बादलों से ज्यादा बारिश निचोड़ने की कोशिश में है यूएई
१ सितम्बर २०२२
यूएई बादलों को बरसाने की एक नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है ताकि उन बादलों से भी पानी निकाला जा सके, जो अभी बरसने को तैयार नहीं हैं.
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युनाइटेड अरब अमीरात के आसमान पर एक छोटा विमान उड़ान भरता है. सूरज अपने उरूज पर है और इक्का-दुक्का बादल कहीं कहीं नजर आ रहे हैं. विमान के परों पर नमक के दर्जनों कनस्तर बंधे हैं. पायलट देश के मौसम विभाग के दफ्तर में बैठे अब्दुल्ला अल-हमादी से लगातार बात कर रहा है. अल-हमादी अपने कंप्यूटर की स्क्रीन पर बादलों का अध्ययन कर रहे हैं ताकि उनके रूप-प्रारूप को समझ सकें.
9,000 फुट की ऊंचाई पर पायलट विमान के पंख झाड़ता है और नमक को हवा में छोड़ देता है. अल-हमादी के निर्देश पर उसने नमक को वहां छोड़ा है जहां सफेद बादल सबसे घने हैं. दोनों उम्मीद कर रहे हैं कि इस नमक के असर से बादल बारिश करने लगेंगे.
मौसम विभाग में बारिश बढ़ाओ अभियान के प्रमुख अल-हमादी बताते हैं, "क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश कराना) के लिए बारिश वाले बादलों की जरूरत पड़ती है और यही एक समस्या है क्योंकि हर बार तो ऐसा होता नहीं है.” इसीलिए यूएई उन बादलों से भी बारिश कराने की कोशिश में है, जो अभी बरसने को तैयार नहीं हैं.
धरती के सबसे सूखे और गर्म क्षेत्रों में से एक में बसा यूएई हमेशा प्यासा रहता है. वहां सालाना औसतन 100 मिलीमीटर से भी कम बारिश होती है. इसलिए देश का मौसम विभाग क्लाउड सीडिंग तकनीक में बदलाव करके बारिश की मात्रा बढ़ाना चाहता है.
पानी की जरूरत बढ़ी
जलवायु परिवर्तन का असर तो पानी की सप्लाई पर हो ही रहा था, पिछले कुछ सालों में बढ़ती आबादी, तेजी से बदलती अर्थव्यवस्था और पर्यटन के फैलते उद्योग ने भी यूएई में पानी की मांग को बहुत बढञा दिया है. अब तक यूएई समुद्री पानी को साफ करने के लिए लगाए गए संयंत्रों पर ही निर्भर रहा है.
रेगिस्तान जैसा दिखता है इराक में अदन के बागों का इलाका
दक्षिणी इराक में अदन के बागों का प्राचीन इलाका सूखे की मार सह कर तबाही के दिन देख रहा है. आग बरसाता सूरज, नजरें फेर चुके बादल और नदियों के घटते पानी ने इलाके की सारी हरियाली छीन ली है.
तस्वीर: Ahmad Al-Rubaye/AFP
मवेशियों को चराने के लिये 10 किलोमीटर का सफर
अपनी भैंसों को चराने और उन्हें गर्मी से राहत दिलाने के लिये हाशेम गासेद को 10 किलोमीटर दूर मेसोपोटामिया के दलदली इलाकों में जाना पड़ता है जो तेजी से सूख रहा है. हरे भरे प्राचीन बागों के इलाके में बस धूल उड़ रही है.
तस्वीर: Ahmad Al-Rubaye/AFP
जीने के सहारे छिन गये
सैटेलाइट की मदद से जुटाये आंकड़े बता रहे हैं कि करीब 41 फीसदी दलदली इलाके में पानी और नमी की भारी कमी है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक करीब 6,000 परिवार यहां ना सिर्फ मवेशी बल्कि जीने के दूसरे सहारे भी खो रहे हैं.
तस्वीर: Ahmad Al-Rubaye/AFP
बाग नहीं बंजर
अदन के बाग के लिये विख्यात यह इलाका तीन साल के सूखे और बारिश की कमी के कारण सूख गया है. पड़ोसी देश तुर्की और ईरान से आने वाली नदियों और उनकी सहायक नदियों में भी इतना पानी नहीं है कि इस बाग की हरियाली लौटे.
तस्वीर: Ahmad Al-Rubaye/AFP
तपती जमीन में दरारें
ईरान की सीमा से लगते कभी हरे भरे हुवाइजा के दलदली इलाके सैलानियों से भरे रहते थे. अब यही जमीन भट्टी की तरह तप रही है, पेड़ पौधे पीले पड़ गये हैं और दूर दूर तक हरियाली नजर नहीं आती. चिबायिश के दलदली इलाकों का भी यही हाल है.
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सब छिन गया
यही दलदली क्षेत्र स्थानीय लोगों की जिंदगी चलाते थे. जब यहां पानी था तो उनमें मछलियां थीं, मवेशियों की प्यास बुझती थी और उनके लिये चारे का भी जुगाड़ हो जाता था. अब सबकुछ सूरज की तपती गर्मी में खत्म हो गया है.
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जैव विविधता और प्राचीन इतिहास
दक्षिणी इराक के इन दलदली इलाकों को 2016 में यूनेस्को ने अपनी विरासतों में शामिल किया था. यहां की जैव विविधता और प्राचीन इतिहास दोनों अनमोल हैं. हालांकि अब तो मशहूर उम अल नाज झील नाले में बदल गयी है और जहां तहां बस सांप नजर आते हैं.
तस्वीर: Ahmad Al-Rubaye/AFP
सूख गई जमीन
कई सालों से यह इलाका सूखे की मार सह रहा है और इससे पहले कि पर्याप्त बारिश इन्हें राहत दे दूसरे सूखे की मार पड़ जाती है. अगस्त 2020 से अब तक यहां की 46 फीसदी जमीन का पानी पूरी तरह सूख गया है.
तस्वीर: Ahmad Al-Rubaye/AFP
सद्दाम हुसैन का कोप
तिगरिस और फुरात नदी के बीच बसे मेसोपोटामियाई दलदल का इलाका सद्दाम हुसैन के जमाने से ही तबाही झेल रहा है. 1991 में यहां हुये विरोध के बाद सद्दाम हुसैन ने इस इलाके को सुखाने का हुक्म दिया था.
तस्वीर: Ahmad Al-Rubaye/AFP
जान गंवाते मवेशी
स्थानीय लोगों के बहुत से मवेशियों की जान चली गई और जो बाकी बचे हैं उनकी भी हालत खराब है. कुछ लोगों ने उन्हें बेचने में भी भलाई समझी है. मवेशी इतने कमजोर हो गये हैं कि चलते चलते कब गिर जायें इसका भी पता नहीं.
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नदियों में भी पर्याप्त पानी नहीं
इन इलाकों को तुर्की से आने वाली तिगरिस नदी की सहायक नदियों के पानी से सहारा मिलता था लेकिन अब उसमें भी पानी का बहाव इतना नहीं है कि यहां तक पहुंच सके. जो थोड़ा बहुत पानी आता भी है वह पूरा नहीं पड़ता.
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अधिकारियों का मानना है कि कृत्रिम बारिश मददगार हो सकती है. आबुधाबी में वैज्ञानिक पानी सोखने वाले नमक की बौछार करने की नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस तकनीक के जरिए नमक के छोटे-छोटे कणों को बादलों में छिड़का जाता है. उससे बादल सक्रिय हो जाते हैं और उनक द्रवण यानी जमे हुए अंश के पानी में बदलने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. वैज्ञानिक उम्मीद करते हैं कि पानी की ये बूंदें द्रवित होकर इतनी बड़ी और भारी हो जाएं कि बरसने लगें.
अल-हमादी कहते हैं, "क्लाउड सीडिंग से बारिश में सालाना 10 से 30 प्रतिशत की वृद्धि होती है. हमारी गणना है कि समुद्र के पानी को साफ करने के मुकाबले कृत्रिम बारिश सस्ती पड़ती है.” ऐतिहासिक सूखे की चपेट में आए हुए यूएई के कई पड़ोसी देशों जैस सऊदी अरब और ईरान ने भी इस तकनीक के इस्तेमाल की घोषणा कर दी है. भारत में पहले से ही कृत्रिम बारिशकराई जा रही है.
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पायलटों के लिए चुनौती
यूएई के अल-आइन एयरपोर्ट पर पायलटों को अक्सर बहुत कम समय में उड़ान भरने की तैयारी करनी होती है क्योंकि उन्हें अचानक मौसम विभाग से निर्देश मिलते हैं. मौसमविज्ञानियों को जैसे ही अपनी स्क्रीन पर संभावनाओं से भरे हुए बादल दिखते हैं वे पायलटों को निर्देश देते हैं. और इसके साथ लाल-पीले रेगिस्तान के ऊपर आसमान में उड़ते छोटे-छोटे बादलों को पकड़ने की उनकी कोशिशें शुरू हो जाती हैं.
और बड़ा हुआ रहस्यमयी सिंकहोल
चिली में रातोंरात बन गया यह ‘सिंकहोल’ कुछ ही दिन में दोगुना हो गया. इसके साथ ही इसके होने का रहस्य भी गहरा गया.
तस्वीर: Johan Godoy/REUTERS
गहराया रहस्यमयी सिंकहोल
चिली के उत्तर में यह सिंकहोल यानी विशाल गड्ढा रातोंरात बन गया था. राजधानी सैनटियागो से करीब 700 किलोमीटर दूर कनाडेयन लनडिन कॉपर खदान के पास यह सिंकहोल जुलाई के आखरी हफ्ते में नजर आया.
तस्वीर: Johan Godoy/REUTERS
82 फीट चौड़ा
इस सिंक होल का व्यास 25 मीटर यानी लगभग 82 फुट है. 1 अगस्त को अधिकारियों ने इस रहस्यमयी सिंक होल की जांच शुरू की.
तस्वीर: Johan Godoy/REUTERS
200 मीटर गहरा
चिली की नेशनल सर्विस ऑफ जियोलॉजी ने एक बयान में कहा है कि इसकी गहराई लगभग 200 मीटर है और अंदर कोई चीज नहीं मिली है.
तस्वीर: Karl Grawe/Agencia Uno/dpa/picture alliance
खनन के कारण बना?
इलाके के मेयर क्रिस्टोबल जूनिगा ने स्थानीय मीडिया को कहा कि यह पता लगाया जाना चाहिए यह सिंकहोल बिना सोचे-समझे और पूर्व आकलन के किए गए खनन का नतीजा है या कुछ और.
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कैसे बनते हैं सिंकहोल
अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण विभाग का कहना है कि आमतौर पर सिंकहोल ‘कार्स्ट टरेन’ में पाए जाते हैं यानी उन इलाकों में जहां मिट्टी के नीचे की चट्टानें कुदरती तौर पर भूमिगत जल में घुल जाती हैं.
तस्वीर: Johan Godoy/REUTERS
मिट्टी का धंसना
जब बारिश का पानी मिट्टी के नीचे उन चट्टानों तक पहुंचता है तो इस तरह की चट्टानें घुल जाती हैं और धरती धंस जाती है. अमेरिका के फ्लोरिडा में ऐसे विशाल सिंकहोल पाए जाते हैं.
तस्वीर: Johan Godoy/REUTERS
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एक विमान चालक अहमद अल-जाबेरी बताते हैं, "पायलटों के लिए क्लाउड सीडिंग को दूसरा सबसे चुनौतीपूर्ण काम माना जाता है. जब हमें कोई बादल दिखता है तो हमें तय करना होता है कि कैसे उसके अंदर घुसें और फिर बिना ओलों या तूफान का शिकार हुए बाहर निकल आएं.”
इस बात को लेकर अलग-अलग मत हैं कि क्लाउड सीडिंग के कितने नुकसान हैं. ब्रिटेन की हाईलैंड्स एंड आइलैंड्स यूनिवर्सिटी में मौसम विज्ञानी एडवर्ड ग्राहम कहते हैं कि यूएई में बादलों पर जो नमक छिड़का जा रहा है वह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता. ग्राहम कहते हैं, "कार्बन फुटप्रिंट के लिहाज से देखा जाए तो जो विमान इस काम के लिए उड़ाए जाते हैं वे छोटे विमान होते हैं. अगर धरती पर दौड़ रहीं अरबों कारों और हवा में हर वक्त मौजूद हजारों विमानों से तुलना करें तो यह समुद्र में पानी की एक बूंद बराबर है.”