बांग्लादेश में सैकड़ों लोगों की भीड़ द्वारा मंदिरों में तोड़फोड़ करने के बाद चार लोगों की पुलिस की गोलीबारी में मौत हो गई. देशभर में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
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बुधवार को पुलिस ने 500 लोगों की एक भीड़ पर गोलीबारी की, जिसमें कम से कम चार लोगों की मौत की खबर है. यह भीड़ एक वीडियो के वायरल हो जाने के बाद गुस्से में थी, जिसमें इस्लाम धर्म की पवित्र किताब कुरान को हिंदू देवता हनुमान के घुटने पर रखा दिखाया गया था.
इस वीडियो के वायरल होने के बाद देश के कई हिस्सों में भीड़ ने तोड़फोड़ की. गोलीबारी की घटना दक्षिणी कस्बे हाजीगंज में हुई. स्थानीय पुलिस प्रमुख मिलोन महमूद ने बताया कि भीड़ ने एक मंदिर पर हमला किया और पुलिस के साथ झड़प हुई जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए. घायलों में 15 पुलिसकर्मी भी हैं.
कई हिंदू भी आहत
हिंदू समुदाय के एक नेता गोबिंद चंद्र प्रमाणिक के मुताबिक करीब 80 पंडालों में तोड़फोड़ की गई. उन्होंने कहा कि हिंसा में दो हिंदू मारे गए और 150 से ज्यादा घायल हो गए. प्रमाणिक ने कहा, "लाखों लोग डरे हुए हैं. गुरुवार को भी दो जगह हमले हुए हैं.”
पुलिस इंस्पेक्टर मुनीर अहमद ने कहा है कि जिस जगह का वीडियो है, वहां भी तोड़फोड़ की गई है जिसके बाद 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
देश के गृह मंत्री असदुजमान खान ने कहा है कि कुछ हिंदू घरों पर भी हमले की कोशिश हुई है. उन्होंने कहा कि घटना के जिम्मेदार लोगों को खोज निकाला जाएगा. सरकार ने हिंसा की जांच के आदेश दिए हैं. सरकार की ओर से जारी एक बयान में लोगों से शांति और धार्मिक सद्भाव बनाए रखने की अपील की गई है.
कई जगह झड़पें
दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों में जाने वालों की सुरक्षा के लिए देश के 64 में से 22 जिलों में पैरामिलिट्री बॉर्डर गार्ड्स की तैनाती की गई है. स्थानीय समाचार वेबसाइट बीडीन्यूज24 समेत कई मीडिया संस्थानों ने खबर दी है कि पुलिस ने फैयाज नाम के एक व्यक्ति को घटना का वीडियो शेयर करने के आरोप में गिरफ्तार किया है.
देखिए, कोलकाता की पारंपरिक पूजा
कोलकाता की सैकड़ों साल पुरानी पारंपरिक पूजा
कोलकाता में दुर्गा पूजा सिर्फ पंडालों में ही नहीं होती है, कुछ पुराने पारिवारिक घरों के पूजा के आयोजन का सैकड़ों साल पुराना इतिहास है. कुछ आयोजन तो 400 साल पुराने हैं.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
शोभाबाजार राजबाड़ी की पूजा
कोलकाता में राजा नवकृष्ण देव के घर पर की जाने वाली शोभाबाजार राजबाड़ी की पूजा सबसे मशहूर है. 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद देव शोभाबाजार राजबाड़ी को बनवाया था और वहां पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन किया था. देव अंग्रेजों के विश्वासपात्र थे और उन्होंने इस पूजा में शामिल होने के लिए लॉर्ड क्लाइव और वार्रेन हेस्टिंग्स को भी निमंत्रण दिया था.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
सब कर सकते हैं प्रवेश
आज यहां पूरे शहर से लोग देवी की प्रतिमा और पूजा देखने आते हैं. यहां स्थापित देवी की प्रतिमा को भी खास माना जाता है. यह बहुत ही पुरानी प्रतिमा है और इसमें, देवी, उनके वाहन शेर और असुर को जिस तरह से दर्शाया गया है वो बाकी आयोजनों से अलग है.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
सवर्ण रॉय चौधरी की पूजा
सवर्ण रॉय चौधरी की पूजा कोलकाता में पारिवारिक पूजाओं के इतिहास में सबसे पुराने आयोजनों में से है. कोलकाता के संस्थापक माने जाने वाले अंग्रेज अधिकारी जॉब चार्नाक ने शहर को बसाने के लिए सबसे पहले इन्हीं के परिवार से तीन गांव खरीदे थे. दक्षिण कोलकाता के बेहाला इलाके में इस परिवार के कई मकान हैं और सब में पूजा का आयोजन किया जाता है. इनमें से अच्चला पूजा की शुरुआत 411 साल पहले की गई थी.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
मेजबाड़ी पूजा
अच्चला पूजा के बाद बारी आती है मेजबाड़ी पूजा की. यहां देवी का सैकड़ों साल पुराना मंदिर है, लेकिन परिवार के सदस्यों के अलावा यहां दूसरों का प्रवेश वर्जित है.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
अब नहीं चढ़ाई जाती बलि
पुराने जमाने में पूजा में पशुओं की बलि चढ़ाने की प्रथा थी लेकिन अब इस पर प्रतिबंध है. परंपरा ना टूटे इसलिए अब सांकेतिक बलि चढ़ाई जाती है. सवर्ण परिवार के घर पर बकरी की जगह कोंहड़े की और भैंसे की जगह आठ गन्नों की बलि चढ़ाई जाती है.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
रानी रासमनी की पूजा
रानी रासमनी को कोलकाता के सुप्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर की संस्थापक के रूप में जाना जाता है. उनके पारिवारिक घर की पूजा भी मशहूर है. यहां भी पहले बलि चढ़ाई जाती थी लेकिन अब नहीं चढ़ाई जाती है.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
आज भी होता है आयोजन
इस पूजा की शुरुआत खुद रानी रासमनी ने की थी. 1861 में उनके देहांत के बाद उनके परिवार के सदस्यों ने पूजा के आयोजन को जारी रखा. आज भी सुरेंद्रनाथ बैनर्जी सड़क पर स्थित उनके पारिवारिक मकान में पूजा का आयोजन जारी है.
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पातालडांगा के बसुमलिक परिवार की पूजा
पातालडांगा का बसुमलिक परिवार शहर के पुराने जमींदार परिवारों में से है. इन्हें हुगली पोतगाह जैसे कई ऐतिहासिक चिन्हों के निर्माण के लिए जाना जाता है. इनके पारिवारिक मकान में आज भी आयोजित की जाने वाली दुर्गा पूजा की शुरुआत राधानाथ मलिक ने 200 साल पहले की थी.
तस्वीर: Subrata Goswami/DW
बसुमलिक परिवार का दूसरा मकान
राधानाथ मलिक गली में 18 और 22 नंबर के दोनों मकान बसुमलिक परिवार के हैं. इनमें से ज्यादा पुरानी पूजा 18 नंबर मकान की है. यह तस्वीर 22 नंबर मकान की पूजा की है, जिसे बाद में शुरू किया गया था.
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हरिनाथ मुखर्जी के परिवार की पूजा
उत्तरी कोलकाता के राजाबाजार साइंस कॉलेज के पीछे सतत हरिनाथ मुखर्जी के पारिवारिक मकान की पूजा को 300 साल पुराना माना जाता है.
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अलग किस्म का पूजा मंडप
इस मकान की रूप-रेखा दूसरे पारंपरिक जमींदार मकानों से अलग है. मंडप के दोनों तरफ लगी मूर्तियां अफ्रीकी मूल की हैं. उनके पैरों में बेड़ियां हैं, जिनसे ऐसा लगता है कि ये शायद अफ्रीकी गुलामों की मूर्तियां हैं.
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मलिकबाड़ी की पूजा
उत्तरी कोलकाता के दर्पनारायण टैगोर गली में स्थित इस मकान में पिछले 240 सालों से पूजा का आयोजन किया जा रहा है. इसे शुरू किया था वैष्णवदास मलिक ने जो चंदननगर के एक सोने के व्यापारी थे.
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प्रतिमा का अलग रूप
यहां भी पूजा की जाने वाली प्रतिमा का रूप अलग है. लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमा का आकार कार्तिकेय, गणेश, शिव और गौरी की प्रतिमा से भी बड़ा रखा गया है.
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नीलमनी सेन की पूजा
नीलमनी सेन जेस्सोर के रहने वाले थे और एक सोने के व्यापारी थे. वो 19वीं शताब्दी में कोलकाता आए और उसके बाद उन्होंने ठाकुरदालान में दुर्गा पूजा शुरू की.
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दो हाथों वाली दुर्गा
यहां पूजा पिछले 100 सालों से आयोजित की जा रही है. यहां लगी देवी की प्रतिमा पुरानी प्रतिमा के मुकाबले छोटी है लेकिन इसकी एक खास बात है. इस प्रतिमा में देवी के 10 की जगह सिर्फ दो हाथ दिखाए गए हैं. मान्यता है कि देवी का यह रूप संहार करने वाली दुर्गा का नहीं बल्कि संरक्षण करने वाली देवी का है. (सुब्रता गोस्वामी)
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पुलिस अधिकारियों ने यह भी दावा किया है कि उत्तर पूर्वी शहर जकीगंज में बुधवार को सैकड़ों लोगों के बीच झड़पें हुई हैं. उप पुलिस प्रमुख लुत्फार रहमान ने बताया, "कई आम नागरिक और दो पुलिसवाले घायल हुए हैं. भीड़ ने पुलिस पर हमला किया और कई सरकारी वाहनों को नुकसान पहुंचाया.”
स्थानीय मीडिया की खबरों के मुताबिक उत्तर में दो ग्रामीण जिलों में भी कई पंडालों और मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया है. घटना के बाद हिंदू बहुल चिटगांव शहर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
उधर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी मंदिरों पर हमले करने वालों को सख्त चेतावनी जारी की है. उन्होंने कहा, “क्यूमिला में हुईं घटनाओं की पूरी जांच की जा रही है. किसी को बख्शा नहीं जाएगा, फिर चाहे वे किसी धर्म को क्यों ना हों. उन्हें खोजा जाएगा और सजा दी जाएगी.”
हसीना ने कहा कि तकनीक के दम पर अपराधियों को खोजा जाएगा. उन्होंने कहा, “हमें बहुत बड़ी मात्रा में सूचनाएं मिल रही हैं. यह तकनीक का दौर है और जो इस घटना में शामिल हैं उन्हें तकनीक की मदद से जरूर खोज लिया जाएगा.”
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बढ़ रहे हैं विवाद
बांग्लादेश के पड़ोसी हिंदू-बहुल देश भारत ने इस घटना पर क्षोभ जाहिर किया है. मीडिया के साथ साप्ताहिक बातचीत में भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि यह घटना परेशान करने वाली है और स्थानीय उच्चायोग अधिकारियों के संपर्क में है.
बांग्लादेश की 16.9 करोड़ आबादी का करीब 10 प्रतिशत हिंदू हैं. हाल के सालों में दोनों समुदायों के बीच विवाद की घटनाएं बढ़ी हैं. विशेषकर सोशल मीडिया पर प्रसारित सामग्री की प्रतिक्रिया में एक दूसरे पर हमले की कई घटनाएं हो चुकी हैं.
तस्वीरों मेंः ऐसी बनती हैं प्रतिमाएं
ऐसे बनती हैं दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमाएं
दुर्गा पूजा की आहट मूर्तिकारों के लिए कई महीने पहले ही शुरू हो जाती है. पूजा के महीनों पहले ही पश्चिम बंगाल तक कलाकार मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं. लेकिन ये सुंदर प्रतिमाएं बनती कैसे हैं. देखिए इन तस्वीरों में.
तस्वीर: DW/ P. Tiwari
शुरू हुआ प्रतिमा का बनना
दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए सबसे पहले बांस से एक ढांचा बनाया जाता है. जितनी बड़ी मूर्ति बनानी होती है, उसके अनुसार बांस से आकार ढाला जाता है. ढांचा तैयार होने के बाद सूखी घास और पुआल की मदद से मूर्ति को आकार दिया जाता है.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
अब आई मिट्टी की बारी
मूर्ति को आकार देने के बाद बांस और घास के बनाए ढांचे पर गीली मिट्टी की परत चढ़ायी जाती है. मिट्टी की यह परत मूर्ति को ठोस बनाने में मदद करता है. इस तस्वीर में कलाकार सरस्वती के वाहक हंस को गीली मिट्टी से तैयार कर रहा है.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
फिर चढ़े रंग
एक बार मिट्टी की परत सूख जाने के बाद मूर्तियों को रंगने का काम शुरू किया जाता है. सबसे पहले मूर्ति के बड़े हिस्से रंगे जाते हैं. बाद में फूल-पत्तियां और दुर्गा के वस्त्र रंगे जाते हैं. रंगों के अलावा मूर्तियों को और सुंदर बनाने के लिए चमकीले रंग या लेप भी लगाए जाते हैं.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
महिषासुर भी बना
दुर्गा की प्रतिमा के साथ हमेशा महिषासुर की मूर्ति भी बनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था. महिषासुर को मारते हुए दुर्गा की मूर्ति शक्ति का प्रतीक मानी जाती है.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
अब सजेगी मूर्ति
मूर्ति के बनने और रंगाई के काम के बाद मूर्ति को कपड़े, गहनों, झालरों और अस्त्रों के साथ सजाया जाता है. हर मूर्ति अलग तरह से बनाई और सजाई जाती है. कई बार खास मांगों पर मूर्तियां अलग अलग तरह और अलग अलग आकारों की भी बनाई जाती हैं.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
थोड़ा आराम भी जरूरी
जाहिर सी बात है लगातार और इतनी मेहनत के काम में थकान तो होगी ही. कई बार कलाकारों के पास इतना वक्त भी नहीं होता कि वे घर जाकर पूरी नींद ले सकें. वे अपनी थकान मिटाने के लिए कुछ देर सोकर फिर काम में जुट जाते हैं. हर साल दुर्गा पूजा आने के साथ काम का दबाव काफी बढ़ जाता है और थोड़ी सी भी देरी नुकसान दे सकती है.
तस्वीर: DW/R. Chakraborty
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2016 में एक फेसबुक पोस्ट में इस्लामिक पवित्र स्थलों का मजाक उड़ाने की खबरों के बाद पांच हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की गई थी.
देश में आजकल दुर्गा पूजा मनाई जा रही है जो हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. इस दौरान 32 हजार से ज्यादा पंडाल बनाए गए हैं. शुक्रवार को दुर्गा की प्रतिमाओं को प्रवाहित किया जाएगा.