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समानताअफ्रीका

माहवारी के उत्पादः कहीं है किल्लत तो कहीं है असमंजस

१९ फ़रवरी २०२२

आज माहवारी से सुविधाजनक ढंग से निपटने के बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं. लेकिन दुनिया में कई इलाकों की औरतों के पास विकल्प के नाम पर अभी सिर्फ चीथड़े ही हैं.

 माहवारी कप भरोसेमंद और पर्यावरण के लिए अच्छे हैं, लेकिन ये हैं बहुत महंगे
माहवारी कप भरोसेमंद और पर्यावरण के लिए अच्छे हैं, लेकिन ये हैं बहुत महंगेतस्वीर: Gioia Forster/dpa/picture alliance/dpa

माहवारी की असुविधाओं से निजात दिलाने के लिए संपन्न देशों में डिस्पोजेबल टैम्पूनों और पैडों की भरमार पिछली सदी में हो चुकी है. लेकिन ये उत्पाद सुविधाजनक तो हैं लेकिन मुकम्मल नहीं हैं. मासिक वेतनभोगियों के लिए इन उत्पादों की मासिक लागत महंगी हो सकती है. ये उत्पाद आखिरकार कचरे में फेंक दिए जाते हैं. इस तरह ये पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. ब्रिटिश शोधकर्ताओं के मुताबिक एक सामान्य गैर-ऑर्गेनिक पैड को पूरी तरह नष्ट होने में 500-800 साल लग जाते हैं.    

और तो और एक खराब टैम्पून, टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का कारण बनता है. ये एक दुर्लभ लेकिन घातक किस्म का संक्रमण है. फिर भी दुनिया भर में माहवारी से गुजरने वाली कई महिलाओं के लिए ये उत्पाद एक विलासिता की तरह हैं. अगर वे किसी तरह उपलब्ध हैं, तब भी.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) के मुताबिक हर महीने, 1.8 अरब औरतों को माहवारी होती है. लेकिन कुछ लोगों के लिए ये सहज होती है कुछ के लिए नहीं. ऊंची कीमतों के अलावा माहवारी से जुड़ी सामाजिक शर्म और संकोच, सुविधाजनक उत्पाद और बुनियादी सैनिटेशन सुविधाओं की किल्लत की वजह से भी लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती. अध्ययन बताते हैं कि बांग्लादेश, भारत, युगांडा और ब्रिटेन में कुछ लड़कियां पीरियड आने पर घर में ही रहने को विवश होती हैं.

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विकल्प क्या हैं?

डिस्पोजेबल टैम्पूनों और पैडो से आजिज आ चुके लोगों के सामने अब नए विकल्प भी हैं- दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाले माहवारी कप, पीरियड अंडरवियर, कपड़ों से बने पैड और पीरियड डिस्क.

डिस्पोजेबल पीरियड उत्पादों के सबसे जानेमाने विकल्पों में माहवारी कप भी आते हैं. वे दोबारा इस्तेमाल हो सकते हैं और दस साल तक चल जाते हैं. एक लोकप्रिय ब्रांड है डिवाकप. उसकी वेबसाइट के मुताबिक उसे 12 घंटों तक लगातार पहने रखा जा सकता है. और पानी और साबुन से धोकर दोबारा पहना जा सकता है.

हालांकि कप महंगे भी पड़ते हैं (करीब 26 यूरो) और उन्हें गरम पानी में खौलाना पड़ता है. ये काम उनके लिए असुविधाजनक है जिन्हें पानी की किल्लत है या उसे उबालने के लिए साधन नहीं हैं. और शोध बताते हैं कि अगर सही ढंग से इस्तेमाल नहीं किया गया तो टैम्पूनों की तरह कप भी टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का कारण बन सकते हैं.

पीरियड अंडरवियर, भी बेहतर विकल्प हो सकते हैं. लेकिन वे वैसे अपने स्तर पर काम नहीं करते हैं और उनसे रिसाव का खतरा भी बना रहता है. ये कहना है इस उत्पाद की समीक्षा करने वाली वेबसाइटों का. वे भी महंगे आते हैं- अगर पीरियड की पूरी अवधि के दौरान, रोजाना धुले बिना उन्हें पहना जाए तो कम से कम तीन से चार जोड़े खरीदकर रखने होंगे. इससे दीर्घ अवधि में पैसा तो बचेगा लेकिन तात्कालिक लागत काफी आएगी.

पीरियड डिस्क को माहवारी कप की तरह अंदर डाला जाता है लेकिन टैम्पूनों की तरह वे डिस्पोजेबल हैं. कप या टैम्पूनों से उलट डिस्क, सर्विक्स यानी गर्भाशयग्रीवा पर लगाई जाती है (ये गर्भाशय का निचला हिस्सा है) और योनि में जाने से पहले खून उसी डिस्क में उतर जाता है. इससे झंझट-मुक्त संभोग भी संभव है. अभी तक, ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है जिनसे ये पता चलता हो कि डिस्क के उपयोग से भी टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम हो सकता है.

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कौन से परहेज करने हैं

विशेषज्ञों के मुताबिक, लोगों के सामने जब पीरियड से निपटने के लिए बहुत सारे विकल्पों को चुनने की सुविधा हो, तो सही तरीका यही है कि उसी विकल्प को चुनें जो उनके लिए सबसे सही काम करता है- इसी में समझदारी है.

"सी स्पंज” टैम्पून भी आते हैं. वे असली सी स्पंज के बने होते हैं या सिथेंटिक होते हैं. स्त्री सेहत से जुड़ी कई वेबसाइटों में उनकी काफी सराहना की गई है. उन्हें कॉटन टैम्पूनों का एक प्राकृतिक और टिकाऊ विकल्प बताया जाता है. लेकिन इस तरह के और दूसरे टैम्पून विकल्पों के इस्तेमाल से बचना चाहिए. ये कहना है एक कनाडाई स्त्रीरोग विशेषज्ञ जेन गुंटेर का. वो न्यू यार्क टाइम्स में महिला स्वास्थ्य पर एक मासिक स्तंभ भी लिखती हैं. 

गुंटेर कहती हैं कि स्पंज से इसलिए परहेज करना चाहिए क्योंकि उन्हें साफ करने का कोई तरीका नहीं है, जिसका मतलब वो योनि में बाहरी बैक्टीरिया का प्रवेश करा सकते हैं. और उनकी खुरदुरी सतह योनि की नाज़ुक झिल्ली में खरोंच पैदा कर सकती है, जिस पर कतई ध्यान भी नहीं जाता है लेकिन वो बैक्टीरिया के लिए रास्ता बना देने के लिए काफी होती है.

वो कहती हैं कि स्पंज के आकार से भी योनि में चोट आ सकती है. क्योंकि वो क्षैतिज ढंग से फैलता है ना कि ऊर्ध्वाकार ढंग से. उसे हटाने के दौरान समस्या आ सकती है.

अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के एक गाइडेंस पेपर के मुताबिक 1980 में जिन महावारी स्पंजों की जांच की गई उनमें रेत, गारा, बैक्टीरिया और दूसरे विभिन्न पदार्थ पाए गए थे. पर्चे के मुताबिक एक सैंपल में स्टेफाइलोकोकस ऑरियस नाम का एक बैक्टीरिया होने की पुष्टि हुई.

एफडीए की जांच के बाद वितरकों ने स्वैच्छिक ढंग से कई स्पंजों को वापस ले लिया. लेकिन जेड एंड पर्ल जैसी कंपनियों के जरिए, स्पंज अभी भी ऑनलाइन बिक रहे हैं. नियामकों की जांच में पता चला था कि उच्च-अवशोषकता वाले टैम्पूनों और रेली ब्रांड के टैम्पूनों के इस्तेमाल में टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम संक्रमण का खतरा था. 1980 में उन्हें बाजार से वापस ले लिया गया.

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अवरोध और उपलब्धतता

अमेरिका में माहवारियों में पैडों का इस्तेमाल भी टैम्पूनों की तरह बहुधा होता है. यूरोप में टैम्पून ज्यादा चलते हैं. कॉटन टैम्पून जल्दी नष्ट होते हैं. करीब छह महीने में. जबकि अमेरिका में मिलने वाले टैम्पूनों के साथ लगे प्लास्टिक एप्लीकेटरों और रैपरों को नष्ट होने में ज्यादा समय लगता है.

यूरोप में टैम्पून, एप्लीकेटरों या रैपरों के बिना बिकते हैं. गत्तों की पैकिंग में आते हैं जिनसे कचरा कम होता है. दुनिया के दूसरे हिस्सों में टैम्पूनों का इस्तेमाल बहुत ही कम होता है. अध्ययन बताते हैं कि बाज मौकों पर तो इसकी वजह सांस्कृतिक होती है- उन्हें गंदा या अशुद्ध माना जाता है या स्त्री कौमार्य को भंग करने वाला समझा जाता है- कई जगहें ऐसी है जहां इसका इस्तेमाल न करने की वजहें आर्थिक होती हैं. 

जाम्बिया, सूडान, इथोपिया जैसे देशों में महिलाएं अब भी फटे पुराने सूती कपड़ों या चीथड़ों का इस्तेमाल माहवारी आने पर करती हैं. डिस्पोजेबल पीरियड उत्पादों तक उनकी पहुंच नहीं हैं या उतना खर्च वहन नहीं कर सकतीं.

दक्षिण सूडान में 2015 के एक अध्ययन में पाया गया कि सर्वे में शामिल लड़कियों में से सिर्फ 17 फीसदी  लड़कियां ही बाजार में बिकने वाले डिस्पोजेबल सैनिटरी पैडों का इस्तेमाल कर रही थीं. शेष लड़कियों ने पुराने कपड़े या बकरे का चमड़ा इस्तेमाल किया या उनके पास कुछ भी नहीं था. करीब 17 फीसदी लड़कियों का कहना था कि माहवारी के समय वे जमीन में सूराख कर देती थीं जिन्हें बाद में मिट्टी से ढक देती थीं.

अध्ययन के मुताबिक इथोपिया, जिम्बाव्वे और तंजानिया में एक चौथाई से कम लड़कियां पीरियड में डिस्पोजेबल पैड लगाती हैं. बाकी लड़कियां पुराने कपड़े, चीथड़े, कॉटन और टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल करती हैं. 

नेपाल में "माहवारी झोपड़ियों” में हर महीने जाकर अपना खून गिराने की परंपरा है. हालांकि "चौपदी” कही जाने वाली ये परंपरा गैरकानूनी है फिर भी कई लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. 2019 के एक सर्वे के मुताबिक मध्यपश्चिमी नेपाल के गांवों की 400 किशोरियों के बीच पाया गया कि उनमें से 77 फीसदी लड़कियां चौपदी अपना रही थीं जबकि 60 फीसदी लड़कियां जानती थी कि वैसा करना कानून के खिलाफ था.

इथोपिया जैसे इलाकों में जहां माहवारी के उत्पाद उपलब्ध नहीं है या उन तक पहुंच मुमकिन नहीं है, और जहां महिलाएं चीथड़ों से काम चलाती हैं, वहां कप और दोबारा इस्तेमाल होने वाले अफ्रीपैड बांटे जाते रहे हैं. लेकिन ये विकल्प, पीरियड संबंधी उन दूसरी समस्याओं का समाधान नहीं बन पाते हैं जो इनमें से कई महिलाओं को झेलनी पड़ती हैं, जैसे कि साफ पानी या घर पर शौचालय की कमी.

रिपोर्टः क्लेयर रोथ

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