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समाज

बदहाली के शिकार हैं सरकारी स्कूल

प्रभाकर मणि तिवारी
१० मार्च २०२०

देश के 40 फीसदी से भी ज्यादा सरकारी स्कूलों में न तो बिजली है और न ही खेलने का मैदान. मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति की ताजा रिपोर्ट से इसका पता चला है.

Indien Ghatsila Jharkhand - Bengali sprechende eröffnen Schule um Bengalisch zu unterrichten
तस्वीर: DW/P. Samanta

समिति ने स्कूल शिक्षा विभाग के बजट में 27 फीसदी कटौती के लिए भी सरकार की आलोचना की है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि कोई दशक पहले शिक्षा का अधिकार कानून के लागू होने के बावजूद सरकारी स्कूलों की हालत इतनी दयनीय क्यों है और लाखों छात्र बीच में ही स्कूल क्यों छोड़ रहे हैं.

रिपोर्ट क्या कहती है

मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति ने बीते सप्ताह संसद में जो रिपोर्ट पेश की है वह देश में सरकारी स्कूलों की दयनीय हालत की हकीकत पेश करती है. इसमें कहा गया है कि देश के लगभग आधे सरकारी स्कूलों में न तो बिजली है और न ही छात्रों के लिए खेल-कूद का मैदान. समिति ने स्कूल शिक्षा विभाग के लिए बजट प्रावधानों की 27 फीसदी कटौती पर भी गहरी चिंता जताई है. स्कूली शिक्षा विभाग ने सरकार से 82,570 करोड़ रुपये मांगे थे. लेकिन उसे महज 59,845 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए. सर्वेक्षण के ताजा आंकड़ों के हवाले रिपोर्ट में कहा गया है कि महज 56 फीसदी स्कूलों में ही बिजली है. मध्य प्रदेश और मणिपुर की हालत तो सबसे बदतर है. इन दोनों राज्यों में महज 20 फीसदी सरकारी स्कूलों तक ही बिजली पहुंच सकी है. ओडीशा व जम्मू-कश्मीर के मामले में तो यह आंकड़ा 30 फीसदी से भी कम है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 57 फीसदी से भी कम स्कूलों में छात्रों के लिए खेल-कूद का मैदान है. रिपोर्ट के मुताबिक आज भी देश मे एक लाख से ज्यादा सरकारी स्कूल ऐसे है जो अकेले शिक्षक के दम पर चल रहें है. देश का कोई ऐसा राज्य नही है जहां इकलौते शिक्षक वाले ऐसे स्कूल न हो. यहां तक की राजधानी दिल्ली मे भी ऐसे 13 स्कूल है. इन स्कूलों में इकलौते शिक्षक के सहारे पढ़ाई-लिखाई के स्तर का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है.

कुछ ऐसे दिखते हैं हजारों सरकारी स्कूलतस्वीर: DW/S. Mishra

रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर भी चिंता जताई गई है. इसमें सरकार की खिंचाई करते हुए कहा गया है कि हाल के वर्षों में हायर सेकेंडरी स्कूलों की इमारत को बेहतर बनाने, नए कमरे, पुस्तकालय और प्रयोगशालाएं बनाने की प्रगति बेहद धीमी है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2019-20 के लिए अनुमोदित 2,613 परियोजनाओं में से चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों के दौरान महज तीन परियोजनाएं ही पूरी हो सकी है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इन परियोजनाओं में ऐसी देरी से सरकारी स्कूलों से छात्रों के मोहभंग की गति और तेज हो सकती है.

समिति ने कहा है कि 31 दिसंबर, 2019 तक किसी भी सरकारी हायर सेकेंडरी स्कूल में एक भी नई कक्षा नहीं बनाई जा सकी है.यह हालत तब तरह है जबकि वर्ष 2019-20 के लिए 1,021 नई कक्षाओं के निर्माण को मंजूरी दी गई थी. इसी तरह 1,343 प्रयोगशालाओं के अनुमोदन के बावजूद अब तक महज तीन की ही स्थापना हो सकी है. पुस्तकालयों के मामले में तो तस्वीर और बदतर है. 135 पुस्तकालयों और कला-संस्कृति कक्षों के निर्माण का अनुमोदन होने के बावजजूद अब तक एक का भी काम पूरा नहीं हुआ है. लगभग 40 फीसदी स्कूलों में चारदीवारी नहीं होने की वजह से छात्रों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लग रहे हैं. रिपोर्ट में सरकार को इन स्कूलों में चारदीवारी बनाने और तमाम स्कूलों में बिजली पहुंचाने की सलाह दी गई है.

इससे पहले एनुअल स्टेट्स आफ एजुकेशन रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी स्कूलों में पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले 55.8 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा की पुस्तकें तक नहीं पढ़ सकते. इसी तरह आठवीं के 70 फीसदी छात्र ठीक से गुणा-भाग नहीं कर सकते. इससे इन स्कूलों में शिक्षा के स्तर का पता चलता है. वैसे, केंद्र की तमाम सरकारें शिक्षा के अधिकार पर जोर देती रही हैं. इस कानून में साफ गया है कि सरकारी और निजी स्कूलों मे हर 30-35 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. हलाकि सरकारी आंकड़ो के मुताबिक देश मे छात्र-शिक्षक अनुपात का औसत बीते एक दशक के दौरान काफी सुधरा है. लेकिन अहम सवाल यह है कि जब देश के लगभग 13 लाख मे से एक लाख सरकारी स्कूल इकलौते शिक्षक के भरोसे चल रहे हों तो यह अनुपात बेमतलब ही है.

शिक्षाविदों का कहना है कि तमाम सरकारें शिक्षा के कानून अधिनियम का हवाला देकर सरकारी स्कूलों के मुद्दे पर चुप्पी साध लेती हैं. अब तक किसी ने भी इन स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं की बेहतरी या शिक्षा का स्तर सुधारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है. एक शिक्षाविद् प्रोफेसर रमापद कर्मकार कहते हैं, "सरकारी स्कूलों में आधारभूत ढांचे और शिक्षकों का भारी अभाव है. महज मिड डे मील के जरिए छात्रों में पढ़ाई-लिखाई के प्रति दिलचस्पी नहीं पैदा की जा सकती. लेकिन किसी भी सरकार ने इस पपर ध्यान नहीं दिया है.” वह कहते हैं कि जब तक सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं जुटाने और शिक्षकों के खाली पदों को भरने की दिशा में ठोस पहल नही होती, हालत दयनीय ही बनी रहेगी. यही वजह है कि निजी स्कूलों में छात्रों की भीड़ लगातार बढ़ रही है.

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