रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने भारत को ‘बड़ी ताकत’ बताया है. अपनी भारत यात्रा के दौरान सोमवार को दोनों देशों के बीच सैन्य और ऊर्जा क्षेत्र में कई अहम समझौते हुए.
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भारत ने पुष्टि की है कि इस महीने रूस भारत को जमीन से हवा में मार करने वालीं एस-400 मिसाइलों की सप्लाई शुरू कर देगा. इस समझौते को लेकर अमेरिका ने आपत्ति भी जताई है और भारत पर प्रतिबंधों की तलवार लटक रही है.
पुतिन के दौरे पर दोनों देशों ने रक्षा तकनीक में सहयोग के लिए दस साल लंबा एक समझौता किया और तेल के लिए एक साल लंबा समझौता हुआ है. 2020 के आरंभ में पूरी दुनिया में कोरोनावायरस महामारी के फैलने के बाद व्लादीमीर पुतिन की यह दूसरी विदेश यात्रा थी. पुतिन जी-20 की बैठक और ग्लासगो के जलवायु सम्मेलन तक में नहीं गए थे. उन्होंने इसी साल जून में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से स्विट्जरलैंड में मुलाकात की थी.
तस्वीरेंः अमेरिका है हथियारों की सबसे बड़ी दुकान
हथियारों की सबसे बड़ी दुकान है अमेरिका
दुनिया में हथियारों की खरीद बिक्री पर नजर रखने वाले इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बताया है कि 2013-17 के बीच हथियारों की बिक्री 10 फीसदी बढ़ गई है. देखिए दुनिया में हथियारों के बड़े दुकानदार और खरीदार देशों को.
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संयुक्त राज्य अमेरिका
हथियारों के सौदागर के रूप में सबसे आगे चलने वाले अमेरिका ने अपनी बढ़त और ज्यादा कर ली है. बीते पांच सालों में दुनिया में बेचे गए कुल हथियारों का करीब एक तिहाई हिस्सा यानी करीब 34 फीसदी अकेले अमेरिका ने बेचे. अमेरिकी हथियार कम से कम 98 देशों को बेचे जाते हैं. इनमें बड़ा हिस्सा युद्धक और परिवहन विमानों का है.
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सऊदी अरब
अमेरिका अपने हथियारों का करीब आधा हिस्सा मध्यपूर्व के देशों को बेचता है और करीब एक तिहाई एशिया के देशों को. सऊदी अरब मध्य पूर्व में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है. दुनिया में बेचे जाने वाले कुल हथियार का करीब दसवां हिस्सा सऊदी अरब को जाता है. सऊदी अरब हथियारों की दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा खरीदार देश है. अमेरिका के 18 फीसदी हथियार सऊदी अरब खरीदता है.
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रूस
अमेरिका के बाद हथियार बेचने वालों में दूसरे नंबर पर है रूस. बेचे गए कुल हथियारों में 20 फीसदी रूस से निकलते हैं. रूस दुनिया के 47 देशों को अपने हथियार बेचता है साथ ही यूक्रेन के विद्रोहियों को भी. रूस के आधे से ज्यादा हथियार भारत, चीन और विएतनाम को जातें हैं. रूस के हथियार की बिक्री में 7.1 फीसदी की कमी आई है.
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फ्रांस
हथियारों बेचने वाले देशों में तीसरे नंबर पर है फ्रांस. कुल हथियारों की बिक्री में उसकी हिस्सेदारी 6.7 फीसदी की है. फ्रांस ने हथियारों की बिक्री में करीब 27 फीसदी का इजाफा किया है और वह दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बन गया है.
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जर्मनी
फ्रांस के बाद जर्मनी का नंबर आता है. बीते पांच सालों में जर्मनी की हथियार बिक्री में कमी आई है बावजूद इसके वह चौथे नंबर पर काबिज है. जर्मनी ने मध्य पूर्व के देशों को बेचे जाने वाले हथियारों में करीब 109 फीसदी का इजाफा किया है.
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चीन
अमेरिका और यूरोप के बाद हथियार नियातकों में नंबर आता है चीन का. बीते पांच सालों में उसके हथियारों की बिक्री करीब 38 फीसदी बढ़ी है. चीन के हथियारों का मुख्य खरीदार पाकिस्तान है. हालांकि इसी दौर में अल्जीरिया और बांग्लादेश भी चीन के हथियारों के बड़े खरीदार बन कर उभरे हैं. चीन ने म्यांमार को भी भारी मात्रा में हथियार बेचे हैं.
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इस्राएल
हथियारों की एक बड़ी दुकान इस्राएल में है. बीचे पांच सालों में उसने अपने हथियारों की बिक्री करीब 55 फीसदी बढ़ाई है. इस्राएल भारत को बड़ी मात्रा में हथियार बेच रहा है.
तस्वीर: Reuters
दक्षिण कोरिया
हथियारों के कारोबार में अब दक्षिण कोरिया का भी नाम लिया जाने लगा है. उसने अपने हथियारों की बिक्री बीते पांच सालों में करीब 65 फीसदी बढ़ाई है.
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तुर्की
इस दौर में जिन देशों के हथियारों की बिक्री ज्यादा बढ़ी है उनमें तुर्की भी शामिल है. उसने हथियारों का निर्यात 2013-17 के बीच करीब 165 फीसदी तक बढ़ा दिया है.
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भारत
हथियारों के खरीदार देश में भारत इस वक्त सबसे ऊपर है. दुनिया में बेच जाने वाले कुल हथियारों का 12 फीसदी भारत ने खरीदे हैं. इनमें करीब आधे हथियार रूस से खरीदे गए हैं. भारत ने अमेरिका से हथियारों की खरीदारी भी बढ़ा दी है इसके अलवा फ्रांस और इस्राएल से भी भारी मात्रा में हथियार खरीदे जा रहे हैं.
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पाकिस्तान
पाकिस्तान के हथियारों की खरीदारी में कमी आई है. फिलहाल दुनिया में बेचे जाने वाले कुल हथियारों का 2.8 फीसदी पाकिस्तान में जाता है. पाकिस्तान ने अमेरिका से हथियारों की खरीदारी काफी कम कर दी है.
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उसके बाद वह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही व्यक्तिगत रूप से मिले हैं. नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद पुतिन ने कहा, "हम भारत को एक बड़ी ताकत मानते हैं, एक मित्र देश और वक्त पर आजमाया हुआ एक दोस्त.”
हथियारों पर समझौते
रूस लंबे समय से भारत को हथियारों की सप्लाई करता रहा है. एस-400 मिसाइलों की सप्लाई को भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है. भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने दोनों पक्षों की बैठक के बाद कहा, "सप्लाई इस महीने शुरू हो गई है और जारी रहेगी.”
2018 में हुआ यह समझौता पांच अरब डॉलर से भी ज्यादा का है लेकिन इस पर अमेरिका की नाराजगी की तलवार लटक रही है. अमेरिका ने ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट' (CAATSA) नामक कानून के तहत इस समझौते को आपत्तिजनक माना है. हालांकि पिछले हफ्ते अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत पर प्रतिबंध लगाने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है.
इधर रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेश्कोव ने सोमवार को मीडिया को बताया, "हमारे भारतीय दोस्तों ने स्पष्ट कहा है कि वे एक संप्रभु देश हैं और किससे हथियार खरीदने हैं व कौन भारत का साझीदार होगा, इसका फैसला वे खुद करेंगे.”
पुतिन के इस दौरे पर बातचीत ऊर्जा और हथियारों तक ही सीमित रही. एक समझौते के तहत रूसी कंपनी रोसनेफ्ट भारत को 20 लाख टन तेल सप्लआई करेगी. इसके अलावा दस साल लंबे रक्षा समझौते के तहत दोनों देशों ने मिलकर एके-203 राइफल बनाने का फैसला किया है.
आकार के अनुसार सबसे बड़े देश
आकार के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े देश
क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया 15 सबसे बड़े देशों के पास पूरे ग्लोब की आधी से ज्यादा जमीन है. भारत इस सूची में सातवें नंबर पर है. देखिए टॉप 15 लिस्ट.
क्लाशनिकोव बनाने वाली कंपनी ने कहा कि भारत में बनाई जा रही छह लाख एके-203 राइफल भारतीय सेना को दी जाएंगी. कंपनी के जनरल डायरेक्टर व्लादीमीर लेपिन ने कहा, "हम आधुनिक एके-203 राइफलों के उत्पादन के लिए अगले कुछ महीनों में ही तैयार होंगे.”
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रूस और अमेरिका के बीच भारत
शीत युद्ध के दौरान भारत को सोवियत संघ का करीबी माना जाता था. उस ऐतिहासिक करीबियों की आंच अब भी बची हुई है. हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत की अमेरिका के साथ नजदीकियां बढ़ी हैं. इस लिहाज से विशेषज्ञ मानते हैं कि पुतिन का भारत दौरा प्रतीकात्मक रूप से काफी अहम है.
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नंदन उन्नीकृष्णन कहते हैं, "भारत-रूस संबंधों को लेकर बहुत सारी अटकलें लगाई जाती रही हैं. इस बारे में बहुत संदेह रहे हैं कि रूस की चीन के साथ और भारत की अमेरिका के साथ नजदीकियों का इन संबंधों पर क्या असर पड़ेगा. इस दौरे ने उन सारी अटकलों को शांत कर दिया है.”
रूसी एस-400 मिसाइल क्यों है खास
रूसी एस-400 सिस्टम में क्या खास है?
अमेरिकी प्रतिबंधों की चिंता किए बिना भारत रूस से एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीद रहा है. आखिर ऐसा क्या खास है इसमें.
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बेहतर होते रिश्ते
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ साझा बयान जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों देश बहुत तेजी से एक दूसरे के करीब आए हैं. उन्होंने कहा, "वक्त के साथ हमारे देशों के संबंध लगातार मजबूत होते गए हैं."
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क्या है एस-400
रूस में तैयार एस-400 एक ऐसा सिस्टम है जो बैलेस्टिक मिसाइलों से बचाव करता है. यह ना सिर्फ दुश्मन की तरफ से दागी जाने वाली मिसाइलों का पता लगाता है बल्कि उन्हें हवा में ही मार गिराने की क्षमता भी रखता है.
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सिर्फ पांच मिनट
एस-400 एक मोबाइल एयर डिफेंस सिस्टम है जिसे पांच मिनट के भीतर तैनात किया जा सकता है. इसमें कई तरह के रडार, ऑटोनोमस डिटेक्शन और टारगेटिंग सिस्टम और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम लगे हैं.
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100 टारगेट
यह सिस्टम 400 किलोमीटर की दूरी से और 30 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर उड़ने वाले सभी तरह के विमानों और बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइलों का पता लगा सकता है. यह एक साथ 100 हवाई टारगेट्स को भांप सकता है.
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अमेरिका की चिंता नहीं
भारत इस सिस्टम के लिए 5 अरब डॉलर तक खर्च करने को तैयार है. हालांकि अमेरिका ने साफ कहा है कि रूस से रक्षा समझौता करने पर भारत को प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं. लेकिन भारत इससे बेपरवाह दिख रहा है.
भारत की जरूरत
पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर भारत इसे अपनी सुरक्षा के लिए अहम मानता है. पाकिस्तान भारत का पुराना प्रतिद्वंद्वी है तो चीन से साथ हजारों किलोमीटर लंबा सीमा विवाद अनसुलझा है.
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और किसके पास?
चीन ने भी रूस से एस-400 सिस्टम की छह बटालियन खरीदने के लिए 2015 में एक समझौता किया था, जिसकी डिलीवरी जनवरी 2018 में शुरू हो गई. तुर्की और सऊदी अरब जैसे देश भी रूस से एस-400 सिस्टम खरीदना चाहते हैं.
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अमेरिकी सिस्टम से बेहतर
अमेरिका निर्मित एफ-35 जैसे लड़ाकू विमान भी इसकी पहुंच से बाहर नहीं हैं. एस-400 एक साथ ऐसे छह लड़ाकू विमानों से निपट सकता है. एस-400 को अमेरिका के टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम से ज्यादा प्रभावी माना जाता है.
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जांचा परखा
यह डिफेंस सिस्टम 2007 से काम कर रहा है और मॉस्को की सुरक्षा में तैनात है. लड़ाई के कई मोर्चों पर इसे परखा जा चुका है. 2015 में रूस ने इसे सीरिया में तैनात किया था. क्रीमिया प्रायद्वीप में भी इसे तैनात किया गया.
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भारत और चीन के बीच संबंध पिछले समय से लगातार खराब हो रहे हैं. अमेरिका भी चीन के जवाब में भारत का साथ लेना चाहता है. इसलिए चार देशों के संगठन क्वॉड सिक्यॉरिटी डायलॉग को भी मजबूत किया जा रहा है, जिसमें भारत और अमेरिका के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं.
उधर चीन और रूस की करीबियों से भारतीय पक्ष में हलचल रहती है. लेकिन ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पढाने वालीं टाटियाना बेलूसोवा कहती हैं कि इस क्षेत्र में रूस का प्रभाव सीमित है. वह कहती हैं, "चीन के साथ उसके मजबूत संबंधों और चीन के क्षेत्रीय हितों के खिलाफ कोई कार्रवाई ना करने की मंशा के चलते रूस का इस क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव नहीं है.”