सूखे से निपटने के लिए जर्मनी में राइन नदी के एक हिस्से को गहरा करने की योजना बन रही है. इंजीनियर कहते हैं कि बिना खोदे नदी गहरी की जा सकती है. स्थानीय लोग और पर्यावरणप्रेमी आशंकाओं से भरे हैं.
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राइन नदी पश्चिमी यूरोप की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है. नदी जर्मनी, फ्रांस और स्विट्जरलैंड को नीदरलैंड्स के रोटरडैम बंदरगाह से जोड़ती है. हर साल 30 करोड़ टन सामान इससे होकर गुजरता है. इस माल में रसायन, कोयला, अनाज और गाड़ियों के पार्ट्स शामिल हैं. कई कंपनियों के प्लांट बिल्कुल नदी के किनारे हैं ताकि आसानी से जहाज लोड अनलोड किया जा सके. जब विकराल सूखे के कारण इस साल नदी में जहाजों की आवाजाही प्रभावित हुई तो भारी आर्थिक नुकसान हुआ.
जर्मन सरकार नहीं चाहती कि भविष्य में फिर से ऐसा हो. शिपिंग उद्योग और सप्लाई चेन को बचाने के लिए एक एक्शन प्लान बनाया गया है. पानी कम होने पर भी जहाज चलते रहें, इसकी तैयारी की जा रही है. सरकार मध्य राइन घाटी के एक हिस्से को गहरा करना चाहती है. कारोबार जगत ने इस फैसले का स्वागत किया है, लेकिन पर्यावरणप्रेमी और कुछ स्थानीय लोग इससे नाराज हैं.
योजना के केंद्र में मध्य राइन घाटी का 50 किलोमीटर लंबा इलाका है. इस इलाके को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज भी घोषित किया गया है. इस हिस्से में नदी तीखी ढाल वाले पहाड़ों और फिर अंगूर के बागानों के बीच गुजरती है. इसी इलाके में कहीं कहीं राइन विस्तार भी लेती है और उसके इस फैलाव के कारण कुछ बिंदुओं पर नदी की गहराई बहुत कम रह जाती है. कम पानी होने पर उत्तरी सागर से कोयला लाने वाले भारी मालवाहक जहाज वहां फंस सकते हैं.
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राइन वॉटरवेज एंड शिपिंग एडमिनिस्ट्रेशन (डब्ल्यूएसए) की साबीने क्रामर कहती हैं, "आशंका होने पर, वजन बहुत कम कर दिया जाता है."
सरकार इस जगह रिवर चैनल को 20 सेंटीमीटर और गहरा करना चाहती है. फिलहाल पानी कम होने पर इस जगह की गहराई 1.9 मीटर रह जाती है, योजना इसे 2.1 मीटर करने की है. राइन पर शिपिंग का प्रबंधन करने वाली संस्था सीसीएनआर के हेड काई केपमन के मुताबिक "20 सेंटीमीटर सुनने में भले ही कम लगे लेकिन इसके जरिए आप बहुत सामान ट्रांसपोर्ट कर सकते हैं."
कैसे गहरी की जाएगी नदी
फेडरल वाटर अथॉरिटी और इंजीनियरों ने एक हाइड्रॉलिक सिस्टम लगाने का प्रस्ताव दिया है. यह सिस्टम तटों पर लगाया जायेगा. प्रवाह कम होने पर यह हाइड्रॉलिक सिस्टम किनारों पर बहने वाले पानी को नदी के मध्य की भाग की तरफ मोड़ देगा. इस दौरान सिस्टम नदी की गाद को हटाते हुए ऐसा करेगा. प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रोजेक्ट 2030 तक पूरा हो जाएगा और इसमें 18 करोड़ यूरो का खर्च आएगा. 40 फीसदी रकम पर्यावरण को ठीक रखने में खर्च की जाएगी.
प्रस्ताव जर्मन फेडरेशन फॉर एनवायरनमेंट एंड नेचर कंजर्वेशन (बीयूएएनडी) को रास नहीं आया है. एनजीओ को लगता है कि पानी को बीच में धकेलने से मछलियों और सीपों को नुकसान पहुंचेगा. संगठन की प्रमुख सबीने याकोब कहती हैं, "यह एक बड़ा दखल है. हमें डर है कि ये नदी के तटों और मछलियों की संख्या पर बड़ा असर डालेगा क्योंकि इन्हीं किनारों पर मछलियां अंडे देती हैं."
राइन "हमारी पहचान है"
फिलिप रान भी योजना से परेशान है. वह राइन के तट पर बसे कस्बे बाखाराख के मेयर हैं. बाखाराख की 90 फीसदी आय टूरिज्म पर निर्भर है. उन्हें लगता है कि कोई भी नया ढांचा इस इलाके की अलौकिक सुंदरता को खराब कर देगा, "राइन हमारी पहचान है" और यह पहचान हमारी आंखों के सामने ही खो सकती है.
फिलिप रान कहते हैं, "हमारे यहां एक नौकायन क्लब है. हमारे पास वॉटरस्पोर्ट्स के एसोसिएशन हैं. पब्लिक बीच है...और ये सब नहीं रहेगा."
प्रोजेक्ट फिलहाल प्लानिंग के चरण में ही है. अभी यह तय नहीं हुआ है कि किस तरह का स्ट्रक्चर बनाया जाएगा. क्रामर कहती हैं कि हाइड्रॉलिक स्ट्रक्चर पानी कम होने पर ही दिखाई पड़ेगा, "ज्यादातर लोग जैसा सोच रहे हैं, वैसा नहीं बनने जा रहा है, इसीलिए इलाके के प्राकृतिक परिदृश्य पर इसका उतना बड़ा असर नहीं होगा."
सूखे में दम तोड़ रही हैं जर्मनी की नदियां
जर्मनी में कई हफ्तों से बारिश के ना होने की वजह से राइन, ओडर, स्प्री और अन्य नदियों में जलस्तर इतना नीचे चला गया है जितना पहले कभी नहीं गया. लेकिन कुछ चौंकाने वाली बातें भी सामने आ रही हैं.
तस्वीर: Ying Tang/NurPhoto/IMAGO
नहीं चल पा रहे जहाज
जब एक मालवाहक जहाज पर सामान पूरी तरह से लद जाता है तब इस तस्वीर में दिख रहे जहाज के नीचे को काला हिस्सा है वो पूरा का पूरा पानी के नीचे चला जाता है. लेकिन इस समय जर्मनी की नदियों में ऐसा नहीं हो रहा है. जहाजों पर अब बस आंशिक रूप से माल लादा जा रहा है. उसकी भी एक सीमा है. अगर सामान भी एक न्यूनतम सीमा तक नहीं लादा गया तो जहाज से यातायात फायदे का सौदा नहीं होगा.
तस्वीर: Roberto Pfeil/dpa/picture alliance
बिजली उत्पादन पर असर
नदियां बिजली संयंत्रों और औद्योगिक उत्पादन स्थलों पर ठंडक का भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं. अगर पानी का स्तर बहुत नीचे चला जाता है, तो ठंडा करने के लिए पानी उपलब्ध ना होने की वजह से बिजली संयंत्रों को बंद भी करना पड़ सकता है.
तस्वीर: Jochen Tack/dpa/picture alliance
राइन का हाल
यह कॉब के पास मिडल राइन का हाल है. इस तस्वीर में नदी में पानी की कमी साफ दिखाई दे रही है. पानी का स्तर जब 1.5 मीटर या पांच फुट से भी कम हो जाता है तब जहाजों का निकलना खतरनाक हो जाता है. 15 अगस्त तक यह 1.43 मीटर तक गिर गया था.
तस्वीर: Sascha Ditscher/IMAGO
फेरी का काम भी बंद
कुछ फेरियां भी नहीं चल पा रही हैं क्योंकि इन हालात में वो किनारे तक नहीं पहुंच पा रही है. अपर राइन के मानहाइम का यह नजारा देखिए. इसका लोगों की आवाजाही पर असर पड़ता है और नजदीक में कोई पुल ना होने की वजह से उन्हें लंबा रास्ता लेना पड़ता है.
तस्वीर: René Priebe/PR-Video/picture alliance
तट चौड़े हो गए हैं
हफ्तों की गर्मी से पानी भी गर्म हो गया है. कोलोन कैथेड्रल के पास नदी का तट असाधारण रूप से चौड़ा हो गया है. स्थानीय लोग इसका आनंद तो ले रहे हैं लेकिन अधिकारियों ने तैराकी ना करने की चेतावनी दी है क्योंकि राइन में बहाव अभी भी बहुत खतरनाक है.
तस्वीर: Christian Knieps/dpa/picture alliance
यात्री जहाजों की अलग कहानी
एल्ब नदी के ऊपरी हिस्सों में मालवाहक जहाज तो हफ्तों से नहीं चल पाए हैं, लेकिन यात्री जहाज कुछ स्थानों पर अभी भी चल रहे हैं. ऐसे जहाज कम पानी में भी चल लेते हैं. यह तस्वीर ड्रेस्डेन की है.
तस्वीर: Sebastian Kahnert/dpa/picture alliance
बाढ़ से सूखे तक
बस एक ही साल पहले राइनलैंड-पलैटिनेट की आर नदी में भयानक बाढ़ आई थी, जिसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे और सैकड़ों घर नष्ट हो गए थे. पर आज आर नदी इतनी सिकुड़ चुकी है. यह तस्वीर बाड नॉयनआर की है.
तस्वीर: Thomas Frey/dpa/picture alliance
यहां एक नदी थी
यह कोई सड़क नहीं बल्कि बेडन-वुर्टेमबर्ग में फ्रीबर्ग के पास बहने वाली छोटी सी नदी ड्रेसम का तल है. यह जर्मनी की उन कई छोटी नदियों में से है जो लगभग पूरी तरह से सूख चुकी हैं.
तस्वीर: Philipp von Ditfurth/dpa/picture alliance
देखिए नदी से क्या निकला
कुछ लोग बेकार हो चुकी चीजों को राइन में बहा देते हैं. यह पुरानी साइकिल नदी में जलस्तर के सूखने के बाद सामने आई. अधिकारियों के पास अब इस तरह के कचरे का ठीक से निपटान करने का मौका है.
तस्वीर: Vincent Jannink/ANP/picture alliance
त्रासदी के निशान
डच सीमा के करीब राइन के निचले इलाके में एक टूटी हुई नाव के अवशेष निकल कर आये हैं. लकड़ी की पाल वाली नाव 'द एलिजाबेथ' 1895 में यहां डूब गई थी. उसमें लदे सामान में जाने कैसे विस्फोट हो गया था, जिसकी वजह से एक दर्जन से भी ज्यादा लोग मारे गए थे.
तस्वीर: Vincent Jannink/ANP/picture alliance
खतरनाक सामान
यह द्वितीय विश्व युद्ध के समय का एक हवाई बम है जो फटा नहीं था. यह उत्तरी इटली में सूख चुकी पो नदी के तल से निकला. इसे तो नियंत्रित तरीके से फोड़ दिया गया लेकिन अब जर्मनी में इस तरह की खतरनाक खोजों को लेकर चिंताएं उत्पन्न हो रही हैं.