भारत में चंद्रयान-3 की सफलता की कामना में प्रार्थनाएं, जलसे और लैंडिंग का प्रसारण देखने के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. कई जानकारों का मानना है कि इसरो 2019 की गलतियों से सबक ले चुका है और इस बार लैंडिंग सफल होगी.
श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-तीन के प्रक्षेपण का दृश्यतस्वीर: R.Satish BABU/AFP
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भारत में चंद्रयान-3 मिशन की सफलता की उम्मीद में लोग प्रार्थनाएं कर रहे हैं, स्कूल छात्रों को लैंडिंग का सीधा प्रसारण दिखाने का इंतजाम कर रहे हैं और अंतरिक्ष में रूचि रखने वाले लोग कार्यक्रम की सफलता का जश्न मनाने के लिए पार्टियों का आयोजन कर रहे हैं.
इसरो के मुताबिक चंद्रयान-3 आज जीएमटी के अनुसार 12 बज कर 34 मिनट पर चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतहपर उतरेगा. भारत में उस समय शाम के छह बजे के आस पास का वक्त होगा.
कई शहरों में खास स्क्रीनिंग
इसरो लैंडिंग के सीधे प्रसारण की शुरुआत शाम 5:20 पर करेगा. अगर लैंडिंग सफल रही तो यह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला धरती का पहला यान बन जाएगा. ऐसा अनुमान लगाया गया है कि चांद की सतह के इस इलाके में क्रेटरों के नीचे बर्फ की शक्ल में जमा हुआ पानी है जिसकी मदद से भविष्य में चांद पर इंसानों को बसाया जा सकता है.
इसरो ने बताया कि देश के कई इलाकों से छात्रों ने संस्था को शुभकामनाओं के ढेरों संदेश भेजे हैं. राज्यों में भी कई तरह की तैयारियां की जा रही हैं. उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने सभी स्कूलों को आदेश दिया है कि वो प्रसारण की विशेष स्क्रीनिंगआयोजित करें.
सरकार के मुताबिक, "चंद्रयान-3 की लैंडिंग एक यादगार अवसर है, जो ना सिर्फ जिज्ञासा को प्रोत्साहन देगी बल्कि हमारे युवाओं में अनुसंधान के प्रति जोश भी भरेगी." गुजरात में विज्ञान और तकनीकी परिषद ने बड़े पर्दे पर लैंडिंग के प्रसारण को देखने के लिए करीब 2,000 स्कूली छात्रों को आमंत्रित किया है.
अंतरिक्ष में रूचि बढ़ाने का मौका
परिषद् ने एक विशेष सत्र का भी आयोजन किया है जिसमें इसरो के वैज्ञानिकइस मिशन के बारे में बात करेंगे. पश्चिम बंगाल सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने कोलकाता में मिशन का जश्न मनाने के लिए "साइंस पार्टी" का आयोजन किया है, जहां लैंडिंग का प्रसारण दिखाया जाएगा.
भारत-रूस के साथ-साथ चांद पर पहुंचने की कितनी संभावना?
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मुंबई और वाराणसी में मंगलवार को मिशन की सफलता के लिए पूजा का आयोजन किया गया. बेंगलुरु में उद्यमी और अंतरिक्ष में रुचि रखने वालों के एक समूह के संस्थापक श्रीकांत चुंदुरी ने बताया कि उन्होंने शहर के एक लोकप्रिय रेस्तरां में प्रसारण देखने के लिए एक "वॉच पार्टी" का आयोजन किया है.
उन्होंने रॉयटर्स को बताया, "अगर हमें अंतरिक्ष में रुचि रखने वालों का एक समुदाय बनाना हैतो लोगों को साथ लाने के लिए इस लैंडिंग से ज्यादा प्रभावशाली और कुछ नहीं हो सकता."
सीके/एए (रॉयटर्स)
भारत ने ऐसे अंतरिक्ष के सपने को हकीकत में बदला
'नंगे भूखों का देश आसमान को छूने चला है' - भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर पश्चिम के कुछ देशों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत ने ऐसे आलोचकों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisation
1962
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विक्रम साराभाई के अगुवाई में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की. संस्थापकों में साराभाई के साथ वैज्ञानिक केआर रमणनाथन भी थे.
तस्वीर: Keystone/Getty Images
1963
केरल के थुंबा गांव में पहला रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र बनाने की तैयारी हुई. विषुवत रेखा के करीब होने के वजह से इस जगह का चुनाव किया गया. लेकिन बिल्कुल उपयुक्त जमीन पर सेंट मैरी माग्देलेने चर्च था. साराभाई ने चर्च के पादरी से बातचीत की. अंतरिक्ष में भारत का सपना पूरा करने के लिए चर्च ने भी अपनी जमीन विज्ञान के नाम कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1963
चर्च की जमीन पर बने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉचिंग स्टेशन से ही भारत ने पहली बार ऊपरी वायुमंडल तक जाने वाला रॉकेट लॉन्च किया. यह भारत के अंतरिक्ष इतिहास का पहला प्रक्षेपण था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. D´Souza
1969
अंतरिक्ष रिसर्च को भारत के विकास से जोड़ने के इरादे से एक खास संगठन इसरो की स्थापना की गई. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना में भी विक्रम साराभाई का अहम योगदान था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1971
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्पेस सेंटर की स्थापना की गई. लेकिन इसी साल विक्रम साराभाई का निधन भी हुआ. उनके निधन के बाद मशहूर गणितज्ञ सतीश धवन इसरो के चैयरमैन बने. धवन की याद में अब श्रीहरिकोटा के सेंटर को सतीश धवन स्पेस सेंटर कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ISRO
1975
19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में लॉन्च किया. पूरी तरह भारत में ही डिजायन की गई इस सैटेलाइट को रूस के सहयोग से अंतरिक्ष में भेजा गया. भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में यह घटना भी मील का पत्थर है.
तस्वीर: ISRO
1979
भारत ने पहली एक्सपेरिमेंटल रिमोट-सेंसिंग सैटेलाइट भास्कर-1 अंतरिक्ष में भेजी. इसके द्वारा भेजी गई तस्वीरों से जंगलों और मौसम के बारे में जानकारियां मिली.
तस्वीर: picture-alliance/AP
1980
भारत ने पहली बार अंतरिक्ष तक जाने वाले रॉकेट सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (एसएलवी-3) का परीक्षण किया. इसके सफल परीक्षण के बाद भारत खुद अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम हो गया. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ही इस प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. 1980 में इसी रॉकेट की मदद से सैटेलाइट रोहिणी को अंतरिक्ष में भेजा गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Kodikara
1984
एक संयुक्त मानव मिशन के तहत सोवियत संघ और भारत ने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा. इसी अभियान के जरिए राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट बने. शर्मा ने सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन में आठ दिन बिताए.
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images
1993
भारत ने बेहद भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी बनाया. 1994 के बाद से अब तक पीएसएलवी भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बना रहा. इसने दर्जनों सैटेलाइटें और चंद्रयान व मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम दिया.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times
1999
पीएसएलवी लॉन्च व्हीकल की मदद से भारत ने विदेशी सैटेलाइटों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करना शुरू किया. भारत अब तक 33 देशों की 200 से ज्यादा सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran
2008
इस मोड़ तक आते आते भारत अंतरिक्ष के मामले में बड़ी शक्ति बन गया. देश ने संचार, प्रसारण, शोध और सामरिक उद्देश्यों के लिए सैटेलाइटों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया. 2008 में चांद को छूने की ख्वाहिश में भारत ने भरोसेमंद पीएसएलवी से चंद्रयान-1 भेजा. यह भी ऐतिहासिक सफलता थी.
तस्वीर: picture alliance/Indian Space Research Organisati/ISRO
2014
जनवरी 2014 में भारत ने पहले अंतरग्रहीय मिशन का आगाज करते हुए मंगलयान भेजा. सितंबर में मंगल की कक्षा में पहुंचे मंगलयान ने अंतरिक्ष में भारत की कामयाबी का एक और झंडा गाड़ा.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Sajjad Hussain
2017
एक ही रॉकेट से 104 सैटेलाइटों की उनकी कक्षा में स्थापित कर भारत ने सबको चौंका दिया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/Manjunath Kiran
2018
15 जुलाई को भारत ने चंद्रमा के लिए अपना दूसरा मानवरहित मिशन चंद्रयान-2 भेजा. चंद्रयान-1 के जरिए दुनिया को चांद पर पानी होने के ठोस सबूत मिले. चंद्रयान-2 अब रिसर्च को और गहराई में ले जाएगा.