महीनों से चले आ रहे पोलैंड के मीडिया बिल विवाद पर देश के राष्ट्रपति ने सख्त रुख अपनाया है. आंद्रे दूदा ने कहा है कि वह मीडिया बिल को रोकने के लिए वीटो शक्ति का इस्तेमाल करेंगे.
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पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रे दूदा ने कहा है कि वह प्रस्तावित विवादित मीडिया बिल को रोकने के लिए अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करेंगे. इस बिल पर महीनों से विवाद चल रहा था जिसे मीडिया की आजादी और असहमति पर लगाम कसने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
हाल ही में पोलैंड की संसद के निचले सदन से एक बिल पास हुआ है जिसके तहत गैर यूरोपीय कंपनियों को पोलैंड में किसी मीडिया चैनल में 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी रखने पर पाबंदी लगा दी गई है. अमेरिकी कंपनी डिस्कवरी की देश के सबसे बड़े समाचार चैनल टीवीएन में सर्वाधिक हिस्सेदारी है.
अमेरिकी कंपनी पर होता असर
दूदा ने कहा कि यह बिल बहुत से नागरिकों को पसंद नहीं आ रहा है और उनके देश की छवि को नुकसान पहुंचाएगा. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि जब विदेशी पूंजी की बात आती है तो आमतौर पर मीडिया कंपनियों में हिस्सेदारी को सीमित करने की संभावना समझदारी भरी है. मैं इस बात से भी सहमत हूं कि इसे पोलैंड में लागू किया जाना चाहिए, लेकिन भविष्य में.”
इस कानून के चलते डिस्कवरी को समाचार चैनल TVN24 में अपनी हिस्सेदारी का अधिकतर भाग बेचना पड़ सकता है. टीवीएन की अनुमानित कीमत एक अरब अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 75 अरब रुपये है, जो पोलैंड में अमेरिका का सबसे बड़ा एकमुश्त निवेश है.
इस कानून को अमेरिका ने मीडिया की आजादी पर हमला बताया था. सत्ताधारी पोलिश पार्टी के विरोधियों ने भी इसे मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश बताया जबकि लॉ एंड जस्टिस पार्टी का तर्क है कि विदेशी कंपनियों का देश के मीडिया उद्योग में बहुत ज्यादा दखल है जिस कारण जनता के बीच चल रही बहस बिगड़ रही है.
अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट ने भी पोलैंड के इस कदम को गलत बताते हुए मीडिया अधिकारों पर चिंता जताई थी. दूदा ने कहा कि इस बिल से उन लोगों में भी चिंता है जो पहले से ही देश के बाजार में मौजूद हैं. पोलिश राष्ट्रपति ने कहा, "मीडिया में विविधता और अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता का मुद्दा भी है. अपना फैसला लेते हुए मैंने इस विषय पर भी गंभीरता से विचार किया है.”
यूरोप में भी हो रही है पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
डच पत्रकार पेटर आर दे विरीज पर जानलेवा हमले ने यूरोप में लोग सदमें में हैं. प्रेस की आजादी को लेकर यूरोपीय देशों की अच्छी छवि के बावजूद, पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के कई उदाहरण हैं.
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सदमें में एम्सटर्डम
छह जुलाई 2021 को नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम के बीचो बीच जाने माने क्राइम रिपोर्टर पेटर आर दे विरीज को एक टेलीविजन स्टूडियो के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी. अंदेशा है कि हमले के पीछे संगठित जुर्म की दुनिया का एक गिरोह शामिल है. कई घंटों बाद दो लोगों को हिरासत में लिया गया.
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एक दमदार पत्रकार
दे विरीज ने अपने देश में संगठित जुर्म पर कई सालों से रिपोर्टिंग की है. इस हमले से पहले वो एक कुख्यात जुर्म सरगना के खिलाफ बयान देने वाले एक सरकारी गवाह के निजी सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे. इस व्यक्ति के भाई और वकील की कई सालों पहले हत्या हो गई थी. आज दे विरीज अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं.
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उम्मीद और डर
दे विरीज पर हमले के बाद देश के कई लोगों की प्रतिक्रिया थी, "ऐसा यूरोप के बीचो बीच नहीं हो सकता!" कई लोगों ने हमले के स्थल पर जा कर वहां घायल पत्रकार के लिए शुभकामनाओं के साथ फूल चढ़ाए हैं. दुख की बात यह है कि दे विरीज जानलेवा हमला झेलने वाले पहली यूरोपीय पत्रकार नहीं हैं.
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लोकतंत्र का जन्म-स्थल
यूनानी क्राइम रिपोर्टर गिओर्गोस करइवाज की एथेंस में नौ अप्रैल को हत्या कर दी गई थी. मुखौटे पहने मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने करइवाज पर 10 बार गोलियां चलाईं. करइवाज ने देश के नौकरशाहों के भ्रष्टाचार और संगठित जुर्म के गिरोहों पर कई खबरें की थीं.
माल्टा की खोजी पत्रकार डैफ्ने कारूआना गालिजिया ने देश के राजनीतिक और व्यापारिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को काफी कवर किया है. लेकिन 19 अक्टूबर 2017 को 53 वर्षीय डैफ्नै की गाड़ी में एक बम धमाका कर उनकी हत्या कर दी गई. इस मामले में एक व्यक्ति के जुर्म कबूलने के बाद उसे 15 साल जेल की सजा दे दी गई. मुख्य आरोपी एक जाना माना व्यवसायी है जिसके खिलाफ सुनवाई अभी चल ही रही है.
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घर पर ही हत्या
21 फरवरी 2018 को स्लोवाकिया के खोजी पत्रकार यान कुशियाक और उनकी मंगेतर की भाड़े के हत्यारों ने गोली मार कर हत्या कर दी. 28-वर्षीय कुशियाक संगठित जुर्म के गिरोहों, टैक्स चोरी और देश के राजनेताओं और कुलीन लोगों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते थे. उनकी हत्याओं के बाद पूरे यूरोप में इतना विरोध हुआ कि प्रधानमंत्री रोबर्ट फीको को इस्तीफा देना पड़ा.
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पोलैंड का हाल
2015 में पोलैंड के एक पत्रकार लुकास मासियाक की एक बॉलिंग क्लब में पीट- पीटकर हत्या कर दी गई थी. मासियाक भ्रष्टाचार, गैर कानूनी नशीली पदार्थों का व्यापार और मनमानी गिरफ्तारियों पर खबरें किया करते थे. पोलैंड की सरकार पर आज भी कई तरह के मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं.
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'मैं हूं शार्ली'
जनवरी 2015 में फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर किए गए एक हमले में 12 लोग मारे गए थे. तब पूरी दुनिया में सैकड़ों लोगों ने अभिव्यक्ति और प्रेस की आजादी के लिए "मैं हूं शार्ली" हैशटैग के साथ विरोध प्रदर्शन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में तुर्क पत्रकार पर हमला
सात जुलाई 2021 को बर्लिन-स्थित तुर्क पत्रकार एर्क अकारेर पर उनके अपार्टमेंट में तीन लोगों ने हमला कर दिया. एर्क तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन के कड़े आलोचक हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "मुझ पर बर्लिन में मेरे घर के अंदर चाकुओं और मुक्कों से हमला किया गया." तीनों संदिग्धों ने उन्हें धमकी भी दी कि अगर उन्होंने रिपोर्टिंग बंद नहीं की तो वे वापस आएंगे.
तस्वीर: twitter/eacarer
प्रेस के काम में बाधा
ऐसा नहीं है कि पत्रकारों को हमेशा उनकी जान की चिंता ही लगी रहती है. लेकिन उनके काम की रास्ते में अड़चनें डालने का चलन बढ़ता का रहा है, चाहे ये काम प्रदर्शनकारी करें, पुलिस करे या सुरक्षाबल करें. इस तस्वीर में फ्रांस की दंगा-विरोधी पुलिस नए सुरक्षा कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान एक पत्रकार से भिड़ रही है. (बुराक उनवेरेन)
तस्वीर: Siegfried Modola/Getty Images
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इस महीने की शुरुआत में देश के कई शहरों में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे जिनमें हजारों लोगों ने दूदा से मीडिया लॉ को वीटो करने की मांग की थी. प्रदर्शनकारियों ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा था कि यह टीवीएन24 समाचार चैनल को खामोश करने की कोशिश है. चैनल सरकारी नीतियों को लेकर आलोचनात्मक रहता है.
अमेरिका ने इस बिल की तीखी आलोचना की थी और पोलैंड को इसके खिलाफ चेतावनी भी दी थी. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने अगस्त में कहा था कि वह इस प्रस्ताव से बहुत नाखुश हैं और वॉरसा को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए.
वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)
पत्रकारों के लिए बेहद खराब रहा 2021
न्यूयॉर्क स्थित मीडिया वॉचडॉग 'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' की नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में साल की शुरुआत से 1 दिसंबर 2021 तक 293 रिपोर्टरों को जेल में डाला गया. यह अब तक का सबसे ऊंचा आंकड़ा है.
तस्वीर: Maja Hitij/Getty Images
जोखिम में रिपोर्टर
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में सलाखों के पीछे पत्रकारों की संख्या 2021 में बढ़कर सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई. रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल 1 दिसंबर तक 293 पत्रकारों को जेल में डाला जा चुका है.
तस्वीर: Brent Swails/CNN/AP/picture alliance
कवरेज के दौरान 24 पत्रकार मारे गए
सीपीजे ने 9 दिसंबर को प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया पर हमलों पर अपने वार्षिक सर्वेक्षण में कहा कि कम से कम 24 पत्रकार न्यूज कवरेज के दौरान मारे गए और 18 अन्य की मौत ऐसी परिस्थितियों में हुई, जिससे यह साफ तौर पर तय नहीं किया जा सका कि क्या उन्हें उनके काम के कारण निशाना बनाया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Brogca
क्यों जेल में डाले जा रहे है पत्रकार
अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित संस्था का कहना है कि पत्रकारों को जेल में डालने का कारण अलग-अलग देशों में भिन्न है. संस्था के मुताबिक यह रिकॉर्ड संख्या दुनिया भर में राजनीतिक उथल-पुथल और स्वतंत्र रिपोर्टिंग को लेकर बढ़ती असहिष्णुता को दर्शाती है.
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सरकारों का कैसा दखल
सीपीजे के कार्यकारी निदेशक जोएल साइमन ने एक बयान में कहा, "यह लगातार छठा साल है जब सीपीजे ने दुनिया भर में कैद पत्रकारों की संख्या का लेखाजोखा तैयार किया है." उनके मुताबिक, "संख्या दो जटिल चुनौतियों को दर्शाती है - सरकारें सूचना को नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और वे ऐसा करने की कोशिश बहुत बेशर्मी से कर रही हैं."
दानिश सिद्दीकी भी 2021 में मारे गए
भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी अफगान सुरक्षाबलों के साथ पाकिस्तान से सटी अहम सीमा चौकी के पास तालिबान लड़ाकों के साथ संघर्ष को कवर रहे थे. 16 जुलाई 2021 को तालिबान ने उनकी हत्या की थी. 2021 में ही मेक्सिको के पत्रकार गुस्तावो सांचेज कैबरेरा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
सीपीजे की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने 50 पत्रकारों को कैद किया, जो किसी भी देश में सबसे अधिक है. इसके बाद म्यांमार (26) का स्थान आता है. म्यांमार में 1 फरवरी को सेना ने तख्तापलट किया था और इसकी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर कार्रवाई की गई. फिर मिस्र (25), वियतनाम (23) और बेलारूस (19) का नंबर आता है.
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मेक्सिको में बड़े जोखिम
सीपीजे के मुताबिक मेक्सिको में पत्रकारों को अक्सर निशाना बनाया जाता है. ऐसा तब होता है जब उनके काम से आपराधिक गिरोह या भ्रष्ट अधिकारी परेशान होते हैं. मेक्सिको पत्रकारों के लिए पश्चिमी गोलार्ध का सबसे घातक देश बना हुआ है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Cortez
यूरोप में भी हमले के शिकार पत्रकार
छह जुलाई 2021 को नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम के बीचो बीच एक जाने माने क्राइम रिपोर्टर पेटर आर दे विरीज को एक टेलीविजन स्टूडियो के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी. अंदेशा है कि हमले के पीछे संगठित अपराध की दुनिया का एक गिरोह शामिल है. गोली लगने के नौ दिन बाद उनकी मौत हो गई.