पिछले लगभग दो दशकों से रूस के राजनीतिक आसमान पर काबिज व्लादिमीर पुतिन अपना पांचवां राष्ट्रपति चुनाव अब तक के रिकॉर्ड मतों से जीतने की ओर बढ़ चुके हैं.
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रूसी जासूसी एजेंसी केजीबी में एक सामान्य जासूस रहे व्लादिमीर पुतिन 1999 में नव वर्ष की पूर्व संध्या में पहली बार देश के राष्ट्रपति बने थे. तब से उन्होंने सत्ता पर लगातार अपना कब्जा बनाया हुआ है. और 2024 में वह अब तक की सबसे बड़ी जीत के साथ वैश्विक व्यवस्था बदलने के अपने इरादे को और मजबूती के साथ लेकर आगे बढ़ने की तैयारी में हैं.
पुतिन के दौर में रूस बहुत तेजी से बदला है. देश के सबसे ताकतवर ओलिगार्क तबके को उन्होंने पूरी तरह काबू कर लिया है. देश में विपक्ष लगभग खत्म हो चुका है और रूस एक तानाशाही शासन जैसे माहौल की ओर बढ़ रहा है.
नावाल्नी के बाद रूस में अभी और भी विपक्षी ऐक्टिविस्ट जेलों में हैं
रूस के प्रमुख विपक्षी नेता ऐलेक्सी नावाल्नी की जेल में मौत के बाद देश में विपक्ष के अन्य कार्यकर्ताओं को लेकर चिंताएं उत्पन्न हो रही हैं. अभी भी ऐसे कई विपक्षी ऐक्टिविस्ट बचे हैं जो उन्हीं की तरह लंबे समय से कैद हैं.
तस्वीर: Liesa Johannssen/REUTERS
इल्या याशिन
इल्या याशिन नावाल्नी के पुराने सहयोगी हैं. उन्हें यूक्रेन के बूचा में रूसी सैनिकों के कथित युद्ध अपराधों के बारे में दिए गए बयान की वजह से आठ साल से ज्यादा जेल की सजा सुनाई गई थी. 40 साल के याशिन ने पुतिन को उस "नरसंहार के लिए जिम्मेदार" बताया था और कहा था, "एक ईमानदार आदमी के रूप में जेल की सलाखों के पीछे 10 साल बिताना, आपकी सरकार जो खून बहा रही है उस पर शर्मिंदगी से चुपचाप मरने से बेहतर है."
तस्वीर: Yury Kochetkov/Pool/AP/picture alliance
व्लादिमीर कारा-मुर्जा
42 साल के विपक्षी नेता व्लादिमीर कारा-मुर्जा को देशद्रोह और अन्य आरोपों में अप्रैल 2023 को 25 साल जेल की सजा दी गई थी. उन्हें जनवरी 2024 में साइबेरिया में बनी एक नई पीनल कॉलोनी में भेज दिया गया था जहां उन्हें एक कड़े एकांत कक्ष में रखा गया है. आरोप है कि उन्हें दो बार जहर देकर मारने की कोशिश की गई है जिनसे वह बच तो गए लेकिन उन्हें एक बीमारी हो गई.
तस्वीर: Maxim Grigoryev/TASS/dpa/picture alliance
इगोर गिरकिन
इगोर गिरकिन को इगोर स्त्रेलकोव के नाम से भी जाना जाता है. वह एक राष्ट्रवादी सेना के पूर्व प्रमुख कमांडर हैं. उन्होंने 2014 में क्रीमिया को हथिया लेने में रूस की मदद की थी. लेकिन बाद में वह पुतिन के विरोधी हो गए. 53 साल के गिरकिन ने चुनावों में पुतिन के खिलाफ लड़ने की इक्षा जाहिर की थी. उन्हें पुतिन की निंदा करने के बाद जनवरी 2024 में "चरमपंथ भड़काने" के आरोप में चार साल जेल की सजा दी गई थी.
तस्वीर: Alexander Zemlianichenko/AP Photo/picture alliance
लिलिया चानिशेवा, वादिम ओस्तानिन, सेनिया फादेयेवा
लिलिया चानिशेवा, वादिम ओस्तानिन और सेनिया फादेयेवा नावाल्नी के अभियान और उनके भ्रष्टाचार-विरोधी संगठन एफबीके के पूर्व सहयोगी हैं. चानिशेवा को "एक चरमपंथी संगठन बनाने" के लिए जून 2023 में 7.5 साल जेल की सजा, ओस्तानिन को एक "चरमपंथी समुदाय" में शामिल होने के लिए जुलाई 2023 में नौ साल जेल की सजा और फादेयेवा को एक "चरमपंथी संगठन" चलाने के लिए दिसंबर 2023 में 9.5 साल जेल की सजा दी गई थी.
तस्वीर: DW
इगोर सेर्गुनिन, एलेक्सेई लिप्तसर, वादिम कोब्जेव
इगोर सेर्गुनिन, एलेक्सेई लिप्तसर और वादिम कोब्जेव नावाल्नी के वकील हैं. उन पर नावाल्नी की सलाखों के पीछे से 'चरमपंथी गतिविधियों' को चलाने में मदद करने के आरोप लगे हैं. रूस के गृह मंत्रालय ने फरवरी 2024 में नावाल्नी के दो और वकीलों को अपनी वॉन्टेड लिस्ट में शामिल किया. ये दोनों हैं ओल्गा मिखाइलोवा और अलेक्सान्दर फेदुलोव. माना जा रहा है कि दोनों ही इस समय रूस से बाहर हैं. - सीके/वीके (रॉयटर्स)
तस्वीर: Yevgeny Kurakin/AFP/Getty Images
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ऐसे माहौल में पुतिन की जीत में किसी तरह की गुंजाइश तो पहले से ही नहीं थी लेकिन हजारों विरोधियों के ‘नून प्रोटेस्ट‘ के बीच एग्जिट पोल में पुतिन को 87 फीसदी मतों से जीतता हुआ दिखाया गया है.
मजबूत हुई पकड़
पिछले महीने ही एक जेल में पुतिन के सबसे बड़े राजनीतिक विरोधी और आलोचक ऐलेक्सी नावाल्नी की मौत हो गई थी. उनके कई अन्य विरोधी जेलों में बंद हैं या विदेशों में निर्वासन में हैं. 71 साल के पुतिन ने किसी तरह के विपक्ष को उभरने का मौका ही नहीं दिया है.
2022 की फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद पुतिन की सत्ता पर पकड़ और मजबूत हुई है. देश में इस युद्ध का जो भी विरोध था उसे लगभग खामोश कर दिया गया. रूस के हमले के बाद देश में बड़े पैमाने पर युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए थे लेकिन बहुत जल्द ही वे गायब हो गए. पश्चिम के तगड़े विरोध और भारी आर्थिक व वित्तीय प्रतिबंधों के बावजूद यूक्रेन युद्ध ने पुतिन की सत्ता पर पकड़ को और ज्यादा मजबूत किया.
इस चुनाव में जीत के साथ पुतिन ने छह साल और राष्ट्रपति पद पर बने रहना सुनिश्चित कर लिया है और इस तरह वह 200 साल में रूस पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले शासक बनने जा रहे हैं. इस कार्यकाल के साथ ही वह जोसेफ स्टालिन का सबसे लंबे राज का रिकॉर्ड भी तोड़ देंगे.
सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाले देश
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं और वह दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंधों वाला देश है. लेकिन और बहुत से देश हैं, जिन पर बड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे हुए हैं.
रूस पर इस वक्त 18,772 प्रतिबंध हैं. हालांकि 2022 में यूक्रेन पर उसके हमले की तुलना में यह छह गुना बढ़ चुके हैं. फरवरी 2022 के बाद से ही उस पर या उसके नागरिकों पर 16,000 से ज्यादा प्रतिबंध लगाए गए हैं. इनमें से 11,462 तो व्यक्तियों पर हैं.
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के पहले ईरान दुनिया का सबसे अधिक प्रतिबंधों वाला देश था. यूएन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत व इस्राएल जैसे देशों ने उस पर 3,616 प्रतिबंध लगाए हुए थे जो अब बढ़कर 4,953 हो चुके हैं.
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सीरिया, तीसरे नंबर पर
सीरिया पर 2,811 प्रतिबंध हैं. हालांकि इनमें से अधिकतर 2011 के गृह युद्ध के बाद लगाए गए. अब वह प्रतिबंधों की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है.
तस्वीर: Louai Beshara/AFP/Getty Images
उत्तर कोरिया
प्रतिबंधों के मामले में उत्तर कोरिया दशकों से अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पश्चिमी देशों की सूची में ऊपर रहा है. फिलहाल उसके ऊपर 2,171 प्रतिबंध लगे हैं.
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बेलारूस
रूस का बेहद करीबी और पड़ोसी बेलारूस प्रतिबंधों की सूची में पांचवें नंबर पर है. उस पर कुल 1,454 प्रतिबंध हैं. इनमें से एक तिहाई से ज्यादा फरवरी 2022 के बाद लगाए गए हैं.
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म्यांमार
2021 में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किए जाने से पहले भी म्यांमार बड़ी संख्या में प्रतिबंध झेल रहा था. लेकिन अब उसके प्रतिबंधों की संख्या 988 हो चुकी है.
पब्लिक ओपिनियन फाउंडेशन नामक सर्वेक्षण संस्था के एग्जिट पोल के मुताबिक पुतिन को लगभग 88 फीसदी मत मिलेंगे. शुरुआती नतीजों ने इन अनुमानों को सही साबित किया है. दूसरे नंबर पर वामपंथी उम्मीदवार निकोलाई खारितोनोव हैं जिन्हें चार फीसदी मत मिलने का अनुमान है.
भारी समर्थन
अमेरिका ने इन चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठाया है. व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने कहा, "जिस तरह पुतिन ने अपने राजनीतिक विरोधियों को जेलों में डाला है और चुनाव लड़ने से रोका है, उससे जाहिर है कि ये चुनाव निष्पक्ष नहीं हैं.”
पुतिन की जीत पर संदेह तो कम ही था लेकिन तीन दिन तक चले चुनाव में उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि देश का मतदाता उनका समर्थक है. राष्ट्रीय चुनाव अधिकारियों के मुताबिक इस बार देश में रिकॉर्ड 74.22 फीसदी मतदान हुआ है. इसने 2018 के 67.5 फीसदी के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है.
रॉयटर्स समाचार एजेंसी के संवाददाता ने कहा कि दोपहर के बाद मतदान केंद्रों पर भारी भीड़ देखी गई. इनमें बड़ी संख्या में युवा मतदाता शामिल थे और मॉस्को, सेंट पीटर्सबर्ग व येकातेरिनबर्ग में मतदान केंद्रों पर कई जगह सैकड़ों-हजारों लोगों की लाइनें लगी थीं.
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पश्चिम के लिए सबक
नावाल्नी के समर्थकों ने पुतिन के विरोध में ‘नून अगेंस्ट पुतिन' नाम से अभियान चलाकर विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया था लेकिन मतदान केंद्रों के बाहर नाममात्र के प्रदर्शनकारी नजर आए.
रूस के बाहर एशिया और यूरोप में रह रहे मतदाताओं के लिए दूतावासों में मतदान केंद्र बनाए गए थे और वहां बड़े पैमाने पर विरोधी प्रदर्शनकारी जमा हुए. बर्लिन में जब नावाल्नी की विधवा रूसी दूतावास के बाहर पहुंचीं तो लोगों ने ‘यूलिया, यूलिया' के नारे लगाए.
लातविया में रूसी हमले का डर
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नावाल्नी की बनाई संस्था एंटी-करप्शन फाउंडेशन के रुसलान शावेदीनोव ने इन प्रदर्शनों को अपनी जीत बताया. उन्होंने कहा, "हमने खुद को, पूरे रूस को और बाकी दुनिया को दिखाया कि पुतिन रूस नहीं है और पुतिन ने रूस में सत्ता पर कब्जा किया है. हमारी जीत इस बात में है कि हम रूसियों ने डर को हराया है. लोगों ने देखा कि वे अकेले नहीं हैं.”
अमेरिका के फिलाडेल्फिया स्थित फॉरेन पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट के नेशनल सिक्यॉरिटी प्रोग्राम के निदेशक निकोलास ग्वोसदेव कहते हैं कि पुतिन का लक्ष्य अब अपनी सोच को रूस की राजनीति पर थोपना है ताकि वह सुनिश्चित कर सकें कि उनका उत्तराधिकारी भी उन जैसा ही हो.
ग्वोसदेव ने कहा, "जो पश्चिम ये उम्मीद कर रहा था कि यूक्रेन में पुतिन का अभियान जल्दी खत्म हो जाएगा, उन्हें यह चुनाव याद दिलाता है कि भू-राजनीतिक बॉक्सिंग रिंग में पुतिन कई और दौर की तैयारी में हैं.”