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इतिहासजर्मनी

नाजी युद्ध के अपराधियों पर कैसे चला मुकदमा

रायना ब्रॉयर | सुजाने कॉर्ड्स
२१ नवम्बर २०२५

जब मित्र देशों ने न्यूरेमबर्ग में वरिष्ठ नाजी नेताओं पर मुकदमा चलाया, तो यह पहली बार था कि युद्ध अपराधों के लिए सिर्फ देशों को नहीं, बल्कि लोगों को भी जिम्मेदार ठहराया गया.

न्यूरेमबर्ग कार्रवाई - 1945 से 1946 तक
न्यूरेमबर्ग सुनवाई के दौरान अदालत में अपने खिलाफ आरोप सुनते हरमन विल्हेल्म गोरिंग, रुडोल्फ हेस और योआखिम फॉन रिबेनट्रोपतस्वीर: Keystone Archives/Heritage-Imags/picture-alliance

"मैं इन लोगों पर शांति के खिलाफ, युद्ध के अपराधों, और इंसानियत के खिलाफ अपराधों के लिए आरोप लगाता हूं: हरमन विल्हेल्म गोरिंग, रुडोल्फ हेस, योआखिम फॉन रिबेनट्रोप...”

जब मुख्य अभियोजक रॉबर्ट एच. जैक्सन एक के बाद एक नामों की सूची पढ़ रहे थे, तब न्यूरेमबर्ग के पैलेस ऑफ जस्टिस का कोर्ट रूम 600 खचाखच भरा हुआ था. उनकी सूची लंबी थी. नाजी सरकार के 24 बड़े नेताओं के खिलाफ प्रमुख युद्ध अपराधों का मुकदमा (मेजर वॉर क्राइम ट्रायल) 20 नवंबर, 1945 को दक्षिणी जर्मन शहर न्यूरेमबर्ग में शुरू किया गया था. अगले 218 दिनों में, 230 से ज्यादा गवाहों से पूछताछ की गई. 3,00,000 बयान पढ़े गए, जिससे 16,000 पेज के ट्रांसक्रिप्ट तैयार हुए.

मुकदमे की सुनवाई के लिए न्यूरेमबर्ग शहर को यूं ही नहीं चुना गया था. बल्कि यह बवेरियन शहर पहले भी नाजी पार्टी की रैलियों की जगह रहा है. यहीं पर नाजी शासन ने अपनी ताकत दिखाई थी और यहीं पर न्यूरेमबर्ग कानून लागू किए गए थे. ये नस्लवादी और यहूदी विरोधी कानून थे जिन्होंने होलोकॉस्ट का रास्ता बनाया. और ठीक इसीलिए यहीं न्याय होना था.

जुर्म करने वाले लोगों को सजा देना था

यह पहली बार था जब किसी देश के शीर्ष प्रतिनिधियों को उनके द्वारा किए गए अमानवीय कार्यों के लिए व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार ठहराया गया था. अंतरराष्ट्रीय कानून की व्यवस्था में यह एक बहुत बड़ा और नया परिवर्तन था. जर्मनी पर जीत हासिल करने वाले अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ, सभी एक बात पर सहमत थे कि थर्ड राइष के अपराधों को किसी भी हाल में माफ नहीं किया जा सकता. लाखों लोग नाजी शासन का शिकार हुए थे. ये लोग यातना शिविरों में, युद्ध, भुखमरी, गुलामी और बंधुआ मजदूरी के कारण मारे गए थे.

इस मुकदमे में एक अन्य महत्वपूर्ण विषय पर पहली बार ध्यान दिया गया था और वह था कि अपराधों के लिए व्यक्तिगत रूप से दोषी होने का सवाल. कानूनी जानकार फिलिप ग्रेबके ने डीडब्ल्यू को बताया, "उस समय तक, हरमन गोरिंग (नाजी जर्मनी के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक) जैसे राजनेता यह मानकर चलते थे कि देश यानी जर्मनी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा, उन्हें व्यक्तिगत तौर पर नहीं. शायद उन्हें इसी तरह का फैसला सुनाए जाने की उम्मीद थी.”

किसी ने भी अपना जुर्म कबूल नहीं किया

जब मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई, तो सभी आरोपी ने ‘अपराधी नहीं' होने की बात कही. यूलिउस श्ट्राइषर एक कट्टर यहूदी विरोधी और भड़काऊ अखबार ‘डेय स्टुर्मर' के संपादक थे. इसमें यहूदियों के खिलाफ लगातार घिनौनी झूठी खबरें छपती थीं. इसने कई वर्षों तक नाजी प्रोपेगैंडा फैलाया. श्ट्राइषर ने ऐलान किया, "बड़े पैमाने पर हत्याएं पूरी तरह से और बिना किसी बाहरी प्रभाव के, सीधे देश के मुखिया एडोल्फ हिटलर के आदेश पर ही की गई थी.”

राइषबैंक के अध्यक्ष के तौर पर, हिटलर के पर्सनल प्रेस चीफ वाल्थर फुंक ने यहूदियों को उनके बैंक अकाउंट का एक्सेस देने से मना कर दिया था. इसके अलावा, उन्होंने निर्देश दिया कि जिन यहूदियों को कैंपों में मार दिया गया था, उनका कीमती सामान राइषबैंक को भेजा जाए. इनमें उनके दांतों का सोना भी शामिल था.

न्यूरेमबर्ग में उन्होंने कोर्ट में गवाही दी, "मेरे आदेश पर किसी की जान नहीं गई. मैंने हमेशा दूसरों की संपत्ति का सम्मान किया. मैंने हमेशा जरूरतमंद लोगों की मदद करने की कोशिश की. जहां तक हो सका, उनकी जिंदगी में खुशहाली लाने की कोशिश की.”

राइष मार्शल हरमन गोरिंग पहले कंसेंनट्रेशन कैंप बनाने वाले लोगों में शामिल थे. उन्होंने भी पूरे भरोसे के साथ अपनी बेगुनाही का ऐलान किया. जब उनसे पूछा गया कि क्या यहूदियों को खत्म करने के लिए कोई नीति बनाई गई थी, तो उन्होंने जवाब दिया, "जहां तक मेरा सवाल है, मैंने कहा है कि मुझे अंदाजा भी नहीं था कि ये चीजें किस हद तक हो रही थीं.” उन्होंने दावा किया कि उन्हें सिर्फ यहूदियों को देश से बाहर भेजने की योजना के बारे में पता था, उन्हें पूरी तरह से खत्म करने के बारे में नहीं.

12 को मौत की सजा, सात को जेल

प्रमुख नाजी नेताओं ने रत्ती भर भी अफसोस नहीं जताया. उन्होंने सुनियोजित तरीके से किए गए अपराधों का सारा दोष सिर्फ हिटलर पर थोप दिया. हालांकि, विडंबना यह थी कि युद्ध के अंतिम चरण में आत्महत्या कर लेने के कारण हिटलर पर मुकदमा चलाना संभव नहीं था.

इसके बावजूद, अपने गुनाहों को कबूल न करने की उनकी सारी कोशिशें बेकार साबित हुईं. सबूत काफी ज्यादा थे. यातना शिविर की फिल्में. जिंदा बचे लोगों के बयान. गुनाहगारों के खत और ऑर्डर. पहली बार दुनिया ने आउशवित्स-बिर्केनाउ, बुखेनवाल्ड और बर्गेन बेल्सन की शिविरों में हुए जुल्म देखे.

न्यूरेमबर्ग मुकदमे की पहली सुनवाई 1 अक्टूबर, 1946 को पूरी हुई. कोर्ट ने नाजी शासन के 12 बड़े नेताओं को मौत और सात को जेल की सजा सुनाई. तीन को बरी किया गया.

चीफ प्रॉसिक्यूटर रॉबर्ट जैक्सन ने पूरी कार्रवाई का नेतृत्व किया जिसमें आरोपियों ने अपना कोई दोष नहीं मानातस्वीर: National Archives, College Park, MD, USA

जर्मन जनता ने इन मुकदमों कोविजेताओं का न्याय' माना

इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी हिस्ट्री के बेर्नहार्ड गोटो कहते हैं, "जब आरोपियों को दोषी ठहराया गया, तो ज्यादातर जर्मन लोगों ने सोचा कि अब हमें असली गुनहगार मिल गए हैं, और बस हो गया.” उनकी साथी स्टेफानी पाम आगे बताती हैं, "न्यूरेमबर्ग मुकदमों के कारण जर्मनी के लोगों में एक धारणा बन गई कि सारा दोष किसी और का था, जबकि बाकी सब ने तो बस आदेशों का पालन किया था. सिर्फ उनकी बात मानने वाले लोग थे और उनकी कोई गलती नहीं थी!”

वह कहती हैं, "एक तरह से पीड़ित होने का नजरिया विकसित हो गया: हम हिटलर के आस-पास के इस छोटे से समूह के शिकार हैं.” इस धारणा की वजह से, ज्यादातर जर्मन जनता उन 12 मुकदमों के सख्त खिलाफ थी जो बाद में वकीलों, डॉक्टरों और उद्योगपतियों के खिलाफ चलाए गए थे.

गोटो कहते हैं, "इस ट्रिब्यूनल को ‘विजेताओं का न्याय' कहा गया. इसकी वजह यह थी कि इसने तुरंत यह सवाल उठा दिया कि नाजी अपराधों की जवाबदेही का दायरा कितना बड़ा है. अचानक यह सिर्फ गोरिंग और काइटेल, वेयरमाख्त, हिमलर और निश्चित रूप से, हिटलर तक ही सीमित नहीं रहा, जिसने कथित तौर पर जर्मन लोगों को बहकाया था. अपराध का यह बोझ और अधिक लोगों पर पड़ रहा था, जिसे अधिकांश जर्मन जनता मानने को तैयार नहीं थी.”

अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की शुरुआत

आज न्यूरेमबर्ग मुकदमों को अंतरराष्ट्रीय कानून में मील का पत्थर माना जाता है. 1945 में यह उम्मीद की गई थी कि न्यूरेमबर्ग में बनाए गए कानूनी सिद्धांतों का पालन भविष्य में हर जगह किया जाएगा. इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी युद्ध अपराधी सिर्फ अपने सरकारी पद की ताकत या अपने देश के कानूनों की आड़ लेकर सजा से न बच सके.

कानूनी जानकार फिलिप ग्रेबके कहते हैं, "अगर हम यह मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीयआपराधिक कानून पहली बार 1945 में न्यूरेमबर्ग पैलेस ऑफ जस्टिस के कोर्ट रूम में सामने आया, तो हम 1990 के दशक के संयुक्त राष्ट्र युद्ध अपराध न्यायालय से लेकर अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना तक एक सीधी रेखा खींच सकते हैं.” उन्होंने आगे कहा, "इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि 1946 के बाद से अंतरराष्ट्रीय आपराधिक कानून को बिना किसी बाधा के लागू किया जा सका.  आज भी हमें यही स्थिति देखने को मिलती है.”

1998 में हेग में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) बना था और इसने 2002 में अपना काम शुरू किया. हालांकि, सभी देश इसे मान्यता नहीं देते हैं. 125 हस्ताक्षरकर्ता देशों में, दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण शक्तियां इसका हिस्सा नहीं हैं. इनमें अमेरिका, रूस, चीन और भारत शामिल हैं. इस्राएल भी इस कोर्ट को मान्यता नहीं देता है.

क्या आईसीसी सिर्फ कागजी शेर है?

आईसीसी को मान्यता देने वाले देशों ने भी गिरफ्तारी वारंट को नजरअंदाज किया है. अब तक, जिन नेताओं पर आरोप लगे हैं उनके लिए नियम यह रहा है कि अगर आप जेल नहीं जाना चाहते, तो बस घर पर रहें. अब इसकी भी जरूरत नहीं है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ यूक्रेनी बच्चों को अगवा करके रूस ले जाने के आरोप में गिरफ्तारी वारंट जारी है. इसके बावजूद, सितंबर 2024 में उन्होंने मंगोलिया की यात्रा की. यह देश आर्थिक रूप से रूस पर बहुत निर्भर है और वहां उनका पूरे राजकीय सम्मान के साथ स्वागत किया गया.

सिर्फ यही नहीं, आईसीसी यूक्रेन पर रूसी हमले के लिए पुतिन पर केस नहीं चला पाया. इंसानियत के खिलाफ अपराधों के विपरीत, यह कोर्ट हमले का आदेश देने के आरोप में किसी राष्ट्राध्यक्ष पर तभी केस चला सकता है, जब वह देश भी आईसीसी को मान्यता देता हो.

इस्राएल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ भी गिरफ्तारी वारंट जारी है. आईसीसी के मुताबिक, नेतन्याहू ने फलीस्तीनी नागरिकों को भूखा रखने और उनकी हत्या की अनुमति दी. हालांकि, जब नेतन्याहू ने 2024 के आखिर में हंगरी का दौरा किया, तो वहां के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने स्पष्ट तौर पर यह आश्वासन दिया कि उनके मेहमान को सुरक्षित मार्ग मिलेगा. जर्मनी में भी नेतन्याहू को शायद कोई नुकसान नहीं होगा.

इस साल फरवरी में चुने गए जर्मनी के नए चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने कहा, "मुझे यह पूरी तरह से अजीब लगता है कि एक इस्राएली प्रधानमंत्री जर्मनी के दौरे पर नहीं आ सकता.” यही रुख इससे पहले के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स का था. इसलिए, किसी युद्ध अपराधी को आखिर में जजों के सामने लाया जाता है या नहीं, यह सदस्य देशों पर निर्भर करता है. आईसीसी के पास खुद संदिग्धों पर मुकदमा चलाने के लिए संसाधनों और अधिकारों की कमी है.

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