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जीती जमीन को खोते जा रहे पुतिन के सामने क्या रास्ते हैं

१४ सितम्बर २०२२

यूक्रेन उत्तर पू्र्वी हिस्से में अपनी खोई जमीन हासिल कर रहा है और रूसी सेना पीछे हट रही है. छह महीने से चले आ रहे युद्ध में पुतिन के सामने अब क्या विकल्प बचे हैं. वो दोबारा जोरदार हमला करेंगे या समझौते की राह पर चलेंगे.

यूक्रेन उत्तर पूर्व में अपनी खोई जमीन पर कब्जा कर रहा है
पुतिन पर राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ रहा हैतस्वीर: Gavriil Grigorov/Sputnik/Kremlin Poo//AP/picture alliance / ASSOCIATED PRESS

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने उत्तर पूर्वी यूक्रेन में बिजली की तेजी से उनकी फौज के पांव उखड़ने पर सार्वजनिक रूप से अब तक कुछ नहीं कहा है, लेकिन उन पर खोये इलाकों पर दोबारा कब्जे के लिये राष्ट्रवादियों की तरफ से दबाव बढ़ रहा है.

पश्चिमी खुफिया एजेंसियों और मुक्त स्रोतों के विश्लेषण अगर सही हैं तो पुतिन के सामने स्थिति को बदलने के लिये कुछ विकल्प हैं. हालांकि लगभग सारे ही विकल्पों में घरेलू और भूराजनैतिक खतरे जुड़े हुए हैं. 1999 में सत्ता संभालने के बाद पुतिन के लिये चेचन्या और उत्तरी कॉकेशस के इलाके में इस्लामी चरमपंथियों का सामना सबसे बड़ी सैन्य चुनौती रहा है. तब पुतिन ने और ज्यादा ताकत के साथ युद्ध तेज करने का फैसला किया था. उस आधार पर विश्लेषकों का कहना है कि पुतिन के सामने अब ये विकल्प हैंः

स्थिरता, पुनर्गठन, हमला

रूसी और पश्चिमी सैन्य विश्लेषक इस बात पर सहमत हैं कि रूसी नजरिये से, रूसी सेनाओं को तुरंत मोर्चों को स्थिर करने की जरूरत है, यूक्रेन की बढ़त को रोकें, दोबारा संगठित हों और अगर कर सकते हैं तो फिर जवाबी हमला शुरू करें. हालांकि पश्चिमी देशों में इस बात को लेकर संदेह उभर रहे हैं कि क्या रूस के पास पर्याप्त जमीनी सेना और हथियार मौजूद हैं. पिछले महीनों में यूक्रेन युद्ध के दौरान रूसी सेना ने भारी नुकसान उठाया है और बहुत सारे हथियार या तो नष्ट हो गये या फिर युद्ध क्षेत्र में ही छोड़ दिये गये.

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पोलैंड की रोचान कंसल्टिंग के कोनराज मुजिका ने उत्तर पूर्व में रूसी सेना के पीछे हटने के बाद कहा, "मैनपावर नहीं है. वॉलंटियर बटालियन क्षमता से कम है और भर्ती अभियान से वो सब नहीं मिला जिसकी उम्मीद थी और मुझे लगता है कि यह आने वाले दिनों में और बुरा होगा क्योंकि कम ही लोग अब इसमें जाना चाहते हैं. अगर मॉस्को ज्यादा लोग चाहता है तो उसे लोगों को जुटाना होगा."

खारकीव में रूसी सेना की गाड़ी देखते यूक्रेनी सैनिकतस्वीर: Metin Aktas/AA/picture alliance

सैनिकों को बढ़ाने की कोशिशों के तहत रूस थर्ड आर्मी कॉर्प्स की तैनाती कर सकता है, चेचेन नेता रमजान कादिरोव भी नये सैनिक तैयार कर रहे हैं और पुतिन ने रूसी सशस्त्र सेना का आकार बढ़ाने के लिए पिछले महीने एक डिक्री पर दस्तखत किये हैं.

पुतिन को यह फैसला करना होगा कि क्या वो राष्ट्रवादी आलोचकों की मांग पर रक्षा मंत्री सर्गेई सोइगु समेत सेना के शीर्ष अधिकारियों को पद से हटा दें. शोइगु पुतिन के करीबी हैं और पारंपरिक रूप से पुतिन अपने कनिष्ठों के मामले में तात्कालिक दबाव के आगे नहीं झुकते. हालांकि कई बार उन्होंने बाद में ऐसे लोगों से किनारा कर लिया.

सैनिकों को इकट्ठा करना

रिजर्व रूसी सैनिकों को जमा करना भी पुतिन के सामने एक विकल्प है जो किया जा सकता है. पिछले पांच सालों में रिजर्व सैनिकों की संख्या 20 लाख से ऊपर रही है. हालांकि उन्हें ट्रेनिंग दे कर तैनात करने में वक्त लगेगा. मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय क्रेमलिन ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर सैनिकों को बुलाने पर "फिलहाल कोई चर्चा नहीं" हो रही है.

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इसका एक मतलब है कि यूक्रेन पर आधिकारिक संदेश बदला जा सकता है. अब तक पुतिन इसे विशेष सैन्य अभियान कहते आये हैं जिसके सीमित लक्ष्य हैं लेकिन अब इसे खुला युद्ध करार दिया जा सकता है.

इसके नतीजे में अधिकारियों पर रूसी लोगों के जीवन की सुरक्षा की कोशिशों की नीति छोड़ने का दबाव बनेगा. 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमले के पहले रूस में यही नीति लागू थी.

रूस को पूरी तरह से युद्ध में झोंकने का मतलब है कि इसके घरेलू स्तर पर राजनीतिक खतरे भी होंगे खासतौर से रूसी जनता इसके विरोध में जा सकती है.

इससे यह भी संदेश जायेगा कि रूस एक स्लाव देश के साथ खुला युद्ध लड़ रहा है और रूस के लिये युद्ध में यह कठिन समय है.

यूक्रेनी सैनिकों के हमले में ध्वस्त रूसी टैंकतस्वीर: Metin Aktas/AA/picture alliance

रूसी विदेश मंत्रालय के करीबी थिंक टैंक आरआईएसी के प्रमुख आंद्रे कोर्तुनोव का मानना है कि अधिकारी सैनिकों को जमा करने के पक्ष में नहीं हैं. कोर्तुनोव का कहना है, "बड़े शहरों में बहुत से लोग यु्द्ध में जा कर लड़ना नहीं चाहते, सेना के लिये लोगों को जुटाना उन्हें पसंद नहीं आयेगा. दूसरे मेरे ख्याल में यह पुतिन के लिये अच्छा रहेगा कि इसे सीमित ऑपरेशन ही बनाये रखें. सरकार कोई बड़ा बदलाव करने से पहले जितना संभव है उसे उतना बचाने की कोशिश करेगी."

रूस में ब्रिटेन के पूर्व राजनयिक टोनी ब्रेंटन का कहना है कि सैनिक जुटाने का युद्ध पर कोई असर होने में कई महीने लग जायेंगे.

सर्दियों पर दांव

क्रेमलिन से जुड़े दो रूसी सूत्रों ने पिछले महीने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को जानकारी दी कि पुतिन ऊर्जा की आसमान छूती कीमतों और सर्दियों में इसकी कमी से भी उम्मीद लगाये बैठे हैं. पुतिन को लगता है कि सर्दियां यूरोप को यूक्रेन में रूसी शर्तों पर शांति के लिये मना लेंगी.

कुछ यूरोपीय राजनयिक मानते हैं कि युद्ध क्षेत्र में मिली हाल की सफलताओं ने यूरोपीय देशों को रूस को छूट देने के लिये यूक्रेन पर दबाव बनाने की कोशिशों को कमजोर कर दिया है. जर्मनी जैसे देश रूस के प्रति हाल के हफ्तों में ज्यादा सख्त हुए हैं और सर्दियों की ऊर्जा समस्या से निबटने के लिये तैयार हो गये हैं.

यूरोपीय संघ ने रूसी कोयले पर प्रतिबंध लगा दिया है और रूसी कच्चे तेल पर आंशिक रूप से रोक लगाई है. इसके बदले में रूस ने यूरोप को गैस के निर्यात में भारी कमी कर दी है और यह साफ किया है कि वह यूरोप को ऊर्जा निर्यात पूरी तरह से बंद कर सकता है. पुतिन के पास यह विकल्प है लेकिन अभी तक उन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया है.

यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का कहना है कि वो अपने इलाकों को ताकत के दम पर आजाद करायेंगेतस्वीर: Sarsenov Daniiar/Ukraine Preside/Planet Pix/ZUMA/picture alliance

मिसाइल हमलों का विस्तार

उत्तर पूर्व में पांव उखड़ने के बाद रूस यूक्रेन की सेना से जुड़े बुनियादी ढांचे को मिसाइलों का निशाना बनाया. इसके नतीजे में खारकीव और आस पास के पोल्टावा और सुमी इलाके में बिजली गुल हो गई. पानी की सप्लाई और मोबाइल नेटवर्क पर भी काफी असर हुआ.

रूसी राष्ट्रवादियों ने इस पर खुशी जताई खासतौर से वो जो रूसी क्रूज मिसाइलों से यूक्रेनी बुनियादी ढांचे को तबाह होते देखना चाहते हैं. निश्चित रूप से इस कदम की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा होगी.

यह राष्ट्रवादी लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि रूस कीव और दूसरी जगहों के फैसले लेने वाले केंद्रों को मिसाइलों से निशाना बनाये. यह ऐसा कदम है जो समानांतर नुकसान के बगैर शायद ही संभव होगा. 

अनाज निर्यात पर समझौते को घटाना या खत्म करना

पुतिन की शिकायत है कि संयुक्त राष्ट्र और तुर्की की मध्यस्थता में यूक्रेन से काले सागर के रास्ते अनाज के निर्यात को लेकर जो समझौता हुआ वह गरीब देशों और रूस के लिये अनुचित है. पुतिन इस हफ्ते तुर्की के नेता रेचप तैयप एर्दोवान से इस समझौते में सुधार पर बातचीत करने वाले हैं. इससे यूक्रेन को राजस्व हासिल हो रहा है जिसकी उसे बहुत जरूरत भी है. अगर पुतिन यूक्रेन को तुरंत नुकसान पहुंचाना चाहते हैं तो वो इस समझौते को स्थगित या रद्द कर सकते है या फिर नवंबर में इसके नवीनीकरण से इनकार कर सकते हैं.

पश्चिमी देशों के साथ ही अफ्रीका और मध्यपूर्व के गरीब देश उन्हें वैश्विक खाद्य कमी को और ज्यादा बढ़ाने के लिये उन्हें दोषी मानेंगे और वो यूक्रेन पर आरोप लगायेंगे.

रूसी सेना मिसाइलों के हमले बढ़ा सकती हैतस्वीर: Russian Defense Ministry Press Service/AP/picture alliance

शांति समझौता

क्रेमलिन का कहना है कि वह शांति समझौते की बारी आने पर ही उसकी शर्तें बतायेगा. उधर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का कहना है कि वो अपने देश को आजाद कराने के लिये ताकत का इश्तेमाल करेंगे. जेलेंस्की का कहना है कि इसमें क्रीमिया भी शामिल है जिसे रूस ने 2014 में यूक्रेन से अलग कर लिया था.

रूस बार बार यह कहता रहा है कि क्रीमिया का मामला हमेशा के लिये खत्म हो चुका है. पूर्वी यूक्रेन में डोनेत्स्क या लुहांस्क के इलाकों को छोड़ना भी रूस के लिये राजनीतिक रूप से संभव नहीं दिखता क्योंकि वह उन्हें आधिकारिक रूप से मान्यता दे चुका है. इन इलाकों को यूक्रेनी सेना से "आजाद" कराने को ही पुतिन ने अपने सैन्य अभियान का पहला मकसद बताया था.

दक्षिणी यूक्रन में जिन तीन इलाकों पर रूस का आंशिक नियंत्रण है उसे छोड़ने के लिये भी घरेलू स्तर पर लोगों को मनाना पुतिन के लिये कठिन होगा.

दक्षिणी खेरसॉन का इलाका क्रीमिया के सीधे उत्तर में है और यहां एक नहर है जो काले सागर प्रायद्वीप तक पानी पहुंचाती है.

इसी तरफ पड़ोस के जापोरिझिया इलाके में खेसरॉन रूस को एक सीधा जमीनी गलियारा भी मुहैया कराता है जिससे हो कर वह क्रीमिया तक सप्लाई पहुंचा सकता है. रूस के लिये इस युद्ध के बड़े पुरस्कारों में यह शामिल है.

पुतिन परमाणु हमला करेंगे इसकी आशंका कम हैतस्वीर: AP Photo/picture-alliance

परमाणु हमला

रूसी सरकार के अधिकारी यूक्रेन में परमाणु हथियार के इस्तेमाल की पश्चिमी देशों की आशंका से इनकार करते आये हैं, हालांकि फिर भी इसे लेकर पश्चिमी देशों में चिंता है. ऐसा हुआ तो बड़े पैमाने पर लोगों की जान जायेगी और इसके दूसरे खतरनाक नतीजे भी होंगे जिनें पश्चिमी देशों का रूस के साथ सीधे युद्ध में उतरना भी शामिल है.

रूस की परमाणु नीति उसे सिर्फ तब इसके इस्तेमाल का अधिकार देती है जब उसके खिलाफ इस तरह या फिर महाविनाश के हथियारों का इस्तेमाल हुआ हो या फिर रूस के अस्तित्व को पारंपरिक से खतरा हो.

रूस में पूर्व ब्रिटिश राजदूत ब्रेंटन ने चेतावनी दी है कि अलग थलग पड़े पुतिन अपमानजनक हार की स्थिति में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

रिटायर्ड अमेरिकी जनरल बेन होजेस यूरोप में अमेरिकी सेना के कमांडर रहे हैं. वो मानते हैं कि इसका खतरा तो है लेकिन यह होगा नहीं. होजेस का कहना है, "इससे युद्ध क्षेत्र में कोई बड़ी सफलता नहीं मिलेगी, उसके बाद अमेरिका के लिये इसका जवाब नहीं देना संभव नहीं रहेगा और मुझे नहीं लगता कि पुतिन या उनके करीबी सलाहकार आत्मघाती हैं."

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

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