पेगासस कांडः राहुल गांधी और प्रशांत किशोर का भी नाम
२० जुलाई २०२१
यूरोपीय आयोग ने कहा है कि पेगासस जैसी घटनाएं पूरी तरह अस्वीकार्य हैं और अगर इनमें सच्चाई है तो ये यूरोपीय मूल्यों के खिलाफ हैं. भारत में कई बड़े लोगों के नाम सूची में शामिल हैं.
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इस्राएली कंपनी के जासूसी सॉफ्टवेयर की मदद से विभिन्न सरकारों द्वारा पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और नेताओं की जासूसी करने की खबरों पर यूरोपीय आयोग ने चिंता जताई है. आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लाएन ने कहा है कि अगर इन खबरों में सच्चाई है तो यह पूरी तरह अस्वीकार्य है और पत्रकारों की जासूसी यूरोपीय संघ के मूल्यों के खिलाफ है.
चेक गणराज्य में पत्रकारों से बातचीत में लाएन ने कहा, "अब तक हमने जो पढ़ा है, और उसकी सत्यता का पता लगाना बाकी है, लेकिन यदि ऐसा हुआ है, तो यह स्वीकार नहीं किया जा सकता. यह यूरोपीय संघ के हमारे नियमों के भी खिलाफ है.” एक यात्रा पर प्राग पहुंचीं लाएन ने कहा कि मीडिया की आजादी यूरोपीय संघ के मूल्यों में से एक है.
एनएसओ का खंडन
रविवार को दुनियाभर के 17 मीडिया संस्थानों ने एक साथ रिपोर्ट छापी थीं, जिनमें दावा किया गया था कि पेगासस नाम के एक स्पाईवेयर के जरिए विभिन्न सरकारों ने अपने यहां पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने की कोशिश की. इस्राएली कंपनी एनएसओ द्वारा बनाया गया यह स्पाईवेयर सिर्फ 37 देशों की सरकारों को बेचा गया है, जिनमें भारत भी शामिल है.
देखेंः भारत में डिजिटल मीडिया के नियम
भारत: क्या हैं डिजिटल मीडिया के नए नियम
सरकार ने समाचार वेबसाइटों, सोशल मीडिया और ओटीटी सेवाओं के लिए नए दिशा निर्देश बनाए हैं. इनसे इन तीनों क्षेत्रों में बड़े बदलाव होने की संभावना है, लेकिन जानकार सवाल उठा रहे हैं कि नए नियमों के दुरूपयोग को कैसे रोका जाएगा.
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बड़े बदलाव
यह पहली बार है जब भारत में समाचार वेबसाइटों, सोशल मीडिया और ओटीटी सेवाओं के लिए दिशा-निर्देश बनाए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन नियमों के पीछे मंशा इंटरनेट पर आम लोगों को और सशक्त बनाने की है.
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सोशल मीडिया पर जो चीजें नहीं जानी चाहिए
10 तरह के कॉन्टेंट को सोशल मीडिया के लिए वर्जित बना दिया गया है. इसमें शामिल है वो सामग्री जिस से भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को खतरा होता हो, जिससे मित्र देशों से भारत के संबंधों पर खतरा होता हो, जिस से पब्लिक ऑर्डर को खतरा होता हो, जो किसी जुर्म को करने के लिए भड़काती हो या जो किसी अपराध की जांच में बाधा डालती हो.
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मानहानि, अश्लीलता पर प्रतिबंध
इस तरह की सामग्री को भी वर्जित कर दिया गया है जिससे किसी की मानहानि होती हो, जिसमें अश्लीलता हो, जिससे दूसरों की निजता का हनन होता हो, लिंग के आधार पर अपमान होता हो, जो नस्ल के आधार पर आपत्तिजनक हो और जिससे हवाला या जुए को प्रोत्साहन मिलता हो.
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शिकायत पर कार्रवाई
सोशल मीडिया कंपनियों को आम लोगों से शिकायत मिलने पर 24 घंटों में उसे दर्ज करना होगा और 15 दिनों के अंदर उस पर कार्रवाई करनी होगी. इसके लिए सोशल मीडिया कंपनियों को एक शिकायत निवारण अधिकारी और एक अनुपालन अधिकारी भारत में ही नियुक्त करना होगा.
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वर्जित सामग्री को हटाना होगा
किसी अदालत या किसी सरकारी संस्था से वर्जित सामग्री को हटाने का आदेश जारी होने के 36 घंटों के अंदर सोशल मीडिया कंपनी को उस सामग्री को हटाना होगा.
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मासिक रिपोर्ट
सोशल मीडिया कंपनियों को हर महीने एक रिपोर्ट भी छापनी होगी जिसमें उन्हें बताना होगा कि उन्हें कितनी और कौन सी शिकायतें मिलीं, उन पर क्या कार्रवाई की गई और कंपनी ने खुद भी किसी वर्जित सामग्री को हटाया या नहीं.
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संदेश भेजने वाले की पहचान
सोशल मीडिया पर फैले रहे उपद्रवी संदेश या पोस्ट को सबसे पहले किसने भेजा या डाला इसकी पहचान सोशल मीडिया कंपनी को करनी होगी और उसके बारे में जांच एजेंसियों को बताना होगा.
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जुर्माना और जेल
सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा नियमों का पालन ना करने पर तीन साल से सात साल तक की जेल और दो लाख से 10 लाख रुपयों तक के जुर्माने का प्रावधान है.
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ओटीटी सेवाओं के लिए नियम
नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम जैसे ओटीटी सेवाओं को अपने कार्यक्रमों को उम्र के आधार पर पांच श्रेणियों में डालने के लिए, अपने यूजरों की उम्र मालूम करने के लिए और एडल्ट कार्यक्रमों को बच्चों की पहुंच से परे कर देने के लिए कहा गया है.
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समाचार वेबसाइटों के लिए नियम
समाचार वेबसाइटों को प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए पहले से बने हुए नियमों का पालन करना होगा. इसे सुनिश्चित करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक समिति भी बनाएगा.
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10 तस्वीरें1 | 10
एनएसओ को 2010 में स्थापित किया गया था. तेल अवीव के नजदीक हर्त्सलिया से काम करने वाली कंपनी एनएसओ ने जासूसी के इन आरोपों का पूरी तरह से खंडन किया है.
कंपनी ने कहा, "हम जोर देकर कहना चाहते हैं कि एनएसओ अपनी तकनीक सिर्फ उन जासूसी और कानूनपालक एजेंसियों को बेचती है, जिन्हें पूरी तरह जांचा परखा गया हो. इसका मकसद अपराध और आतंकी गतिविधियों से लोगों की जानें बचाना होता है.”
पेगासस फिर विवाद में
पेगासस एक स्पाईवेयर है जिसके जरिए स्मार्टफोन्स हैक करके लोगों की जासूसी की जा सकती है. यह पहली बार नहीं है जब पेगासस का नाम जासूसी संबंधी विवादों में आया हो. 2016 में भी कुछ शोधकर्ताओं ने कहा था कि इस स्पाईवेयर के जरिए युनाइटेड अरब अमीरात में सरकार से असहमत एक कार्यकर्ता की जासूसी की गई.
सोशल मीडिया नेटवर्किंग ऐप वॉट्सऐप ने 2019 में एनएसओ पर मुकदमा किया था. वॉट्सऐप ने दावा किया था कि उसकी जानकारी के बिना पेगासस का इस्तेमाल उसके ग्राहकों पर निगरानी रखने के लिए किया जा रहा है.
एनएसओ के ग्राहकों में दुनियाभर की सरकारें हैं. इस जांच में जिन दस देशों का नाम आया है, वे हैः अजरबैजान, बहरीन, हंगरी, भारत, कजाकिस्तान, मेक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, यूएई.
‘मीडिया की आजादी पर हमला'
भारत में मीडिया संस्थान द वायर उस जांच का हिस्सा है, जिसे ‘पेगासस प्रोजेक्ट' नाम दिया गया. इस जांच में फ्रांसीसी संस्था ‘फॉरबिडन स्टोरीज' को मिले उस डेटा का फॉरेंसिक विश्लेषण किया गया, जिसके तहत हजारों फोन नंबर्स को हैक किये जाने की सूचना थी.
तस्वीरों मेंः मीडिया के हमलावरों में मोदी भी
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थाओं जैसे वॉशिंगटन पोस्ट, गार्डियन और ला मोंड व जर्मनी में ज्यूडडॉयचे त्साइटुंग ने भी इस जांच में हिस्सा लिया था. जांच के बाद दावा किया गया है कि 50 हजार फोन नंबरों को जासूसी के लिए चुना गया था. इनमें दुनियाभर के 180 से ज्यादा पत्रकारों के फोन नंबर शामिल हैं.
भारत में द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन उन पत्रकारों में से हैं जिनका फोन हैक किया गया. वह कहते हैं कि यह घटना मीडिया की आजादी पर हमला है. वरदराजन ने पत्रकारों को बताया, "तो जब भी किसी सरकार को यह अस्वस्थ उत्सुकता होगी कि हमारे पत्रकार क्या कर रहे हैं या फिर अपने विपक्षी नेताओं की गतिविधियां जानने के लिए अवैध तरीकों का इस्तेमाल करती है, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसी सरकार खेल के नियमों का सम्मान नहीं करती. जो सरकार कानून का सम्मान नहीं करती, वह लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं सम्मान नहीं करती.”
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राहुल गांधी का भी नाम
भारत में जिन लोगों के नाम पेगासस जासूसी कांड की सूची में शामिल हैं उनमें 40 से ज्यादा पत्रकारों के अलावा सरकार और विपक्ष के कई नेता भी शामिल हैं. सबसे बड़ा नाम कांग्रेस नेता राहुल गांधी का है. द वायर के मुताबिक राजनीतिक कार्यकर्ता प्रशांत किशोर और हाल ही में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री बने अश्विनी वैष्णव व प्रह्लाद पटेल भी संभवतया निशाने पर थे. वैष्णव का फोन संभवतया तब हैक किया गया जब 2017 में वह मंत्री या सांसद तो क्या, भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी नहीं थे.
मीडिया को कुछ अच्छा क्यों नहीं दिखता?
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जिन लोगों के फोन जासूसी के लिए निशाने पर थे, उनमें जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली महिला और उसके रिश्तेदार भी शामिल हैं. द वायर के दावों के मुताबिक उस महिला के कम से कम 11 रिश्तेदारों के फोन हैक किए गए.
यह मामला 2019 का है जबकि जब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर एक महिला ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे. जस्टिस गोगोई को सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने उस मामले में क्लीन चिट दी थी, जिसके फौरन बाद केंद्र सरकार ने उन्हें राज्य सभा के लिए नामित किया था.
भारतीय जनता पार्टी सरकार की आलोचना करते हुए कांग्रेस ने उसे ‘भारतीय जासूस पार्टी' बताया है. कांग्रेस ने कहा कि सरकार लोगों के बेडरूम में हो रही बातें सुन रही थी. उधर बीजेपी ने कहा है कि जासूसी के ये आरोप बेबुनियाद हैं.
आईटी मंत्री वैष्णव ने संसद में सरकार का बचाव करते हुए कहा कि यह मात्र संयोग नहीं है कि संसद का मानसून सत्र शुरू होने के एक दिन पहले यह खबर छपी है.