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राजनीतिमाल्दीव

भारत और चीन से रिश्तों पर टिका मालदीव का चुनाव

२९ सितम्बर २०२३

मालदीव में शनिवार को राष्ट्रपति के लिए निर्णायक मतदान है. चुनाव का नतीजा भारत और चीन से मालदीव के रिश्तों को एक बार फिर परिभाषित करेगा. दोनों देशों में मालदीव पर अपने असर को लेकर काफी होड़ रहती है.

मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्णायक दौर का मतदान
मालदीव में चुनावतस्वीर: MOHAMED AFRAH/AFP

एशिया में करीब 1,200 छोटे द्वीपों से मिल कर बना मालदीव सैलानियों को खूब भाता है और यहां के बीच दुनिया के अमीरों और मशहूर हस्तियों की पसंदीदा ठिकाना है. हिंद महासागर के मध्य में यह रणनीतिक लिहाज से भी काफी अहम जगह पर मौजूद है जो पूरब और पश्चिम के बीच कारोबारी जहाजों की आवाजाही का प्रमुख रास्ता है.

मालदीव के चुनाव में आगे चल रहे मोहम्मद मुइज्जु की पार्टी ने पिछले कार्यकाल में चीन से नजदीकियां काफी ज्यादा बढ़ा ली. चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत बुनियादी ढांचे के विकास के लिए खूब सारा धन बटोरा गया. 45 साल के मुइज्जु माले के मेयर रहे हैं. पिछली सरकार में मालदीव के मुख्य एयरपोर्ट से राजधानी को जोड़ने की 20 करोड़ डॉलर की चीन समर्थित परियोजना का नेतृत्व उन्हीं के हाथ में था. 

मालदीव में एक बोट पर बैठ कर समंदर का लुत्फ लेती महिलातस्वीर: Nikolai Okhitin/Zoonar/picture alliance

कांटे की टक्कर

सितंबर की शुरुआत में चुनाव के पहले दौर में उन्हें 46 फीसदी वोट मिले. दूसरी तरफ वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को 39 फीसदी वोट ही मिल सके. सोलिह ने भारत से रिश्तों को सुधारने में अपना ध्यान लगाया था. पूर्व विदेश मंत्री अहमद शाहिद का कहना है कि दोनों उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर है. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा,"मालदीव का मूड बता रहा है कि दोनों उम्मीदवारों के बीच फर्क घट रहा है, यह बहुत करीबी मुकाबला होगा."

मालदीव में बढ़ता 'इंडिया आउट' अभियान

2018 में सोलिह ने अपने पूर्ववर्ती अब्दुल्लाह यामीन को हरा कर जीत हासिल की थी. मुइज्जु के सहयोगी यामीन फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोपों में 11 साल के कैद की सजा काट रहे हैं. उन्हें निरंकुश नेता भी कहा जाता है. सोलिह ने आरोप लगाया था कि यामीन ने बुनियादी ढांचे के लिए भारी कर्ज लेकर देश को चीनी कर्जों के दलदल में फंसा दिया. 

चुनावी झंडों से सजी माले की एक सड़कतस्वीर: MOHAMED AFRAH/AFP

भारत की चिंता

यामीन के चीन की ओर बढ़ते रुझान को भारत के कान खड़े हो गए. भारत हिंद महासागर में पश्चिम की ओर चीन की बढ़ती आक्रामक नीतियों का पहले ही सामना कर रहा है. चीन के इसी रुख को चुनौती देने के लिए जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने मिल कर क्वाड का गठन भी किया है. 61 साल के सोलिह ने सत्ता में आने के बाद भारत से रिश्ते सुधारने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए. शपथग्रहण में ना सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित किया गया बल्कि मालदीव मे भारतीय सेना की मौजूदगी को बढ़ाने की भी मंजूरी मिली.

9 सितंबर को पहले दौर में पिछड़ने के बाद सोलिह ने घर जैसे स्थानीय मुद्दों को लेकर रैलियां की हैं. दूसरी तरफ मुइज्जु की प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) ने कूटनीति पर ध्यान दिया है. वह सोलिह के भारत के प्रति झुकाव को निशाना बना रहे हैं. पीपीएम और सामाजिक कार्यकर्ताओं के समूह सड़कों पर प्रदर्शन के जरिए मुस्लिम देश में भारत के दखल को घटाने की मांग कर रहे हैं.

मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Jayawardena

भारत चीन के बीच संतुलन

शाहिद का कहना है कि भारत के प्रति लोगों का गुस्सा वास्तव में सोलिह प्रशासन के बारे में समझी गई या फिर वास्तविक भ्रष्टाचार से निराशा है. उन्होंने यह भी कहा कि अगली सरकार की स्थिरता इन दोनों ताकतवर देशों के साथ मालदीव के रिश्तों को संतुलित कर के चलने पर निर्भर करेगी. शाहिद ने कहा, "अगले राष्ट्रपति को भारत और चीन के हितों के बीच संतुलन बिठाना होगा. आप भारत को ठुकरा कर नहीं चल सकते."

मुइज्जु के सहयोगियों का कहना है कि उनका चुनाव देश को विदेशी दखलंदाजी से छुटकारा दिलाएगा. दुनया मौमून पूर्व कैबिनेट मंत्री हैं और मुइज्जु के साथ काम कर चुकी हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि उन्होंने "देश की आजादी और संप्रभुता को" बचाने की कोशिशों में उनका समर्थन किया है. हालांकि मुइज्जु अपने मेंटर यामीन की तरह ही चीन के प्रति प्रेम को खुले रुप से जाहिर करते हैं. पिछले साल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के एक प्रतिनिधि के साथ ऑनलाइन मीटिंग में उन्होंने कहा कि अगर पीपीएम सत्ता में वापस आई तो, "दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों का एक और अध्याय लिखा जाएगा."

एनआर/ओएसजे (एएफपी)

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