुरुषों ने ऑनलाइन शॉपिंग पर औसतन 2,484 रुपये खर्च किए, जो महिलाओं द्वारा खर्च किए गए 1,830 रुपयों की तुलना में 36 फीसदी अधिक है.
तस्वीर: Bildagentur-online/Tetra/picture alliance
क्या खरीदते हैं पुरुष
सर्वे से पता चला कि 47 प्रतिशत पुरुषों ने फैशन के लिए खरीदारी की, इसके बाद 37 प्रतिशत ने यूटीलिटीज के लिए और 23 प्रतिशत ने इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए खरीदारी की.
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क्या खरीदती हैं महिलाएं
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 58 प्रतिशत महिलाओं ने फैशन के लिए खरीदारी की, उसके बाद 28 प्रतिशत ने इस्तेमाल में आने वाले सामान की शॉपिंग और 16 प्रतिशत महिलाओं ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की शॉपिंग की.
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समय कम खर्च करते हैं मर्द
पुरुषों द्वारा ऑनलाइन शॉपिंग में बिताया जाने वाला समय महिलाओं के मुकाबले कम है. जहां पुरुषों ने ऑनलाइन शॉपिंग पर 34.4 मिनट खर्च किए, वहीं महिलाओं ने 35 मिनट खर्च किए.
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कोविड के बाद बढ़ी ऑनलाइन शॉपिंग
शोध रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी ने 2020 से ऑनलाइन शॉपिंग की लोकप्रियता को काफी बढ़ा दिया है. शोधकर्ताओं ने कहा कि ऑनलाइन खरीदारी के लिए 'पैसा वसूल' की भावना सबसे बड़े कारकों में से एक है. इसके बाद खरीदारी की प्रक्रिया में आसानी है.
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35 हजार लोग सर्वे में शामिल
आईआईएम-अहमदाबाद ने अपने शोध के लिए 25 राज्यों के 35 हजार लोगों को सर्वे में शामिल किया. यह नतीजे आईआईएम अहमदाबाद की 'डिजिटल रिटेल चैनल्स एंड कंज्यूमर्स: द इंडियन पर्सपेक्टिव' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में प्रकाशित किए गए थे.
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पिछले साल अपना कारोबार समेटने वाली फूड डिलीवरी ऐप मिल्करन की मिसाल देते हुए प्रोफेसर हंफ्री-जेनेर कहते हैं, "मिल्करन ने अपना कारोबार महामारी के दौरान शुरू किया था, जो दरवाजे तक डिलीवरी के लिए सटीक वक्त था. लेकिन पिछले साल के मध्य में, जबकि लॉकडाउन बीती बात हो चुका था, उसके लिए आंकड़े अच्छे नहीं दिख रहे थे. उसे हर डिलीवरी पर दस डॉलर का नुकसान हो रहा था, जो शुरुआत के वक्त होने वाले 40 डॉलर के नुकसान से तो बेहतर ही था,” लेकिन नुकसान में कंपनी कब तक चल सकती थी.