दिल्ली पुलिस ने 'न्यूजक्लिक' वेबसाइट से जुड़े कम से कम छह पत्रकारों के घरों पर छापे मारे हैं और उनके मोबाइल और लैपटॉप जब्त कर लिए हैं. इनमें से लगभग सभी पत्रकारों को निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाना जाता है.
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दिल्ली पुलिस ने अभी तक इस मामले में कोई बयान जारी नहीं किया है. मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि जिन लोगों के घरों पर छापे पड़े हैं उनमें उर्मिलेश, परंजॉय गुहा ठाकुरता, अभिसार शर्मा, भाषा सिंह, ऑनिंद्यो चक्रवर्ती और प्रबीर पुरकायस्थ जैसे पत्रकार शामिल हैं.
इनमें से कई पत्रकारों ने उनके मोबाइल फोन जब्त होने से पहले खुद 'एक्स' पर पुलिस की कार्रवाई की जानकारी दी. इनके अलावा इतिहास के मामलों के जानकार सोहैल हाशमी और हास्य कलाकार संजय राजौरा के घरों पर भी छापे मारे गए हैं.
कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया है कि पुलिस ने इनमें से कुछ पत्रकारों को अपने पास रोक कर भी रखा हुआ है. किसी की भी गिरफ्तारी की अभी तक कोई खबर नहीं आई है.
प्रेस पर हमले को लेकर चिंताएं
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) 'न्यूजक्लिक' के खिलाफ विदेश से चंदा लेने के कानून के कथित उल्लंघन के आरोपों की जांच पहले से कर रही हैं.
प्रेस फ्रीडम : भारत की रैंकिंग और लुढ़की, अब 161वें स्थान पर
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने साल 2023 की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स रिपोर्ट जारी कर दी है. इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग और गिर गई है. जानिए, प्रेस फ्रीडम के मामले में कहां खड़ा है भारत.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
भारत 161वें पायदान पर लुढ़का
वैश्विक मीडिया पर नजर रखने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक भारत की रैंकिंग और गिरी है. पिछले साल जहां भारत इस सूचकांक में 150वें स्थान पर था वहीं वह 2023 में 11 पायदान लुढ़कर 161वें स्थान पर जा पहुंचा है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भारत में प्रेस की स्थिति क्यों हो रही खराब
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट 180 देशों और क्षेत्रों में पत्रकारिता के लिए अनुकूल वातावरण का मूल्यांकन करती है. यह रिपोर्ट विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जारी की जाती है. इस रिपोर्ट में भारत के बारे में लिखा गया, "भारत में प्रधानमंत्री मोदी के करीबी उद्योगपति द्वारा मीडिया संस्थानों के अधिग्रहण ने बहुलवाद को खतरे में डाल दिया है."
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
पत्रकारों के लिए "स्थिति बेहद गंभीर"
रैंकिंग पांच व्यापक श्रेणियों में देश के प्रदर्शन पर आधारित है; जिनमें राजनीतिक संदर्भ, कानूनी ढांचा, आर्थिक संदर्भ, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ और पत्रकारों की सुरक्षा शामिल हैं. इन पांचों श्रेणियों में भारत में पत्रकारों की सुरक्षा श्रेणी (172) में सबसे कम अंक मिले है. आरएसएफ को लगता है कि भारत उन 31 देशों में शामिल हैं जहां पत्रकारों के लिए स्थिति "बहुत गंभीर" है.
तस्वीर: Dar Yasin/AP/picture alliance
भारत से बेहतर पाकिस्तान और अफगानिस्तान
इस रैंकिंग में भारत से बेहतर स्थिति में पाकिस्तान (150वें) और अफगानिस्तान (152वें) स्थान पर है. हालांकि इन दोनों देशों में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर संकेत दिखाये गये हैं.
तस्वीर: Hussein Malla/AP Photo/picture alliance
लगातार गिर रही है भारत की रैंकिंग
भारत पिछले कुछ सालों में प्रेस फ्रीडम के मामले में नीचे जाता रहा है, इस साल उसकी रैंकिंग और गिरी है और वह 161वें स्थान पर जा पहुंचा है. पिछले साल फरवरी में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के विचारों और देश की रैंकिंग से सहमत नहीं है क्योंकि यह एक "विदेशी" एनजीओ द्वारा प्रकाशित किया गया है.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
सबसे नीचे उत्तर कोरिया
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत से नीचे बांग्लादेश (163), तुर्की (165), सऊदी अरब (170), ईरान (177), चीन (179) और उत्तर कोरिया 180वें स्थान पर है.
तस्वीर: Lee Jin-man/AP/picture alliance
शीर्ष के तीन देश
प्रेस फ्रीडम के मामले में नॉर्वे, आयरलैंड और डेनमार्क इस साल शीर्ष पर हैं. लगातार सातवें साल नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है.
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अमेरिका में प्रेस फ्रीडम का क्या हाल
अमेरिका प्रेस फ्रीडम सूचकांक में तीन पायदान नीचे खिसकर 45वें सथान पर जा पहुंचा है. अमेरिका में 2022 और 2023 में हुई दो पत्रकारों की हत्या का असर रैंकिंग पर पड़ा है. इंडेक्स के लिए प्रश्नावली का उत्तर देने वालों ने अमेरिका में पत्रकारों के लिए माहौल के बारे में नकारात्मक जवाब दिये थे.
आरएसएफ की 2023 की रिपोर्ट डिजिटल इकोसिस्टम पर फेक सामग्री उद्योग के प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले प्रभावों पर रोशनी डालती है. इंडेक्स के लिए जिन देशों का मूल्यांकन किया गया उनमें से दो-तिहाई यानी 118 देशों में लोगों ने फेक न्यूज के बारे में कहा कि नेता अक्सर या बड़े पैमाने पर गलत सूचना या प्रोपगैंडा अभियानों में व्यवस्थित रूप से शामिल थे.
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रूस का प्रोपगैंडा युद्ध
आरएसएफ ने रूस के बारे में लिखा है कि वह बढ़ चढ़ कर प्रोपगैंडा फैला रहा है. 2023 में रूस की रैंकिंग 9 स्थान गिरकर 164 पर पहुंच गई. आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "मॉस्को ने दक्षिणी यूक्रेन में कब्जे वाले क्षेत्रों में क्रेमलिन के संदेश को फैलाने के लिए समर्पित एक नया मीडिया शस्त्रागार खड़ा कर दिया है.
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मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने वेबसाइट के खिलाफ यूएपीए के तहत नया मामला दर्ज किया है और इन पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई इसी मामले के तहत की गई है.
पुलिस की कार्रवाई पर देश के लगभग सभी मीडिया संगठनों ने चिंता व्यक्त की है. डिजिपब ने कहा है कि यह सरकार के मनमाने और डराने वाले रवैये का एक और उदाहरण है. फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स के मुताबिक पत्रकारों के मोबाइल और लैपटॉप को बिना कानूनी सुरक्षाओं के जब्त करने से प्रेस की आजादी खतरे में पड़ती है.
न्यूजक्लिक के खिलाफ फरवरी, 2021 में भी ईडी ने छापे मारे थे. वेबसाइट से जुड़े स्थानों पर मारे गए यह छापे पांच दिनों तक चले थे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2020 में वेबसाइट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.
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क्या हैं आरोप
इस एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि वेबसाइट को वर्ल्डवाइड मीडिया होल्डिंग्स एलएलसी नाम की अमेरिकी कंपनी से 9.59 करोड़ रुपये एफडीआई मिली थी, जिसके लिए कंपनी के शेयरों के दामों को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया था ताकि भारतीय मीडिया संस्थानों में 26 प्रतिशत एफडीआई की ऊपर सीमा से बचा जा सके.
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वेबसाइट का कहना है कि आरबीआई इस निवेश की जांच कर कह चुका है कि इसमें कोई अनियमितता नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने 2021 में ही दावा किया था कि एजेंसियों की जांच के दायरे में न्यूजक्लिक को मिली कुल 30 करोड़ रुपयों की फंडिंग है.
अगस्त 2023 में अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने दावा किया था कि अमेरिकी अरबपति नेविल रॉय सिंघम ने "चीनी प्रोपेगेंडा" फैलाने के लिए कई संगठनों को पैसे दिए थे और इन संगठनों में न्यूजक्लिक भी शामिल है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक वेबसाइट के खिलाफ ताजा केस और कार्रवाई इसी मामले से जुड़ी है. लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि वेबसाइट की फंडिंग से उसके लिए काम कर रहे पत्रकारों का क्या संबंधहै. लगभग इन सभी पत्रकारों को विरोध की आवाजों के रूप में भी जाना जाता है.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
तस्वीर: rsf.org
पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
तस्वीर: Li Xueren/XinHua/dpa/picture alliance
कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
तस्वीर: Ju Peng/Xinhua/imago images
नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.