फिलीपींस में फर्डिनांड मार्कोस जूनियर राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. लेकिन उनके परिवार का इतिहास उनके बारे में लोगों के अंदर आशंकाएं पैदा कर रहा है.
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फिलीपींस के तानाशाह रहे फर्डिनांड मार्कोस के बेटे फर्डिनांड मार्कोस जूनियर भारी-भरकम जीत के साथ देश के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं. सोमवार को हुए चुनाव में उन्हें बड़े अंतर से विजय मिलने का अनुमान है, जिसके साथ देश के सबसे प्रसिद्ध राजनीतिक परिवार की एक बार फिर सत्ता में वापसी हो रही है.
फर्डिनांड मार्कोस जूनियर को अपने प्रतिद्वन्द्वी लेनी रोब्रेडो से दोगुने से भी ज्यादा मत मिले हैं. रोब्रेडो मौजूदा राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे की सरकार में उपराष्ट्रपति थे. 96 प्रतिशत से ज्यादा मतों की गिनती के बाद उन्हें 1.45 करोड़ मत मिले जबकि तीसरे नंबर पर मशहूर मुक्केबाज मैनी पैकियो रहे जिन्हें अब तक 35 लाख मत मिले. मार्कोस को 3.05 करोड़ मत मिले.
कौन हैं मार्कोस जूनियर?
64 वर्षीय मार्कोस जूनियर एक प्रांत के पूर्व गवर्नर, सांसद और सेनटेर रह चुके हैं. 1986 में उनके पिता फर्डिनांड मार्कोस देश के तानाशाह शासक थे जिन्हें एक शांतिपूर्ण क्रांति के बाद पद से हटाया गया था. उन पर अपने परिवार के साथ मिलकर सत्ता में रहते हुए 5 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति जुटाने के आरोप लगे थे. 1989 में उनकी हवाई में निर्वासन में ही मौत हो गई थी.
घर घर पहुंचता ट्रॉली स्कूल
फूलों से सजी लकड़ी की बनी यह ट्रॉली असल में एक स्कूल है, जो बच्चों के पास पहुंचती है. पढ़ाई को कैसे घर-घर पहुंचा रहा है ट्रॉली स्कूल, देखिए...
तस्वीर: Lisa Marie David/REUTERS
गरीब बच्चों के लिए ट्रॉली स्कूल
दक्षिणी फिलीपींस में यह ट्रॉली स्कूल उन बच्चों तक शिक्षा पहुंचा रहा है जिनका स्कूल पहुंचना मुश्किल है. लकड़ी की बनी इस सुंदर सी ट्रॉली पर बैठे ये युवा शिक्षक खुद भी छात्र हैं.
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स्वयंसेवी शिक्षक
स्वयंसेवक के तौर पर काम करने वाले ये छात्र छोटे बच्चों तक इस ट्रॉली की मदद से पहुंचते हैं और उन्हें पढ़ाते हैं. हर ट्रॉली पर चार छात्र होते हैं, दो आगे और दो पीछे बैठते हैं और अपने पांवों से ट्रॉली को धकेलते हैं.
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किताबें, व्हाइटबोर्ड और टीचर
ट्रॉली अपने आप में पूरा स्कूल है. यहां रंगीन चार्ट हैं, किताबों का ढेर है और एक वाइटबोर्ड भी है. तागकावायन शहर में यह स्कूल हफ्ते में तीन बार गरीब छात्रों के समुदायों में जाता है.
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नौ छात्र बने शिक्षक
नौ छात्र इन स्कूलों के लिए स्वयंसेवी शिक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हीं में से एक शाइरा बेर्डिन बताती हैं, "यह करना बहुत जरूरी है, खासकर ऐसे समय में जब बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं." गांव में पहुंचकर ये छात्र ट्रॉली को रेलवे ट्रैक से उतारकर बगल में रख देते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं.
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दान की सामग्री
ट्रॉली को एक स्कूटर की तरह धकेला जाता है. ये स्वयंसेवी शिक्षक एक दिन में लगभग 60 बच्चों को पढ़ाते हैं. बीते साल नवंबर में यह प्रयास शुरू हुआ था और शिक्षण सामग्री दान के जरिए ही जुटाई गई है.
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हवाई की एक अदालत ने उन्हें मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए जिम्मेदार माना और उनकी दो अरब डॉलर की संपत्ति बेचकर 9,000 से ज्यादा फिलीपीनी नागरिकों को मुआवजा देने का आदेश दिया. 1991 में उनकी विधवा और बच्चों को देश लौटने की इजाजत मिली. लौटने के बाद परिवार ने राजनीति में सक्रिय होते हुए कई तरह के अभियान चलाए.
मार्कोस जूनियर ने अपने पति की विरासत को सही ठहराया है और उनके किसी भी कृत्य के लिए माफी मांगने से इनकार किया है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े अभियान चलाकर वोट मांगे और परिवार की छवि सुधारने की कोशिश की.
मार्कोस को लेकर चिंताएं
सिंगापुर स्थित यूरेशिया ग्रुप के अभ्यास प्रमुख पीटीर मम्फर्ड कहते हैं कि मार्कोस की भारी जीत इस बात की गारंटी नहीं है कि वह एक लोकप्रिय या प्रभावशाली नेता साबित होंगे. मम्फर्ड ने कहा, "यह बस उनके कार्यकाल की मजबूत शुरुआत है. खासकर, कांग्रेस के सदस्यों में शुरुआत में उनका समर्थन बढ़ेगा और कई अर्थशास्त्री और तकनीकी विशेषज्ञ उनकी सरकार में काम करना चाहेंगे.”
फिलीपींस की यौनकर्मियों के बच्चों की बदतर जिंदगी
ये बच्चे अन्य बच्चों से अलग हैं, क्यूंकि इनका जीवन इसी गरीबी में माता पिता के बिना कटना है. लोग फिलीपींस घूमने आते हैं और यौनकर्मियों की कोख में इन बच्चों को छोड़ जाते हैं.
तस्वीर: DW/R. I. Duerr
यौनकर्म पर निर्भरता
फिलीपींस के ओलोनागापो शहर के इस इलाके में ये लड़कियां गरीबी से जूझते जिंदगी गुजारती हैं. ये लड़कियां बारों में काम करती हैं. हर साल सेक्स टूरिज्म के कारण हजारों बच्चों का जन्म होता है.
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बगैर पिता की नस्ल
डेनियल का पिता एक अमेरिकी था. डेनियल की मां बार में काम करती है और कोशिश करती है कि सभी बच्चों को बराबरी का एहसास हो.
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मजबूर हालात
रयान (मध्य में) को बास्केटबॉल खेलना पसंद है. उसका पिता जापानी था. रयान के चार भाई बहन हैं, उनके पिता अलग हैं.
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करियर के अवसर
सबरीना गोरी है, इलाके में माना जाता है कि उसके लिए बेहतर अवसर मौजूद हैं. वह मॉडल या अभिनेत्री बन सकती है. उसके पिता जर्मन हैं लेकिन उनका सबरीना के परिवार से कोई संबंध नहीं है.
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पढ़ाई लिखाई
लैला की दिलचस्पी स्कूल जाने में है, वह दिन भर पीठ पर बस्ता बांध कर घूमती रहती है. लैला की मां बताती हैं कि उसके पिता अमेरिकी हैं.
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पहचान की तलाश
अफ्रीकी या अफ्रीकी अमेरिकी पिता के बच्चे इस समाज में 'निगर' कह कर पुकारे जाते हैं.
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नया परिवार
एंजेला सैमुएल के पिता स्विस थे. लेकिन उसके जन्म के पहले ही उसके पिता उन्हें छोड़ कर चले गए. एंजेला ने अब एक फिलीपीनी परिवार का लड़के से शादी की है. शादी के बाद उसने बार में काम करना छोड़ दिया.
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कैपिटल इकनॉमिक्स के अर्थशास्त्री ऐलेक्स होम्स का मानना है कि मार्कोस को लेकर कई तरह की चिंताएं भी हैं. वह कहते हैं, "इस जीत ने मार्कोस को बेहद मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है. लेकिन उनके पारिवारिक इतिहास और अब तक के राजनीतिक करियर को देखते हुए, निवेशकों में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और खराब प्रशासन को लेकर चिंताएं हैं.”
मम्फर्ड भी कुछ ऐसी ही आशंकाएं जाहिर करते हैं. वह कहते हैं, "उनकी सरकार में देखने वाली जो एक मुख्य बात होगी, वो यह होगी कि भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद पर क्या स्थिति रहती है क्योंकि इसका खतरा तो फिलीपींस में पहले से है, कहीं यह और खराब तो नहीं हो जाएगी. यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मार्कोस इन चिंताओं को मानते हैं और इन पर कोई कदम उठाते हैं या नहीं, ताकि विदेशी निवेशकों को भरोसा दिलाया जा सके. या फिर वह भी अपने जानने वालों को ही मुख्य पदों पर नियुक्त करेंगे, जो निवेशकों की चिंता है.”
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अमेरिका या चीन?
अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्ट्डीज के दक्षिण पूर्व एशिया डायरेक्टर ग्रेग पोलिंग कहते हैं कि यह 1972 नहीं है बल्कि 2022 है. उन्होंने कहा, "जल्दी ही वह देश के चुने हुए राष्ट्रपति होंगे. लेकिन यह 2022 है, 1972 नहीं. यह फिलीपींस के लोकतंत्र का अंत नहीं है लेकिन उसका क्षरण तेज हो सकता है.”
पोलिंग के मुताबिक अमेरिका को मार्कोस के साथ संवाद से ही लाभ पहुंचेगा. वह कहते हैं, "अमेरिका को आलोचना के बजाय संवाद से लाभ होगा. मार्कोस अपनी नीतियों को लेकर रहस्यमयी हैं. उन्होंने इंटरव्यू नहीं दिए, राष्ट्रपति पद के लिए बहसों से बचते रहे और ज्यादातर मुद्दों पर चुप रहे. लेकिन वह एक बात को लेकर स्पष्ट थे कि चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए वह एक बार फिर कोशिश करना चाहेंगे.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
इच्छामृत्यु को वैध बनाने वाला दुनिया का पहला देश
ठीक 20 साल पहले एक अप्रैल 2002 को नीदरलैंड्स ने इच्छामृत्यु को कानूनी वैधता दी. ऐसा करने वाला नीदरलैंड्स दुनिया का पहला देश था. आज भी कई देश ऐसे हैं जहां इच्छामृत्यु गैरकानूनी माना जाता है.
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नीदरलैंड्स
दुनिया के जिन मुठ्ठी भर देशों में इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता मिली है उनमें नीदरलैंड्स का नाम प्रमुखता से आता है. कानूनी मान्यता देने वाला विश्व के सभी देशों में नीदरलैंड्स पहला था. यहां सन 2002 से ही इसे वैधता मिली.
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बेल्जियम
नीदरलैंड्स के अलावा बेल्जियम दूसरा ऐसा देश है जहां गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को भी बहुत कड़ी शर्तों के साथ अपनी जान देने की कानूनी अनुमति है. हालांकि शर्तों का ठीक से पालन ना करने पर मरने में मदद करने वाले को एक से तीन साल की जेल हो सकती है.
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ऑस्ट्रेलिया
विक्टोरिया यहां का पहला राज्य है जहां जून 2019 में इच्छामृत्यु का कानून लागू हुआ है. यह सिर्फ उन लोगों पर लागू है जो जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं और उनका दिमाग ठीक काम कर रहा हो. साथ ही जिनके जीवन के अब सिर्फ छह महीने बाकी हों. उम्मीद है कि इसके बाद क्वीन्सलैंड और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया राज्यों में भी ऐसे कानून पास किए जा सकते हैं.
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कोलंबिया
2015 में यूथेनेसिया को मान्यता देने वाला कोलंबिया विश्व का चौथा देश बना. हालांकि कोलंबिया की संवैधानिक अदालत ने 1997 में ही इसके पक्ष में फैसला सुनाया था लेकिन डॉक्टर ऐसा करना नहीं चाहते थे. कारण था देश का एक और कानून जिसमें दया-मृत्यु के लिए छह महीने से तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान था.
तस्वीर: Helmut Fohringer/APA/picture alliance
स्विट्जरलैंड
अब तक कई देश इसे कानूनी मान्यता दे चुके हैं लेकिन स्विट्जरलैंड इकलौता देश है जहां जाकर कोई विदेशी भी कानूनी रूप से यूथेनेसिया कर सकता है. अगर मरीज चाहता हो तो मेडिकल मदद देकर किसी के प्राण लेना यहां अपराध नहीं है. तस्वीर में हैं यूथेनेसिया के मशहूर समर्थक वैज्ञानिक डेविड गुडबॉल.
तस्वीर: Alessandro della Bella/dpa/picture-alliance
लक्जमबर्ग
सन 2008 में यूथेनेसिया और मेडिकल मदद से जान देने को यहां भी वैधता मिली. गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए यह एक कानूनी विकल्प बन गया. इसके लिए मरीज को बार बार मांग करनी होती है और कम से कम दो डॉक्टर और एक मेडिकल पैनल से इसके पक्ष में दी गई सलाह लिखित रूप से जमा करानी होती है.
तस्वीर: Jm Niester/dpa/picture-alliance
जर्मनी
सन 2017 में जर्मनी में एक यादगार कदम उठाते हुए कोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार मरीजों को दवा लेकर इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी. मार्च 2017 से एक साल के भीतर इस तरह की मौत चाहने वालों के करीब 108 मरीजों ने आवेदन जमा किया. जिनमें से कइयों ने यूथेनेसिया ड्रग लेकर जान दे भी दी है.
तस्वीर: photothek/picture alliance
अमेरिका
कुछ अमेरिकी राज्यों जैसे ऑरेगन प्रांत में 1997 से इच्छामृत्यु वैध है. बाद में कैलिफोर्निया में भी इसे मान्यता मिल गई. खुदकुशी के इच्छुक व्यक्ति को डॉक्टर दवा देते हैं, जिसे कॉकटेल कहा जाता है. इसे लेते ही मरीज सो जाता है और आधे घंटे के भीतर उसकी मौत हो जाती है.
तस्वीर: Russell Contreras/AP Photo/picture alliance
कनाडा
कनाडा के क्यूबेक प्रांत ने जून 2014 में एक ऐसा कानून अपनाया जो गंभीर रूप से बीमार मरीजों को डॉक्टर की मदद से अपने प्राण त्यागने का अधिकार देता है. यह देश का पहला ऐसा प्रांत बना, जहां प्रभावी ढंग से आत्महत्या में मदद को वैध बनाया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Jensen
भारत
भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने 2018 में "पैसिव यूथेनेसिया" के पक्ष में फैसला सुनाया. इसमें धीरे धीरे मरीज को लाइफ सपोर्ट से हटाया जाता है. कोर्ट ने कहा कि कुछ शर्तों के साथ हर व्यक्ति को गरिमामय मौत पाने का अधिकार है लेकिन इसके लिए व्यक्ति को स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्थिति में यह वसीयत करनी होगी.