मेडिकल कोर्स में प्रवेश के लिए पूरे देश में एक परीक्षा कराने की योजना फिलहाल टल गई है. लेकिन विवाद और विचार जारी है.
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मेडिकल की पढ़ाई के लिए पूरे देश में एक ही प्रवेश परीक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति फिलहाल टल गई है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस आशय की अधिसूचना पर हस्तारक्षर कर नीट को एक साल तक लागू ना करने के केन्द्र सरकार के प्रस्ताव को मान्यता दे दी.
क्या है विवाद
नीट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की वजह से विवाद गहरा गया था जिसमें अदालत ने देश भर में निजी और सरकारी सभी मेडिकल कालेजों में एक ही प्रवेश परीक्षा कराने का आदेश दिया था। राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा (नीट) का 15 राज्यों ने विरोध कर केन्द्र सरकार को इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने पर रोक लगाने के लिए विवश कर दिया।
दरअसल राज्यों का विरोध अगले सत्र के लिए होने वाली परीक्षा को नीट में शामिल करने को लेकर था। राज्यों का कहना है कि परीक्षा को लेकर सारी तैयारियां हो गई हैं, यहां तक कि आवेदन प्रक्रिया भी पूरी होने के बाद परीक्षा रद्द करना व्यवहारिक नहीं है। क्योंकि इसका सीधा असर सत्र को शुरू करने पर पड़ेगा।
समाधान
केन्द्र सरकार ने नीट को तत्काल प्रभाव से लागू करने पर अगला सत्र देर से शुरू होने की समस्या को व्यवहारिक मानते हुए इसे अगले साल से लागू करने का फैसला किया। इसके लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट का आदेश मुल्तवी करने के लिए खासतौर पर अध्यादेश जारी करने की जरूरत पड़ी। अध्यादेश के मुताबिक 24 जुलाई 2016 तक नीट प्रभावहीन माना जाएगा। इस अवधि में सभी राज्यों को यहां तक कि निजी मेडिकल कालेजों को अगले सत्र के लिए दाखिला प्रक्रिया पूरी करनी होगी।
उपयोगिता
नीट की उपयोगिता को लेकर किसी तरह का संदेह नहीं है। विवाद सिर्फ इसे लागू करने के समय को लेकर था। जिसे अध्यादेश के माध्यम से दूर कर दिया गया हे। हालांकि दिल्ली सहित कुछ राज्य इसे तत्काल प्रभाव से लागू करने की वकालत कर रहे हैं। दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने तो इसे शिक्षा माफिया से जोड़कर राष्ट्रपति से अध्यादेश पर दस्तखत नहीं करने तक की अपील कर डाली। इनकी दलील है कि मेडिकल परीक्षा को लेकर देश भर के निजी मेडिकल कॉलेज भारी भरकम डोनेशन लेकर सीटें भरते हैं। इन्हें पेमेंट सीट के नाम पर भरा जाता है जबकि शिक्षा माफिया सिर्फ निजी कॉलेजों में ही नहीं सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी दखल रखते हैं। माफिया तंत्र राज्य सरकारों द्वारा आयोजित मेडिकल प्रवेश परीक्षा में पेपर लीक कराने से लेकर फर्जी दाखिले कराने तक अपना प्रभावी दखल रखते हैं। इसकी वजह से मेडिकल कालेजों में पैसे के बल पर अयोग्य छात्रों की पहुंच बढ़ने की शिकायतों को सही पाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने एकल परीक्षा को ही एकमात्र समाधान बताया।
समस्या की गंभीरता
समस्या की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नकल माफिया को रोकने के लिए राज्य सरकारों और केन्द्रीय मेडिकल बोर्ड की प्रवेश परीक्षा में छात्रों को कलम तक ले जाने को प्रतिबंधित कर दिया गया। पिछले साल प्रवेश परीक्षा के दौरान पेपर लीक करने वालों और नकल कराने वालों को रोकने के लिए की गई सख्ती का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ा। आलम यह हो गया कि परीक्षा केन्द्र पर ही छात्रों को कलम मुहैया कराई गई। यहां तक कि कुछ राज्यों में घड़ी पहन कर जाने पर भी रोक लग गई।
समस्या के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही अंतत: पहल करनी पड़ी। कोर्ट ने देश भर के सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए एक ही मेडिकल प्रवेश परीक्षा कराने की व्यवस्था को तत्काल प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया। केन्द्र सरकार ने इसे मंजूरी दे दी लेकिन राज्यों के विरोध को देखते हुए इसे अगले सत्र तक के लिए टालना पड़ा। नई व्यवस्था के तहत राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा की तर्ज पर एक केन्द्रीय एजेंसी को सभी कालेजों को अपनी सीटों की संख्या बतानी होगी। केन्द्र और राज्य सरकारों तथा निजी मेडिकल कॉलेजों की कुल सीटों के लिए वह एजेंसी देशव्यापी स्तर पर परीक्षा कराएगी।
क्या उच्च शिक्षा केवल अमीरों के लिए?
दुनिया भर में 10 से 24 साल की उम्र के सबसे अधिक युवाओं वाले देश भारत में उच्च शिक्षा अब भी गरीबों की पहुंच से दूर लगती है. फिलहाल विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शिक्षा व्यवस्था में सबकी हिस्सेदारी नहीं है.
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भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने मेडिकल और इंजीनियरिंग के और भी ज्यादा उत्कृष्ट संस्थान शुरू करने की घोषणा की है. आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थानों के केन्द्र जम्मू कश्मीर, बिहार, हिमाचल प्रदेश और असम में भी खुलने हैं. लेकिन बुनियादी ढांचे और फैकल्टी की कमी की चुनौतियां हैं. यहां सीट मिल भी जाए तो फीस काफी ऊंची है.
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देश के कई उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में भी फिलहाल 30 से 40 फीसदी शिक्षकों की सीटें खाली पड़ी हैं. नासकॉम की रिपोर्ट दिखाती है कि डिग्री ले लेने के बाद भी केवल 25 फीसदी टेक्निकल ग्रेजुएट और लगभग 15 प्रतिशत अन्य स्नातक आईटी और संबंधित क्षेत्र में काम करने लायक होते हैं.
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कोटा, राजस्थान में कई मध्यमवर्गीय परिवारों के लोग अपने बच्चों को आईआईटी और मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए भेजते हैं. महंगे कोचिंग सेंटरों में बड़ी बड़ी फीसें देकर वे बच्चों को आधुनिक युग के प्रतियोगी रोजगार बाजार के लिए तैयार करना चाहते हैं. इस तरह से गरीब बच्चे पहले ही इस प्रतियोगिता में बाहर निकल जाते हैं.
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भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने फ्रांस दौरे पर युवा भारतीय छात्रों के साथ सेल्फी लेते हुए. सक्षम छात्र अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा पाने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और तमाम दूसरे देशों का रूख कर रहे हैं. लेकिन गरीब परिवारों के बच्चे ये सपना नहीं देख सकते. भारत में अब भी कुछ ही संस्थानों को विश्वस्तरीय क्वालिटी की मान्यता प्राप्त है.
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मार्च 2015 में पूरी दुनिया में भारत के बिहार राज्य की यह तस्वीर दिखाई गई और नकल कराते दिखते लोगों की भारी आलोचना भी हुई. यह नजारा हाजीपुर के एक स्कूल में 10वीं की बोर्ड परीक्षा का था. जाहिर है कि पूरे देश में शिक्षा के स्तर को इस एक तस्वीर से आंकना सही नहीं होगा.
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राजस्थान के एक गांव की कक्षा में पढ़ते बच्चे. 2030 तक करीब 14 करोड़ लोग कॉलेज जाने की उम्र में होने का अनुमान है, जिसका अर्थ हुआ कि विश्व के हर चार में से एक ग्रेजुएट भारत के शिक्षा तंत्र से ही निकला होगा. कई विशेषज्ञ शिक्षा में एक जेनेरिक मॉडल के बजाए सीखने के रुझान और क्षमताओं पर आधारित शिक्षा दिए जाने का सुझाव देते हैं.
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उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी जैसे दल खुद को दलित समुदाय का प्रतिनिधि और कल्याणकर्ता बताते रहे हैं. चुनावी रैलियों में दलित समुदाय की ओर से पार्टी के समर्थन में नारे लगवाना एक बात है, लेकिन सत्ता में आने पर उनके उत्थान और विकास के लिए जरूरी शिक्षा और रोजगार के मौके दिलाना बिल्कुल दूसरी बात.
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भारत के "मिसाइल मैन" कहे जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम देश में उच्च शिक्षा के पूरे ढांचे में "संपूर्ण" बदलाव लाने की वकालत करते थे. उनका मानना था कि युवाओं में ऐसे कौशल विकसित किए जाएं जो भविष्य की चुनौतियों से निपटने में मददगार हों. इसमें एक और पहलू इसे सस्ता बनाना और देश की गरीब आबादी की पहुंच में लाना भी होगा.
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सवाल अभी भी
हालांकि सुनने में अभी यह व्यवस्था भले ही अच्छी लग रही हो लेकिन सवाल इसकी कामयाबी को लेकर भी उठने लगे हैं। क्योंकि नेट की तर्ज पर लागू होने वाले नीट को देशव्यापाी माफिया तंत्र से निपटना होगा जो पहले से ही राज्य सरकारों के भ्रष्टाचार पर पोषित होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि परीक्षा भले ही केन्द्रीय एजेंसी कराए लेकिन राज्यों में इसके आयोजन और निगरानी की जिम्मेदारी उन्हीं राज्य सरकारों पर है जिनके आश्रय पर माफियातंत्र की जड़ें गहरी हो चुकी है। ऐसे में अगले साल नीट के तहत पहली प्रवेश परीक्षा की कामयाबी पर ही नई व्यवस्था का भविष्य टिका हुआ है।
स्कूल में पीछे, जिंदगी में अव्वल
अच्छे स्कूल और कॉलेज से पढ़ाई पूरी करना सफलता की कोई गारंटी नहीं है. मौलिक विचार, कल्पनाशीलता, मेहनत और लगन हो तो इंसान बुलंदियों को छू सकता है. एक नजर स्कूल में नाकाम और जिंदगी में अव्वल रहने वाली हस्तियों पर.
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अल्बर्ट आइनस्टाइन
सापेक्षता समेत कई बड़े सिद्धांत देने वाले आइनस्टाइन ने 15 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया. साल भर बाद उन्होंने स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट की प्रवेश परीक्षा दी, जिसमें नाकामी हाथ लगी. इसके बाद आइनस्टाइन ऐसे स्कूल वापस लौटे जहां कल्पनाशीलता को समीकरण रटने से ज्यादा महत्व दिया जाता था.
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थॉमस एडिसन
बिजली का बल्ब, फोनोग्राम और मोशन पिक्चर कैमरा जैसी क्रांतिकारी मशीनें बनाने वाले एडिसन के नाम 1,000 से ज्यादा पेटेंट हैं. बीमार रहने के कारण उन्होंने काफी देर से स्कूल जाना शुरू किया. स्कूल ने भी तीन महीने बाद ही उन्हें बाहर निकाल दिया. एडिसन की मां खुद एक टीचर थीं, उन्होंने अपने बेटे को घर पर ही पढ़ाया.
तस्वीर: picture-alliance/United Archives/TopFoto
वॉल्ट डिज्नी
वॉल्ट डिज्नी दिन में स्कूल जाते और रात में शिकागो की कला अकादमी. यह सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चला. 16 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया. फर्जी बर्थ सर्टीफिकेट बनाकर वह अमेरिका से फ्रांस पहुंचे और रेड क्रॉस की एंबुलेंस चलाने लगे. एंबुलेंस में कार्टून के चित्र भरे पड़े थे. यहीं से वॉल्ट डिज्नी को कार्टूनों का आइडिया आया. देखते देखते उन्होंने सिनेमा में डिज्नी साम्राज्य खड़ा कर दिया.
कॉमेडी के सर्वकालीन महान अदाकार माने जाने वाले चार्ली चैप्लिन ने भी 13 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया. मां-बाप के निधन के बाद परिवार का पेट पालने के लिए वो स्टेज शो करने लगे. स्टेज शो में उन्हें मसखरे की भूमिका मिलती. लेकिन यही भूमिका धीरे धीरे उन्हें शिखर पर ले गई.
तस्वीर: Roy Export Company Establishment
चार्ल्स डिकेंस
अंग्रेजी के महान लेखकों में शुमार चार्ल्स डिकेंस के पिता को कर्ज के कारण जेल हो गई. घर का खर्च चलाने के लिए 12 साल के डिकेंस ने स्कूल छोड़ दिया और बूट ब्लैकिंग फैक्ट्री में 10 घंटे रोज की नौकरी शुरू कर दी. इसके बाद वो कई नौकरियों और अनुभवों से गुजरे और समाज के गहरे विश्लेषण ने उन्हें कहानीकार बना दिया.
तस्वीर: picture-alliance/empics
बेंजामिन फ्रैंकलिन
बेंजामिन फ्रैंकलिन की राजनीति, कूटनीति, लेखन, प्रकाशन, विज्ञान और अमेरिका की आजादी में अहम भूमिका रही. वह अपने परिवार के 15वें बच्चे थे. गरीबी के चलते 10 साल की उम्र में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और प्रिंटिंग में पिता व भाई का हाथ बंटाने लगे.
तस्वीर: Getty Images
हेनरी फोर्ड
फोर्ड की कारें तो आपने देखी ही होंगी, इनके जनक हेनरी फोर्ड हैं. उन्हें आधुनिक उद्योगों का जनक भी कहा जाता है. 16 साल की उम्र में फोर्ड ने स्कूल छोड़ दिया. खाली वक्त में वह घड़ियों के पुर्जे खोलते और जोड़ते रहे. बाद में फोर्ड ने ऑटोमोबाइल उ्द्योग में पहली बार एसेंबली लाइन इस्तेमाल की.
तस्वीर: Topical Press Agency/Getty Images
बिल गेट्स
हावर्ड यूनिवर्सिटी के सबसे मशहूर ड्रॉपआउट छात्र होने का श्रेय माइक्रोसॉफ्ट के जनक बिल गेट्स को जाता है. कॉलेज की पढ़ाई छोड़ने के दो साल बाद गेट्स ने अपने बचपन के मित्र पॉल एलन (तस्वीर में बाएं) के साथ माइक्रोसॉफ्ट की स्थापना की. दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में शुमार गेट्स ने अपने सॉफ्टवेयरों को जरिये कंप्यूटर को कैलकुलेटर से आगे बढ़ाया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Microsoft
स्टीव जॉब्स
आईफोन, आईपॉड और मैकबुक जैसी मशीनें बनाने वाले एप्पल के सह संस्थापक जॉब्स ने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी. इस दौरान उन्होंने कला की कक्षाओं में बिना दाखिले के जाना शुरू कर दिया. इंजीनियरिंग से प्यार करने वाले जॉब्स के मुताबिक कला की कक्षा ने उन्हें अद्वितीय खूबसूरती की परिभाषा सिखाई.
तस्वीर: Flickr/sa-by-Ben Stanfield
अजीम प्रेमजी
दयालु और दिलदार भारतीय कारोबारियों में गिने जाने वाले अजीम प्रेमजी से 21 की उम्र में कॉलेज छोड़ दिया. प्रेमजी ने अपनी कंपनी विप्रो शुरू की. आज विप्रो की कीमत 11 अरब डॉलर से ज्यादा है. प्रेमजी अपने आधे शेयर दान करने का एलान कर चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh Nv
कर्नल हारलैंड सैंडर्स
हारलैंड सैंडर्स की उम्र सिर्फ छह साल थी जब उनके पिता की मौत हुई. मां दिन भर काम करती और साथ ही पूरे परिवार के लिए खाना भी बनाती. परिवार चलाने के लिए उन्होंने स्कूल के बजाए कई काम करने शुरू किये. इसी दौरान उन्हें नौकरीपेशा लोगों को फ्राइड चिकन बेचने का आइडिया आया. आज दुनिया भर में उनके आउटलेट्स केएफसी (कनटकी फ्राइड चिकन) के नाम से जाने जाते हैं.
तस्वीर: AP
रिचर्ड ब्रैनसन
डिसलेक्सिया के रोगी ब्रैनसन को पढ़ाई में काफी परेशानी होती थी. 16 साल में स्कूल छोड़ वो लंदन आए जहां उन्होंने कारोबार के गुर सीखे. वर्जिन अटलांटिक एयरवेज, वर्जिन रिकॉर्ड्स, वर्जिन मोबाइल जैसे कंपनियां खड़ी करने के बाद अब वह आम लोगों के लिए अंतरिक्ष यात्रा मुमकिन करने की तैयारी कर रहे हैं.
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जेम्स कैमरन
अवतार और टाइटैनिक जैसी सिनेमा जगत की सबसे बड़ी फिल्में बनाने वाले निर्देशक जेम्स कैमरन भी कैलिफोर्निया में अपनी फिजिक्स की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. उन्होंने कॉलेज छोड़ा, एक वेटर से शादी की और रोजी रोटी के लिए ट्रक चलाने लगे. 1977 में उन्होंने स्टार वॉर्स फिल्म देखी और वहीं से वह रुपहले पर्दे की ओर खिंचे चले आए.
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कपिल देव
क्रिकेट में वेस्ट इंडीज की बादशाहत खत्म करने और पहली बार भारत को विश्व कप दिलाने वाले कपिल देव भी स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. भारत के बेहतरीन ऑल राउंडरों में गिने जाने वाले कपिल को हालांकि इस बात का आज भी मलाल है.
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राजकुमारी डायना
डायना स्पेंसर ने 16 साल की उम्र में ब्रिटेन छोड़ दिया और स्विट्जरलैंड के एक स्कूल में दाखिला लिया. वहां भी वह पढ़ाई पूरी नहीं कर सकीं. वह गायिकी और बेले डांस की शौकीन थी. बाद में ब्रिटेन लौटकर उन्होंने एक डे केयर सेंटर में नौकरी की, जहां उनकी मुलाकात राजकुमार चार्ल्स से हुई. शादी के बाद डायना राजकुमारी बन गईं. उनकी खूबसूरती और दरियादिली आज भी लोगों के जेहन में है.
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सचिन तेंदुलकर
क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में शुमार सचिन तेंदुलकर ने 10वीं के बाद स्कूली पढ़ाई छोड़ दी. बेहतरीन बल्लेबाजी के चलते 16 साल की उम्र में वो भारतीय टीम के सदस्य बने और इसके बाद तो उनके बल्ले से कीर्तिमान बरसते चले गए.
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मार्क जकरबर्ग
फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग ने भी कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया. कॉलेज के दिनों में जकरबर्ग एक लड़की को खोजना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने एक सोशल नेटवर्किंग साइट बनाई. दुनिया आज इसे फेसबुक के नाम से जानती हैं. फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक जकरबर्ग दुनिया के सबसे अमीर युवा हैं. आज दुनिया भर में फेसबुक के एक अरब से ज्यादा यूजर हैं.
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लेडी गागा
उनका असली नाम स्टेफनी योआने एंजेलिना जर्मनोटा है. न्यूयॉर्क में आर्ट्स की पढ़ाई करने वाली स्टेफानी ने संगीत उद्योग में अपना करियर बनाने के लिए कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया. वह न्यूयॉर्क के क्लबों में परफॉर्म करने लगीं. 20 साल की उम्र में उन्होंने इंटरस्कोप रिकॉर्ड्स के साथ करार किया. आज लेडी गागा दुनिया के सबसे मशहूर गायकों में गिनी जाती हैं.