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ब्रिक्स शिखर वार्ता में भाग लेंगे मोदी

२३ जून २०२२

वर्चुअल तौर पर होने वाली ब्रिक्स शिखर वार्ता की मेजबानी चीन कर रहा है. यूक्रेन पर रूस के हमले और जून 2020 की गलवान मुठभेड़ के भारत और चीन के संबंधों में आए तनाव के बीच वार्ता में भारत का भाग लेना महत्वपूर्ण है.

BRICS Virtuelles Gipfeltreffen 2021
तस्वीर: BRICS Press Information Bureau/AP/picture alliance

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 और 24 जून को होने वाली ब्रिक्स समूह की शिखर वार्ता में हिस्सा लेंगे. विदेश मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि वार्ता की मेजबानी कर रहे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मोदी को आमंत्रित किया था. वार्ता वर्चुअल तौर पर होगी.

वार्ता में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल होंगे. साथ ही ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा भी भाग लेंगे. चीन इस साल ब्रिक्स की अध्यक्षता कर रहा है. शिखर वार्ता से पहले ब्रिक्स व्यापार मंच का आयोजन किया गया जिसे मोदी ने संबोधित किया.

भाषण में उन्होंने भारत को निवेश के लिए एक आकर्षक स्थान बनाने के लिए उनकी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का लेखा जोखा दिया. ब्रिक्स देशों के निवेशकों को भारत में निवेश के लिए निमंत्रण देते हुए उन्होंने कहा कि "उभरते हुए नए भारत में हर क्षेत्र में बड़े बदलाव हो रहे हैं."

अगले दो दिनों तक शिखर वार्ता में यूक्रेन पर रूस के हमले और उसके पूरी दुनिया पर असर की छाया में वार्ता में अलग अलग विषयों पर चर्चा होगी. इस साल वार्ता की थीम "उच्च कोटि की ब्रिक्स साझेदारियों को बढ़ावा देना और वैश्विक विकास के एक नए युग को लाना."

मई 2022 में ब्रिक्स के विदेश मंत्रियों की एक बैठक में चीन ने कहा था कि वो चाहता है कि दूसरी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं समूह से जुड़ें. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था, "चीन ब्रिक्स के विस्तार की प्रक्रिया को शुरू करना चाहता है."

वार्ता का यूक्रेन युद्ध के बीच में होना महत्वपूर्ण है. अमेरिका और उसके सहयोगी देश ब्रिक्स के सदस्य देश रूस से यूक्रेन पर हमला करने के लिए नाराज हैं और रूस के खिलाफ कई प्रतिबंध लगा चुके हैं. भारत और चीन ने युद्ध की निंदा तो की है लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के बारे में कुछ नहीं कहा है. बल्कि चीन ने रूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों की कड़ी आलोचना की है.

दोनों देशों ने बार बार संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर मतदान करने से खुद को बाहर रखा. भारत और चीन दोनों बड़ी मात्रा में और दाम में भारी छूट पर रूसी तेल खरीद रहे हैं. ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ने भी यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की आलोचना नहीं की है.

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