कनाडा की हडसन बे में ध्रुवीय भालुओं के सामने खाने का संकट पैदा हो गया है. जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है और बिना बर्फ के मौसम लंबे हो रहे हैं. इसलिए इन सफेद जीवों के लिए जीवन मुश्किल हो गया है.
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उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले सफेद भालुओं के सामने बड़ा संकट है. खाने का संकट. हालांकि वे जलवायु परिवर्तन के हिसाब से अपने खान-पान में बदलाव करने की भी कोशिश कर रहे हैं लेकिन लंबी होती गर्मियां और घटती बर्फ उनके लिए जीवन को लगातार मुश्किल बना रही है.
ध्रुवीय भालुओं का मुख्य भोजन है मोटे-ताजे और दाढ़ी वाले सील. वे उन्हें आर्कटिक सागर में मिलते हैं जो सर्दियों में सतह पर आ जाते हैं. समुद्र की सतह पर जमी बर्फ पर चलते हुए वे अपने शिकार तक पहुंचते हैं. मौसम बदलता है तो ये भालु शीतनिद्रा में चले जाते हैं ताकि अपनी ऊर्जा को बचाकर रख सकें.
आर्कटिक-अंटार्कटिक: दुनिया के दो छोरों में कितना अंतर
आर्कटिक और अंटार्कटिक, दुनिया के दो छोर हैं. पृथ्वी के दो सिरे. दोनों जगहों पर जहां तक देखो बर्फ ही बर्फ. सतही तौर पर दोनों एक से दिखते हैं, लेकिन इनमें काफी फर्क है. आर्कटिक और अंटार्कटिक में क्या अंतर है, देखिए.
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भूगोल की एक काल्पनिक लकीर
पृथ्वी के बीच एक काल्पनिक रेखा मानी जाती है इक्वेटर, यानी विषुवत रेखा. जीरो डिग्री अक्षांश की यह लकीर पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में बांटती है. अंग्रेजी में, नॉदर्न और सदर्न हेमिस्फीयर. यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की आधी राह में है. आर्कटिक जहां उत्तरी गोलार्ध में है, वहीं अंटार्कटिक दक्षिणी गोलार्ध में है. तस्वीर में: अंटार्कटिक का माउंट एरेबस
तस्वीर: Danita Delimont/PantherMedia/Imago
एक समंदर है, दूसरा महादेश
बचपन में भूगोल के पाठ में आपने महादेशों और महासागरों के नाम याद किए होंगे. सात महादेशों में से एक है अंटार्कटिक और पांच महासागरों में से एक है आर्कटिक. अंटार्कटिक, सागर से घिरी जमीन है. वहीं आर्कटिक जमीन से घिरा सागर. यह दोनों इलाकों के बीच का सबसे बड़ा फर्क है.
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बर्फ में भी अंतर
आर्कटिक महासागर के ऊपर बर्फ की जो पतली परत है, वो लाखों साल पुरानी है. वैज्ञानिक इसे 'पेरीनियल आइस' कहते हैं. आर्कटिक की गहराई करीब 4,000 मीटर (चार किलोमीटर) है. उसकी अंदरूनी दुनिया को हम अब भी बहुत नहीं जानते. दूसरी तरफ अंटार्कटिक बर्फ की बहुत मोटी परत से ढका है. तस्वीर: अंटार्कटिक में गोता लगाती एक व्हेल
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पेंग्विन और पोलर बियर
पेंग्विन और ध्रुवीय भालू, इन दोनों को आप साथ नहीं देखेंगे. पेंग्विन केवल दक्षिणी गोलार्ध में पाए जाते हैं. सबसे ज्यादा पेंग्विन अंटार्कटिक में रहते हैं. इसके अलावा गलापगोस आइलैंड्स, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में भी इनकी कुदरती बसाहट है.
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पोलर बियर का घर
पोलर बियर पृथ्वी के सुदूर उत्तरी हिस्से आर्कटिक में रहते हैं. देशों में बांटें तो इनकी बसाहट ग्रीनलैंड, नॉर्वे, रूस, अलास्का और कनाडा में है. पेंग्विन और पोलर बियर में एक समानता ये है कि क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण दोनों के घर और खुराक पर बड़ा जोखिम मंडरा रहा है.
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इंसानी रिहाइश
हजारों साल से आर्कटिक में इंसान रहते आए हैं. जैसे कि मूलनिवासी इनौइत्स और सामी. वहीं दक्षिणी ध्रुव से हमारी पहचान को बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता. 19वीं और 20वीं सदी में जिस तरह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों तक पहुंचने की होड़ लगी थी, वैसी ही महत्वाकांक्षा साउथ पोल के लिए भी थी. काफी कोशिशों के बाद दिसंबर 1911 में नॉर्वे के खोजी रोल्ड एमंडसन को दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने में कामयाबी मिली.
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हरियाली
अंटार्कटिक का ज्यादातर हिस्सा स्थायी रूप से बर्फ से ढका रहता है. ऐसे में पौधों के उगने के लिए बहुत कम ही जगह है. यहां ज्यादातर लाइकेन्ज और मॉस के रूप में ही वनस्पति है. आर्कटिक अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा हरा-भरा है. यहां करीब 900 प्रजातियों की काई और 2,000 से भी ज्यादा प्रकार के वैस्क्यूलर प्लांट पाए जाते हैं. इनमें ज्यादातर फूल के पौधे हैं.
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images
मौसम का फर्क
आर्कटिक के लिए जून का महीना 'मिड समर' है, यानी आधी गर्मी बीत गई और आधी बची है. मार्च से सितंबर तक सूरज लगातार क्षितिज से ऊपर होता है और 21 जून के आसपास यह सबसे ऊंचे पॉइंट पर पहुंचता है. वहीं अंटार्कटिक में इसका उल्टा है. वहां 21 दिसंबर के आसपास मिड समर होता है, यानी सूरज क्षितिज में सबसे ऊपर पहुंचता है.
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लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मियां अब लंबी हो रही हैं और बर्फ का मौसम छोटा होता जा रहा है. बाकी दुनिया के मुकाबले अब आर्कटिक क्षेत्र दो से चार गुना तक ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. इसलिए भालुओं को ज्यादा समय जमीन पर बिताना पड़ रहा है.
कैसे हुआ शोध
हाल ही में वैज्ञानिकों ने हडसन बे में 20 ध्रुवीय भालुओं की निगरानी की और पाया कि गर्मियों में भी अब ये भालू भोजन की तलाश में भटक रहे हैं.
अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के बायोलॉजिस्ट एंथनी पांगो इस अध्ययन के प्रमुख थे. वह कहते हैं, "ध्रुवीय भालू एक रचनात्मक जीव है. वे बहुत खोजी किस्म के होते हैं. उत्साहित हो जाएं तो अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरी करने के लिए वे इलाके में खाना खोजने और जिंदा रहने के तरीके खोजते रहते हैं.”
जब नन्ही पोलर भालू पहली बार निकली टहलने
जर्मनी के हैम्बुर्ग के एक चिड़ियाघर में एक नन्ही पोलर भालू को पहली बार अपने बाड़े के बाहरी हिस्से में टहलने दिया गया. उसकी मां उससे बस एक कदम दूर थी. देखिये क्या किया नन्ही भालू ने.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
रोमांचकारी अनुभव
दिसंबर 2022 में जब हैम्बुर्ग के टियरपार्क हागेनबेक चिड़ियाघर में 21 साल की ध्रुवीय भालू विक्टोरिया ने एक बच्चे को जन्म दिया था, तब वहां काफी हलचल मच गई थी. अब वो बच्ची छह महीने की हो गई और समय आ गया है कि वो पहली बार अपनी मां के साथ बाहरी बाड़े में घूम फिर सके.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
नामकरण का इंतजार
नन्ही शावक जिज्ञासा के साथ लेकिन सावधानीपूर्वक ऊंचे नीचे रास्तों पर अपनी मां के पीछे पीछे चली. वो अब काफी बड़ी हो गई है और उसका वजन 40 किलो हो चुका है, लेकिन अभी तक उसका नाम नहीं रखा गया है. पिछले महीने ही चिड़ियाघर आने वाले लोगों को इजाजत दी गई कि वो उसके नाम के लिए चार विकल्पों में से एक को चुनें - अनूक, ताल्वी, स्मिला और सनफ्लावर.
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कैद में जन्म
दर्शक शावक को देखकर बहुत खुश थे और उसे भी दर्शकों को देखकर जिज्ञासा हो रही थी. उसकी मां विक्टोरिया का भी इसी चिड़ियाघर में 2002 में जन्म हुआ था. अपनी बेटी के जन्म से पहले वह ही यहां पैदा हुई आखिरी मादा पोलर भालू थी. दुनिया में करीब 25,000 पोलर भालू बचे हैं, जिसकी वजह से उन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय माना जाता है.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
पानी में उतरा जाए या नहीं
ऐसा लग रहा था जैसे शावक यह तय नहीं कर पा रही थी कि अपने बाड़े के "बर्फीले सागर" में उतरे या नहीं. अंत में उसने एक डुबकी मारने का फैसला कर ही लिया, लेकिन तुरंत पानी से बाहर निकल आई और दौड़ कर पत्थरों पर चढ़ गई.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
अनुभव से सीखना जरूरी
शावक को जून में पहली बार पानी में उतारा गया था, हालांकि उस समय ऐसा उसके बाड़े के अंदर ही किया गया था. पशु चिकित्सक माइकल फ्लूगर कहते हैं, "एक युवा पशु के लिए सबसे अच्छा यही है कि उसकी दिनचर्या में विविधता हो और वो बाहरी बाड़े में नए अनुभवों से खूब सीखे."
तस्वीर: Tierpark Hagenbeck/dpa/picture alliance
मां की चौकन्नी निगाहें
जंगली वातावरण में बिना सेफ्टी ग्लास के एक पोलर भालू और उसके शावक को इतने करीब से देखना संभव नहीं होगा. शीशा होने के बावजूद मां विक्टोरिया दर्शकों को सावधानी से देख रही है. वो अगले करीब दो सालों तक अपनी बेटी का ख्याल रखती रहेगी और उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी.
तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance
सोने का समय हो गया
रोमांचकारी समय बिताने के बाद नन्ही भालू अपनी मां के पंजों पर सो गई. वो अपने पिता 'काप' से नहीं मिली है, जिसे कार्ल्सरूह चिड़ियाघर से लोन पर लाया गया था. 'काप' तीन साल विक्टोरिया के साथ प्रेम से रहा और फिर उसे वहीं लौटा दिया गया. (क्लाउडिया डेन)
तस्वीर: Tierpark Hagenbeck/dpa/picture alliance
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नेचर कम्युनिकेशंस नाम की पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने भालुओं पर जीपीएस कॉलर लगा दिए थे. इनमें कैमरे भी लगे थे. तीन साल तक हर साल के तीन हफ्तों में वैज्ञानिकों ने इन भालुओं की निगरानी की.
ये भालू पश्चिमी हडसन बे में रहते हैं जहां 1975 से 2015 के बीच बर्फ-रहित समयावधि तीन हफ्ते बढ़ चुकी थी. इसका अर्थ है कि पिछले एक दशक में भालुओं को सालाना लगभग 130 दिन सूखी जमीन पर बिताने पड़े.
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बदल रहे हैं भालू
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन 20 भालुओं की वे निगरानी कर रहे थे, उनमें से दो ने तो अपनी गतिविधियां ही कम कर दीं ताकि शीतनिद्रा के दौरान उनकी ऊर्जा बची रहे. लेकिन बाकी 18 लगातार सक्रिय रहे.
शोध कहता है कि संभव है बदलती जरूरतों ने इन भालुओं को सक्रिय रखा हो क्योंकि उन्होंने अलग-अलग तरह का खाना खाया. इसमें घास से लेकर बेरी, पक्षी और छोटे-मोटे समुद्री जानवर भी शामिल थे.
जब मदद मांगने घर-घर पहुंची भालू
इस श्वेत ध्रुवीय भालू की जीभ टिन की एक कैन में फंस गई. जाहिर है कि पूरा अनुभव इस मादा के लिए बेहद तकलीफदेह था. वह मदद के लिए घर-घर जा रही थी.
तस्वीर: Press service of Nornickel/REUTERS
भालू की जीभ फंसी
रूस के डिक्सन इलाके में इस मादा ध्रुवीय भालू के लिए पूरा अनुभव बेहद दर्दनाक था. उसकी जीभ टिन की एक कैन में फंस गई थी और खासी मशक्कत के बाद भी वह अपनी जीभ को बाहर नहीं निकाल पाई.
तस्वीर: Press service of Nornickel/REUTERS
लोगों से गुहार
भालू ने मदद के लिए लोगों के पास जाना शुरू किया. सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो में इस भालू को पास की बस्ती में इंसानों से मदद मांगते देखा जा सकता है. कई लोगों ने उसकी तस्वीरें लीं जिनमें वह लोगों को अपनी जीभ दिखा रही है.
तस्वीर: Press service of Nornickel/REUTERS
कैसे निकाला जाए!
उत्तरी रूस से आई इस वीडियो में आदमी उस कैन को निकालने की कोशिश करता है लेकिन कामयाब नहीं हो पाता. एक निवासी ने मीडिया को बताया, "भालू बहुत थक गया था लेकिन उसे दर्द पहुंचाए बिना उस कैन को बाहर निकालना असंभव हो गया तो लोगों ने कोशिश भी छोड़ दी."
तस्वीर: Press service of Nornickel/REUTERS
फिर आए अधिकारी
जब आसपास के गांव वाले कामयाब नहीं हो पाए तो उन्होंने अधिकारियों को सूचना दी. यह सूचना मॉस्को के चिड़ियाघर तक पहुंची. वहां के मुख्य चिकित्सक मिखाइल ऐल्शीनेत्स्की डिक्सन पहुंचे. लेकिन मौसम खराब होने के कारण उन्हें पहुंचने में भी समय लगा.
तस्वीर: Press service of Nornickel/REUTERS
इलाज शुरू!
कैन निकालने के लिए सबसे पहले भालू को बेहोश किया गया. तब चिकित्सकों ने उसे पकड़कर लेटाया और कैन को निकाला. चिकित्सकों ने बताया कि अगर उन्हें पहुंचने में कुछ देर और हो जाती तो इस भालू की जान चली जाती.
तस्वीर: Press service of Nornickel/REUTERS
और आजाद!
भालू को मुक्ति मिल गई है. लेकिन वह घायल और कमजोर है. लोगों ने उसके लिए 50 किलो मछली जमा की है ताकि वह जल्दी से ठीक हो जाए. फिर उसे वापस छोड़ दिया जाएगा.
तस्वीर: Press service of Nornickel/REUTERS
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तीन भालुओं ने तो भोजन के लिए लंबी समुद्री यात्राएं भी कीं. एक भालू तो 175 किलोमीटर दूर तक तैरा. कुछ अन्य को जो भोजन मिला उसे ही चबाने में समय बिताया.
शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इन भालुओं की भरसक कोशिशों के बावजूद सैकड़ों किलोग्राम वजनी इन प्राणियों को अपनी जरूरत का पूरा भोजन नहीं मिल पाया.
20 में से 19 भालुओं का वजन उतना ही कम हुआ, जितना वे शीतनिद्रा के दौरान खो देते हैं, जब वे कुछ नहीं खाते. इसका अर्थ है कि जितने ज्यादा समय तक भालू सूखी जमीन पर रहेंगे, उनके भूख से मरने का खतरा उतना बढ़ता जाएगा.
बर्फ खत्म तो भालू खत्म
कई विशेषज्ञ इस शोध के नतीजों से सहमति जताते हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड में आर्कटिक प्रजातियों की विशेषज्ञ मेलनी लैंकास्टर कहती हैं, "ये नतीजे पहले हो चुके कई शोधों की बात को और पुख्ता करते हैं. यह एक और सबूत है जो चेतावनी देता है.”
वैज्ञानिक कह चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में बचे मात्र 25 हजार ध्रुवीय भालू खतरे में हैं.
पोलर बेयर्स इंटरनेशनल के मुख्य़ वैज्ञानिक जॉन व्हाइटमैन कहते हैं यह शोध एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि यह बर्फ-रहित मौसम में ध्रुवी भालुओं के ऊर्जा खर्च का सीधे तौर पर विश्लेषण करता है. उन्होंने कहा, "बर्फ खत्म तो ध्रुवीय भालू भी खत्म. बर्फ को खत्म होने से रोकने के अलावा और कोई विकल्प नहीं हैं.”