जर्मन चांसलर के बयान के बाद माइग्रेशन पर बहस तेज
२६ अक्टूबर २०२५
जर्मनी के चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स के हालिया बयान के बाद प्रवासन को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज हो गई है. एक तरफ पुलिस यूनियन ने रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा बढ़ाने और अधिकारियों को अतिरिक्त अधिकार देने की मांग की है, वहीं दूसरी ओर देश भर में हजारों लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
यह विवाद 14 अक्टूबर को शुरू हुआ जब चांसलर मैर्त्स ने कहा कि सरकार प्रवासन नीति में बीते वर्षों की गलतियों को सुधार रही है, "लेकिन हमारे शहरों का जो स्वरूप है, उसमें अभी भी समस्या बनी हुई है." उन्होंने यह भी कहा कि यूरोप में लोग सार्वजनिक स्थानों पर जाने से डरते हैं क्योंकि कुछ प्रवासी कानूनों का पालन नहीं करते.
पुलिस यूनियन की मांगें
जर्मन पुलिस यूनियन (जीडीपी) ने रेलवे स्टेशनों पर अधिक अधिकारियों की तैनाती और उन्हें बिना पूर्व संदेह जांच करने की शक्ति देने की मांग की है. संघीय पुलिस के प्रतिनिधि आंद्रियास रोस्कोप्फ ने कहा, "बड़े शहरों के रेलवे स्टेशनों पर हालात खतरनाक होते जा रहे हैं. यहां तक कि हमारे सहयोगियों के लिए भी. उन्हें लोगों से पहले जैसी इज्जत और स्वीकृति नहीं मिल रही है."
रोस्कोप्फ ने कहा कि ट्रेन स्टेशनों पर सुरक्षा बढ़ाने से शहर की छवि भी बेहतर होती है, और यह फ्रीडरिष मैर्त्स के मूल बयानों से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा, "रेलवे स्टेशनों पर बिना पूर्व संदेह जांच की मौलिक शक्ति बहुत जरूरी है, बशर्ते अनुपातिकता का ध्यान रखा जाए."
संघीय पुलिस जर्मनी की सीमाओं, हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर निगरानी की जिम्मेदारी निभाती है. रोस्कोप्फ के अनुसार, यदि अधिकारियों को अधिक आजादी दी जाए तो यह ना केवल अपराध नियंत्रण में सहायक होगा बल्कि सार्वजनिक विश्वास बढ़ाने में भी मदद करेगा.
देशभर में विरोध प्रदर्शन
इस बीच, शनिवार को भी मैर्त्स के प्रवासन संबंधी बयान के विरोध में जर्मनी के कई शहरों में प्रदर्शन हुए. हैम्बर्ग में करीब 2,600 लोग सड़कों पर उतरे, हालांकि आयोजकों को 5,000 लोगों की उम्मीद थी. बारिश के कारण भीड़ कम रही, लेकिन पुलिस के अनुसार प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा.
पूर्वी जर्मनी के माग्देबुर्ग शहर में 300 से अधिक लोगों ने रैली में हिस्सा लिया, जबकि लोअर सैक्सनी के हिल्डेजहाइम में लगभग 500 प्रदर्शनकारी जुटे. बॉन में मैर्त्स की पार्टी सीडीयू के जिला कार्यालय की दीवार पर रात में "शहर की खूबसूरती के उपाय" जैसे शब्द स्प्रे से लिखे गए. इस मामले में राज्य सुरक्षा सेवा जांच कर रही है.
हैम्बर्ग में प्रदर्शनकारियों के हाथों में पोस्टर थे जिन पर लिखा था: "हम ही हैं शहर की तस्वीर!", "मैर्त्स हमारे शहर से बाहर!", "विभाजन और नस्लवाद के खिलाफ एकजुट हो", और "फ्रीडरिष, समस्या तुम्हारा नस्लवाद है!"
विवाद के बाद मैर्त्स ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा था कि समस्या उन प्रवासियों से है जिनके पास स्थायी निवास नहीं है, जो काम नहीं करते और जर्मनी के नियमों का पालन नहीं करते. जर्मनी में आप्रवासन पर बहस तब से जारी है, जब इस साल फरवरी में चुनाव हुए थे. मैर्त्स ने अपने चुनाव अभियान में ही आप्रवासन पर नकेल कसने की बात कही थी.
प्रवासी समुदाय की प्रतिक्रिया
माग्देबुर्ग में एक अफगान महिला संगठन की प्रतिनिधि ने कहा, "फ्रीडरिष मैर्त्स के हालिया बयान ने हममें से कई लोगों को बहुत आहत किया है. ऐसी भाषा हमें यह महसूस कराती है कि इतने वर्षों से इस समाज का हिस्सा होने के बावजूद हम अब भी अलग या विदेशी माने जाते हैं." उन्होंने कहा कि जर्मनी में प्रवासन को अब भी स्वाभाविक प्रक्रिया की बजाय एक समस्या के रूप में देखा जाता है.
एक सीरियाई-जर्मन सांस्कृतिक संगठन के प्रतिनिधि ने कहा कि "राजनीतिक उपायों पर बहस की जा सकती है, लेकिन लोगों को भाषा के जरिए समस्या घोषित करना एक सीमा को पार करना है. मानव गरिमा निवास स्थिति या रोजगार अनुबंध पर निर्भर नहीं करती."
कोलोन में जन्मे तुर्क मूल के रैपर एको फ्रेश ने "फ्रीडरिष" नाम से एक गीत जारी किया है जिसमें उन्होंने इस बयान का विरोध किया. गीत में वह गाते हैं, "हम दूसरी कतार में खड़े हैं," जो प्रवासी पृष्ठभूमि वाले लोगों के साथ होने वाले भेदभाव का प्रतीक है.
जनमत सर्वेक्षण में समर्थन
सार्वजनिक प्रसारक जेडडीएफ के लिए किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, जर्मनी की आबादी का बड़ा हिस्सा मैर्त्स के बयान से सहमत है. सर्वे में शामिल 63 फीसदी लोगों ने कहा कि समस्याएं उन प्रवासियों से जुड़ी हैं जिनके पास स्थायी निवास नहीं है, जो काम नहीं करते और जो नियम तोड़ते हैं. वहीं, 29 फीसदी लोगों ने इस बयान को अनुचित बताया.
मैर्त्स के शब्दों ने जर्मन राजनीति में प्रवासन के मुद्दे को फिर से केंद्र में ला दिया है. जहां कुछ लोग इसे शहरों में बढ़ते असंतुलन की ईमानदार चर्चा मानते हैं, वहीं अन्य इसे समाज में विभाजन को बढ़ाने वाली बयानबाजी मानते हैं. पुलिस यूनियन द्वारा मांगी गई अतिरिक्त शक्तियां भी इस बहस को और गहरा सकती हैं, क्योंकि इससे कानून प्रवर्तन और नागरिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन पर नए सवाल उठेंगे.