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जिंदगी ने खेती छुड़ाकर सेक्स वर्कर बना दिया

वीके/एमजे (रॉयटर्स)७ सितम्बर २०१६

जाम्बिया में कभी खेती करने वाली महिलाएं अब सेक्स वर्कर बनने को मजबूर हो रही हैं. मौसम ने ऐसा पलटा खाया है कि जिंदगी तबाह हो चुकी है.

Frau aus dem Stamm der Tonga
तस्वीर: picture-alliance/WILDLIFE

लगातार कई फसलें नाकाम होने के बाद अब क्रिस्टीन मवेंडा के पास एक ही रास्ता बचा है. यह ऐसा रास्ता है, जिस पर चलने की वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थीं. लेकिन अब यही रास्ता जीने का सहारा है. 37 साल की क्रिस्टीन सेक्स वर्कर बन गई हैं. 2014 से वह जांबिया में अपना शरीर बेच रही हैं. वह कहती हैं कि जौ की खेती से बेहतर पैसा मिलता है और चार बच्चों के पेट भरने का और कोई रास्ता भी नहीं था. मवेंडा, जो कि उनका असली नाम नहीं है, कहती हैं, "अच्छा दिन हो तो मैं 500 कवाचा (करीब 70 डॉलर) तक कमा लेती हूं. इतना पैसा तो मैं खेती में सालभर में बचा पाती थी." किसान मवेंडा की जिंदगी मुश्किलों से भर गई जब खाद, पानी, परिवहन, बीज आदि के दाम इतने बढ़ गए कि खेती से कुछ बचता ही नहीं था.

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मवेंडा सिर्फ एक मिसाल हैं, एक चेहरा जांबिया के लाखों लोगों का. लगातार सूखा पड़ रहा है. इस साल अल नीनो की वजह से तो वह और भयानक हो गया था. इस कारण छोटे किसानों और छोटे कारोबारियों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. सूखा हर साल लंबा होता जा रहा है और बारिश का वक्त भी गड़बड़ा रहा है. पर्यावरण में बदलाव हो रहा है. खाद, बीज और खेती का दूसरा सामान भी महंगा हो रहा है. मवेंडा बताती हैं, "आजकल अगर आप जौ की खेती करते हैं तो आप इस बात का यकीन नहीं कर सकते कि कितनी फसल होगी. ज्यादातर तो ऐसा होता है कि फसल सूख जाती है. और बस इतना भर अनाज मिलता है कि सबका खाना निकल सके. लेकिन बच्चों को स्कूल भी तो भेजना होता है."

तस्वीरों में, प्रताड़ित और जख्मी समाज

जाम्बिया में एक करोड़ 60 लाख लोग रहते हैं जिनमें से 54 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे हैं. ज्यादातर महिलाएं हैं. गरीबी शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा है. 2014 में यूएन की एक रिपोर्ट आई थी जिसने उजागर किया गांवों में जो गरीबी की हालत है वो शहरों से 4 गुना ज्यादा है. इसलिए लोग गांवों से शहरों की ओर जा रहे हैं. लुसाका, कित्वे, लिविंगस्टोन और चिपातान जैसे शहरों की आबादी पिछले कुछ सालों में बहुत बढ़ गई है. नतीजा यह होता है कि मवेंडा जैसे लोग दूसरे पेशों का रुख करने को मजबूर हो जाते हैं. और वेश्यावृत्ति ऐसे ही पेशों में से एक है. लुसाका की कैवेंडिश यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर लूसी बवाल्या बताती हैं कि गांवों से आने वाली महिलाएं छोटे मोटे कामों में लग जाती हैं जैसे पटरी पर सामान बेचना या दिहाड़ी मजदूरी करना आदि. लेकिन बड़ी तादाद में महिलाएं सेक्स वर्क की ओर चली जाती हैं. और इसके साथ ही जेल, हिंसा और यौन रोगों के खतरों के साथ जीने लगती हैं. बवाल्या सेक्स वर्कर्स के साथ काम कर चुकी हैं. वह बताती हैं, "वेश्यावृत्ति एक आसान रास्ता तो है लेकिन इस वजह से ये महिलाएं एचआईवी और एड्स की जद में आ जाती हैं." 2013-2014 की जनगणना के मुताबिक 15 साल से 49 साल के बीच के लोगों में एचआईवी मरीजों की संख्या 13 फीसदी थी. हालांकि एक दशक में यह 3 फीसदी घटी है लेकिन तब भी सरकार चिंतित है.

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अब सरकार कोशिश कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा लोग, खासकर महिलाएं खेती से जुड़ी रहें. इसके लिए सरकार प्रोत्साहन योजनाएं ला रही हैं. एक समाजसेवी संस्था एनविरो ग्रीन किसानों को ऐसी फसलों की खेती करना सिखा रही है जिन पर पर्यावरण का ज्यादा असर नहीं पड़ता. ज्वार जैसी ये फसलें ऐसी हैं जिनमें पानी की कम जरूरत पड़ती है. जौ जैसी फसलों की खेती को हतोत्साहित किया जा रहा है. एनविरो ग्रीन की निदेशक मार्था सिमुकोंडे कहती हैं, "हमारी चिंता है लोगों का गांवों से शहरों की ओर पलायन. खासकर वे महिलाएं जो वेश्यावृत्ति में फंस रही हैं. हम उन महिलाओं को सिखा रहे हैं कि बुआई थोड़ी जल्दी की जाए ताकि पानी की जरूरत पहली बारिश से ही पूरी हो जाए. इससे फसलों के फलने की संभावना बढ़ जाती है."

कोशिशें हो रही हैं लेकिन मवेंडा जैसी हजारों महिलाओं के लिए इन कोशिशों के शुरू होने से पहले ही जिंदगी एक ऐसा मोड़ ले चुकी थी जहां से लौटने के रास्ते बंद हो चुके हैं.

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