सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को पेगासस जासूसी विवाद पर सुनवाई हुई. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह इस मामले पर हलफनामा दायर नहीं करना चाहती है. कोर्ट अगले 2-3 दिन में अंतरिम आदेश जारी करेगा.
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित को ध्यान में रख केंद्र सरकार पेगासस जासूसी विवाद पर विस्तृत हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहती है. तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि इन सबकी जांच एक विशेष समिति से कराने दें. इन डोमेन विशेषज्ञों का सरकार से कोई संबंध नहीं होगा. उन्होंने कहा कि उनकी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट के पास आएगी.
राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल मेहता ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि सरकार डोमेन विशेषज्ञों के एक पैनल के समक्ष पेगासस मामले के संबंध में सभी विवरणों का खुलासा करेगी, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से हलफनामे पर नहीं.
सोमवार को पेगासस जासूसी विवाद पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सुनवाई की. बेंच ने कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी नहीं चाहती है और वह केवल स्पाइवेयर के अवैध उपयोग के जरिए आम नागरिकों द्वारा लगाए गए अधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से चिंतित है.
मेहता ने जोर देकर कहा कि जो आतंकवादी संगठन हैं, वो यह नहीं जानते हैं कि आतंकवाद आदि से निपटने के लिए कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने कहा, "इसके अपने नुकसान हैं."
सुप्रीम कोर्ट विभिन्न दिशा-निर्देशों की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें एक एसआईटी जांच, एक न्यायिक जांच और सरकार को निर्देश देना शामिल है कि क्या उसने नागरिकों की जासूसी करने के लिए पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया था या नहीं.
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"छिपाने के लिए कुछ नहीं"
केंद्र ने दोहराया कि उसके पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है और इस बात पर जोर दिया कि सरकार ने अपने दम पर कहा है कि वह जासूसी के आरोपों की जांच के लिए डोमेन विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगी, जो सरकार से जुड़े नहीं हैं.
सोमवार की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और अगले दो या तीन दिन में इस पर फैसला सुनाया जा सकता है. सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा कि इस मुद्दे में राष्ट्रीय सुरक्षा के पहलू शामिल हैं और इसलिए इस पर हलफनामे पर बहस नहीं की जा सकती है.
कब-कब सरकार ने कहा आंकड़े नहीं हैं
भारत में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर भारत सरकार के पास आंकड़े नहीं हैं. विपक्ष सरकार से आंकड़े मांगता है सरकार कहती है हमें जानकारी ही नहीं है. एक नजर, ऐसे मुद्दों पर जिनके बारे में सरकार के पास डेटा नहीं हैं.
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ऑक्सीजन की कमी से मौत
कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से किसी की भी मौत नहीं होने के बयान के बाद सरकार दोबारा से डेटा जुटाएगी. सरकार ने संसद में 20 जुलाई को बयान दिया था कि देश में ऑक्सीजन की कमी से किसी की भी मौत नहीं हुई थी. लेकिन विपक्षी दलों के हंगामे और आलोचना के बाद सरकार ने राज्यों से दोबारा से ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों का आंकड़ा मांगा है.
कोरोना की पहली लहर में लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर पैदल ही शहरों से गांव की ओर निकल पड़े. सफर के दौरान प्रवासी मजदूरों की सड़क हादसे, रेल ट्रैक पर चलने और अन्य कारणों से मौत हुई. स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क के आंकड़ों के मुताबिक पिछले लॉकडाउन के दौरान 971 प्रवासी मजदूरों की गैर कोविड मौतें हुईं. सरकार ने कहा था कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की मौत के बारे में उसके पास डेटा नहीं है.
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बेरोजगारी और नौकरी गंवाने पर डेटा
मानसून सत्र में सरकार से सभी दलों के कम से कम 13 सांसदों ने कोरोना महामारी के दौरान बेरोजगारी और नौकरी गंवाने वालों का स्पष्ट डेटा मांगा था, लेकिन सरकार ने डेटा मुहैया नहीं कराया. इसके बदले केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज, मेड इन इंडिया परियोजनाओं, स्वरोजगार योजनाओं और ऋणों का विवरण देकर इस मुद्दे को टाल दिया.
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किसान आंदोलन के दौरान मौत का आंकड़ा
23 जुलाई 2021 को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि किसान आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन पंजाब सरकार ने जो डेटा इकट्ठा किया है उसके मुताबिक कुल 220 किसानों की राज्य में मौत हुई. राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को 10.86 करोड़ मुआवजा भी दिया है.
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कितना काला धन
मानसून सत्र में सरकार ने कहा है कि पिछले दस साल में स्विस बैंकों में कितना काला धन छिपाया गया है उसे इस बारे में कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है. लोकसभा में कांग्रेस सांसद विन्सेंट एच पाला के सवाल के लिखित जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने यह बात कही. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार ने बीते कई सालों में विदेशों में छिपाए गए काले धन को लाने की कई कोशिशें की हैं.
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क्रिप्टो करेंसी के कितने निवेशक
भारत में काम कर रहे निजी क्रिप्टो करेंसी एक्सचेंजों की संख्या बढ़ रही है, केंद्र के पास उन पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं है. इन एक्सचेंजों से जुड़े निवेशकों की संख्या के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है. देश में एक्सचेंजों की संख्या और उनसे जुड़े निवेशकों की संख्या पर एक प्रश्न के उत्तर में वित्त मंत्री ने 27 जुलाई को संसद में एक लिखित जवाब में कहा, "यह जानकारी सरकार द्वारा एकत्र नहीं की जाती है."
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पेगासस जासूसी मामला
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में पेगासस जासूसी मामला इस वक्त सबसे गर्म मुद्दा है. दुनिया के 17 मीडिया संस्थानों ने एक साथ रिपोर्ट छापी, जिनमें दावा किया गया था कि पेगासस नाम के एक स्पाईवेयर के जरिए विभिन्न सरकारों ने अपने यहां पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने की कोशिश की. भारत के संचार मंत्री ने इस मामले में लोकसभा में एक बयान में कहा कि फोन टैपिंग से जासूसी के आरोप गलत है.
मेहता ने कहा, "केंद्र पेगासस का उपयोग कर रहा था या नहीं, इस तरह के मुद्दों पर हलफनामों में बहस नहीं की जा सकती है और डोमेन विशेषज्ञों द्वारा देखा जा सकता है."
सीजेआई रमन्ना ने सवाल किया कि कोर्ट यह जानना चाहती है कि सरकार क्या कर रही है और हम राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर नहीं जा रहे हैं. हम सिर्फ लोगों के अधिकारों के बारे में चिंतित हैं.
बेंच ने कहा कि वह पहले ही साफ कर चुकी है कि वह नहीं चाहती कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने वाली किसी भी चीज का खुलासा करे. बेंच ने कहा, "हम केवल एक सीमित हलफनामे की उम्मीद कर रहे थे क्योंकि हमारे सामने याचिकाकर्ता हैं जो कहते हैं कि उनके अधिकारों का उल्लंघन किया गया है."
दुनियाभर के 17 मीडिया संस्थानों ने एक साथ रिपोर्ट छापी थीं, जिनमें दावा किया गया था कि पेगासस नाम के एक स्पाईवेयर के जरिए विभिन्न सरकारों ने अपने यहां पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने की कोशिश की.
भारत में मीडिया संस्थान द वायर उस जांच का हिस्सा है, जिसे "पेगासस प्रोजेक्ट" नाम दिया गया है. इस जांच में फ्रांसीसी संस्था "फॉरबिडन स्टोरीज" को मिले उस डेटा का फॉरेंसिक विश्लेषण किया गया, जिसके तहत हजारों फोन नंबर्स को हैक किये जाने की सूचना थी.
रिपोर्ट में भारत में कई पत्रकारों, नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ता के फोन हैक करने का दावा किया गया था.
नर्व एजेंट की एबीसी
2018 में रूस के पूर्व जासूस सेरगेई स्क्रिपाल और उनकी बेटी पर नर्व एजेंट से हमला किया गया था. नर्व एजेंट आखिर होता क्या है और कैसे शरीर पर असर करता है?
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क्या होता है नर्व एजेंट?
नर्व एजेंट ऐसे जहरीले रसायन हैं जो सीधे नर्वस सिस्टम यानि तंत्रिका तंत्र पर असर करते हैं. ये दिमाग तक जाने वाले संकेतों को रोक देते हैं, जिससे शरीर ठीक तरह से काम करना बंद कर देता है. इसका असर सबसे पहले मांसपेशियों पर लकवे के रूप में देखने को मिलता है.
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कैसा दिखता है?
यह पाउडर के रूप में भी होते हैं और गैस के भी, लेकिन ज्यादातर द्रव का इस्तेमाल किया जाता है, जो भाप बन कर उड़ जाता है. अक्सर यह गंधहीन और रंगहीन होता है, इसलिए किसी तरह का शक भी नहीं होता.
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कैसे दिया जाता है?
यह भाप अगर सांसों के साथ शरीर के अंदर पहुंचे, तो कुछ सेकंडों में ही अपना असर दिखा सकती है. कई बार द्रव को त्वचा के जरिये शरीर में भेजा जाता है. ऐसे में असर शुरू होने में कुछ मिनट लग जाते हैं.
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कैसा होता है असर?
नर्व एजेंट के संपर्क में आने वाले व्यक्ति को फौरन ही सांस लेने में दिक्कत आने लगती है. आंखों की पुतलियां सफेद हो जाती हैं, हाथ-पैर चलना बंद कर देते हैं और व्यक्ति कोमा में पहुंच जाता है. ज्यादातर मामलों में कुछ मिनटों में ही व्यक्ति की मौत हो जाती है.
जहर देने के तरीके
कई बार इन्हें खाने में या किसी ड्रिंक में मिला कर दिया जाता है. लेकिन ऐसे में असर देर से शुरू होता है. ऐसे भी मामले देखे गए हैं जब इन्हें सीधे व्यक्ति पर स्प्रे कर दिया गया हो. इससे वे सीधे त्वचा के अंदर पहुंच जाते हैं.
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क्या है इलाज?
जहर को जहर काटता है. इसके असर को कम करने के लिए एक एंटीडोट दिया जा सकता है लेकिन जरूरी है यह जल्द से जल्द दिया जाए. एंटीडोट देने से पहले यह पता लगाना भी जरूरी है कि किस प्रकार का नर्व एजेंट दिया गया है.
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किस प्रकार के होते हैं?
नर्व एजेंट को तीन श्रेणियों में बांटा गया है. जी-एजेंट, वी-एजेंट और नोविचोक. शुरुआत 1930 के दशक में हुई जब सस्ते कीटनाशक बनाने के चक्कर में एक घातक जहर का फॉर्मूला तैयार हो गया और यह जर्मन सेना के हाथ लग गया.
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क्या है जी-एजेंट?
'जी' इसलिए क्योंकि यह जर्मनी में बना. 1936 में सबसे पहला जी-एजेंट जीए बना. उसके बाद जीबी, जीडी और जीएफ तैयार किए गए. जीबी को ही सारीन के नाम से भी जाना जाता है. अमेरिका युद्ध की स्थिति में रासायनिक हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल कर चुका है.
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क्या है वी-एजेंट?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने भी नर्व एजेंट बनाना शुरू किया. ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने 1950 के दशक में वीएक्स तैयार किया. वीएक्स के अलावा वीई, वीजी, वीएम और वीआर भी हैं लेकिन वीएक्स सबसे घातक है.
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क्या है नोविचोक?
रूसी भाषा में नोविचोक का मतलब है नया. इन्हें 70 और 80 के दशक में सोवियत संघ में बनाया गया था. इनमें से एक ए-230, वीएक्स की तुलना में पांच से आठ गुना ज्यादा जहरीला होता है और मिनटों में जान ले सकता है.
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कैसे ट्रांसपोर्ट होते हैं?
यह इतने जहरीले होते हैं कि इन्हें ले जाने वाले पर भी खतरा बना रहता है. जरा सा संपर्क भी जानलेवा साबित हो सकता है. इसलिए इनके लिए खास तरह की शीशी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे कस कर बंद किया जाता है. साथ ही ट्रासंपोर्ट करने वाला खास तरह के कपड़े भी पहनता है.
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कहां से आया?
नर्व एजेंट कोई आम जहर नहीं है जिसे घर पर बना लिया जाए. यह सैन्य प्रयोगशालाओं में बनाया जाता है और हर एक फॉर्मूले में थोड़ा बहुत फर्क होता है. इसलिए हमले के मामले में पता किया जाता है कि फॉर्मूला कौन से देश का है. इसके अलावा जिस शीशी या कंटेनर में जहर लाया गया, उसकी बनावट से भी पता किया जाता है.
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कितना असरदार?
नर्व एजेंट के हमले के बाद बचने की संभावना बहुत ही कम होती है. हालांकि खतरा कितना ज्यादा है, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि जहर किस मात्रा में दिया गया है.