कतर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ये हैट्स बनाए हैं. ये हैट्स सोलर पावर से काम करते हैं. इस कदम का मकसद मजदूरों के काम करने के हालात को बेहतर बनाना है. 2022 वर्ल्ड कप के लिए कतर में खासा काम हो रहा है लेकिन मानवाधिकार संगठन मजदूरों की बदहाली को लेकर कतर की तीखी आलोचना करते रहे हैं.
मजदूरों को जो हेल्मेट दिए गए हैं उनमें ऊपर की ओर एक पंखा लगा हुआ है जो चेहरे पर हवा फेंकता है. इससे त्वचा का तापमान बढ़ नहीं पाता है. कतर यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग प्रोफेसर सऊद गनी कहते हैं कि यह पंखा शरीर की त्वचा का तापमान 10 डिग्री के आसपास रखता है. गनी कहते हैं, "हमारा मकसद था कतर और आसपास के इलाकों में काम कर रहे मजदूरों को हीट स्ट्रोक के खतरे से बचाना."
मिलिए, 21वीं सदी के गुलामों से
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकारों के हनन के लिए एक बार फिर कतर की आलोचना की है. फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी करने जा रहे कतर में विदेशी मजदूरों की दयनीय हालत है.
तस्वीर: picture-alliance/augenklick/firo Sportphotoअंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संघ (फीफा) ने विवादों के बावजूद कतर को 2022 के वर्ल्ड कप की मेजबानी सौंपी. मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि कतर में स्टेडियम और होटल आदि बनाने पहुंचे विदेशी मजदूरों की बुरी हालत है.
तस्वीर: picture-alliance/augenklick/firo Sportphotoएमनेस्टी इंटरनेशनल भी कतर पर विदेशी मजदूरों के शोषण का आरोप लगा चुका है. वे अमानवीय हालत में काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Gebertएमनेस्टी के मुताबिक वर्ल्ड कप के लिए निर्माण कार्य के दौरान अब तक कतर में सैकड़ों विदेशी मजदूरों की मौत हो चुकी है.
तस्वीर: picture-alliance/HJS-Sportfotosमानवाधिकार संगठनों के मुताबिक कतर ने विदेशी मजदूरों की हालत में सुधार का वादा किया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Foto: Amnesty Internationalवर्ल्ड कप के लिए व्यापक स्तर पर निर्माण कार्य चल रहा है. उनमें काम करने वाले विदेशी मजदूरों को इस तरह के कमरों में रखा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Foto: Amnesty Internationalस्पॉन्सर कानून के तहत मालिक की अनुमति के बाद ही विदेशी मजदूर नौकरी छोड़ या बदल सकते हैं. कई मालिक मजदूरों का पासपोर्ट रख लेते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B.v. Jutrczenkaब्रिटेन के "द गार्डियन" अखबार के मुताबिक कतर की कंपनियां खास तौर नेपाली मजदूरों का शोषण कर रही हैं. अखबार ने इसे "आधुनिक दौर की गुलामी" करार दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Foto: Amnesty Internationalअपना घर और देश छोड़कर पैसा कमाने कतर पहुंचे कई मजदूरों के मुताबिक उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि हालात ऐसे होंगे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamaniकई मजदूरों की निर्माण के दौरान हुए हादसों में मौत हो गई. कई असह्य गर्मी और बीमारियों से मारे गए.
तस्वीर: picture-alliance/Pressefoto Markus Ulmerकतर से किसी तरह बाहर निकले कुछ मजदूरों के मुताबिक उनका पासपोर्ट जमा रखा गया. उन्हें कई महीनों की तनख्वाह नहीं दी गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamaniकुछ मजदूरों के मुताबिक काम करने की जगह और रहने के लिए बनाए गए छोटे कमचलाऊ कमरों में पीने के पानी की भी किल्लत होती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamaniमजदूरों की एक बस्ती में कुछ ही टॉयलेट हैं, जिनकी साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamani नेपाल, भारत और बांग्लादेश से आए लगभग 5100 मजदूर इस अमीर देश कतर में 2022 फुटबॉल वर्ल्ड कप के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं. लेकिन इनके काम के हालात इतने खराब रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कतर को खासी आलोचना झेलनी पड़ी है. मानवाधिकार संस्थाओं का कहना है कि ये मजदूर बहुत खराब हालात में रह रहे हैं. इनके काम करने की परिस्थितियां खतरनाक और अमानवीय हैं.
कतर में गर्मियों में तापमान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है. इस भयंकर गर्मी में मजदूर कई कई घंटे बाहर खुले में काम करते हैं. हालांकि कतर सरकार ने गर्मियों में खुले में काम करने पर प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन मजदूर हीट स्ट्रोक की शिकायत कर चुके हैं. दोहा में भारतीय दूतावास की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक 2015 में भारत से आए 260 मजदूरों की जान चली गई. इस साल मई में एक भारतीय मजदूर दोहा में एक स्टेडियम में काम करते हुए दिल के दौरे से मारा गया.
इन्हें बच्चे मत कहिए
हर साल 12 जून को बाल श्रम विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन दुनिया भर में अब भी करीब 17 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. 1999 में विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) के सदस्य देशों ने एक संधि कर शपथ ली कि 18 साल के कम उम्र के बच्चों को मजदूर और यौनकर्मी नहीं बनने दिया जाएगा.
तस्वीर: imago/Michael Westermannदक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में बाल मजदूर. इस फैक्ट्री में तौलिये बनाए जाते हैं. मजदूरी करने वाला यह बच्चा करोड़ों बाल मजदूरों में एक है. आईएलओ के मुताबिक एशिया में ही 7.80 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. पांच से 17 साल की उम्र की युवा आबादी में से करीब 10 फीसदी से नियमित काम कराया जाता है.
तस्वीर: imago/imagebrokerपढ़ाई लिखाई या खेल कूद के बजाए ये बच्चे ईंट तैयार कर रहे हैं. भारत में मां-बाप की गरीबी कई बच्चों को मजदूरी में धकेल देती है. भारत के एक ईंट भट्टे में काम करने वाली इस बच्ची को हर दिन 10 घंटे काम करना पड़ता है, बदले में मिलते हैं 60 से 70 रुपये.
तस्वीर: imago/Eastnewsभारत की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1.26 करोड़ बाल मजदूर हैं. ये सड़कों पर समान बेचते हैं, सफाई करते हैं, या फिर होटलों, फैक्ट्रियों और खेतों में काम करते हैं. व्यस्क मजदूरों की तुलना में बाल मजदूर को एक तिहाई मजदूरी मिलती है.
तस्वीर: imago/imagebrokerआईएलओ की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं. कई रात भर काम करते हैं. कई बच्चों को श्रमिक अधिकार भी नहीं मिलते हैं. उनकी हालत गुलामों जैसी है.
तस्वीर: AFP/Getty Imagesबांग्लादेश में बाल मजदूरी काफी प्रचलित है. यूनिसेफ के मुताबिक देश में करीब 50 लाख बच्चे टेक्सटाइल उद्योग में मजदूरी कर रहे हैं. टेक्सटाइल उद्योग बांग्लादेश का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट सेक्टर है. यहां बनने वाले सस्ते कपड़े अमीर देशों की दुकानों में पहुंचते हैं.
तस्वीर: imago/Michael Westermannकंबोडिया में प्राइमरी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ 60 फीसदी है. स्कूल न जाने वाले ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम करते हैं. हजारों बच्चे ऐसे भी है जो सड़कों पर अकेले रहते है. राजधानी नोम पेन्ह की ये बच्ची सामान घर तक पहुंचाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaहालांकि दुनिया भर में सन 2000 के बाद बाल मजदूरों की संख्या गिरी है लेकिन एशिया के ज्यादातर देशों में हालात नहीं सुधरे हैं. बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और म्यांमार में अब भी ज्यादा पहल नहीं हो रही.
तस्वीर: AFP/Getty Images ऐसे हालात में कतर द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे हेल्मेट्स को एक सकारात्मक कदम के तौर पर देखा जा रहा है. अगली गर्मियों से ये हेल्मेट हर मजदूर को उपलब्ध होंगे. कतर में वर्ल्ड कप के आयोजन का कामकाज देख रही सुप्रीम कमेटी फॉर डिलीवरी एंड लेगसी के एक अधिकारी ने बताया कि वर्ल्ड कप के लिए बनाई जा रही हर इमारत में काम करने वाले मजदूरों को दिन में चार घंटे के लिए ये हेल्मेट दिए जाएंगे.
वैसे, इस तरह की तकनीक पर आधारित आइस हैट्स का इस्तेमाल अमेरिकी खिलाड़ी करते रहे है्ं. लेकिन पहली बार है जब निर्माणकार्य में इस तकनीक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होगा.
वीके/एमजे (रॉयटर्स)