जेनेवा में हिग्स बोसोन पर हुए प्रयोग के जरिए मिली ढेर सारी सूचनाओं के निष्कर्ष को वैज्ञानिक सामने लाने की तैयारी कर रहे हैं. प्रयोग के 4 साल बाद उन्होंने हिग्स बोसोन के अस्तित्व की पूरी तरह पुष्टि की है.
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वैज्ञानिक यूरोप के फिजिक्स रिसर्च सेंटर सर्न में तीन साल पहले हुए सीएमएस प्रयोग में लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) के जरिए मिली सूचनाओं के सबसे बड़े अंबार पर से पर्दा उठाने की तैयारी कर रहे हैं. सर्न के सीएमएस प्रयोग के प्रमुख तिजिआनो कैम्पोरेसी का कहना है, ''भौतिकविज्ञान को नई ऊंचाइयां देने वाले कुछ अहम मौके रहे हैं, उन्हीं में से एक से अभी हम गुजर रहे हैं. यह ऐसा क्षण है जब कुछ बेहद नया मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं.''
2013 में हिग्स बोसोन की खोज के लिए भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दिया गया था. हिग्स बोसोन की खोज पहली बार उस बुनियादी सवाल का जवाब दे पाई थी कि कैसे शुरूआती पदार्थ ने अपना द्रव्यमान हासिल किया. लेकिन यह इस पहेली को नहीं सुलझा पाया था कि भौतिक विज्ञान के मानक मॉडल में से क्या चीज छूटी रह गई है. वैज्ञानिक इसके जवाब के लिए डार्क मैटर की तलाश में हैं.
अनसुलझे सवाल
ब्लैक होल की दुनिया
ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. घनघोर अंधेरे और उच्च द्रव्यमान वाले इन ब्लैक होल्स की तस्वीरें इस गैलेरी में.
तस्वीर: NASA
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
तस्वीर: cc-by-sa 2.0/Ute Kraus
विशाल धमाका
यह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
तस्वीर: NASA
सिमटा तारा
मरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
तस्वीर: NASA and M. Weiss (Chandra X -ray Center)
ब्लैक होल का जन्म
यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
सभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
तस्वीर: NASA and H. Richer (University of British Columbia)
विशालकाय दुनिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
तस्वीर: NASA/CXC/MIT/F.K. Baganoff et al
छिपे रहते हैं
ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
तस्वीर: NASA/CXC
पुष्ट हुई धारणा
सिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
तस्वीर: NASA/CXC/M.Weiss
सबसे बड़ा ब्लैक होल
यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçada
अनसुलझे रहस्य
ब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.
तस्वीर: NASA/CXC/SAO/A.Prestwich et al
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मानक मॉडल ऐसे समीकरणों का सटीक समुच्चय है जो प्रकृति के बारे में अब तक मालूम सभी बातों का सारांश है. लेकिन जेनेवा स्थित सर्न में रॉयटर्स समाचार ऐजेंसी से बात करते हुए कैंपोरेसी कहते हैं कि कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो इसके लिए भी अनसुलझे हैं, "एक पहेली यह है कि ऐसा क्यों लगता है कि गुरुत्वाकर्षण स्टेंडर्ड मॉडल में नहीं समाता. और एक दूसरा प्रश्न यह भी है कि क्यों इस ब्रह्मांड में उन चार प्रतिशत से कई अधिक पदार्थ हैं जिन्हें हम देख सकते हैं."
एलएचसी ने इससे बेहतर और कठिन काम नहीं किया है. इस प्रयोग में जमीन के 27 किलोमीटर भीतर एक भूमिगत रिंग में अरबों प्रोटोनों को 13 टेरा इलैक्ट्रॉन वोल्ट की उर्जा के बीच टकराकर तोड़ा गया. प्रोटोन किरणों की तीव्रता एक रिकॉर्ड स्तर तक कई टुकडों में टूटी और इससे अब तक का सबसे अधिक डाटा उपलब्ध हो पाया.
सर्न के वैज्ञानिकों ने बड़ी मात्रा में इकट्ठा हुए इस डाटा की गणना इंवर्स फेम्टोबार्नस में की है. अगले महीने शिकागो में हाई एनर्जी फिजिक्स पर होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस बड़े रहस्य से उस समय पर्दा उठाया जाएगा जब सीएमएस और सर्न के नजदीकी एटलस प्रयोग बताएंगे कि उन्हें इससे क्या हासिल हुआ है.
डार्क मैटर और हिग्स बोसोन
पिछले साल दिसंबर में इसके निष्कर्षों के बारे में पहली बार तब संकेत मिले थे जब सीएमएस और एटलस दोनों ने 750 गीगा इलैक्ट्रॉन वोल्ट के डाटा की ''टक्कर'' के बारे में बताया. इसके बाद से महज दो हफ्तों के भीतर ही निष्कर्ष की संभावनाओं पर 89 पेपर प्रकाशित हुए. और अब तो ऐसे 450 पेपर सामने आ चुके हैं.
लेकिन कैंपोरेसी इससे एहतियात की अपील करते हैं और कहते हैं, ''प्रकृति दयालु भी हो सकती है और जटिल भी. अगर यह दयालु रही तो खोज जल्द सामने आ जाएंगी और अगर जटिल रही तो परिणामों के लिए तय किए गए एलएचसी के सभी 3000 इंवर्स फेम्टोबार्नस पैदा करने होंगे. और मुझे डर है कि डार्क मैटर हिग्स बोसोन से भी बहुत दुर्लभ चीज हो सकती है.''
आरजे/आईबी (रॉयटर्स)
कोई है? धरती कहे पुकार के
मशहूर ब्रिटिश वैज्ञानिक प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग ने सिलिकॉन वैली के रूसी अरबपति यूरी मिलनर के साथ मिलकर एक अनोखा अभियान शुरू किया है. वे जानना चाहते हैं कि क्या ब्रह्मांड में हम पृथ्वीवासियों के अलावा कोई अलौकिक जीव भी है.
तस्वीर: AP
'ब्रेकथ्रू लिसन प्रोजेक्ट' के तहत धरती के सबसे बड़े टेलीस्कोपों, लेजर और रेडियो सिग्नलों का इस्तेमाल कर, 10 सालों तक, करीब 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च. प्रोफेसर हॉकिंग का मानना है कि ब्रह्मांड के कई हिस्सों में जीवन है. केवल ग्रहों पर ही नहीं, बल्कि तारों या फिर ग्रहों के बीच की जगह में भी.
तस्वीर: AP
क्या ऐसे अलौकिक जीव या एलियन वाकई होते है? इस पर जाने माने भौतिकशास्त्री प्रोफेसर हॉकिंग तो हां ही कहेंगे. हॉकिंग हमेशा से मानते आए हैं कि हमारे ग्रहों से बाहर एलियन्स हैं लेकिन पहले वे उनके साथ संपर्क साधने को बेदह खतरनाक बताते थे.
तस्वीर: AP
ब्रह्मांड में करीब 100 अरब गैलेक्सियों का अनुमान है. हर गैलेक्सी में लाखों तारे होते हैं. ऐसे में यह मान कर बैठना तो नासमझी ही होगी कि इतनी बड़ी जगह में केवल एक धरती पर ही जीवन हो. यूनिवर्स की रचना के बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार एक विशाल विस्फोट के बाद सौर मंडल के तमाम ग्रह अस्तित्व में आए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
इंसान के लिए अंतरिक्ष रहस्यों का खजाना है. कहानियों, फिल्मों में दूसरे ग्रह से आए जीवों से लेकर उड़नतश्तरियों का जिक्र होता है लेकिन इनके साक्ष्य हासिल करने के लिए वैज्ञानिक तमाम परीक्षण और गणनाएं करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दक्षिण अफ्रीका में लगे दुनिया के सबसे बड़े रेडियो टेलीस्कोप स्क्वेयर किलोमीटर ऐरे की मदद से हजारों मील दूर तारों को करीब से देखा जा सकता है. इसके अलावा प्रोजेक्ट वैज्ञनिकों का मानना है कि अगर अंतरिक्ष में कहीं कोई जीव हैं और वे अपने संकेत छोड़ रहे हैं तो उसकी पहचान ऐरे के शक्तिशाली एंटीने कर लेंगे.
तस्वीर: AFP/Getty Images
कई दशकों से वैज्ञानिक पृथ्वी से बाहर किसी एलीयन के संदेशों को सुनने की कोशिश करते आए हैं. अमेरिकी एस्ट्रोफिजिसिस्ट्स ने यह सुझाया कि उनसे संपर्क साधने के लिए हमें खुद पृथ्वी से उन्हें शक्तिशाली सिग्नल भेजने चाहिए. यही कैलिफोर्निया के सर्च फॉर एक्स्ट्राटेरिस्ट्रियल इंटेलीजेंस (सेटी) के 'एक्टिव सेटी' प्रोजेक्ट का आधार है.
तस्वीर: Bernhard Musil
सेटी रिसर्चरों का मानना है कि अंतरिक्षविज्ञानियों का तारों की ओर अपने रेडियो टेलीस्कोप साधे हुए वहां से आने वाले सिग्नलों की राह देखना काफी नहीं. एक्टिव सेटी प्रोजेक्ट के तहत उन लाखों तारा समूहों, गैलेक्टिक केंद्रों, धरती के सबसे पास के करीब 100 गैलेक्सियों और पूरी आकाशगंगा में सिग्नल भेजे जाएंगे, जहां जीवन की संभावना हो सकती है.
तस्वीर: Colourbox
साल 1977 में दो वोयाजर स्पेसक्राफ्ट पर फोनोग्राफ रिकॉर्ड रख कर भेजे गए जिनमें धरती के कुछ चुनिंदा दृश्य और आवाजें थीं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2008 में बीटल्स के मशहूर गाने "एक्रॉस दि यूनिवर्स" को धरती से 430 प्रकाश वर्ष दूर स्थित तारे नॉर्थ स्टार तक भेजा था.
तस्वीर: imago/United Archives
फिल्मों के मशहूर एलियन किरदार ईटी और किंग कॉन्ग की रचना करने वाले इटली के स्पेशल इफेक्ट के जादूगर कार्लो रांबाल्दी ने इसके लिए तीन ऑस्कर पुरस्कार जीते. रांबाल्दी को 1982 में स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म ईटी (एक्स्ट्रा टेरेसट्रियल) से बेशुमार शोहरत मिली और दुनिया को एलियनों का एक चेहरा ईटी मिला.