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नागार्जुन की कविताः पुलिस अफसर

नागार्जुन४ जुलाई २०१६

बाबा नागर्जुन की एक कविता है जो पुलिस के बारे में काफी कुछ कह देती है. अगर आप भारतीय पुलिस को समझना चाहते हैं तो यह कविता जरूर पढ़नी चाहिए.

Indien Kaschmir Proteste in Srinagar
तस्वीर: AFP/Getty Images/T. Mustafa

बाबा नागर्जुन की एक कविता है जो पुलिस के बारे में काफी कुछ कह देती है. अगर आप भारतीय पुलिस को समझना चाहते हैं तो यह कविता जरूर पढ़नी चाहिए. पेश है, नागार्जुन की कविता, पुलिस अफसर...

जिनके बूटों से कीलित है, भारत मां की छाती

जिनके दीपों में जलती है, तरुण आंत की बाती

ताज़ा मुंडों से करते हैं, जो पिशाच का पूजन

है अस जिनके कानों को, बच्चों का कल-कूजन

जिन्हें अँगूठा दिखा-दिखाकर, मौज मारते डाकू

हावी है जिनके पिस्तौलों पर, गुंडों के चाकू

चाँदी के जूते सहलाया करती, जिनकी नानी

पचा न पाए जो अब तक, नए हिंद का पानी

जिनको है मालूम ख़ूब, शासक जमात की पोल

मंत्री भी पीटा करते जिनकी ख़ूबी के ढोल

युग को समझ न पाते जिनके भूसा भरे दिमाग़

लगा रही जिनकी नादानी पानी में भी आग

पुलिस महकमे के वे हाक़िम, सुन लें मेरी बात

जनता ने हिटलर, मुसोलिनी तक को मारी लात

अजी, आपकी क्या बिसात है, क्या बूता है कहिए

सभ्य राष्ट्र की शिष्ट पुलिस है, तो विनम्र रहिए

वर्ना होश दुरुस्त करेगा, आया नया ज़माना

फटे न वर्दी, टोप न उतरे, प्राण न पड़े गँवाना

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