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पेरिस सम्मेलन: ग्लोबल फाइनेंस सिस्टम की तरफ पहला कदम?

२४ जून २०२३

पेरिस में ग्लोबल फाइनेंस पर हुए सम्मेलन ने दुनिया भर नेताओं और अहम संस्थानों को एक मंच पर मिलने का मौका दिया. क्या यहां से अंतरराष्ट्रीय फाइनेंस को लेकर सोच में बड़ा बदलाव हो सकता है?

पेरिस में न्यू ग्लोबल फाइनेंसिंग पैक्ट
तस्वीर: picture allianceLemouton Stephane/Pool/ABACA/

"समिट फॉर ए न्यू ग्लोबल फाइनेंशियल पैक्ट" को कॉप के अलावा जलवायु से जुड़ा एक और अंतरराष्ट्रीय मंच बनाया जा सकता है, वैसे ही जैसे जी7 या जी20 सम्मेलन हैं. 

दो दिन तक पेरिस के केंद्र में करीब 1,500 प्रतिभागी जुटे. इनमें 40 राष्ट्र प्रमुख भी शामिल थे. सम्मेलन में इतनी भीड़ थी कि ज्यादातर पत्रकारों को वहां जाकर कवरेज की अनुमति नहीं मिली. उन्हें ऑनलाइन लाइवस्ट्रीम के सहारे रहना पड़ा. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुए माक्रों ने सम्मेलन की क्लोजिंग प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यह निर्णायक लम्हा है.

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माक्रों ने कहा, "इन दो दिनों ने हमें मौका दिया है कि हम धरती के लिए एक नई सहमति बना सकें. हम एक ऐसे दस्तावेज के साथ आए हैं जो, अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल आर्किटेक्चर और गर्वनेंस में सुधार के ढांचे का एक साझा राजनीतिक नजरिया, विस्तार से सामने रखता है."

पेरिस सम्मेलन में ब्राजील के राष्ट्रपति और चीन के पीएम के साथ फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रोंतस्वीर: Lewis Joly/AP Photo/picture alliance

फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने यह भी कहा, "हम दोहरी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के बीच एकता बढ़ाने के लिए डिजायन किया गया है. ये चुनौतियां हैं: असमानता से जंग और जलवायु परिवर्तन."

कुछ ठोस नतीजे

समापन बयान के मुताबिक, विकसित देश अपना लक्ष्य पूरा कर चुके हैं. इसके तहत विकसित देशों को स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर) के तहत विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर देने थे.

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सम्मेलन में हिस्सा लेने वालों का कहना था कि 2015 में यह तय किया गया था कि 2020 में जलवायु कदमों के लिए 100 अरब डॉलर दिए जाएंगे. यह लक्ष्य शायद इस साल पूरा हो सकेगा. अगले 10 साल के लिए 200 अरब डॉलर के अतिरिक्त कर्ज का वादा भी किया गया. जाम्बिया में डूबे 6.3 अरब डॉलर के कर्ज को भी इसी में गिना जाएगा. हिस्सेदार देशों ने एक नया बायोडायवर्सिटी फंड भी स्थापित करने पर सहमति जताई.

सम्मेलन बन सकेगा टर्निंग प्वाइंट

ऑलिवर दमेत, लोरेंन यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. वह पेरिस स्थित क्लाइमेट इकॉनोमिक्स चेयर में असोसिएट रिसर्चर भी हैं. दमेत को लगता है कि यह मुलाकात निर्णायक बिंदु साबित हो सकती है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "दुनिया कई तरह के संकट झेल रही है. बीते कुछ बरसों में कोविड-19 महामारी की वजह से गरीबी और सार्वजनिक ऋण आसमान तक पहुंच चुके हैं. ज्यादा से ज्यादा विकासशील देश डिफॉल्ट के कगार पर हैं. जलवायु परिवर्तन अपना असर और ज्यादा दिखा रहा है और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के प्रति भरोसा टूटा है."

पेरिस के सम्मेलन का जिक्र करते हुए दमेत ने कहा, "पहली बार, नेता इन अलग अलग किस्म की चुनौतियों पर बात करने के लिए साथ आए हैं- पहले के सम्मेलन तो विषयों को अलग अलग रखते थे."

लोरेंन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के मुताबिक मौजूदा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान, इस तरह कि परिस्थिति से निपटने में सक्षम नहीं हैं.

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1944 में ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट के बाद वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ बनाए गए. दोनों अमेरिका में स्थित हैं. इनकी अगुवाई भी अमेरिका और जी7 करते हैं. दमेत के मुताबिक ये संस्थान ऊपर से नीचे, निर्देश पास करने वाले सिस्टम की तरह काम करते हैं, "लेकिन गरीब देशों को भी फैसले करने वाली प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए- वे उस जलवायु परिवर्तन से क्यों लड़ें जो ज्यादातर अमीर देशों की वजह से हो रहा है. विकास कर रहे देशों को लगता है कि उनकी प्राथमिकता तो गरीबी से लड़ाई होनी चाहिए."

फ्रांसीसी अर्थशास्त्री को लगता है कि पेरिस में हुए इस सम्मेलन के नतीजे दिखा रहे हैं कि अमीर देशों को बात समझ आ रही है. वे विकासशील देशों को साथ लेकर चलने की अहमियत समझ रहे हैं.

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नई फाइनेंसिंग स्कीम का एक्सटेंशन

क्लेयर एषलिए, पेरिस स्थित थिंक टैंक, इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इकॉनोमिक्स में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं. सम्मेलन की तैयारी के लिए फ्रांस सरकार ने इसी थिंक टैंक से सलाह मशविरा लिया. क्लेयर मानती हैं कि नीचे से ऊपर की तरफ बढ़ने वाला सिस्टम ज्यादा तार्किक है.

वह कहती हैं, "अतीत में ज्यादातर पैसा खास प्रोजेक्टों में गया जबकि वह ऐसी जगह जाना चाहिए था जहां सिस्टमैटिक तरीके से बड़ा असर होता."

डीडब्ल्यू से बात करते हुए क्लेयर ने कहा कि जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (जेईटीपी) सही दिशा में पहला कदम है. इस योजना के तहत जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने और स्वच्छ ऊर्जा की तरफ जाने  में विकसित देश, विकास कर रहे देशों की मदद करेंगे. साथ ही इस बदलाव के सामाजिक परिणामों पर भी काम करेंगे. 

नंवबर 2021 से अब तक तीन जेईटीपी तय हुए है. ये दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और वियतनाम के साथ है. पेरिस के सम्मेलन में सेनेगल चौथा जेईटीपी देश बना. क्लेयर कहती हैं, "यह बहुत ही दिलचस्प पायलट स्कीम है जिसमें दाता देश, विकासशील देश की खास वित्तीय जरूरत पर ज्यादा ध्यान देता है."

इसाबेल अल्बेर्टतस्वीर: privat

सम्मेलन की सफलता का मूल्यांकन इतिहास करेगा

इसाबेल अल्बेर्ट, पेरिस में विंड कैपिटल की क्लाइमेट रेजिलिएंस वेंचर कैपिटलिस्ट हैं. वह सम्मेलन के नतीजों के लेकर अतिउत्साही नहीं हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में इसाबेल ने कहा, "यह सकारात्मक है कि एसडीआर ट्रांसफर का टारगेट अब पूरा हो सकेगा और प्रतिभागी बायोडायवर्सिटी फंड बनाने को तैयार हुए हैं, ये हमारी जलवायु को बचाने वाले अमेजन वर्षावन जैसे इकोसिस्टमों के लिए है. यह कुछ हद तक भरोसे को बहाल कर सकेगा. हालांकि विकास कर रहे देश अब भी अमीर देशों द्वारा 2009 में कॉप15 के दौरान किए गए वादों को अमल होते देखने का इंतजार ही कर रहे हैं."

इसाबेल मानती हैं कि मीटिंग के नतीजों पर अभी टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी. वह कहती हैं, "यह सही दिशा में पहला कदम है. इस तरह के सम्मेलन आगे की राह खोलते हैं. आने वाले महीनों और बरसों में इतिहास बताएगा कि क्या हम जस्ट ट्रांजिशन को पाने में सफल हुए या नहीं."

केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो ने भी सर्तकता के साथ अपनी उम्मीद जाहिर की. फाइनल प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, "हम एक अलग वार्ता चाहते थे और हमें खुशी है कि पेरिस में यह बातचीत शुरू हुई."

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