एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक रूसी अधिकारियों ने शांतिपूर्ण विरोध की संभावना को गंभीर रूप से सीमित कर दिया है. मानवाधिकार संस्था ने 12 अगस्त को रूस पर एक रिपोर्ट जारी की है.
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एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि शांतिपूर्ण विरोध को रोकने के लिए रूसी अधिकारी विभिन्न अनुशासनात्मक उपाय अपना रहे हैं. एमनेस्टी के मुताबिक प्रदर्शन विरोधी कानूनों और अत्यधिक पुलिस बल के उपयोग जैसे उपायों, जिसमें तितर-बितर करने के लिए अत्यधिक बल का उपयोग शामिल है.
उसने व्लादीमीर पुतिन सरकार के लिए विरोध प्रदर्शनों पर नकेल कसना आसान बना दिया है. वर्तमान में रूस में आम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इतनी सीमित है कि अब सरकार के खिलाफ बोलना संभव नहीं है.
विरोध-विरोधी कानून
ब्रिटेन स्थित मानवाधिकार समूह की 21-पृष्ठ की रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस में पुतिन सरकार ने हाल के वर्षों में कई कानून पेश किए हैं, जिससे लोगों को अपने अधिकारों के लिए इकट्ठा होने या बोलने की अनुमति सीमित हो रही है. कानून के तहत सड़क पर विरोध प्रदर्शन करना एक तरह का अपराध हो गया है.
इन कानूनों के कारण हाल के सालों में एजेंसियों ने भी प्रदर्शनकारियों पर नकेल कसी है. रिपोर्ट के मुताबिक रूसी सरकार ने 2004 के बाद से 13 बार संसद में संघीय कानून में संशोधन किया है और इन संशोधनों ने प्रारंभिक कानून को सख्त कर दिया है.
अब एक दर्जन से अधिक संशोधनों के बाद कानून यह निर्धारित करता है कि कौन प्रदर्शन का आयोजन करेगा, कौन इसमें शामिल हो सकता है और यह कहां होगा.
खराब होते मानवाधिकारों पर कार्रवाई की मांग
संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों की सबसे खराब वैश्विक गिरावट के खिलाफ कार्रवाई की अपील की है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने चीन, रूस और इथियोपिया समेत अन्य देशों की स्थिति पर प्रकाश डाला.
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अधिकारों का हनन
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचलेट ने कहा, "हमारे जीवनकाल में मानवाधिकारों के सबसे व्यापक और गंभीर झटकों से उबरने के लिए हमें एक जीवन बदलने वाली दृष्टि और ठोस कार्रवाई की जरूरत है." मानवाधिकार परिषद के 47वें सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने टिग्रे में साढ़े तीन लाख लोगों के सामने भुखमरी के संकट पर चिंता जताई.
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'एनकाउंटर और यौन हिंसा'
मिशेल बैचलेट ने अपने संबोधन में, "न्यायेतर फांसी की सजा, मनमाने तरीके से गिरफ्तारी और हिरासत, बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के खिलाफ यौन हिंसा" की ओर इशारा किया और कहा कि उनके पास "विश्वसनीय रिपोर्ट" है कि इरिट्रिया के सैनिक अभी भी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
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इथियोपिया में जातीय और सांप्रदायिक हिंसा
इथियोपिया जहां हाल में ही चुनाव हुए हैं, वहां "घातक जातीय और अंतर-सांप्रदायिक हिंसा और विस्थापन की खतरनाक घटनाएं" देखने को मिल रही हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की उच्चायुक्त का कहना है कि "सैन्य बलों की मौजूदा तैनाती एक स्थायी समाधान नहीं है."
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मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा
उत्तरी मोजाम्बिक में जिहादी हिंसा में तेजी से उछाल आया है. यहां हिंसा के कारण खाद्य असुरक्षा बढ़ी है. और करीब आठ लाख लोग, जिनमें 3,64,000 बच्चे शामिल हैं, उन्हें अपने घरों से भागना पड़ा है.
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हांग कांग की चिंता
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख ने हांग कांग में पेश किए गए व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के "डरावने प्रभाव" की ओर भी इशारा किया. यह कानून 1 जुलाई 2020 से प्रभावी है. इस कानून के तहत बीजिंग के आलोचकों पर कार्रवाई की जा रही है. इस कानून के तहत 107 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 57 को औपचारिक रूप से आरोपित किया गया है.
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शिनजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन
बैचलेट ने चीन के शिनजियांग प्रांत में "गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट" का उल्लेख किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि चीन उन्हें इस प्रांत का दौरा करने की अनुमति देगा और गंभीर उत्पीड़न की रिपोर्टों की जांच करने में मदद करेगा.
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रूस पर प्रतिक्रिया
बैचलेट ने क्रेमलिन द्वारा राजनीतिक विचारों का विरोध करने और सितंबर के चुनावों में भागीदारी तक पहुंच को कम करने के हालिया उपायों की भी आलोचना की. क्रेमलिन आलोचक अलेक्सी नावाल्नी के आंदोलन को खत्म करने की कोशिश पर भी यूएन ने चिंता जाहिर की.
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महामारी प्रतिबंध
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सरकार ने घातक कोरोना वायरस जनित बीमारी के प्रसार को कम करने के लिए सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया है. एमनेस्टी के मुताबिक मॉस्को सरकार शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को रोकने के संदर्भ में इन प्रतिबंधों का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हट रही है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के रूस के शोधकर्ता ओलेग कोजलोव्स्की का कहना है कि रूसी अधिकारी लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को तेजी से प्रतिबंधित कर रहे हैं. कोजलोव्स्की के मुताबिक, "मॉस्को ने इस मुद्दे पर जितनी ऊर्जा खर्च की है, वह शायद ही किसी अन्य मुद्दे पर केंद्रित है और सड़क पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन अब राज्य की नजर में एक अपराध है."
एमनेस्टी के मुताबिक नए संशोधनों के बाद लोग किसी भी अदालत, जेल, राष्ट्रपति आवास या आपातकालीन सेवाओं के पास इकट्ठा नहीं हो पाएंगे. इसके अलावा विरोध प्रदर्शनों के आयोजकों को किसी भी विरोध के बारे में अधिकारियों को सूचित करना आवश्यक है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पुलिस अधिकारियों द्वारा बल के अत्यधिक इस्तेमाल को क्या कहते हैं. अत्यधिक बल के बारे में कहा गया "प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मार्शल आर्ट तकनीकों का उपयोग, बेरहमी से डंडों से पीटना और इलेक्ट्रोशॉक वाले डंडे से वार शामिल है."
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
कोरोना काल में क्या कम हुई मौत की सजा
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में मौत की सजा साल 2020 में कम हुई. हालांकि कुछ देशों में यह सजा कम होने की जगह और बढ़ गई. जानिए कोरोना काल में कहां ज्यादा और कम हुई मौत की सजा तामील.
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साल 2020 में मौत की सजा
एमनेस्टी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि 2020 में मौत की सजा देने में गिरावट दर्ज की गई. 2020 कोरोना महामारी का साल था लेकिन रिपोर्ट में कहा गया कि कुछ देशों ने मौत की सजा को जारी रखा. कोरोना काल में लाखों लोगों की मौत हुई लेकिन कुछ देश मौत की सजा देने से पीछे नहीं हटे.
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महामारी और मौत की सजा
एमनेस्टी महासचिव एग्नेस कैलमार्ड कहती हैं, "कुछ सरकारों की तरफ से मृत्युदंड की निरंतर कोशिश के बावजूद 2020 में तस्वीर सकारात्मक थी." वे कहती हैं, "ज्ञात मौत की सजा लगातार गिरी."
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2020 में 483 लोगों को दी गई मौत की सजा
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में कुल 483 लोगों को मौत की सजा दी गई. एमनेस्टी की तरफ से दर्ज यह पिछले 10 सालों में सबसे कम आंकड़ा है.
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मध्य पूर्व के देशों में सजा
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2020 में मौत की सजा दिए जाने वाले शीर्ष 5 देशों में चार मध्य पूर्व के हैं. ईरान में 246, मिस्र में 107 से अधिक, इराक में 45 और सऊदी अरब में 27 लोगों को मृत्यु दंड दिया गया. यह पूरी दुनिया में दी गई मौत की सजा का 88 फीसदी हिस्सा है.
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चीन में हजारों को मौत की सजा
चीन, उत्तर कोरिया, सीरिया और वियतनाम जैसे देश मौत की सजा को गोपनीय सूचना के अंतर्गत रखते हैं और आंकड़े जारी नहीं करते हैं. इसलिए इन देशों में मौत की सजा के बारे में सही संख्या जाहिर नहीं है. चीन ने इस साल हजारों लोगों को मौत की सजा दी और आंकड़े जारी नहीं किए.
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भारत में चार लोगों को मौत की सजा
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि भारत में साल 2020 में चार लोगों को फांसी दी गई. इतने ही लोग ओमान में फांसी पर चढ़ाए गए और यमन में पांच से अधिक. भारत समेत दुनिया के 33 देशों में मौत की सजा देने के लिए एकमात्र तरीका फांसी है.
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अमेरिका में मौत की सजा बहाल
अमेरिका में पिछले साल ट्रंप प्रशासन ने 17 साल के अंतराल के बाद मौत की सजा शुरू की. साल 2020 में देश में 17 लोगों को मौत की सजा दी गई. छह महीने में 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया.