1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
मीडियाभारत

कई बार आलोचना को फेक न्यूज बताता है 'पीआईबी फैक्ट चेक'

चारु कार्तिकेय
१९ जनवरी २०२३

सरकार किसी भी खबर को फेक न्यूज बता कर वेबसाइटों से पूरी तरह से हटाने की शक्ति हासिल करना चाह रही है. लेकिन पीआईबी 'फैक्ट चेक' के तीन साल के इतिहास में देखा गया है कि वो अक्सर सरकार की आलोचना को भी फेक न्यूज बता देता है.

फेक न्यूज
फेक न्यूज और सरकारतस्वीर: M. Gann/picture alliance/blickwinkel/McPHOTO

केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में एक नए संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत प्रेस सूचना ब्यूरो या सरकार की दूसरी कोई संस्था जिस भी खबर को 'फेक न्यूज' बताएगी उस खबर को सभी समाचार और सोशल मीडिया संस्थानों को अपनी वेबसाइटों से हटाना होगा.

बल्कि सिर्फ वेबसाइटें ही नहीं, इंटरनेट कंपनी, क्लाउड सेवा कंपनी, डोमेन रजिस्ट्रार जैसी संस्थाओं पर भी ऐसी सामग्री को हटाने की जिम्मेदारी होगी. यानी इंटरनेट पर से किसी सामग्री को हटाने की शक्ति पूरी तरह से सरकार के पास सिमट जाएगी.

क्या कर रहा है पीआईबी 'फैक्ट चेक'

दिसंबर 2019 से इंटरनेट और सोशल मीडिया पर मौजूद सामग्री में फेक न्यूज को चिन्हित करने का काम प्रेस सूचना ब्यूरो की एक नई सेवा 'पीआईबी फैक्ट चेक' कर रही है. सरकार ने नए संशोधन के प्रस्ताव में संकेत दिया है कि भविष्य में यह काम सरकार की और संस्थाएं भी कर सकती हैं.

लोगों को परेशान और गुमराह करता डीप फेक

04:03

This browser does not support the video element.

लेकिन बीते तीन सालों में ऐसा कई बार देखा गया है कि 'पीआईबी फैक्ट चेक' अक्सर उन खबरों को भी फेक न्यूज बता देती है जिनमें सरकार की आलोचना की गई हो या सरकार के किसी कदम की कमियों को दिखाया गया हो.

जैसे जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई एक हिंसक झड़प के बाद चीन के सैनिकों के एलएसी पार करने की मीडिया रिपोर्टों को पीआईबी फैक्ट चेक ने फेक न्यूज बताया.

जबकि सच्चाई यह है कि पिछले दो सालों से भी ज्यादा से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना की गतिविधियों और भारत की स्थिति को लेकर तथ्यों को छिपाने के आरोप सरकार पर लगते आए हैं.

प्रेस की आजादी पर संकट

इसी तरह उसी महीने पीआईबी फैक्ट चेक ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश पुलिस के एसटीएफ के प्रमुख द्वारा टास्कफोर्स के सभी कर्मियों को अपने मोबाइल फोन से चीनी ऐप हटा देने का आदेश देने की खबर फेक न्यूज है. बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस खबर को सही बताया लेकिन पीआईबी फैक्ट चेक का ट्वीट आज भी मौजूद है.

इस तरह के कई उदाहरण हैं जब पीआईबी का फैक्ट चेक या तो झूठा यासरकार के बयान का प्रसार करता साबित हुआ है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या ऐसी संस्था को इतनी शक्ति दी जानी चाहिए कि कौन सी खबर सच्ची है और कौन सी झूठी इसका फैसला करने वाली वो अकेली और अंतिम संस्था बन जाए.

पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के संगठन एडिटर्स गिल्ड ने इसका विरोध किया है. एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए गिल्ड ने कहा है किफेक न्यूज निर्धारण करने की शक्ति के सिर्फ सरकार के हाथ में होने से प्रेस की सेंसरशिप होगी.

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने इस संशोधन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण समस्याओं को रेखांकित किया है. सबसे पहले तो संस्था ने कहा है कि इस संशोधन से अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार का भी हनन होगा.

संदेहास्पद कदम

दूसरे, संस्था ने यह भी बताया कि इस तरह की शक्ति सरकारी आदेश से नहीं बल्कि संसद द्वारा दी जाती है. फाउंडेशन का यह भी कहना है कि सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में प्रस्तावित संशोधनों पर पहले से बहस चल रही है और इन पर सुझाव देने की आखिरी तारीख 17 जनवरी थी.

लेकिन उसी दिन इन नए प्रस्तावित संशोधनों को जोड़ दिया गया और इन पर सुझाव देने के लिए लोगों को एक सप्ताह का समय और दे दिया गया. फाउंडेशन का कहना है कि इन इन नए प्रस्तावों की वजह से संशोधनों का दायरा भी बढ़ गया है और उसे प्रभावित होने वाले लोगों और संस्थानों का भी. ऐसे में एक हफ्ते का समय बहुत कम है.

अब देखना होगा कि सरकार इन सभी आपत्तियों पर क्या प्रतिक्रिया देती है और सुझाव देने की मियाद को बढ़ाती है या नहीं.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें