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मोदी की मॉस्को यात्रा के क्या मायने हैं?

५ जुलाई २०२४

रूस के राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन ने एक बयान में कहा है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 और 9 जुलाई को रूस की यात्रा करेंगे और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत करेंगे.

नरेंद्र मोदी और व्लादिमीर पुतिन (फाइल तस्वीर)
नरेंद्र मोदी 8 और 9 जुलाई को रूस की यात्रा पर रहेंगेतस्वीर: Mikhail Metzel/TASS/dpa/picture alliance

फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद यह मोदी का पहला रूस दौरा होगा. आखिरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में रूस का दौरा किया था, जब वे भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए रूस के सुदूर पूर्वी शहर व्लादिवोस्तोक गए थे.

ताजा दौरे पर मोदी मॉस्को के साथ दीर्घकालिक गठबंधन को बनाए रखने के साथ-साथ पश्चिमी सुरक्षा संबंधों को और मजबूत करने के बीच एक महीन रेखा पर चलने की कोशिश करते नजर आएंगे. गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "दोनों देशों के नेता द्विपक्षीय संबंधों के अलग-अलग आयामों की समीक्षा करेंगे और आपसी हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे."

यूक्रेन पर हमले के बाद से ही भारत रूस का प्रमुख ट्रेडिंग पार्टनर बना हुआ है और वह रूस से सस्ते दामों में कच्चा तेल खरीद रहा है. इसी तेल को वह आगे बाकी देशों को बेच रहा है. ऐसी ही कुछ स्थिति चीन की भी है जो रूस के कच्चे तेल का प्रमुख खरीदार है.

रूस भारत को सस्ते तेल और हथियारों का एक प्रमुख सप्लायर है, लेकिन पश्चिम से उसका अलगाव और चीन के साथ बढ़ती दोस्ती ने नई दिल्ली के साथ उसकी पुरानी साझेदारी को प्रभावित किया है.

वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर कहते हैं कि भारत के लिए रूस बहुत महत्वपूर्ण साझेदार है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "रूस भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है. इस समय भारत हर दिन 20 लाख बैरल तेल आयात कर रहा है. उसके साथ ही भारत एक कनेक्टिविटी कॉरिडोर का हिस्सा है जिसका नाम अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) है. स्वेज नहर के रास्ते जिस माल के भारत आने में 40 दिन लगते हैं आईएनएसटीसी से वही काम 25 दिन में हो जाएगा."

भारत पर पश्चिम देशों की नजर

अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने हाल के सालों में बीजिंग और एशिया-प्रशांत में इसके बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में भारत के साथ संबंधों को विकसित किया है, साथ ही रूस से दूरी बनाने के लिए उस पर दबाव भी डाला है.

हालांकि, बीजिंग के साथ मॉस्को के गहरे होते संबंधों ने भी भारत के लिए चिंताएं बढ़ा दी हैं. दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन और भारत दक्षिण एशिया में रणनीतिक प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं. भारत- अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वॉड समूह का हिस्सा है जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती मुखरता के खिलाफ खुद को खड़ा करता है.

अमेरिका और यूरोपीय संघ चीन पर रूस के सैन्य उद्योग को मजबूत करने वाले उपकरणों को बेचने का आरोप लगाते हैं, हालांकि बीजिंग इन आरोपों का सख्ती से खंडन करता आया है.

दिल्ली में रक्षा मंत्रालय द्वारा समर्थित शोध समूह मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की एसोसिएट फेलो स्वास्ति राव कहती हैं यूक्रेन में रूस के युद्ध ने भारत के साथ संबंधों को "बदल" दिया है. राव के मुताबिक, "भारत और रूस के बीच सद्भावना में कोई कमी नहीं आई है, लेकिन कुछ चुनौतियां सामने आई हैं."

यूक्रेन युद्ध है बड़ा मुद्दा

नई दिल्ली स्थित आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में समीक्षक नंदन उन्नीकृष्णन ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "आगामी व्यक्तिगत बैठक से पता चलता है कि दोनों पक्ष आगे बढ़ने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं."

उन्नीकृष्णन ने कहा, "भारत पर दबाव रहा है, और भारत-रूस संबंधों पर भी दबाव रहा है." उन्होंने कहा, "आमने-सामने की बातचीत से स्थिति को समझने में मदद मिलती है. मुझे यकीन है कि मोदी यूक्रेन युद्ध पर पुतिन से आकलन चाहेंगे."

भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की स्पष्ट निंदा करने से परहेज किया है और मॉस्को की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर भी अपना पक्ष नहीं रखा है.

कपूर मोदी की यात्रा के बारे में एक और अहम बिंदु की ओर इशारा करते हैं और वह है अमेरिका के साथ भारत के मोलभाव की ताकत. कपूर कहते हैं, "रूस एक और जरूरी कारण है. वह चीन को बेअसर करने के लिए भी काम आता है. रूस के साथ जब भारत के रिश्ते मजबूत होंगे तो अमेरिका के साथ भारत की बातचीत की शक्ति अपने आप ही बढ़ जाएगी."

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर द्वारा जुटाए कमोडिटी ट्रैकिंग डाटा के मुताबिक भारत का रूसी कच्चे तेल का महीने-दर-महीने आयात "मई में आठ प्रतिशत बढ़कर जुलाई 2023 के बाद के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया."

शोध केंद्र ने कहा, "मई में भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा 41 प्रतिशत था और रूबल में भुगतान करने के लिए नए समझौतों के साथ व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है."

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