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निशाने पर लालू परिवार, क्या फिर साथ छोड़ेंगे नीतीश कुमार

मनीष कुमार, पटना
१४ मार्च २०२३

बिहार में दूसरी बार महागठबंधन की सरकार बनने के बाद एक बार फिर लालू परिवार केंद्र सरकार के निशाने पर है. अचानक केंद्रीय एजेंसियों की गतिविधियां तेज होने के साथ ही बिहार का सियासी पारा भी गर्म हो गया है.

लालू यादव के करीबियों पर छापेमारी के बाद नीतीश कुमार को लेकर चर्चा तेज है
नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया थातस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

बिहार में केंद्रीय एजेंसियों की अचानक शुरू हुई छापेमारी के बाद यह मांग भी उठने लगी है कि सरकार इस तरह का अध्यादेश लाए, जिससे बगैर अनुमति के बिहार में भी केंद्रीय एजेंसियां किसी तरह की कार्रवाई ना कर सकें. 

पिछले साल अक्टूबर में रेलवे के नौकरी के बदले जमीन मामले में चार्जशीट दायर हुई थी. इस साल छह मार्च को लालू प्रसाद की पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से पूछताछ के लिए सीबीआई की टीम पटना में उनके घर पहुंच गई. चार घंटे तक राबड़ी देवी से पूछताछ की गई. इसके बाद दिल्ली में लालू प्रसाद और उनकी बेटी व सांसद मीसा भारती से पांच घंटे तक इसी प्रकरण में पूछताछ हुई.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने लालू प्रसाद के करीबियों के मुंबई, दिल्ली, नोएडा और पटना के ठिकानों पर भी छापे मारे हैं. पटना में पूर्व आरजेडी विधायक व बिल्डर अबू दोजाना के यहां भी तलाशी ली गई.  उनकी कंपनी पटना में एक शॉपिंग मॉल बना रही थी. यह मॉल कथित तौर पर लालू प्रसाद के परिवार की जमीन पर बन रहा था. जांच एजेंसियों की कार्रवाई के बाद निर्माण कार्य बंद हो गया.

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600 करोड़ की अवैध संपत्ति 

ईडी के अनुसार जमीन के बदले नौकरी मामले में अब तक की गई जांच में 600 करोड़ की अवैध संपत्ति का पता चला है, जिसमें अचल संपत्ति के रूप में 350 करोड़ और 250 करोड़ के बेनामी लेनदेन किये गये हैं. इसके अलावा छापेमारी में एक करोड़ नकद, 1900 डॉलर, सवा करोड़ के आभूषण तथा सोने के सिक्के मिले हैं. संपत्ति से संबंधित कई दस्तावेज भी मिले हैं, जिनमें कई लालू परिवार के तो कई बेनामी हैं. तेजस्वी यादव के दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कालोनी स्थित बंगले का भी जिक्र किया गया है, जिसे मात्र चार लाख रुपये में खरीदा गया था. इस बंगले की कीमत 150 करोड़ रुपये है. ईडी ने इस मामले में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत कार्रवाई की है.

लालू प्रसाद, उनके परिवार और करीबियों के ठिकानों पर केंद्रीय एजेंसियां छापेमारी कर रही हैंतस्वीर: Hindustan Times/IMAGO Images

क्या है जमीन के बदले नौकरी घोटाला

सीबीआई के अनुसार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद पर आरोप है कि 2004 से 2009 के बीच भारत सरकार के रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने रेलवे के अलग-अलग जोन में कई लोगों को ग्रुप-डी की नौकरी देने के बदले अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर जमीन ट्रांसफर करवा ली. इस संबंध में सीबीआई ने 18 मई, 2022 को लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटी मीसा भारती, हेमा यादव समेत 16 और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. पिछले वर्ष ही सात अक्टूबर को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई थी. इस कांड की जांच पहले सीबीआई कर रही थी, लेकिन बाद में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी इसमें शामिल हो गया. इसी सिलसिले में ईडी ने बीते हफ्ते करीब दो दर्जन ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की.

ईडी ने इस घोटाले में करीब 600 करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिंग के सबूत मिलने का दावा किया है. जांच एजेंसियों की तरफ से आरोप लगाया गया है कि राजकुमार, मिथिलेश कुमार और अजय कुमार को नौकरी देने के नाम पर लालू प्रसाद ने किशुन देव राय और उनकी पत्नी सोनमतिया देवी से छह फरवरी, 2008 को पटना के महुआ बाग की 3375 वर्ग फीट जमीन राबड़ी देवी के नाम रजिस्ट्री करवा दी. इसके एवज में तीनों को मुंबई सेंट्रल रेलवे में नौकरी दी गई. इसी तरह, किरण देवी नाम की महिला ने 28 फरवरी 2007 में बिहटा (पटना) की अपनी 80905 वर्ग फीट जमीन लालू प्रसाद के कहने पर उनकी पुत्री मीसा भारती के नाम कर दी. इस जमीन के एवज में किरण देवी को 3.70 लाख रुपये और उनके पुत्र अभिषेक कुमार को मुंबई सेंट्रल रेलवे में नौकरी दी गई.

क्या आरजेडी से अलग होंगे नीतीश

राजनीति के जानकार इशारा कर रहे कि हाल की कुछ घटनाओं से लगता है कि बीजेपी से नीतीश कुमार की नजदीकियां बढ़ीं हैं. कयास ये भी लग रहे हैं कि क्या वे आरजेडी से फिर अलग होंगे. हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऐसी किसी चर्चा को खारिज करते हुए साफ कहा है कि चूंकि लालू जी फिर से हमारे साथ हैं, इसलिए उन्हें तंग किया जा रहा है. राजनीतिक समीक्षक एके सिंह का कहना है, ‘‘इस बार नीतीश कुमार के लिए रास्ता उतना सपाट नहीं है. वे दूसरी बार महागठबंधन के साथ आए हैं. जाहिर है, उन्हें सब कुछ पहले से पता था. फिर उनके पलटी मारने वाली छवि से भी उन्हें परेशानी होती रही है.''

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उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर हैंतस्वीर: Hindustan Times/imago images

आज की परिस्थिति में वोट बैंक को अपनी मर्जी के अनुसार शिफ्ट करा पाना भी उतना आसान नहीं रह गया है. तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने का दबाव और पार्टी में उसके विरोध में उठते स्वरों से भी नीतीश सहज नहीं हैं. उपेंद्र कुशवाहा और जेडीयू की पूर्व सांसद मीना देवी इसी मुद्दे पर जेडीयू से अलग हो चुकीं हैं. पत्रकार राजेश रवि कहते हैं, ‘‘बीजेपी से अलगाव की वजहें तो अभी भी मौजूद हैं. सभी को नीतीश कुमार के बाद जेडीयू के अस्तित्व पर संदेह है. यही वजह है कि हरेक पार्टी उनके बाद उनके कुर्मी-कुशवाहा वोट पर नजर बनाए हुए हैं. बीजेपी कुछ ऐसा ही कर रही थी, इसलिए उससे जेडीयू ने नाता तोड़ लिया था.''

नीतीश कुमार अपने 40 साल के सियासी सफर में निष्ठाएं बदलते हुए भी अपनी छवि से बगैर समझौता किए जिस तरह 17 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं, उनके बारे में पूर्वानुमान लगाना कठिन है.

ललन सिंह की ही पहल पर ही दर्ज हुआ था केस

रेलवे में जमीन के बदले नौकरी से संबंधित मुकदमा जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की पहल पर ही दर्ज हुआ था. किंतु, आज की बदली हुई परिस्थिति में वे इस मामले में लालू परिवार की संलिप्तता से सहमत नहीं हैं. कहते हैं, ‘‘मैं समझता हूं कि इस मामले में लालू प्रसाद या उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य के विरूद्ध कोई साक्ष्य नहीं है.''

2008 में यह मामला आया था. केंद्र में तब यूपीए की सरकार थी. पहली जांच में कुछ नहीं पाया गया. ममता बनर्जी जब रेल मंत्री बनी तो उन्होंने भी फिर से जांच का आदेश दिया. दूसरी बार भी कोई साक्ष्य नहीं पाया गया. तब सीबीआई ने इस केस की फाइल बंद कर दी. ललन सिंह पूछते हैं कि केंद्र सरकार ने बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने से पहले यह मामला क्यों नहीं उठाया.

लालू को जेडीयू का मिला साथ

लालू प्रसाद ने ट्वीट कर कहा है, "संघ और बीजेपी के विरुद्ध मेरी वैचारिक लड़ाई रही है और रहेगी. इनके समक्ष मैंने कभी भी घुटने नहीं टेके हैं. मेरा परिवार और पार्टी का कोई भी व्यक्ति आपकी राजनीति के समक्ष नतमस्तक नहीं होगा." ईडी की छापेमारी और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के लिए सीबीआई से समन जारी किए जाने के मसले पर नीतीश कुमार ने भी कहा कि पांच साल बीत गए तब छापेमारी हो रही है. जेडीयू जब फिर से आरजेडी के साथ आई है तब यह किया जा रहा है. तेजस्वी ने भी ट्वीट कर कड़ा विरोध जताया है. तेजस्वी यादव ने कहा है, बीजेपी को अफवाह फैलाने और खबर प्लांट करवाने के बजाए छापे के बाद हस्ताक्षर के साथ सीजर लिस्ट को सार्वजनिक कर देना चाहिए. अगर हम इसे सार्वजनिक कर देंगे तो इन बेचारे नेताओं की क्या इज्जत रहेगी? तेजस्वी दो बार इस मामले में सीबीआई के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं.

केंद्रीय एजेंसियों की सीधी कार्रवाई पर रोक की मांग

बिहार विधानसभा में इसी हफ्ते सोमवार को आरजेडी ने केंद्रीय एजेंसियों की राज्य में सीधी कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए अध्यादेश लाए जाने की सरकार से मांग की. कहा गया कि विपक्ष के नेताओं को परेशान करने के लिए सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग की ओर से कार्रवाई की जा रही है. उस वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सदन में उपस्थित थे, किंतु तेजस्वी यादव मौजूद नहीं थे. वर्तमान स्थिति में किसी राज्य में कार्रवाई के लिए इन्हें सामान्य सहमति दी जाती है. जिन राज्यों ने इसे वापस ले लिया है, वहां राज्य सरकार से अनुमति लेने की जरूरत पड़ती है.

फिलहाल राजस्थान, पंजाब, तेलंगाना, झारखंड, केरल, पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम व छत्तीसगढ़ में सीबीआई की सीधी कार्रवाई पर रोक है. आरजेडी की इस मांग पर सांसद सुशील मोदी कहते हैं, "बिहार सरकार की सहमति वापस लेने पर सीबीआइ और ईडी केवल नये मुकदमे नहीं दायर कर सकेगी.  इससे उन मामलों की जांच नहीं बंद हो सकती, जिनमें प्राथमिकी दायर हो चुकी है." आईआरसीटीसी घोटाले में तेजस्वी यादव सहित कई लोगों के विरुद्ध जांच प्रक्रिया अब एफआईआर और चार्जशीट से काफी आगे है. वे जमानत पर हैं और ट्रायल शुरू हो चुका है.

बिहार की राजनीति फिलहाल ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां नैतिकता एक बार फिर बड़ा मुद्दा बन गई है. कौन इसे कितना तवज्जो देगा, यह तो वक्त ही बताएगा, क्योंकि 2024 के आम चुनाव व उसके बाद 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव का खाका भी पार्टियों को तैयार करना है.

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