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धीमी बातचीत से कैसे होगा प्लास्टिक प्रदूषण रोकने पर समझौता

२७ नवम्बर २०२४

प्लास्टिक के प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए करीब 200 देशों के प्रतिनिधि दक्षिण कोरिया में पहले वैश्विक समझौते की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि, बातचीत इतनी धीमी गति से बढ़ रही है कि तय समय में समझौता होना मुश्किल लग रहा है.

दक्षिण कोरिया के बुसान में पर्यावरण कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन
बुसान में लगभग 200 देशों के प्रतिनिधि प्लास्टिक प्रदूषण घटाने को लेकर एक समझौते की कोशिश कर रहे हैंतस्वीर: Minwoo Park/REUTERS

दक्षिण कोरिया के बुसान में प्लास्टिक प्रदूषण को घटाने के उपायों पर बातचीत बहुत ज्यादा धीमी गति से चल रही है. दो साल तक चली बातचीत के बाद 1 दिसंबर तक इस मामले में समझौते की स्थिति तक पहुंचने की योजना है.

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के ग्लोबल प्लास्टिक पॉलिसी मैनेजर आइरिक लिंडेजर्ग का कहना है कि पहला पूरा दिन चार "संपर्क समूहों" के साथ समझौते के मसौदे को सुधारने में खर्च हो गया. इसके "अलग अलग गुटों में" चर्चा हुई. लिंडेजर्ग ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "संपर्क समूहों की चर्चा बहुत धीमी गति से चल रही है."

कई और राजनयिक भी यही कह रहे हैं. बंद दरवाजों के पीछे चल रही बातचीत के बारे में एक राजनयिक ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, "यह बहुत, बहुत धीमा है. कुछ देश लगातार इस प्रक्रिया को धीमा कर रहे हैं."

दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का एक बहुत छोटा हिस्सा ही रिसाइकिल होता हैतस्वीर: JOHN WESSELS/AFP

समुद्री प्लास्टिक की कड़वी सच्चाई

कहां फंसा है मामला

प्लास्टिक उत्पादन को सीमित करने और कचरा प्रबंधन जैसे मुद्दों पर देश बंटे हुए हैं. इन्हीं मसलों पर अटकी बातचीत आगे नहीं बढ़ पा रही है. कोलंबिया के एक प्रतिनिधि का कहना है कि कुछ मामलों में "बातचीत, हमें बैठक शुरू होने से पहले की स्थिति में ले गई है. इनमें कुछ ऐसे भी मुद्दे हैं, जिनपर सहयोग सरलता से हासिल होना चाहिए," जैसे कि प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन."

समझौते को लेकर बड़ा सवाल यह है कि क्या यह प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र के बारे में होगा? क्या इसमें उत्पादन को सीमित करने, कुछ रसायनों और एक बार इस्तेमाल होने वाली चीजों को खत्म करना भी शामिल होगा? संयुक्त राष्ट्र के जिस फैसले ने समझौते की प्रक्रिया शुरू की, उसमें साफ तौर पर प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र और टिकाऊ उपभोग की बात है.

संपर्क समूहों तक जो बातचीत पहुंची है, उससे साफ है कि कुछ देश समझौते में प्रमुख बदलाव चाहते हैं. इसमें उस हिस्से को हटाना भी शामिल है, जिसमें नए उत्पादन को सीमित करने की बात है.

सऊदी अरब, ईरान और रूस उन देशों में हैं जो प्लास्टिक के लिए कच्चा माल मुहैया कराते हैं. इन देशों की अपनी चिंताएं हैं. सऊदी अरब ने चेतावनी दी है कि जिन पाबंदियों की बात हो रही है, वे प्लास्टिक प्रदूषण पर ध्यान देने से कहीं ज्यादा हैं और इनकी वजह से "आर्थिक समस्याओं" के पैदा होने की आशंका है. ईरान ने मांग की है कि समझौते में आपूर्ति से संबंधित जो आर्टिकल है, उसे पूरी तरह बाहर निकाल दिया जाए.

प्लास्टिक कचरा पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन रहा हैतस्वीर: Johannes Panji Christo/Anadolu/picture alliance

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रोशनी की किरण

हालांकि, तमाम उठापटक के बावजूद कुछ रोशनी भी दिखाई पड़ी है. इनमें समस्या पैदा करने वाले सामानों ओर रसायनों को काफी हद तक सीमित करने का प्रस्ताव शामिल है. लिंडेजर्ग का कहना है, "यह हमें मानवता और प्रकृति में जहर भर रही नुकसानदेह और गैरजरूरी प्लास्टिक की चीजों से दूर ले जा सकता है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, "अब जिन देशों का बहुमत यहां बढ़ रहा है, उन्हें एक होकर कदम उठाना होगा और पीछे नहीं हटना होगा."

संयुक्त राष्ट्र के समझौते आमतौर पर सहमति से तैयार होते हैं. यहां कोशिश हो रही है कि बाध्यकारी समझौते पर पहुंचा जा सके, जिसे बहुसंख्यक सरकारों का समर्थन हो. संयुक्त राष्ट्र की इंटरगवर्नमेंटल नेगोशिएटिंग कमेटी (आईईनसी-5)  की इस बातचीत का मकसद यही है. 

वार्ता के लिए सात दिन का समय तय किया गया है, जिसमें तीन दिन बीत चुके हैं. अब तक कोई ऐसा ड्राफ्ट तैयार नहीं हुआ है, जिसपर सहमति हो सके. इसके अलावा समझौते को लागू करने के लिए विकासशील देशों को आर्थिक मदद देने पर बातचीत भी पूरी नहीं हुई है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडर्सन का कहना है, "यह बिल्कुल साफ है कि देश यह करार चाहते हैं."

इस सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन और रसायन उद्योग के 220 लॉबिइस्ट भी शामिल हो रहे हैं. यह संख्या किसी भी देश के प्रतिनिधिमंडल से ज्यादा है. यहां मेजबान दक्षिण कोरिया के प्रतिनिधिमंडल में भी 140 लोग ही हैं. नागरिक समुदाय और कई संगठनों ने इन लॉबिइस्टों की यहां मौजूदगी की शिकायत की है. उनका यह भी कहना है कि इन लोगों की वजह से पर्यवेक्षकों के लिए सीटें कम पड़ गई हैं.

बातचीत में शामिल दूसरे कुछ देशों ने बढ़ती निराशा को लेकर चेतावनी दी है. एक छोटे से द्वीपीय देश के प्रतिनिधि ने कहा, "किसी के हित की रक्षा और जान-बूझकर बातचीत की प्रक्रिया को बाधित करने में फर्क होता है." इस बीच एक यूरोपीय राजनयिक ने चेतावनी दी है कि बातचीत की दिशा को देखकर लग रहा है कि "आखिर में काफी, काफी ज्यादा मुश्किल होने वाली है."

2019 में दुनिया ने करीब 46 करोड़ टन प्लास्टिक पैदा किया. ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के मुताबिक, साल 2000 के बाद से प्लास्टिक उत्पादन की मात्रा दोगुनी हो गई है. प्लास्टिक का उत्पादन 2060 तक तिगुना होने की उम्मीद है. इसमें से सिर्फ नौ फीसदी प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो पाता है. पर्यावरण के लिए जरूरी है कि प्लास्टिक प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने पर दुनिया के देश एक समझौते पर पहुंचें.

एनआर/एसएम (एएफपी, डीपीए)

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