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ऑकुस और क्वाड के जरिए चीन को कैसे रोकेगा अमेरिका

राहुल मिश्र
२५ सितम्बर २०२१

आखिरकार क्वाड देशों के नेताओं की आमने-सामने बातचीत हो ही गई. बैठक में मोदी ने क्वाड को 'फोर्स फॉर ग्लोबल गुड' कहा तो बाइडेन ने फ्री एवं ओपन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को बचाने, संवारने की अपील की. ये देश क्या करने वाले हैं.

USA I Präsident Joe Biden spricht während des Quad-Gipfels
तस्वीर: Evan Vucci/AP/picture alliance

क्वाड शिखर सम्मलेन में इस बात पर राय भी बनी कि चारों देशों के शीर्ष नेता सालाना बैठक करेंगे और उनके मंत्रीगण और अधिकारी चौतरफा सहयोग बढ़ाने में लगातार जुटे रहेंगे.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग का व्यापक खाका खींचने की कवायद भी यहां साफ दिखती है. सवा अरब कोविड वैक्सीनों का भारत में उत्पादन, स्वाथ्य क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से जापान के बैंक का भारत में 10 करोड़ डालर निवेश, वैक्सीन सहयोग और तमाम बीमारियों- महामारियों से निपटने में साझा सहयोग जैसे निर्णयों ने स्वास्थ्य सेक्टर में सहयोग को अगली कतार में ला खड़ा किया है. और यह लाजमी भी था.

इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में क्वाड ने जी-7 के शिखर सम्मलेन के दौरान लांच किये बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W ) को समर्थन दिया है. ब्लू डाट नेटवर्क में भी नयी जान फूंकने का वादा है. क्वाड की मंशा चीन के बेल्ट और रोड परियोजना से मुकाबला करने की है. बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड जी-7 की और ब्लू डाट नेटवर्क अमेरिका की क्षेत्रीय बुनियादी ढांचे के विकास और संपर्क से जुड़ी परियोजनाएं हैं. हिंद प्रशांत के लिए इसका खास नीतिगत सामरिक महत्व है.

तस्वीर: Sarahbeth Maney/Pool/Getty Images

वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर यह सहमति है कि 2030 तक चारों देश अपने राष्ट्रीय कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य को पूरा करेंगे. साथ ही वह अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी सहयोग को बढ़ाएंगे. एक जिम्मेदार और सुदृढ़ स्वच्छ-ऊर्जा सप्लाई चेन स्थापित करने का संकल्प भी इन चारों देशों ने लिया है.

ग्रीन शिपिंग नेटवर्क, क्लीन हाइड्रोजन पार्टनरशिप, क्लाइमेट एंड इंफार्मेशन सर्विसेज टास्क फोर्स, क्वाड फेलोशिप, 5-जी के क्षेत्र में सहयोग , टेक्निकल स्टैण्डर्ड कांटेक्ट ग्रुप, सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन इनिशिएटिव, क्वाड सीनियर साइबर ग्रुप का गठन, स्पेस, आउटर स्पेस, और सेटेलाइट डाटा सहयोग जैसे क्षेत्रों में क्वाड के जरिए सदस्य देशों में  आपसी सहयोग के लिए आगे का रास्ता तय होगा.

कुलमिलाकर क्वाड शिखर सम्मलेन सफल रहा है और उसने इन देशों के बीच सहयोग के नए आयाम भी पेश किये हैं. लेकिन चीन पर अचानक आई नरमी इस बैठक को और दिलचस्प बना गई है. इस मुद्दे की तहकीकात में तो समय लगेगा लेकिन क्वाड देशों का एजेंडा अब सैन्य सहयोग से बहुत आगे निकलने की ओर है, यह बात भी साफ दिखती है. इस बहुप्रतीक्षित बैठक पर यूं तो काफी अटकलें लगाई जा रही थी लेकिन हाल की कुछ घटनाओं ने इसे काफी अहम बना दिया है.

15 सितम्बर को अमेरिका, आस्ट्रेलिया, और ब्रिटेन के बीच त्रिकोणीय सामरिक और सैन्य सहयोग के मोर्चे ऑकुस के लांच, और उसके साथ ही फ्रांस के साथ रक्षा सौदे के निरस्त होने से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में खासी हलचल मच गई. वहीं दूसरी ओर ऑकुस का यूरोपीय संघ की इंडो-पैसिफिक रणनीति के ठीक पहले आने से यह कयास भी लगाए गए कि इस समय ऑकुस के लांच से कहीं न कहीं ब्रिटेन की मंशा ईयू की रणनीति को भी चोट पहुंचाने की है.  चौतरफा आलोचना के शिकार हो रहे ऑकुस को शनिवार को जारी क्वाड संयुक्त वक्तव्य में कहीं जगह नहीं दी गई.

तस्वीर: Evan Vucci/AP/picture alliance

क्वाड शिखर वार्ता शुरू होने से पहले एक प्रेस कांफ्रेंस में भी अमेरिकी अधिकारियों ने साफ किया कि ऑकुस में जापान और भारत को शामिल नहीं किया जाएगा. संयुक्त बयान में एक दिलचस्प बात यह भी रही कि चीन का कहीं भी प्रत्यक्ष रूप से जिक्र नहीं किया गया. प्रेस कांफ्रेंसों के दौरान भी चीन भी पर सीधे तौर पर कोई तंज नहीं कसा गया. और तो और संयुक्त राष्ट्र में भी अपने अपने भाषणों में जो बाइडेन और शी जिनपिंग ने अपने रुख में नरमी बरती.

बाइडेन का यह बदला रवैया चौंकाने वाला है - खास तौर पर अगर हम G-7 की बैठक से तुलना कर के देखें तो. चीन पर सीधा हमला करने से बचने की इस रणनीति के पीछे दो कारण हो सकते हैं.

पहला यह कि ऑकुस के लांच के बाद अब अमेरिका और उसके सहयोगियों की रणनीति यह है कि ऑकुस सैन्य और सामरिक मसलों को देखे और क्वाड इंडो-पैसिफिक में नियमबद्ध व्यवस्था और इसके मुक्त और स्वतंत्र होने को सुनिश्चित करे. साथ ही क्वाड के चार देशों के बीच हर दिशा में सहयोग बढाए. वैक्सीन उत्पादन, क्वाड फेलोशिप, साइबर सहयोग, जलवायु परिवर्तन पर सहयोग, सप्लाई चेन और सेमीकंडक्टर उत्पादन पर सहयोग के वादे इसी ओर इशारा करते हैं.

साथ ही, क्वाड संयुक्त वक्तव्य अमेरिका के इन तीनों सहयोगियों के पड़ोस की सिरदर्दियों को भी शामिल करना नहीं भूला. अफगानिस्तान हो या उत्तर कोरिया या दक्षिण पैसिफिक के छोटे छोटे द्वीपों की समस्याएं, सभी का जिक्र है. हां ताइवान का जिक्र भी नहीं है जो एक और दिलचस्प बात है. जानकारों का मानना था कि पिछले ट्रेंड के अनुरूप इस बार भी ताइवान या क्रॉस-स्ट्रेट संबंधों का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कहीं ना कहीं जिक्र होगा. यहां क्रॉस स्ट्रेट संबंध का मतलब चीन और ताइवान के रिश्तों से है.

ऑकुस की बैठक में जो बाइडेन, बोरिस जॉनसन और स्कॉट मॉरिसनतस्वीर: Andrew Harnik/abaca/picture alliance

संक्षेप में कहें तो क्वाड का काम होगा एक नई व्यवस्था को बनाना और ऑकुस का काम होगा सामरिक और सैन्य मोर्चे पर चीन को सीधी चुनौती देना. अंग्रेजी के वाक्यांश – "अच्छा पुलिसमैन, बुरा पुलिसमैन” खेलने को अब यह दोनों संगठन तैयार लगते हैं, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं होगा ऑकुस के रास्ते में मुश्किलें अभी और हैं. वहीं दूसरी ओर क्वाड का भी दुनिया भर के तामझाम सर पर उठाना बहुत महात्वाकांक्षी लगता है. कहीं न कहीं क्वाड देशों की सोच यह भी रही होगी कि चीन, फ्रांस, आसियान और ईयू - दोस्त या प्रतिद्वंदी किसी को भी अनावश्यक रूप से उकसाया ना जाय.

शायद यही वजह है कि वक्तव्य में आसियान के इंडो-पैसिफिक आउटलुक, और यूरोपीय संघ की इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटेजी दोनों को तरजीह दी गई है. विवाद के बाद वैसे भी इंडो-पैसिफिक समर्थक देशों में ही आपसी कलह की शुरुआत हो ही गई है.

ऐसे में बहुत निश्चयात्मक और बोल्ड स्टेमेंट देकर क्वाड आग में घी डालने का काम नहीं करना चाह रहा होगा ऐसा लगता है. जो भी हो, पहली क्वाड शिखर वार्ता में ही क्वाड का रुख बदला सा दिखता है अब इसे सिर्फ सैन्य गठबंधन नहीं कहा जा सकता है. और अगली बैठक आते आते यह क्या रूप लेगा यह भी देखना दिलचस्प है.

फिलहाल क्वाड और इंडो-पैसिफिक की दशा और दिशा देख कर किसी शायराना- मिजाज टिप्पणीकार को मीर तकी मीर का वही मिसरा याद आता होगा कि "इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए होता है क्या”.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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