उत्तराखंड: क्या है समान नागरिक संहिता के मसौदे में
आमिर अंसारी
२ फ़रवरी २०२४
समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित समिति ने मुख्यमंत्री धामी को मसौदे के दस्तावेज सौंप दिए. अगर संहिता लागू हो जाती है तो उत्तराखंड आजादी के बाद इसे लागू करने वाला पहला राज्य होगा.
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शुक्रवार को इस समिति ने यूसीसी पर अपना मसौदा राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दिया. समिति द्वारा ड्राफ्ट रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपने के बाद सरकार इसे कैबिनेट में लाने के बाद विधानसभा में पेश करेगी, जहां से कानूनी रूप मिलने के बाद समान नागरिक सहिंता को प्रदेश में लागू किया जाएगा.
उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति बनाई थी.
यूसीसी पर कानून पारित करने के लिए उत्तराखंड विधानसभा का चार दिवसीय विशेष सत्र पहले ही 5-8 फरवरी तक बुलाया जा चुका है. 5 फरवरी को विधानसभा का विशेष सत्र शुरू होगा, उसके अगले दिन यूनिफॉर्म सिविल कोड विधेयक को विधानसभा में पेश किया जा सकता है.
ड्राफ्ट रिपोर्ट सौंपे जाने के मौके पर आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री धामी ने कहा, "आज का दिन हम सभी प्रदेशवासियों के लिए महत्वपूर्ण है, जब हम देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' के विजन को साकार करते हुए और अधिक मजबूती के साथ आगे बढ़ने जा रहे हैं."
यूसीसी पर आगे बढ़ता उत्तराखंड
धामी सरकार ने यूसीसी को राज्य में लागू करने के लिए 27 मई 2022 को पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था. मार्च 2022 में सरकार के गठन के फौरन बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन करने को मंजूरी दी थी.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया था. शुरुआत में यह समिति छह महीने के लिए गठित की गई थी, जिसके बाद इसे चार बार अतिरिक्त समय भी दिया गया.
समिति को 2.33 लाख लिखित सुझाव प्राप्त हुए. मसौदा तैयार करने के दौरान 60 बैठकें हुईं जिनमें सदस्यों ने लगभग 60,000 लोगों से बातचीत की. अगर लागू हुआ तो उत्तराखंड आजादी के बाद यूसीसी अपनाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा. गोवा में पुर्तगाली शासन के दिनों से यूसीसी लागू है.
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यूसीसी पर मसौदे में क्या है
यूसीसी राज्य में सभी नागरिकों के लिए एक समान विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत कानूनों के लिए एक कानूनी ढांचा मुहैया करेगा, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.
मीडिया में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि मसौदे में 400 से अधिक धाराएं हो सकती हैं. अगर यूसीसी लागू होता है तो राज्य में बहुविवाह पर रोक लग जाएगी. इसके अलावा लड़कियों की शादी की कानून उम्र 21 साल तय की जा सकती है.
लिवइन रिलेशन में रहने वाले जोड़े के लिए पुलिस में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी हो सकता है. यही नहीं शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा.
अगर उत्तराखंड में यूसीसी पर कानून पारित हो जाता है तो 2022 के राज्यसभा चुनावों से पहले बीजेपी द्वारा किया एक बड़ा वादा पूरा हो जाएगा और इसका लाभ वह आने वाले लोकसभा चुनावों में भी उठाने की कोशिश करेगी.
पांच करोड़ लोग आज भी हैं आधुनिक गुलामी की गिरफ्त में
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट ने दावा किया है कि दुनिया भर में पांच करोड़ लोग आज भी गुलामी के किसी ना किसी रूप में कैद हैं. इनमें जबरन मजदूरी से लेकर जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी महिलाएं भी शामिल हैं.
तस्वीर: Cindy Miller Hopkins/Danita Delimont/Imago Images
मिटती नहीं गुलामी
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक आधुनिक गुलामी को जड़ से मिटा देने का लक्ष्य बनाया था, लेकिन एक नई रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2021 के बीच जबरन मजदूरी और जबरदस्ती कराई गए शादियों में फंसे लोगों की संख्या में एक करोड़ की बढ़ोतरी हो गई. अध्ययन संयुक्त राष्ट्र की श्रम और आप्रवासन से जुड़ी संस्थाओं ने वॉक फ्री फाउंडेशन के साथ मिल कर कराया.
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हर 150 में से एक गुलाम
अध्ययन में पाया गया कि 2021 के अंत में दुनिया में 2.8 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे और 2.2 करोड़ लोग ऐसी शादियों में जी रहे थे जो उन पर जबरदस्ती थोपी गई थीं. इसका मतलब दुनिया में हर 150 लोगों में से एक व्यक्ति गुलामी के किसी आधुनिक रूप में फंसा है.
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कोविड-19 ने बढ़ाई गुलामी
जलवायु परिवर्तन और हिंसक संघर्षों के असर के साथ साथ कोविड-19 ने "अभूतपूर्व रूप से रोजगार और शिक्षा को प्रभावित किया, चरम गरीबी को और जबरन, असुरक्षित आप्रवासन को बढ़ाया." इस तरह महामारी ने भी गुलामी में पड़ने के जोखिम को बढ़ा दिया है.
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प्रवासी श्रमिक भी खतरे में
रिपोर्ट के मुताबिक आम श्रमिकों के मुकाबले प्रवासी श्रमिकों की जबरन मजदूरी में होने की तीन गुना ज्यादा संभावना है. इसलिए आप्रवासन को सुरक्षित बनाने की जरूरत है.
तस्वीर: Aline Deschamps/Getty Images
दीर्घकालिक समस्या
रिपोर्ट के मुताबिक यह एक दीर्घकालिक समस्या है. अनुमान है कि जबरन मजदूरी में लोग सालों तक फंसे रहते हैं और जबरदस्ती कराई गई शादियां तो अक्सर "आजीवन कारावास" की सजा जैसी होती हैं.
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महिलाएं और बच्चे सबसे असुरक्षित
रिपोर्ट में कहा गया है कि जबरन मजदूरी में फंसे हर पांच लोगों में से एक बच्चा होता है. आधे से ज्यादा बच्चे तो व्यावसायिक यौन शोषण में फंसे हुए हैं. मुख्य रूप से महिलाएं और लड़कियां ही जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी हुई हैं. 2016 के बाद से ऐसी महिलाओं और लड़कियों की संख्या में पूरे 66 लाख की बढ़ोतरी हुई है.
तस्वीर: Marco Ugarte/AP Photo/picture alliance
अमीर देशों में भी है गुलामी
आधुनिक गुलामी हर देश में मौजूद है. जबरन मजदूरी के आधे से ज्यादा मामले और जबरदस्ती कराई गयउ शादियों के एक चौथाई से ज्यादा मामले ऊपरी-मध्यम आय वाले और ऊंची-आय वाले देशों में हैं.
रिपोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था द्वारा उठाई गई चिंताओं की तरफ भी इशारा किया, कि उत्तर कोरिया में "बेहद कड़े हालात में जबरन मजदूरी के विश्वसनीय रिपोर्ट है." चीन में शिनजियांग समेत कई इलाकों में जबरन मजदूरी कराए जाने की संभावना है. (सीके/एए (एएफपी))
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