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कितना कारगर है प्रभावितों को आपदा से पहले धन देना

९ अक्टूबर २०२४

दुनियाभर में ऐसे कई कार्यक्रम चल रहे हैं, जहां आपदा प्रभावितों को समय से पहले सीधे पैसे दे कर मदद दी जा रही है. क्या ये कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में मदद कर सकते हैं?

बांग्लादेश में बाढ़
तस्वीर: Md. Adil

जलवायु परिवर्तनसे पीड़ित गरीब और मध्य आय वाले मुल्कों को धन देने की मांग पर अब तक अमीर देशों में कोई सहमति नहीं बन पाई है. लेकिन इस समस्या के कुछ समाधान खोजे जा रहे हैं. इन समाधानों में से एक है, आपदा आने से पहले प्रभावित लोगों को मोबाइल फोन के जरिए कुछ पैसे ट्रांसफर करना.

सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के शोधकर्ता रानिल दिसानायके कहते हैं कि बाढ़, सुपरस्टॉर्म या बड़े पैमाने पर आग का सामना करते समय, "जितनी जल्दी आपको पैसा मिलेगा, उतना बेहतर होगा." वह कहते हैं, "प्रभावित लोग इस पैसे का इस्तेमाल अपने घर को आपदा के लिए तैयार करने, खाना जमा करने या अस्थायी रूप से सुरक्षित क्षेत्रों में जाने के लिए कर सकते हैं."

उन्होंने आगे कहा, "कल्पना कीजिए कि दिहाड़ी मजदूरों के लिए यह मदद कितनी बड़ी हो सकती है. यदि आप उन्हें उत्तर भारत में 50 डिग्री सेल्सियस की ताप लहर से पहले पैसा दे सकते हैं, तो उन्हें उस दौरान रोज के खाने का इंतजाम करने के लिए काम करने की जरूरत नहीं होगी."

पूर्व भुगतान सहायता अपने आप में आपदा राहत नहीं है बल्कि यह राहतों का एक हिस्सा है, लेकिन फ्रेंच अर्थशास्त्री एस्टर डुफ्लो जैसे लोगों की राय में, इसे जलवायु परिवर्तन के कारण और भी बदतर हो रहे मौसम के गंभीर प्रभावों तक भी बढ़ाया जाना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र ने ऐसी दर्जन भर पायलट योजनाएं चलाई हैं, जिनमें सूखा प्रभावित इथियोपिया और सोमालिया शामिल हैं. बांग्लादेश में, 2020 में भयावह बाढ़ के चरम पर एक हफ्ता पहले 23,000 से अधिक परिवारों को 53 डॉलर यानी लगभग छह हजार बांग्लादेशी टका दिए गए थे. बांग्लादेश जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से है और बदलते मौसम के कारण वहां मौसमी तबाही बढ़ती जा रही है.

बड़े काम की है मदद

ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ अफ्रीकन इकोनॉमीज की शोधकर्ता एशले पॉपल कहती हैं, "समय से पहले नकद सहायता देना निश्चित रूप से लोगों के लिए ज्यादा कल्याणकारी लाभ देता है और महत्वपूर्ण समय पर परिवारों की मदद करता है."

बांग्लादेश में बाढ़ के दौरान मुहैया कराई गई मदद पर पॉपल ने विस्तृत अध्ययन किया है. इस शोध के अनुसार, मदद का इस्तेमाल लाभार्थियों ने सामान खरीदने, अपने जानवरों को आश्रय देने और अपनी आजीविका के लिए महत्वपूर्ण चीजों की सुरक्षा करने में किया.

इसकी तुलना में, जिन घरों को समय पर नकद सहायता नहीं मिली, उनके लिए एक दिन बिना भोजन के गुजारने का खतरा 50 फीसदी से अधिक बढ़ गया था.

पॉपल कहती हैं कि जब आपदा आती है, तो "विकास बैंक इस बारे में सोचते हैं कि कैसे जल्दी से सरकारों को पैसा पहुंचाया जाए, लेकिन यह नहीं सोचा जाता कि घरों और सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों तक कैसे जल्दी पैसा पहुंचाया जाए."

गूगल की मदद से

2020 से, अमेरिकी कार्यक्रम ‘गिवडायरेक्टली‘ ने बांग्लादेश, कांगो गणराज्य और मलावी में मदद मुहैया कराई है, जहां मोबाइल फोन के जरिए संकट और विस्थापन से जूझ रहे लोगों को पैसे ट्रांसफर किए गए हैं.

नाईजीरिया में, जहां आने वाले हफ्तों में फिर से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है, 20,000 घरों को पहले से सहायता के लिए पंजीकृत किया गया है. जो सबसे ज्यादा खतरे में होंगे, उन्हें बाढ़ के चरम से कम से कम तीन दिन पहले 320 अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 26 हजार भारतीय रुपये दिए जाएंगे.

गिवडायरेक्टली, गूगल के साथ साझेदारी में, उपग्रह चित्रों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बाढ़ के नक्शे, प्रशासनिक डेटा और फील्ड सर्वेक्षणों का उपयोग करके संभावित लाभार्थियों की पहचान करता है.

मोजाम्बिक में, 2022 में आई बाढ़ से तीन दिन पहले 7,500 से अधिक परिवारों को 225 अमेरिकी डॉलर दिए गए. बांग्लादेश में, 2024 में जमुना नदी में आई बड़ी बाढ़ से पहले 15,000 लोगों को 100 डॉलर मिले थे. भारत में भी जून में पहली बार गर्मी से प्रभावित महिलाओं को धन दिया गया था.

चुनौतियां और सीमाएं

विशेषज्ञ इस कार्यक्रम की तारीफ तो करते हैं लेकिन चेताते हैं कि इस मदद की कुछ सीमाएं और चुनौतियां भी हैं. पॉपल ने कहा, "आपको बहुत सटीक पूर्वानुमान की आवश्यकता होती है, जो आदर्श रूप से गांव या समुदाय के स्तर पर होना चाहिए."

कुछ प्रकार के खराब मौसम का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है, खास तौर पर उष्णकटिबंधीय तूफानों का, जो अचानक दिशा बदल सकते हैं.

दिसानायके कहते हैं, "हम कुछ आपदाओं का सटीक समय पर पूर्वानुमान लगा सकते हैं, लेकिन अन्य के लिए खासकर गरीब देशों में मौसम स्टेशन और इन्फ्रास्ट्रक्चर में अधिक निवेश की आवश्यकता होती है."

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उन्होंने कहा कि आपदा के प्रभावों की संभावना के हिसाब से माइक्रोपेमेंट्स की प्रभावशीलता को भी "जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया के लिए हमारे उपायों का हिस्सा माना जाना चाहिए, और इसे उसी अनुसार धन मिलना चाहिए."

विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि इस तरह व्यक्तिगत रूप से धन देने से सार्वजनिक तौर पर उठाए जाने वाले कदमों की जरूरत खत्म नहीं होती. जैसे कि बेहतर सड़कों और परिवहन नेटवर्क, सामूहिक बाढ़ रोधी बैरियर और अन्य चीजों की जरूरत बनी रहती है जो लोग घर पर खुद नहीं कर सकते.

दिसानायके कहते हैं, "पहले से अनुमान के आधार पर नकद सहायता समाधान का एक बड़ा हिस्सा हो सकती है, लेकिन यह शायद ही पूरे समाधान का हिस्सा हो."

वीके/सीके (एएफपी)

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