मेघालय में सिख कालोनी की जमीन के अधिग्रहण पर विवाद
प्रभाकर मणि तिवारी
२ नवम्बर २०२१
दो सौ साल से शिलॉन्ग की पंजाबी लेन में रह रहे परिवारों को वहां से हटाया जा रहा है. राज्य सरकार के इस कदम का विरोध मेघालय से पंजाब तक हो रहा है.
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मेघालय सरकार ने राजधानी शिलॉन्ग स्थित पंजाबी लेन इलाके का अधिग्रहण कर लिया है. वहां रहने वाले बाशिंदों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाएगा. लेकिन अब इलाके के बाशिंदों ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है.
तीन साल पहले इस इलाके में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने सुर्खियां बटोरी थीं. तब मेघालय और पंजाब सरकार ने ठन गई थी और पंजाब सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने भी मेघालय का दौरा किया था. पंजाब सरकार ने भी मेघालय सरकार के इस फैसले के प्रति विरोध जताया है. उसका आरोप है कि भूमाफियाओं के दबाव में ही यह फैसला किया गया है.
क्या है विवाद?
मई 2018 में स्थानीय खासी और सिख समुदाय के बीच हुई हिंसक झड़पों के बाद दशकों पुराने भूमि विवाद के स्थायी समाधान के उपाय सुझाने के लिए जून 2018 में एक समिति का गठन किया गया था. उसकी रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री कोनराड संगमा कैबिनेट ने सात अक्टूबर को शिलॉन्ग के थेम इव मावलोंग इलाके के सिख लेन से सिखों को अन्यत्र स्थानांतरित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
तस्वीरों मेंः करतारपुर कॉरिडोर
पाकिस्तान के करतारपुर कॉरिडोर की खासियत क्या है
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म मौजूदा पाकिस्तान में हुआ और वहीं उन्होंने आखिरी सांस भी ली. वह जहां पैदा हुए, उसे आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है और उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी साल करतारपुर में बिताए.
तस्वीर: AFP/Getty Images/N. Nanu
सिख धर्म के संस्थापक
माना जाता है कि गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी नाम के एक कस्बे में हुआ. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित यह कस्बा अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. उनका निधन 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में हुआ. उन्होंने अपने जीवन के लगभग आखिरी 18 साल यहीं पर बिताए.
दरबार साहिब करतारपुर को पाकिस्तान में सिखों के सबसे पवित्र स्थलों में गिना जाता है. ननकाना साहिब में जहां गुरु नानक पैदा हुए, वहां गुरुद्वारा जनम अस्थान है. इसके अलावा गुरुद्वारा पंजा साहिब और गुरुद्वारा सच्चा सौदा पाकिस्तान में स्थित सिखों के अन्य पवित्र स्थल हैं.
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दरबार साहिब करतार पुर
सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने करतारपुर गुरुद्वारे की बुनियाद 1504 में रखी. जहां रावी नदी पाकिस्तान में दाखिल होती है, उसके पास ही यह गुरुद्वारा स्थित है. उन्होंने अपने जीवन का आखिरी समय इस जगह पर बिताया, इसलिए सिखों के लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है.
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श्री करतारपुर साहिब
दुनिया भर के सिखों की ओर से लंबे समय से करतारपुर कॉरिडोर खोलने की मांग चली आ रही थी. इससे पहले वे भारतीय पंजाब से दूरबीनों की मदद से करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन करते थे. तस्वीर में आप इस गुरुद्वारे का एक मॉडल देख सकते हैं जिसे गुरदीप सिंह नाम के एक कलाकार ने बनाया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
करतारपुर कॉरीडोर
भारतीय पंजाब में स्थित डेरा बाबा नानक साहब को पाकिस्तान में पड़ने वाले दरबार साहिब से जोड़ने वाले कॉरिडोर को करतारपुर कॉरिडोर का नाम दिया गया है. यह लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क है. सिख अनुयायी खास वीजा लेकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali
गुरु नानक की 550वीं जयंती
गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर दुनिया भर में कार्यक्रम हुए. इसी मौके पर करतारपुर कॉरिडोर को खोला गया. अनुमान है कि दुनिया भर के 50 हजार सिखों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया.
तस्वीर: PID
इमरान खान का फैसला
इमरान खान ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद ही करतारपुर कॉरिडोर को खोलने का फैसला किया था. इसे बनाने का काम नवंबर 2018 में शुरू हुआ. कॉरिडोर बनाने के अलावा यात्रियों के रुकने की व्यवस्था और गुरुद्वारे की साज सज्जा का काम रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K.M. Chaudary
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इस कालोनी की समस्या के स्थायी समाधान के लिए मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की ओर से गठित उच्चाधिकार समिति की रिपोर्ट के एक महीने बाद सरकार ने इसका कब्जा ले लिया है. समिति की सिफारिशों को सरकार ने बीते महीने ही मंजूरी दे दी थी.
सरकार का दावा है कि यह विवादित जमीन शहरी मामलों के विभाग से जुड़ी है. उधर, सिखों का कहना है कि यह जमीन उन्हें 1850 में खासी हिल्स के मुखिया में से एक हिमा माइलीम ने उपहार में दी थी. आज माइलीम खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद के तहत 54 पारंपरिक प्रशासनिक क्षेत्रों में से एक है और पंजाबी लेन इसका हिस्सा है. मेघालय सरकार ने करीब साढ़े बारह हजार वर्गमीटर जमीन के लिए स्थानीय मुखिया को दो करोड़ रुपए का भुगतान देकर जमीन का अधिग्रहण कर लिया है.
दूसरी ओर, हरिजन पंचायत समिति की दलील है कि करीब दो सौ साल पहले उनको वह जमीन स्थानीय मुखिया से उपहार में मिली थी और सरकार को यहां रहने वाले साढ़े तीन सौ परिवारों से उसे छीनने का कोई अधिकार नहीं है. कालोनी के नेता गुरजीत सिंह सवाल करते हैं, "हमारी कालोनी का मामला मेघालय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ऐसे में सरकार इसका अधिग्रहण कैसे कर सकती है?”
मेघालय के उपमुख्यमंत्री प्रेस्टोन टेनसांग, जो उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष भी थे, कहते हैं, "हम कालोनी में रहने वालों के खिलाफ नहीं हैं. उनको कहीं भगाया नहीं जा रहा है. हम किसी समुचित स्थान पर उनका पुनर्वास करना चाहते हैं.” उनका कहना है कि हरिजन कालोनी की हालत झोपड़पट्टी से भी बदतर है और वह इंसानों के रहने लायक नहीं है. टेनसांग का कहना है कि अगर कॉलोनी में रहने वाले लोग सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो सरकार इस अधिग्रहण का बचाव करेगी.
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विरोध का पक्ष
सरकार के इस फैसले का काफी विरोध हो रहा है. पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने रविवार को कहा था कि वह शिलॉन्ग में रह रहे सिखों को वहां से निकालने के मेघालय सरकार के इस कदम का मुद्दा केंद्रीय गृह मंत्री के समक्ष उठाएंगे. रंधावा के नेतृत्व में पंजाब सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने तीन साल पहले हुई हिंसा के बाद शिलॉन्ग स्थित श्री गुरु नानक दरबार का भी दौरा किया था.
तस्वीरेंः प्रकृति की पूजा
किस किस रूप में पूजा जाता है प्रकृति को
दुनिया के कई कोनों में लोगों की पशु पक्षी और पेड़ पौधों में धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था है. जानिए कहां कहां किस किस पशु और पौधे को पवित्र माना जाता है.
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अनार
लाल अनार ना केवल पौष्टिक होता है, बल्कि धार्मिक रूप से पवित्र भी. इसे प्रेम, जीवन और उर्वरता का प्रतीक माना गया है. ईसाई धर्म में अक्सर अनार का जिक्र आता है. बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि ग्रीस में देवी एफ्रोडाइट के लिए इसका पेड़ लगाया गया.
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गोरक्षी
इस पेड़ को कई संस्कृतियों में पूजनीय माना गया है. गोरक्षी की पत्तियों का कई बीमारियों के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
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खजूर
माना जाता है कि अरब की रेतीली धरती पर इंसान ने जब पहली बार खेती करनी शुरू की, तो उगाई गई चीजों में खजूर भी शामिल थे. ईसाई और यहूदी धर्म में खजूर को खास अहमियत दी गयी है. मुसलमान रमजान के दौरान खजूर खाकर ही अपना उपवास खत्म करते हैं.
तस्वीर: imago/imagebroker
कमल
कीचड़ में उगने वाले कमल जैसा पवित्र और कुछ भी नहीं हो सकता. केवल भारत में ही नहीं, पूरे एशिया में यह मान्यता है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं में भगवान विष्णु और लक्ष्मी को कमल के फूल पर ही बैठा दिखाया जाता है.
तस्वीर: Fotolia/Aamon
गिंगको
दिल जैसे आकार की पत्तियों वाले इस पेड़ को चीन और जापान में इतना पवित्र माना जाता है कि इसे मंदिरों में लगाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह पेड़ तीस करोड़ साल पहले भी धरती पर था.
तस्वीर: Ken Arneson / CC BY 2.0
बुज्जा
सारस जैसा दिखने वाला यह पक्षी भी मिस्र सभ्यता के देवता ठोठ से नाता रखता है. ऐसी मान्यता है कि मिस्र की लिपि की रचना ठोठ ने ही की थी और वे सभी देवताओं के बीच संवाद के लिए जिम्मेदार हैं.
तस्वीर: hyper7pro / CC BY 2.0
लंगूर
कोई बच्चा बहुत उछल कूद करे, तो मजाक मजाक में उसे बंदर या लंगूर कह कर पुकारा जाता है. लेकिन प्राचीन मिस्र में लंगूर को पवित्र माना जाता था. विज्ञान और चांद के देवता ठोठ को अधिकतर लंगूर के रूप में दर्शाया जाता था.
तस्वीर: Eurekalert.org/A.Baniel
गुबरैला
लाल रंग के गुबरैले को अक्सर अच्छी किस्मत से जोड़ कर देखा जाता है. साथ ही मिस्र में इस काले गुबरैले को इतना पवित्र माना जाता है कि किसी को दफनाने के दौरान कब्र में पत्थर के बने गुबरैले का ताबीज भी रखा जाता है ताकि मरने के बाद गुबरैला व्यक्ति की रक्षा कर सके.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
चूहा
प्लेग जैसी बीमारी फैलाने और नालों में रहने के कारण चूहों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है. लेकिन भारत में यही चूहा भगवान गणेश की सवारी भी है. राजस्थान में चूहों को मारा नहीं जाता. बीकानेर के करीब तो चूहों का मंदिर भी है. (क्लाउस एस्टरलुस/आईबी)
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वहां गुरुद्वारा के प्रधान गुरजीत सिंह ने प्रतिनिधिमंडल को बताया था कि कालोनी के लोगों वहां से जबरन हटाया जा रहा था. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने मेघालय के मुख्य सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को नोटिस भेजकर इस मामले पर शीघ्र रिपोर्ट देने को कहा है.
दिल्ली के एक सिख संगठन ने भी पंजाबी लेन इलाके से गैर-सरकारी कर्मचारियों को स्थानांतरित किए जाने के मुद्दे पर मेघालय सरकार पर अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर कार्रवाई करने का आरोप लगाया है. संगठन ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक से हस्तक्षेप की मांग की है. दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के प्रतिनिधिमंडल ने राजभवन में राज्यपाल मलिक से मुलाकात कर उनको एक ज्ञापन भी सौंपा है.
सिखों के नेता गुरजीत सिंह बताते हैं, "सरकार की योजना से समुदाय के लोगों में बहुत तनाव है. हम यहां 200 वर्षों से रह रहे हैं. सरकार कई बार हमें यहां से निकालने की कोशिश कर चुकी है. हमारे पास इस जमीन के मालिकाना हक के दस्तावेज हैं.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार ने जमीन का सौदा कर भले उस पर कब्जा कर लिया हो, यह मामला इतनी आसानी से नहीं सुलझेगा. कालोनी के लोग किसी भी कीमत पर सरकार के फैसले को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं.
देखिए विश्व की 10 सबसे बड़ी मस्जिदें
मॉस्को में यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक जुमा मस्जिद है. इस छह मंजिला मस्जिद में 20,000 वर्गमीटर के क्षेत्र में 10,000 लोगों के लिए नमाज पढ़ने की जगह है. दुनिया की कुछ बड़ी मस्जिदों पर एक नजर.
तस्वीर: imago/T. Müller
जुमा मस्जिद, मॉस्को
मॉस्को की केंद्रीय मस्जिद जुमा मस्जिद या कैथीड्रल मस्जिद के नाम से भी जानी जाती है. 1904 में बनी यह मस्जिद यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिदों में शामिल है और जीर्णोद्धार के बाद यहां 10,000 लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Maximov
अल हरम मस्जिद, मक्का
इस्लाम धर्म की सबसे महत्वपूर्ण और साढ़े तीन लाख वर्गमीटर में फैली दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद है अल हरम. मूल रूप से 16वीं सदी में बनी इस मस्जिद में 9 मीनारें हैं. मस्जिद के अंदर काबा है जो इस्लाम का मुख्य पवित्रस्थल है.
तस्वीर: picture-alliance/dAP Photo/K. Mohammed
पैगंबर मस्जिद, मदीना
मक्का की अल हरम मस्जिद के बाद मदीने की मस्जिद इस्लाम का दूसरी सबसे पवित्र स्थल है. यहां पैगंबर मुहम्मद की कब्र है. यह मस्जिद 622 ईस्वी में बनी थी. इस मस्जिद में 600,000 श्रद्धालु एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/epa
अल अक्सा मस्जिद, येरूशलम
येरूशलम में टेंपल माउंट पर स्थित अल अक्सा मस्जिद 5,000 जगहों के साथ दुनिया की छोटी मस्जिदों में शुमार होती है, लेकिन सोने के गुंबद वाली 717 ईस्वी में बनी यह मस्जिद विश्वविख्यात है और इस्लाम की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण मस्जिद है.
तस्वीर: picture alliance/CPA Media
हसन मस्जिद, कासाब्लांका
सीधे अटलांटिक सागर तट पर बनी मस्जिद का नाम मोरक्को के पूर्व शाह हसन द्वितीय के नाम पर है. इसे 1993 में उनके जन्म की 60 वीं सालगिरह पर बनाया गया था. इसकी 210 मीटर ऊंची मीनार मस्जिदों में विश्व रिकॉर्ड बनाती है.
तस्वीर: picture alliance/Arco Images
शेख जायद मस्जिद, अबू धाबी
इस मस्जिद का उद्घाटन 2007 में हुआ. यह दुनिया की 8वीं सबसे बड़ी मस्जिद है. यह 224 मीटर लंबे और 174 मीटर चौड़े इलाके पर बनी है और मीनारों की ऊंचाई 107 मीटर है. मुख्य गुंबद का व्यास 32 मीटर है जो विश्व रिकॉर्ड है.
तस्वीर: imago/T. Müller
जामा मस्जिद, दिल्ली
मुगल सम्राट शाह जहां द्वारा बनवाई गई जामा मस्जिद भारत की प्रसिद्ध मस्जिदों में शामिल है. 1656 में बनकर पूरी हुई पुरानी दिल्ली की यह मस्जिद दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी मस्जिद है. यहां 25,000 लोग एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/Ahmad Masood
रोम की मस्जिद
कैथोलिक धर्म की राजधानी कहे जाने वाले रोम में भी एक विशाल मस्जिद है. 30,000 वर्गमीटर जगह वाली यह मस्जिद यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिद होने का दावा करती है. दस साल में बनी इस मस्जिद का उद्घाटन 1995 में किया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
अखमत कादिरोव मस्जिद, ग्रोज्नी
यह मस्जिद भूतपूर्व मुफ्ती और चेच्न्या के राष्ट्रपति रहे कादिरोव के नाम पर बनी है. वे 2004 में एक हमले में मारे गए थे. मस्जिद का निर्माण कार्य चेच्न्या युद्ध के कारण कई बार रोकना पड़ा. इसे 2008 में आम लोगों के लिए खोला गया.
इस मस्जिद का नाम रूसी अधिग्रहण से पहले कजान के आखिरी इमाम के नाम की याद दिलाता है. पड़ोस में स्थित कैथीड्रल के साथ इसे तातर जाति के मुसलमानों और ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों के शांतिपूर्ण सहजीवन का सूत माना जाता है.