बाघों को बचाने की भारत की मुहिम ने पर्यावरण की सुरक्षा में दुनिया की बड़ी मदद की है. एक नया शोध बताता है कि बाघ संरक्षण कार्यक्रम के तहत भारत ने जंगलों की कटाई रोककर कार्बन उत्सर्जन रोकने में बड़ी भूमिका निभाई है.
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दुनिया के कुल बाघों की तीन चौथाई आबादी भारत में रहती है. लेकिन उनके प्राकृतिक आवास के नष्ट होने के कारण बीते दशकों में उनकी संख्या काफी घट गई. 1947 में भारत में 40 हजार से ज्यादा बाघ थे, जिनकी संख्या 2006 में मात्र 1,500 रह गई थी. लेकिनइस साल हुई गणना में भारत में बाघों की संख्या 3,000 पहुंच गई है.
बाघों की आबादी बढ़ाने की कोशिशों में भारत ने 52 नए बाघ संरक्षित क्षेत्र बनाए हैं, जहां लकड़ी काटना बेहद सख्त और नियमित किया गया है. इस पूरी योजना पर नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के विशेषज्ञों ने अध्ययन किया है.
मुख्य शोधकर्ता आकाश लांबा कहते हैं कि बाघ एक ‘छातानुमा प्रजाति' है. लांबा समझाते हैं, "इसका अर्थ है कि उनकी सुरक्षा करते हुए आप उन जंगलों की भी सुरक्षा करते हैं, जिनमें वे रहते हैं और जो +अविश्वसनीय रूप से विविध प्रजातियों के घर हैं.”
कार्बन उत्सर्जन में कमी
वन कार्बन को सोखने वाले विशाल होद होते हैं, यानी वे वातावरण में उत्सर्जित हुई कार्बन को सोखते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बेहद अहम भूमिका निभाता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है और अपने उत्सर्जन में कमी की कोशिश कर रहा है.
कूड़ेदान में मिली नन्ही बाघ-शावक
बिल्ली, कुत्ते और अन्य पालतू जानवरों को तो छोड़ दिए जाने की घटनाएं आम हैं लेकिन ग्रीस में बाघ के बच्चे को कूड़ेदान में छोड़ दिया गया. अब इसकी हालत गंभीर है और डॉक्टरों को उम्मीद नहीं है कि वह बच पाएगा.
तस्वीर: Stelios Misinas/REUTERS
कूड़ेदान में मिली बाघ
ग्रीस के शहर एथेंस में ये पशु चिकित्सक एक नन्हे बाघ शावक को बचाने की कोशिश में जुटे हैं. यह शावक एक कूड़े में पड़ी मिली है.
तस्वीर: Stelios Misinas/REUTERS
सफाईकर्मी को मिली
तीन महीने की यह शावक 28 फरवरी को एटिका चिड़ियाघर के बाहर कूड़ेदान में मिली. सफाईकर्मी ने उसे देखा और चिड़ियाघर के अधिकारियों को सूचित किया.
तस्वीर: Stelios Misinas/REUTERS
अपनी तरह की पहली घटना
चिड़ियाघर के संस्थापक ज्याँ-ज्याक लेजियोर ने बताया कि यह अपनी तरह की पहली घटना है जब किसी जंगली जानवर को इस तरह छोड़ा गया है.
तस्वीर: Stelios Misinas/REUTERS
बचने की उम्मीद नहीं
एक्सरे में दिखाई दिया कि शावक की पिछली टांगों में पिन घोंपे गए थे. उसे ना ठीक से खाना मिला था ना पानी. अब भी उसके बचने की पूरी संभावना नहीं है.
तस्वीर: Stelios Misinas/REUTERS
अवैध तस्करी का मामला
चिड़ियाघर के सुरक्षा कैमरों ने आधी रात में एक वैन को कूड़ेदान के पास से गुजरते पकड़ा था. अधिकारियों को यह अवैध तस्करी का मामला लगता है.
तस्वीर: Stelios Misinas/REUTERS
जानवरों की तस्करी
यूरोप में जंगली जानवरों की तस्करी अरबों डॉलर का व्यापार बन गया है. एशिया और अफ्रीका के जंगली जानवरों को यूरोप में बेचा जा रहा है.
तस्वीर: Stelios Misinas/REUTERS
मरियल हालत में
मादा-शावक की हालत गंभीर थी और वह बेहद कमजोर हो चुकी थी. पशु चिकित्सक नोई सारूदाकी ने कहा कि उन्होंने कभी किसी जंगली जानवर को ऐसी बेदम हालत में नहीं देखा था.
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भारत में जन्मे और बड़े हुए लांबा कहते हैं कि शोधकर्ताओं के एक दल ने बांघ संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन में सीधा संबंध स्थापित किया है. उन्होंने बाघ संरक्षित क्षेत्रों में वन कटाई की तुलना उन क्षेत्रों से की, जहां बाघ रहते तो हैं लेकिन वे क्षेत्र संरक्षित नहीं है.
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि 2001 से 2020 के बीच 162 क्षेत्रों में 61,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो चुका था. इनमें से तीन चौथाई वन क्षेत्र बाघ संरक्षित क्षेत्रों के बाहर था.
शोध के मुताबिक बाघ संरक्षित क्षेत्रों में 2007 से 2020 के बीच लगभग 6,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सुरक्षा संभव हो पाई. इसका अर्थ है कि लगभग दस लाख मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन रोका जा सका.
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बड़े आर्थिक लाभ
लांबा जोर देकर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित और खासतौर पर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश में इतनी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन रोकने के बड़े आर्थिक लाभ होते हैं.
सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गणना की जाये तो इस तरह भारत ने 9.2 करोड़ डॉलर की बचत की. अगर बचाए गए जंगलों का वित्तीय प्रभाव देखा जाए तो 60 लाख डॉलर से ज्यादा की बचत हुई.
भारत में 2023 में अब तक 26 बाघों की मौत
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2023 में जनवरी से लेकर फरवरी के बीच ही 26 बाघों की मौत हुई है. बाघों के मरने के कारण अलग-अलग बताए जा रहे हैं. सबसे अधिक मौत मध्य प्रदेश में हुई.
तस्वीर: Mahesh Kumar A/AP/picture alliance
औसतन हर दिन एक मौत
भारत में इस साल अब तक 26 बाघों की मौत हो गई है और यह साल 2023 के पहले दो महीनों का आंकड़ा है. इन मौतों को तीन साल में सबसे ज्यादा बताया जा रहा है.
अफ्रीकी चीते को लेकर चर्चा के केंद्र में रहे मध्य प्रदेश में सबसे अधिक नौ बाघ मारे गए हैं. भारत में बाघों को बचाने के लिए सालों से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
मध्य प्रदेश के बाद जिन राज्यों में बाघों की मौत हुईं हैं, उनमें महाराष्ट्र (7), राजस्थान (3), कर्नाटक (2), उत्तराखंड (3) और असम और केरल में एक-एक है.
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कहां और कैसे मरे बाघ
बाघों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) ने अपनी वेबसाइट पर बाघों की मौत का आंकड़ा 33 रखा, जिसमें 10 शिकार के कारण मारे गए. बाघों की मौत आवास सीमा के भीतर, इंसानों के साथ संघर्ष और बाघ अभयारण्यकी परिधि के बाहर हुई.
तस्वीर: Payel Samanta/DW
हर साल मर रहे बाघ
2022 में भारत ने कुल 116 बाघ खो दिए, जबकि 2021 में यह आंकड़ा 127 था. साल 2019 में देश में 96 बाघों की मौत दर्ज की गई.
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इंसान और बाघ का संघर्ष
बाघों की मृत्यु के अलग-अलग कारण हैं, जिनमें प्राकृतिक कारण, क्षेत्र के झगड़े और मानव-जंगली जानवर के बीच संघर्ष अहम हैं. 2018 की गणना के मुताबिक देश में कुल 2967 बाघ हैं. सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में हैं.
तस्वीर: picture-alliance/imageBROKER/A. Singh
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वह बताते हैं, "कार्बन उत्सर्जन रोकने से भारत ने जितना वित्तीय लाभ कमाया है, वह बाघ संरक्षण पर हो रहे कुल खर्च का लगभग एक चौथाई बनता है. यह बेहद महत्वपूर्ण नतीजा है और दिखाता है कि वन्य जीवन की सुरक्षा में किया गया निवेश ना सिर्फ कुदरत की सुरक्षा करता है बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभदायक है.”
यह शोधपत्र ‘नेचर इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इससे पहले मार्च में भी एक ऐसा ही अध्ययन छपा था जिसमें बताया गया था कि व्हेल मछलियों और भेड़ियों जैसे कुछ जानवरों की सुरक्षा से ही हर साल 6.4 अरब टन कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सकता है.