साल 2024 में अकेले एशिया में ही 167 प्राकृतिक आपदाएं आईं, जो सारे महाद्वीपों में सबसे ज्यादा है. विशेषज्ञ कहते हैं कि एशियाई देशों को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तैयारी बेहतर करने की जरूरत है.
बाढ़ से पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैंतस्वीर: Waseem Andrabi/Hindustan Times/Sipa USA/picture alliance
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लगातार हो रही मॉनसून की बारिश के चलते उत्तर भारत में भीषण बाढ़ के हालात बन गए हैं और भूस्खलन की कई घटनाएं भी हो रही हैं. सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, इन घटनाओं में करीब 90 लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. भारत के हिमालयी क्षेत्र में स्थित उत्तराखंड, हिमाचल-प्रदेश और जम्मू-कश्मीर को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.
इनके अलावा, पंजाब में भी बाढ़ ने जमकर तबाही मचाई है. राज्य के सभी 23 जिलों के 1,400 से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आए हैं. तीन लाख से ज्यादा लोग भारी बारिश और बाढ़ की वजह से प्रभावित हुए हैं. पंजाब की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर रहती है. बाढ़ के चलते, करीब 1.5 लाख हेक्टेयर खेत पानी में डूब गए हैं और फसलें बर्बाद हो गई हैं.
पड़ोसी देश पाकिस्तान में अधिकारियों ने बताया है कि 10 लाख से अधिक लोगों को बाढ़ग्रस्त इलाकों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. पाकिस्तान के पूर्व में स्थित पंजाब प्रांत में बाढ़ ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. जून के आखिर में मानसून की शुरुआत से लेकर अब तक पाकिस्तान में बाढ़ के चलते 800 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
पाकिस्तान की कई नदियां उफान पर आ गई हैंतस्वीर: Jahan Zeb/AP Photo/picture alliance
जलवायु परिवर्तन हो सकती है प्रमुख वजह
दक्षिण एशियाई क्षेत्र, दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है और यह जलवायु परिवर्तनों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील भी है. विशेषज्ञ कहते हैं कि अब बारिश संबंधी आपदाएं ज्यादा आ रही हैं और उनकी तीव्रता भी बढ़ रही है, ऐसे में इस क्षेत्र को इन आपदाओं से निपटने के लिए अपनी तैयारी बेहतर करनी होगी.
विशेषज्ञों का कहना है कि मॉनसून की अनिश्चितता के पीछे जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख कारण हो सकता है. वे कहते हैं कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन दक्षिण एशिया के मॉनसून को तीव्र कर रहा है. पहले जिन बारिशों का अनुमान लगाया जा सकता था, वे अब अनियमित हो गई हैं. कई बार बेहद कम समय के भीतर, बहुत अधिक बारिश होती है और बाद में सूखा पड़ जाता है.
हिमालयी क्षेत्र में क्यों होता है प्राकृतिक आपदाओं का अधिक खतरा
भारत में हिमालयी क्षेत्र 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैला हुआ है. इनमें उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्य शामिल हैं. मॉनसून के दौरान, इन इलाकों को अधिक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है.
तस्वीर: Aqil Khan/AP/picture alliance
नाजुक होते हैं पर्वतीय क्षेत्रों के ईकोसिस्टम
इंटरनेशनल माउंटेन कॉन्फ्रेंस की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्र अपनी जटिल बनावट, नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और लगातार बदलती जलवायु परिस्थितियों की वजह से विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के प्रति काफी अधिक संवेदनशील होते हैं.
तस्वीर: Federation Studios
कई रूपों में आती हैं प्राकृतिक आपदाएं
भारत का हिमालयी क्षेत्र कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है, जिसमें भूस्खलन, भूकंप, बादल फटना और ग्लेशियर लेक की वजह से आने वाली बाढ़ शामिल है. ये आपदाएं आबादी क्षेत्र, बुनियादी ढांचे और जैव विविधता के लिए गंभीर खतरे पैदा करती हैं.
एक अध्ययन के मुताबिक, हिमालय क्षेत्र में बसे विभिन्न इलाकों में मॉनसून के दौरान जल-संबंधी आपदाएं आती हैं. इस दौरान आमतौर पर बादल फटने और अचानक बाढ़ आने की घटनाएं दर्ज की जाती हैं. बादल फटने के दौरान, किसी एक इलाके में बहुत कम समय में बहुत अधिक बारिश होती है.
तस्वीर: @suryacommand/X
निचले इलाकों में मचती है तबाही
हिमालयी क्षेत्र में अधिकतर नदियां संकरी घाटियों से होकर बहती हैं. बादल या ग्लेशियर झील के फटने की स्थिति में पानी के तेज बहाव के साथ बड़ी मात्रा में मलबा भी आ जाता है. इससे नदियों के रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं और निचले इलाकों में अचानक बाढ़ की स्थिति बन जाती है.
तस्वीर: Uttarakhand's State Disaster Response Force/AFP
आपदाओं में रही 44 फीसदी हिस्सेदारी
डाउन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित हुए एक विश्लेषण के मुताबिक, साल 2013 से 2022 के दौरान पूरे देश में 156 आपदाएं दर्ज की गईं, जिनमें से 68 आपदाएं केवल हिमालयी क्षेत्र में हुईं. देश के भौगोलिक क्षेत्र में 18 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले हिमालयी क्षेत्र की आपदाओं में हिस्सेदारी 44 फीसदी रही.
तस्वीर: Ashwini Bhatia/AP Photo/picture alliance
बाढ़ का रहता है सबसे अधिक खतरा
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में सबसे ज्यादा खतरा बाढ़ आने का होता है. सन 1903 से लेकर अब तक इस क्षेत्र में 240 आपदाएं दर्ज की गई हैं. इनमें से 132 बाढ़ संबंधी आपदाएं हैं. इसके बाद, भूस्खलन की 37, तूफान की 23, भूकंप की 17 और चरम तापमान की 20 आपदाएं दर्ज की गई हैं.
तस्वीर: Uttarakhand's State Disaster Response Force/AFP
सिक्किम में हुई थी करीब 180 लोगों की मौत
अक्टूबर 2023 में सिक्किम राज्य में भारी बारिश के चलते एक ग्लेशियर झील फूट गई थी और उसके बाद इलाके में बाढ़ आ गई थी. इस आपदा में करीब 180 लोगों की मौत हो गई थी. जानकारों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वतीय क्षेत्र गर्म हो रहे हैं और ऐसी घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है.
फरवरी 2021 में उत्तराखंड में अचानक आई बाढ़ में दो हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बह गए थे. पानी के तेज बहाव के साथ चट्टानें और मलबा धौलीगंगा नदी घाटी में पहुंच गया था. इस दौरान, 200 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इससे पहले, साल 2013 में भी उत्तराखंड में भारी तबाही मची थी.
तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images
विकास परियोजनाओं से बढ़ रहा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और पर्वतीय क्षेत्रों में चल रहीं विकास परियोजनाओं से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ा है. एक अध्ययन के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हो रहा है, इससे भविष्य में आपदाओं की संख्या और बढ़ सकती है.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
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अंजल प्रकाश हैदराबाद स्थित इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं और कई जलवायु रिपोर्टों के लेखक भी हैं. उन्होंने न्यूज एजेंसी एपी से कहा, "अब हम एक गर्म दुनिया में रह रहे हैं, जो औद्योगिक काल से पहले की तुलना में लगभग 1.5 डिग्री अधिक गर्म है." वे यह भी कहते हैं कि भविष्य में अत्यधिक बारिश की घटनाओं की संख्या और तीव्रता में बढ़ोतरी ही होगी.
वे बताते हैं कि तेजी से हो रहे शहरीकरण, जंगलों की कटाई और उचित योजना के बिना खड़े किए गए बुनियादी ढांचे ने बाढ़ की स्थिति और गंभीर कर दी है. उन्होंने आगे कहा, "पानी निकलने की प्राकृतिक प्रणालियां नष्ट हो गई हैं. नदियों का कुप्रबंधन हो रहा है. जब भारी बारिश और ऐसी कमजोरियां आपस में मिलती हैं तो आपदाओं का टालना नामुमकिन हो जाता है.”
भविष्य की तैयारियों पर भी सवाल
अक्षय देवरस ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में मौसम विज्ञानी हैं. उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक भारतीय मौसम प्रणालियों पर नजर रखी है. वे भी अत्यधिक बारिश की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका को स्वीकार करते हैं.
उन्होंने न्यूज एजेंसी एपी से कहा, "अगर बारिश समान रूप से बंटी हुई होती है तो आप पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता है. लेकिन मान लीजिए कि अगर पूरे महीने की बारिश, कुछ घंटों या कुछ दिनों में ही हो जाती है तो उससे समस्याएं पैदा होती हैं. फिलहाल, हम यही होता देख रहे हैं.”
पाकिस्तान में बाढ़, जिंदा बचे शख्स ने कहा "ऐसा लगा जैसे मौत घूर रही हो"
पाकिस्तान में मूसलाधार बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ ने कम-से-कम 344 लोगों की जान ले ली. अब भी कई शव मलबे में दबे हैं. मॉनसून जरूरत भी है, और कहर भी.
तस्वीर: Stringer/REUTERS
ये मौतें 48 घंटे के भीतर हुईं
बाढ़ और भारी बरसात के कारण कई घर ढह गए. मौत का बड़ा कारण यही बना. बचावकर्मियों के लिए मलबे में फंसे शवों को निकालना मुश्किल हो रहा है. प्रभावित इलाके के एक शख्स ने बताया, "मैंने जोर की एक आवाज सुनी, मानो पहाड़ खिसक रहा है. ऐसा लगा जैसे मौत मुझे घूर रही हो."
तस्वीर: SAJJAD QAYYUM/AFP
"मानो दुनिया का अंत हो"
सबसे ज्यादा 324 मौतें, खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हुई हैं. एक स्थानीय निवासी ने बाढ़ की भीषण स्थिति का ब्योरा देते हुए समाचार एजेंसी को बताया कि पानी के जोर से धरती कांप गई, "ऐसा महसूस हुआ मानो दुनिया का अंत हो." एक अन्य ग्रामीण अब्दुल खान ने कहा, "अब भी लोग मलबे के नीचे दबे हैं. जो लोग बह गए, उन्हें दरिया में नीचे की ओर खोजा जा रहा है."
तस्वीर: Hasham Ahmed/AFP
मलबे में दबे हैं शव
प्रशासन ने बताया कि करीब 2,000 बचावकर्मियों को तैनात किया गया है और मलबों से शव निकालने का काम जारी है. इसके अलावा नौ जिलों में बचाव कार्य चालू है.
तस्वीर: Naveed Ali/AP Photo/picture alliance
दूर-दराज के प्रभावित इलाकों में मदद पहुंचाना बड़ी चुनौती
खैबर पख्तूनख्वा में बचाव एजेंसी के प्रवक्ता बिलाल अहमद फैजी ने एएफपी को बताया, "भारी बरसात, कई इलाकों में मिट्टी खिसकने-ढहने, और सड़कें बह जाने के कारण मदद पहुंचाने में बहुत चुनौतियां आ रही हैं, खासतौर पर भारी मशीनरी और एंबुलेंस ले जाने में."
तस्वीर: Hasham Ahmed/AFP
लोग सुरक्षित जगह पर जाने को तैयार नहीं
बिलाल अहमद फैजी ने बताया कि सड़कें बंद होने के कारण दूर-दराज के कई प्रभावित इलाकों में बचावकर्मियां को पैदल जाना पड़ रहा है. जमीनी स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा, "बचावकर्मी, बचे हुए लोगों को सुरक्षित जगह पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन बहुत कम लोग ही जा रहे हैं, क्योंकि या तो उनके रिश्तेदारों की मौत हो गई है या उनके परिजन मलबे में फंसे हैं."
तस्वीर: Sajjad Qayyum/AFP
सड़के बह गईं, मदद पहुंचाने के लिए नए रास्तों की तलाश
खैबर पख्तूनख्वा में कई जिलों को आपदा प्रभावित घोषित किया गया है. इनमें से ही एक, बुनेर जिला के डेप्युटी कमिश्नर ने बताया कि बचावकर्मी, मजबूरन दूरस्थ इलाकों तक पहुंचने के लिए नए रास्ते तलाश रहे हैं. उन्होंने कहा, "और भी लोग मलबे के नीचे फंसे हो सकते हैं. स्थानीय नागरिक हाथ से मलबा नहीं साफ करते हैं."
आपदा में जो जिंदा बचे, उनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने अपना सबकुछ खो दिया है. बुनेर जिले के ही रहने वाले अब्दुल हयात ने बताया, "मेरी बेटी का दहेज, जिसकी कीमत करीब पांच लाख रुपये थी, बाढ़ में बह गया. हमारे पास अब पहनने के लिए कपड़े भी नहीं हैं, खाना भी बह गया."
तस्वीर: AFP/Getty Images
जलवायु परिवर्तन की मार
मौसम विभाग ने उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में भारी बारिश की संभावना के मद्देनजर चेतावनी जारी की है. भारत और पाकिस्तान, दोनों के लिए ही मॉनसून की अच्छी बारिश बहुत जरूरी है. लेकिन मॉनसून के साथ बाढ़ और जमीन खिसकने जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी आती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम अप्रत्याशित होता जा रहा है. चरम मौसमी घटनाओं की तीव्रता बढ़ती जा रही है.
तस्वीर: Hussain Ali/ZUMA/IMAGO
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इमरजेंसी इवेंट्स डेटाबेस के मुताबिक, साल 2024 में अकेले एशिया में ही 167 आपदाएं आई थीं, जो किसी भी महाद्वीप के लिए सबसे ज्यादा है. शोधकर्ताओं ने पाया कि तूफान, बाढ़, लू और भूकंप की घटनाओं के कारण 32 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ.
अक्षय देवरस कहते हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़नी तय है इसलिए "देशों को इनसे निपटने के लिए अधिक तैयारी करने की जरूरत है.” वे आगे चिंता जताते हुए कहते हैं कि फिलहाल "भारत में इस बारे में कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं है कि भविष्य में इन चीजों को कैसे संभाला जाएगा.”