भारत सरकार ने कश्मीर में बंद में ढील देते हुए पोस्टपेड मोबाइल सेवाओं को शुरू करने का फैसला किया है. सरकार लोगों द्वारा किए जा रहे नागरिक अवज्ञा से चिंतित है. इसके लिए सरकार ने अखबारों में विज्ञापन भी दिए.
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भारत सरकार ने भारत प्रशासित कश्मीर में पोस्टपेड मोबाइल सेवाओं को बहाल करने का फैसला किया है. 14 अक्टूबर को सुबह सबसे पहले बीएसएनएल और दोपहर 12 बजे से दूसरे सभी सर्विस ऑपरटेरों की सेवाएं शुरू कर दी गई हैं. 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के बाद जम्मू कश्मीर में मोबाइल सुविधाएं बंद की गई थीं. जम्मू के अधिकांश इलाकों में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं कुछ दिन बाद ही शुरू कर दी गई थीं. लेकिन कई इलाकों में सुरक्षा के मद्देनजर इन्हें चालू और बंद किया जा रहा था. कश्मीर में अभी भी प्रीपेड मोबाइल और इंटरनेट सेवा काम नहीं करेगी. कश्मीर में करीब 40 लाख पोस्टपेड और 20 लाख प्रीपेड मोबाइल उपभोक्ता हैं.
पोस्टपेड मोबाइल सुविधाएं चालू करने के बाद सरकार देखेगी कि कश्मीर में सुरक्षा हालात कैसे रहते हैं. सुरक्षा हालातों की समीक्षा करने के बाद ही आगे कदम उठाए जाएंगे. भारत सरकार कई बार कह चुकी है कि मोबाइल और इंटरनेट का इस्तेमाल चरमपंथी कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए करते हैं. 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 में बदलाव के 11 दिन बाद से पाबंदियों में ढील देना शुरू किया गया था. 17 अगस्त को आंशिक रूप से लैंडलाइन सुविधाएं चालू की गई थीं. 4 सितंबर से कश्मीर के सभी लैंडलाइन फोन चालू कर दिए गए. जम्मू और लद्दाख के इलाके में मोबाइल सुविधाएं फिलहाल पूरी तरह चालू हैं.
जम्मू कश्मीर सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल ने कहा, "जम्मू कश्मीर की स्थिति के मद्देनजर सरकार ने पोस्टपेड मोबाइल सेवाओं को चालू करने का फैसला किया है. 14 अक्टूबर दोपहर 12 बजे से सभी मोबाइल ऑपरेटरों की पोस्टपेड मोबाइल सेवा शुरू हो जाएंगी. करीब 20 लाख प्रीपेड मोबाइल और इंटरनेट सुविधाएं फिलहाल बंद ही रहेंगी." सरकार के मुताबिक कश्मीर में फिलहाल शांति है. बीबीसी समेत कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों द्वारा कई प्रदर्शनों के बारे में रिपोर्टिंग की गई है. सरकार ने कश्मीर में पर्यटकों के घूमने आने से भी पाबंदी हटाई है.
जम्मू कश्मीर सरकार ने पिछले दिनों अखबार में विज्ञापन निकालकर लोगों से अपील की थी कि बंद की स्थिति को खत्म करें. सरकार ने विज्ञापन में कहा कि इस बंद की स्थिति से चरमपंथियों को फायदा हो रहा है. सरकार को चिंता है कि लोगों ने सरकार के खिलाफ कोई हिंसक प्रदर्शन नहीं किए हैं. कश्मीर के लोग नागरिक अवज्ञा आंदोलन पर आ गए हैं. ऐसे में वो सरकार के खिलाफ कोई विरोध भी नहीं कर रहे हैं. सरकार इस स्थिति को दूर करने की कोशिश कर रही है.
देश का संविधान किसी राज्य को विशेष नहीं कहता लेकिन इसके बावजूद कई राज्यों को "विशेष दर्जा" प्राप्त है. वहीं कई राज्य अकसर यह मांग करते नजर आते हैं कि उन्हें यह दर्जा मिले. लेकिन क्या होता है राज्यों का "विशेष दर्जा."
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क्या है राज्यों का "विशेष दर्जा"
संविधान में किसी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने जैसा कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन विकास पायदान पर हर राज्य की स्थिति अलग रही है जिसके चलते पांचवें वित्त आयोग ने साल 1969 में सबसे पहले "स्पेशल कैटेगिरी स्टेटस" की सिफारिश की थी. इसके तहत केंद्र सरकार विशेष दर्जा प्राप्त राज्य को मदद के तौर पर बड़ी राशि देती है. इन राज्यों के लिए आवंटन, योजना आयोग की संस्था राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) करती थी.
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क्या माने जाते थे आधार
पहले एनडीसी जिन आधारों पर विशेष दर्जा देती थी उनमें था, पहाड़ी क्षेत्र, कम जनसंख्या घनत्व या जनसंख्या में बड़ा हिस्सा पिछड़ी जातियों या जनजातियों का होना, रणनीतिक महत्व के क्षेत्र मसलन अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इलाके, आर्थिक और बुनियादी पिछड़ापन, राज्य की वित्तीय स्थिति आदि. लेकिन अब योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ले ली है. और नीति आयोग के पास वित्तीय संसाधनों के आवंटन का कोई अधिकार नहीं है.
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14वें वित्त आयोग की भूमिका
केंद्र सरकार के मुताबिक, 14वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में राज्यों को दिए जाने वाले "विशेष दर्जा" की अवधारणा को प्रभावी ढंग से हटा दिया था. केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश के मसले पर कहा कि केंद्र, प्रदेश को स्पेशल कैटेगिरी में आने वाला राज्य मानकर वित्तीय मदद दे सकता है. लेकिन सरकार आंध्र प्रदेश को "विशेष राज्य" का दर्जा नहीं देगी.
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"विशेष दर्जा" का क्या लाभ
नीति आयोग से पहले योजना आयोग विशेष दर्जे वाले राज्य को केंद्रीय मदद का आवंटन करती थी. ये मदद तीन श्रेणियों में बांटी जा सकती है. इसमें, साधारण केंद्रीय सहयोग (नॉर्मल सेंट्रल असिस्टेंस या एनसीए), अतिरिक्त केंद्रीय सहयोग (एडीशनल सेंट्रल असिस्टेंस या एसीए) और विशेष केंद्रीय सहयोग (स्पेशल सेंट्रल असिस्टेंस या एससीए) शामिल हैं.
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क्या है मतलब
विशेष दर्जा प्राप्त राज्य में केंद्रीय नीतियों का 90 फीसदी खर्च केंद्र वहन करता है और 10 फीसदी राज्य. वहीं अन्य राज्यों में खर्च का 60 फीसदी ही हिस्सा केंद्र सरकार उठाती है और बाकी 40 फीसदी का भुगतान राज्य सरकार करती है.
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किन राज्यों के पास है दर्जा
एनडीसी ने सबसे पहले साल 1969 में जम्मू कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्जा दिया था. लेकिन कुछ सालों बाद तक इस सूची में अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा शामिल हो गए. साल 2010 में "विशेष दर्जा" पाने वाला उत्तराखंड आखिरी राज्य बना. कुल मिलाकर आज 11 राज्यों के पास यह दर्जा है.
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अन्य राज्यों की मांग
देश के कई राज्य "विशेष दर्जा" पाने की मांग उठाते रहे हैं. इसमें आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार की आवाजें सबसे मुखर रही है. लेकिन अब तक इन राज्यों को यह दर्जा नहीं दिया गया है.