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कोरोना ने गिराए मुंबई में प्रॉपर्टी के दाम

अपूर्वा अग्रवाल
४ जुलाई २०२०

दुनिया के सबसे महंगे शहरों में शुमार मुंबई में प्रॉपर्टी की कीमतें लगातार घट रही हैं. लेकिन इस गिरावट से ना तो प्रापर्टी डीलरों को, ना ही मकानमालिकों को और ना ही किरायेदारों को फायदा हो रहा है.

Indien Mumbia | Tourismus wird wieder zurückkommen
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ZUMA/Ashish Vaishnav

रचना केसरी पिछले साल दिसंबर से मुंबई में अपने लिए घर की तलाश कर रही हैं. फिल्म इंडस्ट्री में बतौर फ्रीलांसर काम करने वाली रचना दो बेडरूम फ्लैट को किराये पर लेना चाहती थीं और ब्रोकरों के जरिए लाॅकडाउन के पहले तक उन्होंने कई फ्लैट भी देखे. तमाम मशक्कत के बावजूद मुंबई के सबसे पाॅश इलाके बांद्रा और जुहू में उन्हें 80-90 हजार रुपये के मासिक किराये में कोई फ्लैट नहीं मिला. कोविड-19 के चलते प्रॉपर्टी की कीमतों में गिरावट आई, तो लगने लगा कि रचना जैसे लोगों की मुश्किलें आसान हो सकती हैं लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.

किरायेदारों के लिए अब फ्लैट किराये पर लेना और भी मुश्किल भरा हो गया है. रियल एस्टेट ब्रोकर बताते हैं कि बांद्रा में डेढ़ लाख से लेकर दस लाख रुपये महीने पर अपार्टमेंट मिलते रहे हैं लेकिन इस साल कोई धंधा नहीं हुआ. जो फ्लैट पहले डेढ़ लाख का था उसका किराया घटकर 90 हजार से एक लाख रुपये महीने तक तो आ गया है लेकिन अब मकानमालिक किराये पर घर देने में घबरा रहे हैं. वे ऐसे ही लोगों के साथ रेंट एग्रीमेंट करना चाहते हैं जिनके पास एक नियमित मासिक आमदनी आती हो और भविष्य में नौकरी जाने का खतरा भी कम हो.

पूरी रियल एस्टेट इंडस्ट्री प्रभावित

रियल एस्टेट फर्म 360 रियलटर्स में बतौर सीनियर प्रोडक्ट मैनेजर काम करने वाले गौरव सिंह बताते हैं, "मुंबई में रेजिडेंशियल प्राॅपर्टी के किराये 20-25 फीसदी तक घटे हैं और यह हाल बांद्रा जैसे पॉश इलाकों के साथ-साथ उन इलाकों का भी है जहां प्रवासी मजदूर रहा करते थे." लेकिन जानकार इसे एक अस्थायी दौर भी बताते हैं इसे जल्द निकल जाना चाहिए. 

कोविड ने ना सिर्फ किरायेदारों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं, परेशान होने वाले लोगों की कतार में वे भी शामिल हैं जो इस साल मकान मालिक बनने का सपना देख रहे थे. लाॅकडाउन और प्रवासी मजदूरों के पलायन के चलते सभी निर्माण कार्य ठप्प पड़ गए हैं. ऐसे में डेवलपर्स तय तारीखों पर अपने प्रोजेक्ट पूरे नहीं कर पा रहे हैं. वे लोग जो इस साल अपना घर पाने की उम्मीद कर रहे थे, उनका इंतजार भी बढ़ गया है.

एनाराॅक प्राॅपर्टी कंसल्टेंट कंपनी के चैयरमेन अनुज पुरी कहते हैं, "घर खरीदारों को नई स्थितियों के साथ तालमेल बनाना होगा. प्राॅपर्टी डेवलपर्स की ओर से साल 2020 तक डिलिवर की जाने वाली तकरीबन 4.66 लाख यूनिट और 2021 तक डिलिवर होने वाली अन्य 4.12 लाख यूनिटों की डिलिवरी अब टल गई हैं. वहीं प्राॅपर्टी डेवलपर्स के सामने पुरानी इवेंटरी को खाली करने की भी चुनौती है."

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ऐसे ही निकल गया आधा साल

एनाराॅक कंसल्टेंसी के सर्वे मुताबिक 2020 के पहले छह महीनों में 2019 के आखिरी छह महीनों के मुकाबले नए प्रोजेक्टों में 56 फीसदी की कमी आई. नए प्रोजेक्ट लॉन्च के मामलों में 2020 की दूसरी तिमाही में पिछले सात सालों की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है. कमर्शियल और रिटेल स्पेस में सक्रिय रीच ग्रुप  के एमडी हरिंदर सिंह ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "कोविड के चलते सबसे ज्यादा नुकसान रिटेल, ऑफिस स्पेस और लक्जरी हाउसिंग सेग्मेंट को हुआ है." वर्क फ्रॉम होम के नए ट्रेंड ने कमर्शियल और ऑफिस स्पेस प्रोवाइडर्स के लिए बाजार में बने रहना मुश्किल कर दिया है.

कब तक सुधरेंगे हालात?

जानकार मानते हैं कि मौजूदा वक्त रियल एस्टेट में निवेश के लिए अच्छा साबित हो सकता है. मौजूदा दौर में डेवलपर्स अपनी पुरानी इनवेंटरी खाली करना चाहते हैं. ऐसे में ग्राहकों को प्रॉपर्टी कम कीमतों पर मिल सकती है. हरिंदर सिंह के मुताबिक, "अब तक जो डेवलपर्स कच्चा माल अन्य सप्लाई चीन से लेते थे, अब उन्होंने भारत में सप्लायर्स की तलाश शुरू कर दी है. कच्चे माल की आपूर्ति से ना सिर्फ काम में तेजी आएगी, बल्कि निर्माण कार्य से जुड़े अन्य क्षेत्रों में भी रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे.” 

जून 2020 में नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल की बैठक में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने डेवलपर्स को बाजार में सुधार का इंतजार करने के बजाय निर्माण कार्य पूरा कर प्रोजेक्ट को कम और सही कीमतों में बेचने का सुझाव दिया था. वहीं डेवलपर्स का मानना है कि बाजार को सरकार की ओर से बड़े सुधारों की आवश्यकता है. इसके साथ ही हर स्तर पर तकनीक का अधिकतम इस्तेमाल भविष्य के लिए अच्छा हो सकता है.

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