सुरेश कलमाड़ी और अभय चौटाला को ओलंपिक संघ में पद मिलना, उस कैंसर के लक्षण हैं जिनसे भारत के खेल संघ पीड़ित हैं.
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सुरेश कलमाड़ी और अभय चौटाला को भारतीय ओलंपिक संघ ने अपना लाइफटाइम अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव क्या पास किया, भारत के खेल प्रशासन की नैतिकता मानो गहरी नींद से उठी. खेल राजनीति के गलियारों में हलचलें बढ़ गईं और खेल मंत्रालय भी जैसे हड़बड़ाकर जगा.
सुरेश कलमाड़ी 1996 से 2011 तक भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं. 2010 में दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटाले के आरोपों के बाद उन्हें 10 महीने जेल की हवा खानी पड़ी, बाद में जमानत पर रिहा हुए. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और टीचर भर्ती घोटाले में जेल की सजा काट रहे ओम प्रकाश चौटाला के सुपुत्र अभय चौटाला ने भारतीय ओलंपिक संघ की कमान संभाली दिसंबर 2012 में. वो इस पद पर फरवरी 2014 तक रहे. इस दौरान वो आय से अधिक संपत्ति के मामले में जमानत पर थे.
2016: खेल की दुनिया के सबसे बड़े सितारे
नए ओलंपिक चैंपियनों से लेकर नई टेनिस सनसनी तक, साल 2016 खेल के सितारों के कई यादगार कारनामों से भरा रहा. एक नजर सबसे चमकदार खेल सितारों पर.
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नई टेनिस क्वीन
सबसे कड़ी चुनौती सेरेना विलियम्स को पीछे छोड़ जर्मन टेनिस खिलाड़ी ऑन्जेलिक कैर्बर ने विश्व वरीयता क्रम में पहले नंबर पर कब्जा किया. स्टेफी ग्राफ के बाद वे पहले स्थान पर आने वाली पहली जर्मन टेनिस खिलाड़ी हैं.
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देर आए, दुरुस्त आए
स्कॉटिश टेनिस खिलाड़ी एंडी मरे को पेशेवर टेनिस खेलते हुए 12 साल हो गए थे, लेकिन इस साल जाकर वह लंदन में एटीपी टूर फाइनल में सर्बिया के नोवाक जोकोविक को हराकर विश्व नंबर एक बन पाए.
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यादगार उपलब्धि
यान फ्रोडेनो ने हवाई में हुए दुनिया के सबसे कठिन ट्रायथलन मुकाबले को जीत कर इस बार भी आयरनमैन का खिताब हासिल किया. लगातार दो साल तक ये खिताब जीतने वाले वह पहले जर्मन बने.
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महानतम ओलंपियन
अमेरिकी तैराकी माइकल फेल्प्स ने 23 गोल्ड मेडल के साथ ओलंपिक खेलों में आज तक के सबसे सफल एथलीट के तौर पर अपना करियर समाप्त किया. रियो ओलंपिक में ही उन्होंने पांच गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीते.
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सबसे तेज इंसान
जमैका के विश्वप्रसिद्ध धावक यूसेन बोल्ट ने 2008 में बीजिंग और 2012 में लंदन के बाद रियो ओलंपिक में भी 100 मीटर, 200 मीटर, 4x100-मीटर रिले रेस का गोल्ड जीतने का कमाल कर दिखाया. वे 11 बार विश्व चैंपियन बन चुके हैं.
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टीम ऑफ द ईयर
लॉरा लुडविग (बाएं) और कीरा व्लाकेनहोर्स्ट (दाएं) ने रियो ओलंपिक के गोल्ड मेडल समेत बीच बॉलीबॉल में साल के सभी खिताब जीते. इन दोनों जर्मन खिलाड़ियों को जर्मनी की 'टीम ऑफ द ईयर' माना गया.
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पैरालंपिक स्टार
मार्कुस रेम रियो में ऑस्कर पिस्टोरियस के लंदन ओलंपिक जैसा प्रदर्शन करना चाहते थे. लेकिन आईएएएफ ने उनका एप्लीकेशन रद्द कर दिया. फिर वे पैरालंपिक में खेले और लंबी कूद और 4x100-मीटर रिले में गोल्ड जीता.
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विवादास्पद मगर सफल
कई लोग इनका "प्लास्टिक क्लब" कहकर मजाक उड़ाते हैं. आरबी लाइप्जिग क्लब ने बुंडेसलीगा के पहले 16 मैचों में आज तक की किसी भी नई प्रमोटेड टीमों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिखाया. टीम ने डॉर्टमुंड, बायर्न म्युनिख सबको हार का स्वाद चखाया.
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डबल विजेता
क्रिस्टियानो रोनाल्डो के फैन्स की फेहरिस्त में कुछ और नाम शामिल. फ्रांस में यूरो 2016 के फाइनल में रियाल मैड्रिड स्टार को चोट लग गई. लेकिन अपनी बेंच से ही उन्होंने पुर्तगाली टीम के खिलाफ जीतने पर खूब खुशी मनाई.
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टॉप पोजीशन से रिटायर
मर्सिडीज ड्राइवर निको रोसबर्ग ने पहले तो फॉर्मूला वन ड्राइवर्स टाइटल जीता और फिर कुछ ही दिन बाद मात्र 31 साल की उम्र में रिटायरमेंट की घोषणा भी कर दी. (ओलिविया गेर्स्टेनबैर्गर/आरपी)
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देश के खेल संगठनों में नेताओं, नौकरशाहों, कारोबारियों और भूतपूर्वों का कब्जा है और ये सिलसिला राज्यों से लेकर केंद्र तक अटूट है. इस गठजोड़ ने भारत में खेल को एक चरागाह में तब्दील कर दिया है. अभी तो हाल ये है कि कई जगह खेल समितियां और संगठन "फैमिली गेट-टुगेदर” जैसे हो गए हैं. पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक कोई न कोई नेता और उसका नजदीकी रिश्तेदार किसी न किसी खेल संगठन का इंचार्ज जरूर मिल जाएगा. खेल प्रशासन का मौजूदा मॉडल भी विद्रूप का शिकार है. उसमें आंतरिक समन्वय नहीं है. युवा मामलों का मंत्रालय, खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण, भारतीय ओलपिंक संघ, राज्य ओलंपिक संगठन और राष्ट्रीय खेल फेडरेशन- ये सब वे संरचनाएं हैं जिन पर वित्त और संसाधन मुहैया कराने के अलावा खेल प्रतिभाओं की तलाश और उन्हें निखारने की जिम्मेदारी है. लेकिन वे लचर ही साबित हुई हैं क्योंकि पूरे सिस्टम में कहीं भी जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की गई है. बस ताकतें अपार हैं.
क्रिकेट ही नहीं भारत में हॉकी, बैडमिंटन, फुटबॉल, कुश्ती से लेकर जिमनास्टिक्स आदि तक हर जगह राजनीति, भाई भतीजावाद, वित्तीय घोटाले और पक्षपात का साया नजर आता है. जाहिर है इसका असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन, उनके चयन में गंभीरता और कुल मिलाकर समूचे खेल ढांचे पर पड़ता है. त्रिपुरा की जिमनास्ट दीमा करमाकर का उदाहरण कौन भूल सकता है जिन्हें भारीभरकम और विराट संसाधनों वाले खेल संघों और समितियों से कोई मदद नहीं मिली. अपने बलबूते ओलंपिक गईं और अपनी प्रतिस्पर्धा में फाइनल राउंड में पहुंचकर चौथा स्थान हासिल किया. इस उपलब्धि के साथ वो देश की पहली महिला जिमनास्ट बनीं. ओलंपिक में भारतीय मैराथन धावक ओपी जैशा का उदाहरण भी सामने हैं जिन्हें पूरी दौड़ में कहीं पर भी पानी या कोई ड्रिंक पिलाने के लिए भारतीय प्रतिनिधि मौजूद नहीं था. कहां थे वे और क्या कर रहे थे? दो पहलवानों सुशील कुमार और नरसिंह यादव के टकराव का जिम्मेदार कौन था?
डोपिंग पकड़े जाने पर अजब गजब बहाने
कभी सास, कभी अजन्मा जुड़वां तो कभी टूथ पेस्ट. डोपिंग में पकड़े जाने पर खिलाड़ी दोष दूसरों पर मढ़ते हैं और ऐसी ऐसी कहानियां सुनाते हैं कि आप दंग रह जाएं. एक नजर ऐसे बहानों पर.
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थेरीजे यूहॉग: सनक्रीम
धूप से त्वचा जलने के इलाज ने नॉर्वे की स्की खिलाड़ी का करियर तबाह कर दिया. सात बार विश्व चैंपियन और ओलंपिक विजेता थेरीजे यूहॉग को स्टीरॉयड क्लोस्टेबॉल पॉजीटिव पाया गया. उन्होंने कहा कि क्लोस्टेबॉल एक सनक्रीम में था जिसे लेने की सलाह उन्हें टीम के डॉक्टर ने दी थी.
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मारिया शारापोवा: भूल
टेनिस स्टार मारिया शारापोवा ने कहा, "मैं ये दवा 2006 से ले रही हूं" लेकिन ये नहीं बताया कि स्वस्थ होने के बावजूद वे दिल के रोगियों द्वारा इस्तेमाल होने वाली दवा क्यों ले रही हैं. 2016 के शुरू से मेल्डोनियम डोपिंग लिस्ट पर है. शारापोवा की दलील है कि उन्होंने ये सूची नहीं देखी. लेकिन अनभिज्ञ होना सजा से नहीं बचाता.
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लिनफर्ड क्रिस्टी: अवोकाडो
लिनफर्ड क्रिस्टी (बाएं से दूसरे) 1999 में 39 साल की आयु के साथ अपने करियर के आखिरी चरण में थे, जब वे पकड़े गए. 1992 के ओलंपिक विजेता के खून में स्टीरॉयड नैंड्रोलोन पाया गया. उनका बयान दिलचस्प था. उन्होंने कहा कि उन्होंने डोपिंग नहीं की है, बस अवोकाडो खाया है. अवोकाडो का नैंड्रोलोन से क्या लेना देना है, सिर्फ वे ही जानते हैं.
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योहान मुइलेग: डायट
स्पेन ने ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं किया. गर्म देश के स्की खिलाड़ी ने 2002 के शीतकालीन खेलों में तीन बार सोने का पदक जीता. जर्मन खेल संगठन से झगड़ा कर स्पेन गए योहान मुइलेग इपो के साथ पकड़े गए. उनकी दलीली थी कि उन्हें इपो नहीं लिया, "मैंने अंतिम पांच दिनों में विशेष डायट प्लान बनाया, जिसमें सिर्फ प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट था."
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फ्लॉयड लैंडिस: व्हिस्की
शुरू में साइकिल चैंपियन लैंस आर्मस्ट्रॉन्ग के साए में रहे, लेकिन उनके इस्तीफे के बाद अचानक 2006 में टूअर दे फ्रांस के विजेता बने, लेकिन टेस्टोस्टेरॉन डोपिंग के लिए पकड़े गए. अचानक गिरने के बाद उनकी जबरदस्त वापसी हुई थी. उस समय लैंडिस ने कहा कि बहुत ज्यादा व्हिस्की पी ली थी, लेकिन बाद में डोपिंग की बात मान ली.
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आड्रियान मूतू: पोटेंसी
चेल्सी फुटबॉल क्लब के लिए खेलने वाले आड्रियान मूतू ने 2004 में कोकीन का सेवन किया था. उनका कहना था कि उन्होंने ऐसा मैदान पर अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए नहीं किया था. "मैंने ऐसा सिर्फ अपनी यौन क्षमता बढ़ाने के लिए किया था." खेल अदालत ने ये कहानी नहीं मानी और 1.72 करोड़ यूरो का जुर्माना किया.
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मार्टिना हिंगिस: फ्रूट जूस
टेनिस स्टार मार्टिना हिंगिस ने 2007 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर पीठ की दर्द और पॉजिटिव डोपिंग टेस्ट के कारण टेनिस से संन्यास लेने की घोषणा की. विंबलडन चैंपियनशिप के दौरान उनके खून में कोकीन पाया गया, लेकिन हिंगिस का कहना था उनके खिलाफ साजिश हुई है. "किसी ने मेरे फ्रूट जूस में इसे मिला दिया." लेकिन उसका स्वाद अजीब रहा होगा.
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लेनी पॉल: स्पागेटी
ब्रिटिश बॉब खिलाड़ी लेनी पॉल को 1997 में नैंड्रोनॉल की बढ़ी हुई मात्रा के साथ पकड़ा गया. उन दिनों डोपिंग करने वालों में यह लोकप्रिय तत्व था, लेकिन उनका बहाना अजीबोगरीब था, "मैंने स्पागेटी बोलोन्या खाया था, मीट हारमोन ट्रीटेड था." साइकिल चालक अलबैर्तो कोंटाडोर मे भी डोपिंग के लिए मीट को जिम्मेदार बताया था.
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इवोन क्राफ्ट: स्प्रे
माउंटेनबाइक खिलाड़ी इवोन क्राफ्ट 2007 में डोपिंग टेस्ट में पॉजीटिव पाई गई. उनके खून में प्रतिबंधित पदार्थ फेनोटेरॉल मिला. इसके बारे में क्राफ्ट का कहना था, "उनकी मां का अस्थमा स्प्रे अचानक फट गया था और वह पास में ही खड़ी थी. इसलिए उन्होंने बहुत सारी गैस सांस में ले ली." कैसी दलील? कितना अजीबोगरीब संयोग था ये.
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राइमुंडास रुमसास: सास
जैसे वे अचानक आसमान से गिरे हों, राइमुंडास रुमसास ने टूअर दे फ्रांस में पोडियम पर कब्जा कर लिया. जबकि साइकिल स्पोर्ट की दुनिया में आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा था, रुमसास की पत्नी कस्टम पर क्षमता बढ़ाने वाली दवाओं के साथ पकड़ी गई. रुमसास दंपत्ति का कहना था कि दवाएं उनकी बीमार सास के लिए थी.
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मारियो डे क्लैर्क: उपन्यास
क्रॉसप्रोफी मार्यो डे क्लैर्क को 2003 में अपनी विधा का सबसे अच्छा खिलाड़ी माना जाता था. फिर उनके पास से दवाओं, ट्रेनिंग प्लान और हैमोटोक्राइट चार्ट के स्केच मिले. डे क्लैर्क ने डोपिंग से इंकार किया और कहा कि उनके पास मिली सामग्री उन्होंने एक उपन्यास लिखने के लिए जुटाई थी. सारी बातें कोरी कल्पना थी.
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डीटर बाउमन : टूथपेस्ट
डोपिंग की कोई भी कहानी इतनी बार नहीं कही गई है जो जर्मनी खिलाड़ी डीटर बाउमन ने सुनाई. 1992 के ओलंपिक विजेता 1999 में पॉजीटिव पाए गए और वह टूथपेस्ट से छेड़छाड़ की बात कहकर आरोप से बचने की कोशिश करते रहे. प्रसिद्ध डोपिंग एक्सपर्ट वर्नर फ्रांके ने इस दलील को विश्वसनीय बताया लेकिन दोनों कोई सबूत नहीं दे पाए.
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टाइलर हैमिल्टन: अजन्मा जुड़वां
टाइलर हैमिल्टन को 2004 ओलंपिक में अपने करियर की सबसे बड़ी कामयाबी मिली. सोने का पदक. लेकिन फिर बड़ा सदमा. उन्हें ब्लड डोपिंग का दोषी पाया गया. उन्होंने कहा, "मेरे शरीर में परायी रक्त कोशिकाएं जन्म के समय मृत मेरे जुड़वां के स्टेम सेल से आई हैं." एक ऐसी कहानी जिसे बाद में खुद हैमिल्टन ने झूठ ठहराया.
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डेनिस मिचेल: सेक्स
अमेरिकी धावक डेनिस मिचेल 1992 में रिले रेस में ओलंपिक विजेता बने. छह साल बाद उनके शरीर में टेस्टोस्टेरॉन मिला. उन्होंने इसकी जिम्मेदारी पांच बोतल बीयर और चार बार किए गए सेक्स पर डाली. "लड़की का जन्मदिन था. वह कुछ खास पाने की हकदार थी." शायद मिचेल की राय में इसे कहते हैं भद्रता.
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गिलबैर्तो सिमोनी: टॉफी और चाय
खिलाड़ियों को परिवार के सदस्यों से मिलने वाले टॉफी बिस्किट से सावधान रहना चाहिए. इटली के पेशेवर साइकिल चालक गिलबैर्तो सिमोनी 2004 में कोकीन के साथ पकड़े गए. लेकिन उन्होंने कहा कि इसका डोपिंग से कुछ लेना देना नहीं था. "मेरी मां ने मुझे पेरू से टॉफियां भेजी थी, जो कोक के पत्तों में लिपटी थी." और चाय के लिए उन्होंने चाची को जिम्मेदार बताया.
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ओलंपिक जैसे बड़े खेल आयोजनों के टीम इंवेटों में भारत अब भी फिसड्डी है. आखिर क्या कारण हैं कि पुलेला गोपीचंद जैसे खेल नायक मेहनत, समर्पण और त्याग से चैंपियन तैयार करते हैं लेकिन देश की खेल संस्थाएं सफेद हाथी की तरह अपनी अपनी जगह पसरी हुई सी हैं. वहां कोई हरकत अगर होती है तो वे पैसों और भर्ती के घोटाले की या वर्चस्व की होती दिखती है. यही कारण है कि दशकों तक कलमाड़ी, चौटाला और भनोट जैसे लोग शीर्षस्थ पदों पर जमे रहते हैं.
अगर हालात सुधारने हैं तो सबसे पहले इस ढांचे को दुरुस्त किए जाने की जरूरत है. खेल प्रशासन की जो अफसरशाही विकसित कर दी गई है और नये किले अंदर ही अंदर विकसित हो गए हैं उन्हें ध्वस्त करना होगा. एक स्वतंत्र खेल नियामक की जरूरत है. सारे संगठनों पर उसकी निगरानी और नियंत्रण हो, चाहे वो भर्ती हो या वित्तीय प्रबंधन हो या खिलाड़ियों की सुविधा. और इसमें नेताओं और अफसरों का बोलबाला न हो. सदस्यता के लिए योग्यता का निर्धारण जरूरी है. रसूख और परिवारवाद को हर हाल में इससे अलग रखना होगा. अपनी वित्तीय स्थिति का लेखाजोखा एक निश्चित अंतराल पर इन संगठनों को देना चाहिए. हर बड़ी खेल स्पर्धा के बाद भी ऐसा करना चाहिए. बयानबाजी से बचना भी सीखना होगा.
अगर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर अप्रिय टिप्पणी शोभा डे जैसे चर्चितों को शोभा नहीं देती तो खेलों के नाम पर अतिशय राष्ट्रवादी सनक भी घातक है. फिर कमियां नहीं नजर आतीं, राष्ट्रप्रेम हिलोरें लेने लगता है और भ्रष्ट सिस्टम चैन की बंसी बजाता रहता है. नैतिकता और शुचिता की निरंतर दुहाई के इस दौर में लगता है सबसे ज्यादा खतरे में यही दोनों चीज़ें आ गई हैं. बयान हो या खींचतान, विवाद का सारा मलबा मानो शुचिता पर ही गिर रहा है, चाहे वो खेल में हो या राजनीति में या समाज में.