रेडियो पत्रकार पर्सिवल मबासा की सोमवार रात राजधानी मनीला के बाहरी इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई. नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स का कहना है कि सरकार पत्रकारों को सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रही है.
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पत्रकार पर्सिवल मबासा की हत्या की मीडिया समूहों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने निंदा की है. मबासा की "निर्मम" हत्या को प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक आघात के रूप में देखा जा रहा है. प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार शाम मनीला में उनकी हत्या के खिलाफ विरोध मार्च निकाला.
मबासा की हत्या कैसे हुई?
63 साल के मबासा की मनीला के उपनगर लास पिनास में एक आवासीय परिसर के गेट पर मोटरसाइकिल सवार दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. पुलिस का कहना है कि हमलावर फरार हो गए और उनकी पहचान के लिए जांच की जा रही है. पुलिस का कहना है कि वह हमले के मकसद का पता लगाने की कोशिश कर रही है.
राष्ट्रीय पुलिस ने दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का वादा किया है और कहा है कि मामले की जांच के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा.
पुलिस प्रमुख जिमी सैंटोस ने एक बयान में कहा, "हम इस संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं कि शूटिंग मीडिया में मबासा के काम से संबंधित हो सकती है."
डुटेर्टे के आलोचक थे मबासा
मबासा जिन्हें पर्सी लैपिड नाम से भी जाना जाता था, वह फिलीपींस के पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे के कटु आलोचक थे, डुटेर्टे ने अवैध ड्रग्स पर एक घातक कार्रवाई की देखरेख की थी और वह उनके उत्तराधिकारी रहे फर्डिनांड मार्कोस के बेटे फर्डिनांड मार्कोस जूनियर के भी आलोचक थे. मार्कोस को 1986 के लोकतंत्र समर्थक विद्रोह में हटा दिया गया था.
मबासा के यूट्यूब चैनल से पता चलता है कि वह पूर्व राष्ट्रपति डुटेर्टे और वर्तमान राष्ट्रपति मार्कोस जूनियर के प्रशासन की कुछ नीतियों और अधिकारियों के आलोचक थे.
फिलीपींस के नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने एक बयान में कहा कि "मेट्रो मनीला की यह घटना दिखाती है कि अपराधी कितने बेशर्म थे और कैसे अधिकारियों ने पत्रकारों और आम नागरिकों की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया."
यूनियन ने कहा कि मबासा "रेड-टैगिंग" के कट्टर आलोचक थे. यह बोलचाल का शब्द उन लोगों को खारिज करने के लिए प्रयोग किया जाता है जो सरकार से असहमत हैं.
पिछले महीने ही एक अन्य रेडियो पत्रकार रे ब्लांको की मध्य फिलीपींस में चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी.
फिलीपींस में पत्रकारिता का माहौल एशिया में सबसे उदार में से एक है, फिर भी यह काम करने के लिए एक खतरनाक जगह हो सकती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 1987 से अब तक देश में कम से कम 187 पत्रकार मारे गए हैं, जिसमें 2009 में एक ही घटना में 32 पत्रकार मारे गए थे.
एए/वीके (एपी, रॉयटर्स)
'DW फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड' से सम्मानित किए गए पत्रकार और एक्टिविस्ट
2015 से ही डॉयचे वेले मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए मुहिम चला रहे लोगों को 'DW फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड' से सम्मानित करता आ रहा है. जानिए, अब तक के अवॉर्ड विजेताओं के बारे में.
तस्वीर: DW/P. Böll
2015: रईफ बदावी, सऊदी अरब
सऊदी ब्लॉगर रईफ बदावी ने सालों तक अपने देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी. वह अपने ब्लॉग में राजनैतिक और समाजिक समस्याएं उठाते थे. 2012 में उन्हें इस्लाम, धार्मिक नेताओं और राजनेताओं का अपमान करने का आरोपी बनाया गया. इस जुर्म के लिए उन्हें 2014 में 10 साल की कैद और 1,000 कोड़ों की सजा सुनाई गई (आज तक 50 लग चुके) और भारी जुर्माना लगाया गया था. मार्च 2022 में उन्हें रिहा कर दिया गया.
तस्वीर: Patrick Seeger/dpa/picture alliance
2016: सेदात एरगिन, तुर्की
तुर्की के प्रमुख अखबार हुर्रियत के पूर्व मुख्य संपादक सेदात एरगिन को 2016 का फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड मिला था. उस वक्त उन पर राष्ट्रपति एर्दोवान के कथित अपमान के लिए मुकदमा चल रहा था. अवॉर्ड स्वीकार करते हुए एरगिन ने कहा था कि "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानवता के सबसे आधारभूत मूल्यों में से है. यह समाज में हमारे अस्तित्व का अटूट हिस्सा है." (तस्वीर में 2019 की विजेता अनाबेल हेर्नाडेज के साथ)
तस्वीर: DW/F. Görner
2017: व्हाइट हाउस कॉरेसपॉन्डेंट्स एसोसिएशन
'व्हाइट हाउस कॉरेसपॉन्डेंट्स एसोसिएशन' को फ्रीडम ऑफ स्पीच अवार्ड 2017 से नवाजा गया था. डॉयचे वेले महानिदेशक पेटर लिम्बुर्ग ने एसोसिएशन के अध्यक्ष जेफ मेसन को यह पुरस्कार दिया था. इस मौके पर लिम्बुर्ग ने कहा, "हम इस अवॉर्ड को अमेरिका और दुनियाभर में आजाद प्रेस के सम्मान, समर्थन और प्रोत्साहन के निशान के तौर पर देखते हैं जो अमेरिकी राष्ट्रपति (डोनाल्ड ट्रंप) और उनकी नीतियों पर रिपोर्टिंग करते हैं."
तस्वीर: DW/K. Danetzki
2018: सादेग जिबाकलाम, ईरान
डॉयचे वेले का 2018 का फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड ईरान के राजनीतिज्ञ सादेग जिबाकलाम को दिया गया था. उस वक्त अपने देश के राजनीतिक हालात के खिलाफ बोलने के लिए उन पर जेल की सजा की तलवार लटक रही थी. जिबाकलाम कट्टरपंथियों के साथ अपनी तीखी बहसों के लिए जाने जाते हैं और वे घरेलू और विदेश नीति से जुड़े मामलों पर सरकार के रुख की आलोचना करते रहे हैं.
तस्वीर: DW/U. Wagner
2019: अनाबेल हेर्नांडेज, मेक्सिको
मेक्सिको की खोजी पत्रकार अनाबेल हेर्नाडेज को 2019 का डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड दिया गया था. वह भ्रष्टाचार, सरकारी कर्मियों और ड्रग कार्टल्स के आपसी संबंधों की जांच-पड़ताल करती हैं. 2010 में आई उनकी किताब "लोस सेनेरेस डेल नारको"(नार्कोलैंड) में उन्होंने इन गैर-कानूनी संबंधों की पड़ताल की थी. इस वजह से उन पर हमलों की कोशिश भी हुई है. अनाबेल अब यूरोप में निर्वासित जीवन जी रही हैं.
तस्वीर: DW/V. Tellmann
2020: कोरोना महामारी कवरेज के लिए फैक्ट चेकर्स को
2020 में कोरोना वायरस के बारे में फैली फर्जी जानकारियों की सच दुनिया के सामने लाने के लिए 14 देशों के 17 पत्रकारों को फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड 2020 से नवाजा गया था. इसमें भारत के पत्रकार और 'द वायर' वेबसाइट के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन भी थे.
तस्वीर: DW
2021: तोबोरे अवुरी, नाइजीरिया
नाइजीरिया की खोजी पत्रकार तोबोरे ओवुरी को 2021 का डीडब्ल्यू अवॉर्ड दिया गया था. ओवुरी करीब 11 साल से पेशेवर पत्रकार हैं. उन्होंने कई साल छानबीन के बाद एक सेक्स वर्कर का रूप धरा और नाइजीरिया में सेक्स ट्रैफिक रैकेट्स का पर्दाफाश करने के लिए अपनी पहचान छिपाकर काम किया. 2014 में उनकी सबसे मशहूर रिपोर्ट छपी थी. उनके खुलासे के बाद देश के अधिकारियों ने जांच शुरू की थी.
तस्वीर: Elvis Okhifo/DW
2022: एवगिनी मलोलेत्का और मिस्तेस्लाव चेर्नोव, यूक्रेन
डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड 2022, फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट एवगिनी मलोलेत्का और एसोसिएटेड प्रेस के पत्रकार मिस्तेस्लाव चेर्नोव को दिया गया है. दोनों पत्रकारों ने यूक्रेन के दक्षिण-पूर्वी शहर मारियोपोल की तबाही और रूसी कब्जे की तस्वीरें और वीडियो दुनिया को दिखाए हैं. AP में प्रकाशित उनकी रिपोर्ट "मारियोपोल में 20 दिन" यूक्रेन युद्ध से तबाह हुए शहर को करीब से दिखाती है.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance/Evgeniy Maloletka